भाजपा ने इस बार के चुनाव में स्वास्थ्य, शिक्षा, बुनियादी ढांचा, कृषि, रोजगार, पर्यटन, कानून व्यवस्था, उद्योग एवं अर्थ व्यवस्था के लिए बड़े-बड़े वादे किए हैं। इसके साथ ही गरीबों के कल्याण, महिलाओं को आत्म निर्भर बनाने, पूर्व सैनिकों के कल्याण, सुरक्षित देवभूमि और भाषा-संस्कृति के मामले में भी भाजपा ने अपना दृष्टिकोण मतदाताओं के सामने रखा है। इस दृष्टि में किए गए कुछ बड़े वादां का आकलन राज्य की स्थिति के अनुसार किया जाए तो नई नवेली सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती अपने दृष्टि पत्र में किए गए इन वादां को धरातल पर उतारने की रहेगी
”Politician promise you heaven
before election and give you hell after”
प्रसिद्ध लेखिका एम्मा गोल्डमैन का उक्त कथन कि ‘चुनाव से पहले राजनेता जनता को स्वर्ग देने का वायदा करते हैं और चुनाव बाद उसी जनता को नर्क में धकेल देते हैं।’ राजनीतिक दलों के चुनावी घोषणा पत्र के संदर्भ में आज भी प्रासांगिक लगता है। भारतीय लोकतंत्र में चुनावी वादों और घोषणाओं के प्रति जनवाबदेही का अभाव और जनता की इन घोषणा पत्रों के प्रति अरूचि राजनीतिक दलों की राह और आसान कर देती है। घोषणा पत्र कुछ समय तक अखबारों की सुर्खिंयां जरूर बनते हैं लेकिन इसे आम जनता कितना पढ़ती है ये राजनीतिक दल और जनता ही बेहतर समझती है। पत्रकारों और मीडिया को भी ये सरकारों को पांच साल के कार्यकाल पूरा करने के समय ही याद आते हैं। चुनावी घोषणा पत्र वोट दिलाने की अपेक्षा से ज्यादा राजनीतिक दलों के लिए बौद्धिक या वैचारिक मंथन से ज्यादा कुछ नहीं हैं। चुनावी घोषणा पत्र को न ही सत्तारूढ़ दल याद रख पाता है न ही विपक्ष सत्तारूढ़ दल के इस दस्तावेज के आधार पर सरकार को कठघरे में खड़ा करता है। कभी कांग्रेस के घोषणा पत्र में जगह पाया ‘गरीबी हटाओ’ का नारा जितना जनता की जुबान में चढ़ा शायद ही उतना कोई अन्य नारा या वादा जनता को याद हों जो राजनीतिक दलों ने चुनावों के समय किया हो। जब ब्रिटेन के हाउस ऑफ लार्ड्स के सदस्य लार्ड डेनिंग कहते हैं कि ‘किसी राजनीतिक दल का चुनावी घोषणा पत्र ईश्वरीय वाणी नहीं है, न ही कोई हस्ताक्षरित बॉन्ड’ तो किसी राजनीतिक दल के घोषणा पत्र की वास्तविक स्थिति का पता चल जाता है कि ये कोई संवैधानिक दस्तावेज नहीं है जिसकी घोषणाओं के अमल की संवैधानिक बाध्यता हो। चुनावी घोषणा पत्रों में लंबे समय से स्थान पा रहा विधायिकाओं में महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण का मामला इसका बेहतरीन उदाहरण है जो आज भी वास्तविकता में तब्दील नहीं हो पाया है। आम जनता में ये धारणा अकारण नहीं है कि चुनावों के दौरान चुनाव आयोग की आदर्श आचार संहिता और राजनीतिक दलों के चुनावी घोषणा पत्र पर अमल करवा पाना आसान नहीं है।
