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Uttarakhand

हॉट सीटों पर टिकी हैं सबकी निगाहें

उत्तराखण्ड में विधानसभा चुनाव संपन्न हो चुके हैं। अब 10 मार्च को परिणाम आने हैं। तब तक सभी प्रत्याशियों की किस्मत ईवीएम में बंद हो चुकी है। इस दौरान चुनावी रुझान आने शुरू हो गए हैं जिनमें कांग्रेस फायदे में नजर आती दिख रही है, जबकि भाजपा के लिए यह चुनाव घाटे का सौदा साबित होता दिख रहा है। इस बार जनता ने मोदी लहर को बिल्कुल नकार दिया। यही नहीं, दशकों से विधानसभा में जमे विधायक इस बार खतरे में दिखाई दे रहे हैं। कई ऐसे राजनेता हैं जिनकी स्थिति कमजोर नजर आ रही है। इस बार सत्ता पक्ष पर शराब और पैसा बांटने के भी आरोप जमकर लगे हैं। कई जगह इस मुद्दे को लेकर धरना-प्रदर्शन और वीडियो भी वायरल हुए

उत्तराखण्ड में कुछ ऐसी हॉर्ट सीट रही जिन पर प्रदेश ही नहीं बल्कि पूरे देश की नजर है। इन में से एक है लालकुआं विधानसभा सीट, जिस पर पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत चुनाव कांग्रेस से लड़ रहे हैं। खटीमा सीट पर भी लोगों का विशेष ध्यान है क्योंकि यहां से वर्तमान मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी चुनावी चक्रव्यूह में फंसे हुए हैं। इसके अलावा हरीश रावत के करीबी रहे रणजीत रावत की सल्ट तो प्रदेश में अकाली दल के कोटे से चली आ रही एकमात्र सीट काशीपुर जिस पर इस बार भाजपा के टिकट पर त्रिलोक सिंह चीमा चुनाव लड़ रहे हैं चर्चाओं में है। हरिद्वार सीट पर कैबिनेट मंत्री रहे भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक तो हरिद्वार ग्रामीण पर पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत की पुत्री अनुपमा रावत तथा कोटद्वार से पूर्व मुख्यमंत्री बीसी खण्डूड़ी की बेटी ऋतु खण्डूड़ी के परिणामों पर सबकी नजर है। यही नहीं बल्कि लैंसडाउन विधानसभा सीट पर कैबिनेट मंत्री रहे हरक सिंह रावत की प्रतिष्ठा दांव पर है। यहां से हरक सिंह रावत की पुत्रवधु अनुकृति गुसाईं रावत चुनाव लड़ रही है।

लालकुआं
उत्तराखण्ड की सबसे चर्चित सीट रहीं नैनीताल की लालकुआं। सीट यहां से पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत का सीधा मुकाबला भाजपा के मोहन सिंह बिष्ट से था। मोहन सिंह बिष्ट पिछले डेढ़ दशक से लालकुआं विधानसभा क्षेत्र में हर घर में दस्तक दे चुके हैं। वह मतदाताओं के बीच अपनी मजबूत स्थिति भी बना चुके हैं। हरीश रावत का टिकट रामनगर से जब लालकुआं घोषित हुआ तो कांग्रेसी बहुत खुश नजर आए। लेकिन जैसे ही वह विधानसभा क्षेत्र में पहुंचे तो उन्हें जमीनी हकीकत भाजपा के प्रत्याशी के पक्ष में दिखी। इसके बाद हरीश रावत और पार्टी के अन्य नेताओं ने बहुत मेहनत की। हल्द्वानी की ब्लॉक प्रमुख सहित 16 ग्राम प्रधान हरीश रावत के पक्ष में आ गए। दूसरी तरफ कांग्रेस की बागी बन संध्या डालाकोटी हरीश रावत के लिए अंतिम समय तक मुश्किलें पैदा करती रहीं। हालांकि दूसरी तरफ भी भाजपा के बागी नेता पवन चौहान ने भाजपा की वोटों में सेंध लगाई। भाजपा ने रावत को लालकुआं में घेरने के लिए चक्रव्यूह रचा। लेकिन आखिरी 2 दिनों में वह इस चक्रव्यूह को तोड़ने में कामयाब हो गए। फिलहाल, लालकुआं विधानसभा से जो रूझान आ रहे हैं वह हरीश रावत के पक्ष में हैं।

