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Uttarakhand

AIIMS की छह एकड़ जमीन हुई लापता

AIIMS की छह एकड़ जमीन हुई लापता

अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) ऋषिकेश को केंद्र सरकार ने पूर्व में पशुलोक की जो 107 एकड़ भूमि दी थी उसमें से 6 एकड़ से ज्यादा भूमि आज तक लापता है। इसके बावजूद आईडीपीएल की 200 एकड़ भूमि फिर से एम्स को दिए जाने का निर्णय ले लिया गया है, जबकि अपनी लापता भूमि को पाने के लिए एम्स प्रशासन ने न तो कभी कोई प्रयास किया और न ही पशुलोक विभाग ही कुछ कर पाया। करोड़ों की भूमि के इस तरह गायब होने से कई गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं। जिसमें पशुलोक विभाग के उच्चाधिकारियों की भूमिका संदेह के घेरे में दिखाई दे रही है, तो एम्स पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं। ऋषिकेश निवासी जेपी त्रिपाठी ने सूचना अधिकार अधिनियम के तहत एम्स प्रशासन से एम्स ऋषिकेश को आंवटित भूमि का विवरण और जानकारी मांगी तो चौंकाने वाली जानकारी सामने आई है।

जानकारी के अनुसार एम्स को आंवटित 107 एकड़ भूमि में से 6 एकड़ भूमि उसे मिली ही नहीं है, जबकि पशुलोक विभाग के अभिलेखों में साफ तौर पर अंकित है कि एम्स ने 107 एकड़ भूमि पर कब्जा प्राप्त करके उसमें चार दीवारी का निर्माण कर लिया है। वर्ष 2003 में केंद्र की तत्कालीन अटल बिहारी सरकार के कार्यकाल में उत्तराखण्ड को एम्स की सौगात दी गई थी। वर्ष 2004 में तत्कालीन केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री सुषमा स्वराज और केंद्रीय भूतल परिवहन व राष्ट्रीय राजमार्ग मंत्री भुवन चंद्र खण्डूड़ी ने एम्स का शिलान्यास किया। तब प्रदेश में कांग्रेस की नारायण दत्त तिवारी सरकार थी। इस पूरे कालखण्ड में एम्स को लेकर तमाम तरह की चर्चाएं और कयास लगाए जाते रहे।

एम्स को ऋषिकेश से अन्यत्र ले जाये जाने के अलावा भूमि के स्वरूप और कमी को लेकर कई बातें होती रही। लेकिन शिलान्यास के बाद इन सब बातों पर विराम लग गया। 23 जनवरी 2004 को एम्स को पशुलोक ऋषिकेश की 100.815 एकड़ भूमि एम्स निर्माण के लिए हस्तांतरित की गई। लेकिन इस भूखण्ड को निर्माण के लिए कम पाया गया। लिहाजा 7 एकड़ अतिरिक्त भूमि भी आंवटित की गई। इस तरह एम्स ऋषिकेश को कुल 107.815 एकड़ भूमि हस्तांतरित की गई।

यह एक अति महत्वपूर्ण तथ्य है। जिसका खुलासा तत्कालीन उप निदेशक रामानंद, पशुपालन विभाग केंद्रीय भेड़ एवं ऊन अनुसंधान केंद्र पशुलोक ऋषिकेश की ओर से 15 नवंबर 2006 को तत्कालीन स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण सचिव को लिखे गए पत्र संख्या 4333-36 कृषि एम्स/0607 से हो जाता है। इस पत्र में उप निदेशक रामानंद ने स्पष्ट तौर पर उल्लेख किया है कि ‘एम्स द्वारा 107.815 एकड़ भूमि में एम्स से संबंधित बाउंड्रीवाल का निर्माण कर लिया गया है और शेष 7 एकड़ वन भूमि स्थानांतरण का शासनादेश इस कार्यालय को उपलब्ध कराने की कृपा करें ताकि इस स्तर के कार्यालय अभिलेख पूर्ण किए जा सकें।

इस पत्र से स्पष्ट होता है कि एम्स को हस्तांतरित 107. 815 एकड़ भूमि उसे प्राप्त हो चुकी है जिसमें चारदीवारी का निर्माण पूरा कर लिया गया है, लेकिन शासनादेश पशुलोक को नहीं मिल पाया था। कुछ इसी तरह का पत्र पशुपालन विभाग केंद्रीय भेड़ एवं ऊन अनुसंधान केंद्र पशुलोक ऋषिकेश के उपनिदेशक डॉक्टर कमल मेहरोत्रा ने 22 जनवरी 20078 को प्रभागीय वनाधिकारी देहरादून वन प्रभाग को लिखा। इस पत्र संख्या 4817-21/ एम्स पत्र0/07/08 दिनांक 22/1/2008 में एम्स को 7 एकड़ अतिरिक्त भूमि तथा मानचित्र पशुलोक कार्यालय को प्राप्त करवाने के लिए लिखा गया है। इससे यह स्पष्ट हो जाता हे कि एम्स को 107.815 एकड़ भूमि हस्तांतरित की जा चुकी है।