भाजपा ने इस बार के चुनाव में स्वास्थ्य, शिक्षा, बुनियादी ढांचा, कृषि, युवा और रोजगार, पर्यटन तथा कानून व्यवस्था, उद्योग एवं अर्थ व्यवस्था के लिए बड़े-बड़े वादे किए हैं। इसके साथ ही गरीबों के कल्याण, महिलाओं को आत्म निर्भर बनाने तथा पूर्व सैनिकों के कल्याण तथा सुरक्षित देवभूमि और भाषा- संस्कृति के मामले में भी भाजपा ने अपना दृष्टिकोण मतदाताओं के सामने रखा है। इस दृष्टि में किए गए कुछ बड़े वादां का आकलन राज्य की स्थिति के अनुसार किया जाए तो नई नवेली सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती अपने दृष्टि पत्र में किए गए इन वादां को धरातल पर उतारने की रहेगी।
बुनियादी ढांचे का संकल्प
भाजपा केंद्र सरकार के भरोसे बुनियादी ढांचे को बेहतर करने का जतन कर रही है। राज्य के 10 पहाड़ी जिलां में रोपवे निर्माण के लिए पर्वत माला परियोजना, 4जी-5जी नेटवर्क, हाई स्पीड ब्रॉड बैंड और फाइबर इंटरनेट से जोड़ने की घोषणा पूरी तरह केंद्र सरकार की सहायता पर निर्भर करती हैं। इसी तरह से शहरी बुनियादी ढांचा विकास कोष भी केंद्रीय सहायता के भरोसे है। देहरादून शहर केंद्र सरकार के स्मार्ट सिटी योजना में पहले से है। इस योजना को आरम्भ हुए पांच वर्ष हो चुके हैं लेकिन अभी तक देहरादून में बुनियादी काम ही पूरे नहीं हो पाए हैं। यह हाल तब है जब इसका खर्च केंद्र सरकार द्वारा उठाया जा रहा है।
20 शहरी क्षेत्रों में गैस पाइप लाइन और एक हजार इलेक्ट्रिक बसों को चलाए जाने की योजना भी कर्ज में डूबे प्रदेश की कमजोर अर्थव्यवस्था के चलते पूरी होनी असम्भव ही प्रतीत होती है। पूर्व में केंद्र की यूपीए सरकार द्वारा देहरादून नगर में जेएनयूआरएन के तहत बसें उपलब्ध कराई गई थी।
अब शहरी क्षेत्रों में एक हजार इलेक्ट्रिक बसों को चलाने की घोषणा भाजपा ने अपने दृष्टि पत्र में की है। पूर्व में भी राज्य सरकार देहरादून से मसूरी तथा हल्द्वानी से नैनीताल के लिए नियमित इलेक्ट्रिक बस सेवा चला चुकी है जिसे कुछ ही महीने बाद रोक दिया गया है। अब अगर फिर से राज्य सरकार इस तरह की योजना प्रदेश में लागू करने की बात करती है तो सबसे बड़ा प्रश्न इस योजना के लिए बजट की व्यवस्था का होगा। एक बस की लागत ही 25 लाख के करीब बताई जा रही है। साथ ही शहर में कई चार्जिंग स्टेशनों का निर्माण भी किया जाना है। चार्जिंग स्टेशनों की लागत भी करोड़ों में आएगी। हालांकि केंद्र सरकार इस योजना को स्वीकृत कर चुकी है।
शिक्षा संकल्प
प्रदेश में नई शिक्षा नीति 2020 को लाग कर दिया गया है। दृष्टि पत्र में प्रत्येक न्याय पंचायत में सीबीएसई से मान्यता प्राप्त अटल उत्कृष्ट विद्यालय और प्रत्येक ब्लॉक में एक कॉलेज खोलने का वादा किया गया है। प्रदेश में 670 न्याय पंचायतें और 70 ब्लॉक हैं। दिलचस्प बात यह है कि पहले ही राज्य सरकार 3 हजार प्राथमिक स्कूलों को छात्र संख्या न होने के चलते या तो बंद कर चुकी है या किसी अन्य विद्यालय में विलय कर चुकी है। बावजूद इसके 670 अटल उत्कृष्ट विद्यालय की स्थापना का उल्लेख भाजपा ने अपने संकल्प पत्र में किया है।