 

 

 

 

सल्ट

सल्ट विधानसभा क्षेत्र में भी सबकी नजर टिकी हुई हैं। कारण यह है कि यहां से पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के कभी खास रहे रणजीत रावत चुनाव लड़ रहे हैं। पूर्व में रामनगर विधानसभा क्षेत्र पर अपनी दावेदारी जता रहे रणजीत रावत को पार्टी हाईकमान के आदेश पर सल्ट चुनाव लड़ने को जाना पड़ा। हालांकि सल्ट जाकर रणजीत रावत का चुनाव फंस गया। इसका कारण रही यहां से पूर्व में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ी गंगा पंचोली। गंगा पंचोली और उनके समर्थक कांग्रेसियों ने इस चुनाव में अपनी पार्टी के प्रत्याशी रणजीत रावत का बिल्कुल भी साथ नहीं दिया। कुछ ऐसा ही पूर्व में गंगा पंचोली के साथ भी हुआ था। जब वह 2020 में सल्ट से उप चुनाव लड़ी थी। तब कहा गया था कि रणजीत रावत और उनके समर्थकों ने अपनी पार्टी की प्रत्याशी गंगा पंचोली का साथ नहीं दिया था।
रणजीत रावत के लिए चुनाव में सबसे ज्यादा दिक्कत इस बात को लेकर आई कि वह पिछले 10 साल से सल्ट में कम ही सक्रिय रहे हैं। भाजपा को सबसे ज्यादा वोट मनीला और झमार में पड़े। जबकि तल्ला सल्ट में मिलाजुला असर रहां तो वही मौलेखाल में रणजीत रावत आगें रहें। देघाट और सयाल्दे में भी भाजपा प्रत्याशी महेश जीना को ज्यादा वोट मिले। 2017 के मुकाबले इस बार 3 प्रतिशत कम मतदान हुआ। 2017 में मतदान 44 प्रतिशत था तो इस बार 41 प्रतिशत पर सिमट गया। बहरहाल, सल्ट विधानसभा में बहुत कम मतदान होना भी दोनों प्रत्याशियों के लिए चिंता का विषय बना हुआ है।

 

 

खटीमा
खटीमा विधानसभा क्षेत्र में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी संकट में नजर आ रहे हैं। हालांकि कहा जा रहा है कि अंतिम समय पर वह अपनी सीट निकालने में कामयाब हो सकते हैं। लेकिन जिस तरह से आम आदमी पार्टी के प्रत्याशी एसएस कलेर ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी पर पैसे बांटने के आरोप लगाने वाली वीडियो वायरल की उससे जनता में दूसरा मैसेज गया।

हालांकि दूसरी तरफ मजबूत स्थिति में रहे कांग्रेस प्रत्याशी भुवन कापड़ी भी एक स्टिंग में फंसते नजर आए। यह स्टिंग चुनाव से सिर्फ 1 दिन पहले ही वायरल हुआ था जिसमें वह अवैध खनन की एवज में 50 लाख लेने की बात कर रहे हैं। कहा जा रहा है कि कांग्रेस प्रत्याशी भुवन कापड़ी के लिए अगर चुनाव कमजोर होगा तो वह इसी स्टिंग की वजह से होगा। पहाड़ी मतदाताओं में सबसे ज्यादा वोट पुष्कर सिंह धामी को पडें।

 

 

जबकि इस विधानसभा सीट पर जीत हार का केंद्र बनने वाला थारू मतदाता इस बार तीन जगह बंटता नजर आया। बसपा के रमेश राणा के साथ ही भाजपा के पुष्कर धामी और कांग्रेस के भुवन कापड़ी में से जो भी थारू वोटों में ज्यादा सेंध लगाएगा वह मजबूत स्थिति में सामने आएगा। यहां यह भी बताना जरूरी है कि थारू वोटों पर पूर्व में रमेश राणा सबसे ज्यादा वोट लेते रहे हैं। लेकिन इस बार वह आश्चर्यजनक स्थिति में 2 दिन पहले ही सत्ता पक्ष के सामने आत्मसमर्पण करते नजर आए। इससे थारू मतदाता पिछली बार के मुकाबले रमेश राणा को बहुत कम मिल रहा है। सिख वोटों में आम आदमी पार्टी के प्रत्याशी एसएस कलेर ज्यादा प्रभावी रहे।

 

 

काशीपुर
काशीपुर विधानसभा सीट में इस बार उम्मीदों के विपरीत परिणाम आने की संभावनाएं हैं। भाजपा को इस सीट पर पूरी उम्मीद थी कि उनके चार बार के विधायक रहे हरभजन सिंह चीमा के बेटे त्रिलोक सिंह चीमा को ही जीत मिलेगी। लेकिन स्थानीय भाजपा नेताओं को हाईकमान द्वारा फिर से चीमा के हाथ में टिकट देना नागवार गुजरा।
स्थानीय भाजपा नेताओं ने अंदर खाने इसका विरोध किया। जिसका नतीजा यह रहा कि चीमा का इस बार विधायक बनना आसान नजर नहीं आ रहा है। इस बार काशीपुर विधानसभा सीट पर कांग्रेस के पूर्व में सांसद और विधायक रहे केसी सिंह बाबा के पुत्र नरेंद्र चंद्र सिंह मजबूत स्थिति में है।

 

 

 

उन्हें सबसे ज्यादा बढ़त मिलने में मुस्लिम मतदाताओं का हाथ रहा। पहले कहा जा रहा था कि मुस्लिम मतदाता कांग्रेस और आम आदमी पार्टी की तरफ दो जगह बट सकता है। लेकिन आम आदमी पार्टी के प्रत्याशी दीपक बाली मुस्लिम मतदाताओं में सेंध नहीं लगा पाए। इसके साथ ही यह भी कहा जा रहा है कि भाजपा के भितरघात का परिणाम चीमा को हार के रूप में मिल सकता है। संभावित हार की इसी बौखलाहट में पूर्व विधायक हरभजन सिंह चीमा ने एक प्रेस कॉफ्रेंस की है। जिसमें उन्होंने अपनी ही पार्टी के नेताओं पर आरोप लगाए हैं।

 

हरिद्वार ग्रामीण
हरिद्वार ग्रामीण में इस बार पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत की बेटी अनुपमा रावत चुनाव लड़ रही है। स्थानीय लोग कह रहे हैं कि अनुपमा रावत का टिकट अगर पहले हो जाता तो वह और भी ज्यादा मजबूत स्थिति में होती। भाजपा के प्रत्याशी स्वामी यतिस्वरानंद से अनुपमा रावत की कड़ी टक्कर है। यहां अनुपमा की जीत हार का फैसला मुस्लिम वोट मतदाताओं के ऊपर टिका हुआ है।
कुल 130,000 मतदाताओं वाले इस विधानसभा में 42000 मुस्लिम है। जिसमें अगर मुस्लिम एक तरफा अनुपमा रावत को पड़ा है तो वह निश्चित तौर पर जीत रही हैं। लेकिन जिस तरह से कहा जा रहा है कि यहां बसपा से यूनुस अंसारी मुस्लिम मतों को बांट रहे हैं उससे कांग्रेस की सीट कठिन हो सकती है।

 

2017 के विधानसभा चुनाव में मुस्लिम प्रत्याशी मुकर्रम 7000 वोट ले गए थे। इसके चलते ही स्वामी यतीस्वरानंद की जीत आसान हुई थी। इस सीट पर आम आदमी पार्टी के नरेश शर्मा भी चुनाव लड़ रहे हैं। नरेश शर्मा को भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और हरिद्वार से चुनाव लड़े मदन कौशिक का रिश्तेदार बताया जा रहा है। चर्चा है कि मदन कौशिक ने स्वामी यतीस्वरानंद को शिकस्त देने के इरादे से नरेश शर्मा को यहां से आम आदमी पार्टी के टिकट पर चुनाव लडाया है।