स्वास्थ संकल्प
केंद्र सरकार भारत के हर जिले में एक मेडिकल कॉलेज खोले जाने की योजना पर काम कर रही है। उत्तराखण्ड भी इसमें शामिल है। चुनाव से ठीक पहले इस दिशा में कदम बढ़ाते हुए धामी सरकार कुमाऊं के रामनगर में एम्स का सेटेलाइट सेंटर खोलने की मंजूरी दे चुकी है। संकल्प पत्र में जन औषधि केंद्रों की संख्या 109 से बढ़ाकर 400 करने का वादा किया है। यह योजना भी पूरी तरह से केंद्र पर ही आधारित है जिसमें उत्तराखण्ड का कोई योगदान नहीं है। वर्तमान में संचालित जन औषधि केंद्रों की बदहाली पहले से ही एक बड़ा मुद्दा बना हुआ है। ऐसे में नए औषधि केंद्रों की स्थापना नई सरकार के समक्ष बड़ी चुनौती साबित हो सकता है।
महिला उत्थान संकल्प
इसमें वादा किया गया है कि सभी गरीब घरों को एक वर्ष में 3 एलपीजी गैस सिलेंडर दिया जाएगा, जबकि गरीब परिवार की आय का मामला पहले ही विवादों में आ चुका है। भारत सरकार ने सरकारी नौकरियों में 8 लाख की प्रति वर्ष आय वाले परिवार को गरीब की श्रेणी में माना है। भारत सरकार की इस नीति के तहत सीधे-सीधे 75 प्रतिशत आबादी गरीब की श्रेणी में आ चुकी है। इसका प्रभाव उत्तराखण्ड में भी पड़ा है। एक अनुमान के तहत 90 लाख की आबादी गरीबी की श्रेणी में आ गई है। इनमें अगर पांच व्यक्तियों को एक घर या परिवार की श्रेणी में मान लिया जाए तो 18 लाख परिवार गरीब की श्रेणी में आ जाते हैं। प्रति परिवार 2100 रुपए के तीन गैस सिलेंडर देने में ही 378 करोड़ प्रति वर्ष सरकार को अपने खजाने से खर्च करना पड़ेगा। यह राज्य सरकार के लिए कड़ी चुनौती साबित होगा।
कृषि संकल्प
कर्ज पर आधारित आर्थिक तंत्र वाले प्रदेश में वित्तीय बोझ बढ़ाने की घोषणा में कृषि भी है। संकल्प पत्र में राज्य सरकार द्वारा 2 हजार रुपए की धनराशि प्रति वर्ष किसानों को दिए जाने की घोषणा की गई है। यह घोषणा केंद्र सरकार की किसान सम्मान निधि से इतर की गई है। इसके लिए अलग से सीएम किसान प्रोत्साहन निधि योजना के गठन की बात कही गई है। इसमें भी राज्य सरकार को अपने सालाना बजट से कई सौ करोड़ की धनराशि खर्च करनी पड़ेगी जो कि सुनने में बहुत अच्छा है लेकन अमल में लाना पहाड़ चढ़ने जेसा है। किसानों और बागवानां के लिए भी अधिकतर केंद्र सरकार द्वारा घोषित योजनाओं को रखा गया है, जैसे बागवानी के लिए 500 करोड़ का कोष, 50 आधुनिक कृषि भंडारण और कोल्ड स्टोरेज के लिए 1 हजार करोड़ का कोष तथा गांवां को प्राकृतिक कृषि से जोड़ने के लिए प्राकृतिक कृषि प्रोत्साहन योजना की बात कही गई है। यह योजना भी केंद्र सरकार की ही है।
युवा और रोजगार तथा खेल संकल्प
वर्तमान में राज्य में बेरोजगारां का आंकड़ा 10 लाख के करीब है जिसमें प्रशिक्षुओं का आंकड़ा भी लागतार बढ़ रहा है। प्रदेश में पहले से ही प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना चल रही है जिसमें हर वर्ष हजारों युवाओं को प्रशिक्षण दिया जा रहा है। सरकार इसे अपनी उपलब्धि मान जमकर प्रचार करती रही है। प्रत्येक प्रशिक्षु बेरोजगार को 3000 रुपए प्रति माह दिए जाने की घोषणा के अमल में ही राज्य के खजाने से तीन सौ करोड़ का खर्च होने की संभावना है जिसे पूरा करना भी बड़ी चुनौती होगा।