 

हरिद्वार
हरिद्वार विधानसभा सीट पर इस बार भाजपा के पूर्व में कैबिनेट मंत्री रहे और प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक का कड़ा मुकाबला कांग्रेस के सतपाल ब्रह्मचारी से रहा। हालांकि जिस तरह से हरिद्वार से रूझान आ रहे हैं उससे लग रहा है कि इस बार मतदाताओं का मन परिवर्तन का है। जबकि पिछले चार बार से यहां से विधायक चुनते आ रहे मदन कौशिक की सीट खतरे में बताई जा रही है। कांग्रेस के सतपाल ब्रह्मचारी ने यहां नशे को अपना ब्रह्म अस्त्र बनाया। उन्होंने लोगों से नशे के खिलाफ वोट देने की अपील की। चौंकाने वाली बात यह रही कि एक तरफ कांग्रेस प्रत्याशी नशे के खिलाफ लोगों से अपील कर रहे थे तो दूसरी तरफ भाजपा प्रत्याशी की लाखों रुपए की शराब पकड़ी जा रही थी।

 

 

हरिद्वार के लोग कहते नजर आए कि अगर मदन कौशिक पिछले 20 साल में यहां विकास कार्य कराते तो उन्हें विकास के नाम पर वोट मांगने चाहिए थे न कि वह शराब बांट कर मतदाताओं को प्रभावित करते। हरिद्वार में  अब तक मदन कौशिक को जिताने वाला व्यापारी वर्ग रहा है। इस बार व्यापारी वर्ग भाजपा के खिलाफ नजर आया। इसका कारण गंगा स्नान पर बॉर्डर सील कर देने से उनके व्यापार पर चोट लगना रही। व्यापारियों में इस बात का आक्रोश था कि कभी भी मदन कौशिक ने उनके लिए लड़ाई नहीं लड़ी और न ही उनके व्यापार को बंद होने से बचाने के लिए कोई प्रयत्न किए। मदन कौशिक के खिलाफ इस बार एंटी इन्कमबेंसी प्रमुख रूप से सामने आई है।

 

 

 

कोटद्वार
कोटद्वार विधानसभा सीट इस बार उत्तराखण्ड के पूर्व मुख्यमंत्री बीसी खंडूरी की पुत्री ऋतु खंडूरी के चुनाव लड़ने से चर्चाओं में है। कोटद्वार के लोग ऋतु खंडूरी को पैराशूट प्रत्याशी मानते हैं। इसके चलते ही वह इस चुनाव में पिछड़ती नजर आई। ऋतु खंडूरी को पीछे करने में भाजपा के ही बागी उम्मीदवार धीरेंद्र चौहान का हाथ रहा। धीरेंद्र चौहान यहां से भाजपा के जिला अध्यक्ष रहे हैं। वह पार्टी के टिकट पर प्रबल दावेदार थे। लेकिन ऐन वक्त पर ऋतु खण्डूड़ी को यहां से मैदान में उतार दिया गया। इस पर वह निर्दलीय ही मैदान में कूद पड़े।

धीरेंद्र चौहान को स्थानीय निवासी होने का भी फायदा मिलता दिख रहा है। फिलहाल, भाजपा के बागी धीरेंद्र चौहान और ऋतु खण्डूड़ी के आमने-सामने आ जाने से कांग्रेस के पूर्व कैबिनेट मंत्री और यहां से प्रत्याशी सुरेंद्र सिंह नेगी के चुनाव जीतने के आसार ज्यादा नजर आ रहे हैं। वैसे भी पिछले 5 साल से कोटद्वार के लोग विकास को तरस गए थे। हरक सिंह रावत यहां से विधायक और कैबिनेट मंत्री थे। पुष्कर सिंह धामी सरकार में वह कोटद्वार का विकास कार्य होने का बहाना लेकर कांग्रेस में आ गए।

 

बहरहाल, भाजपा प्रत्याशी ऋतु खण्डूड़ी का रुखा व्यवहार भी मतदाताओं को दूर करता हुआ नजर आया। कोटद्वार के मतदाता कहते नजर आए कि ऋतु खण्डूड़ी व्यवहार कुशल नहीं हैं। अपने पिता पूर्व मुख्यमंत्री बीसी खण्डूड़ी की तरह वह भी अनुशासन प्रिय है। लेकिन कोटद्वार के लोगों को खण्डूड़ी का अनुशासन पसंद नहीं आया। यहां से आम आदमी पार्टी के प्रत्याशी अरविंद वर्मा ने भी अच्छा चुनाव लड़ा। उनका एक वीडियो भी वायरल हुआ। जिसमें वह कांग्रेस प्रत्याशी सुरेंद्र सिंह नेगी के पैर छूते नजर आ रहे हैं। इसी दौरान नेगी द्वारा उन्हें दूर हटाए जाना मतदाताओं के बीच चर्चा का विषय बना। हालांकि यह वीडियो सुरेंद्र सिंह नेगी के चुनाव पर कितना प्रभाव डालेगा यह तो 10 मार्च को ही पता चलेगा।

लैंसडाउन
लैंसडाउन विधानसभा सीट पर इस बार पूर्व कैबिनेट मंत्री रहे हरक सिंह रावत की पुत्रवधू अनुकृति गुसाईं रावत कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ी। वह भाजपा के महंत दिलीप रावत से कड़ी टक्कर लेते दिखीं। इस विधानसभा सीट पर चुनाव बेशक अनुकृति गोसाईं रावत लड़ रही हैं लेकिन चुनावी मैनेजमेंट हरक सिंह रावत के हाथों में रहा। हरक सिंह रावत चुनावी मैनेजमेंट में महारत हासिल किए हुए हैं। लैंसडाउन विधानसभा पर पूर्व में हरक सिंह रावत भाजपा प्रत्याशी महंत दिलीप रावत के पिता भरत सिंह रावत को दो बार हरा चुके हैं। उनकी पुत्रवधू अनुकृति गुसाईं का प्लस पॉइंट यह है कि वह लैंसडाउन की ही निवासी हैं। वह मतदाताओं को अपने बोलने के अंदाज से आकर्षित कर रही हैं। इसी के साथ ही पिछले 2 सालों से वह अपने एनजीओ के माध्यम से लैंसडाउन में सक्रिय थी। जिसका फायदा उन्हें चुनाव में मिला।

 

 

 

 

दूसरी तरफ भाजपा के महंत दिलीप रावत के द्वारा विकास कार्य न कराना उनका माइनस पॉइंट रहा है। रामनगर विधानसभा क्षेत्र से मिलते नैनीडांडा इलाके में मतदाताओं ने चुनाव का बहिष्कार किया। यहां के लोगों का कहना था कि भाजपा विधायक रहते महंत दिलीप रावत ने उनके क्षेत्र में बिजली, पानी, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी मूलभूत सुविधाएं नहीं दी। महंत दिलीप रावत पिछले 5 सालों में अगर कुछ करते दिखे तो वह हरक सिंह रावत के खिलाफ प्रेस कॉफ्रेंस मे आरोप लगाते रहे। जिसमें वह बार-बार यह कहते रहें कि हरक सिंह रावत उनके विधानसभा क्षेत्र में हस्तक्षेप कर रहे हैं। हरक सिंह रावत का भी अधिकतर ध्यान अपने विधानसभा क्षेत्र कोटद्वार के बजाय लैंसडाउन पर ही केंद्रित रहा। अपनी पुत्रवधू अनुकृति देसाई रावत को वह लैंसडाउन से चुनाव लड़ाने की पहले से ही रणनीति बना चुके थे। जिसका उन्हें फायदा मिलता नजर आ रहा है।

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