उद्योग एवं अर्थ व्यवस्था संकल्प
पांच लाख रोजगार का सृजन करने का संकल्प और 3 वर्ष तक प्रति कर्मचारी 5 हजार की वेतन सब्सिडी देने की घोषणा भी ठीक वैसी ही है जैसे बेरोजगारों को 3 हजार प्रतिमाह दिए जाने की घोषणा है। इस मद में भी कई सौ करोड़ सरकार को खर्च करने पड़ेंगे जिसका भार वर्तमान परिस्थितियों में राज्य की अर्थव्यवस्था उठा पाने में सक्षम नहीं है। भाजपा ने प्रदेश को पूरे उत्तर भारत का सेमी कडक्टर निर्माण और डेटा सेंटर हब बनाने की बात कही है जो अपने आप में सुखद लगती हैं लेकिन तमाम बड़े राज्यों में तक अभी तक इसका निर्माण नहीं हो पाया है जहां सभी सुविधाएं मोजूद हैं। ऐसे में कठिन भौगोलिकी वाले राज्य में इसको धरातल पर उतारना खासा कठिन संकल्प है।
भाजपा के संकल्प पत्र में केवल दो ऐसे संकल्प हें जो पूरी तरह से उत्तराखण्ड सरकार के ही है जिनमें एक कानून व्यवस्था को लेकर वादा किया गया है जिसमें लव जेहाद के कानून में संशोधन कर उसे कठोर बनाने और दोषियों को दस वर्ष के कारावास के प्रावधान की बात है। दूसरा राज्य में नशे के बढ़ते कारोबार को खत्म करने के लिए जीरो टॉलरेंस ऑफ ड्रग्स की नीति लागू करने की बात कही गई है। इसके लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाने ओैर ड्रग्स पैडलरों की संपतियों को जब्त करने की बात कही गई है। इसके अलावा भाजपा अपने हिंदुवादी एजेंडे को भी अपने संकल्प पत्र में रखते हुए सुरक्षित देवभूमि का संकल्प ले चुकी है। इसमें जनसंख्या बदलाव पर एक अधिकार प्रहरी समिति तथा उत्तराखण्ड के युवाओं और पूर्व सैनिकों को सीमावर्ती क्षेत्रों में बसने के लिए सहायता देने के लिए हिम प्रहरी योजना चलाने का वादा किया गया है।
सतही तौर पर भाजपा का यह चुनावी घोषणा पत्र विधानसभा चुनाव के लिए है लेकिन गहराई से देखने पर साफ लगता है कि पूरा का पूरा संकल्प पत्र 2024 के लोकसभा चुनाव को देखते हुए बनाया गया है। अब भाजपा दूसरी बार सत्ता में आई है तो केंद्र सरकार के सहयोग से चलने वाली योजनाओं-परियोजनाओं को तो केंद्र के भरोसे छोड़कर सरकार अपना काम चला लेगी लेकिन जो वित्तीय खजाने पर बोझ बढ़ाने वाले वायदे और घोषणाएं हैं जिन्हें भाजपा की भाषा में कहा जाए कि संकल्प हैं, को धरातल पर उतराना नए मुख्यमंत्री और उनकी सरकार के साथ-साथ प्रदेश की अफसरशाही के लिए भी कठिन चुनौती बनने वाली है। यह तब और कठिन हो जाता है कि पिछले पांच वर्ष में ज्यादातर योजनाएं केंद्र के सहारे ही दौड़ रही थी, जबकि राज्य सरकार के पास अपने ही कर्मचारियों को वेतन आदी देने के लिए खुले बाजार से कर्ज लेकर काम चलाना पड़ा था।
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