दरअसल, पशुलोक की स्थापना वन विभाग की सैकड़ों एकड़ भूमि में की गई थी जिसमें 833 एकड़ भूमि पूर्व में आईडीपीएल को दी गई थी। पशुलोक की कई सौ एकड़ भूमि चीला जलविद्युत परियोजना के निर्माण के लिए, ऋषिकेश में बैराज निर्माण के लिए सिंचाई विभाग को हस्तांतरित की गई। पशुलोक की भूमि ही टिहरी बांध प्रभावितां के पुनर्वास तथा एम्स के निर्माण के लिए दी गई। कई सौ एकड़ भूमि पर अवेध तरीके से कब्जे आदि हो चुके हैं जिसमें बापूग्राम, मीरा नगर तथा शिवाजी नगर जेसे कस्बे स्थापित हो चुके हैं।

पशुलोक के अधिकारी सोते रहे और पशुलोक की भूमि पर कब्जे होते रहे। यहां तक कि टिहरी बांध विस्थापितों को पुनर्वास विभाग द्वारा ऐसी भूमि पर विस्थापित किया जा चुका है जो पशुलोक ने कभी भी पुनर्वास विभाग को हस्तांतरित नहीं की थी। बावजूद इसके आज सैकड़ों टिहरी बांध विस्थापितों के भव्य आवास और बहुमंजिला भवनों की एक विशाल कॉलोनी विकसित हो चुकी है। गौर करने वाली बात यह है कि राज्य का पशुपालन विभाग और पशुलोक प्रशासन के साथ-साथ पुनर्वास विभाग लापरवाह बना रहा। हालांकि इस मामले में एक जनहित याचिका हाईकोर्ट नैनीताल में दाखिल की गई है और उस पर हाईकोर्ट ने कड़ा रुख अख्तियार कर पशुलोक की भूमि से सीधे अवैध कब्जों को हटाने के आदेश जारी कर दिए हैं। इससे पशुलोक और पशुपालन विभाग खासा परेशान है क्योंकि अभी तक न तो प्रशासन कब्जां को हटा पाया है और न ही इसका कोई हल निकाल पाया है। अभी भी इस मामले में हाईकोर्ट में सुनवाई पर चल रही है।

इसी तरह से एम्स की भूमि के मामले में भी किया गया लगता है। सूचना के अधिकार के तहत प्राप्त जानकारी से पशुलोक के अभिलेखों में यह साफ हो गया है कि एम्स ऋषिकेश को 107.815 एकड़ भूमि मिल चुकी है जिस पर चारदीवारी का निर्माण हो चुका है, जबकि मौजूदा समय में एम्स पूरी तरह से संचालित भी हो रहा है। लेकिन हैरत की बात यह है कि स्वयं एम्स प्रशासन सूचना के अधिकार के तहत जानकारी दे रहा है कि एम्स को 101 एकड़ भूमि ही प्राप्त हुई है, जिस पर एम्स का निर्माण हुआ है। इसके अतिरिक्त कोई अन्य भूमि एम्स को हस्तांतरित नहीं हुई है।

गौर करने वाली बात यह है कि एम्स को 107.815 एकड़ भूमि हस्तानंतरित होने और उस पर एम्स के कब्जा प्राप्त कर लेने की जानकारी पशुपालन विभाग की ओर से दी जा रही है, लेकिन एम्स का दावा है कि एम्स को सिर्फ 101 एकड़ भूमि ही प्राप्त हुई है। अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि आखिर 6.815 एकड़ भूमि कहां है और वह किसके कब्जे में है क्योंकि पशुलोक तो स्पष्ट कर चुका है कि उसने एम्स को पूरी 107.815 एकड़ भूमि दे दी है, हालांकि उसके पास भूमि हस्तांतरित किए जाने का शासनादेश नहीं है यह अपने आप में ही गंभीर सवाल है। मौजूदा समय में यह भूमि तकबरीन 30 बीघे से भी ज्यादा है जिसकी कीमत आज करोड़ों में है। यह वेशकीमती भूमि आखिर किसके अधिकार में है।

जेपी त्रिपाठी आरोप लगाते हैं कि पशुलोक प्रशासन ने एम्स को 101 एकड़ ही भूमि दी है और उसका सर्वे साजिश के तहत छुपाया गया है। पशुलोक में जिस तरह से वर्षों से जमीनों का खेल रचा जा रहा है उसके तहत पशुलोक प्रशासन ने इस भूमि को कागजां में अपने आधीन करने के लिए ही एम्स को 107.815 एकड़ भूमि हस्तांतरित करने का उल्लेख किया है।

यह आरोप कहां तक सच है यह तो कहा नहीं जा सकता, लेकिन इतना तो तय है कि इस पूरे मामले में बहुत बड़ा खेल जरूर रचा गया है। जिसमें पशुपालन विभाग पूरी तरह से जिम्मेदार है। साथ ही एम्स प्रशासन की भूमिका पर भी इसलिए सवाल खड़े हो रहे हैं कि एम्स ने अपनी अतिरिक्त 6.815 एकड़ भूमि को प्राप्त करने के लिए कोई प्रयास तक नहीं किया।

पशुलोक प्रशासन शुरू से ही अपनी कार्यशैली के लिए विख्यात रहा है। अविभाजित उत्तर प्रदेश के समय से ही पशुलोक प्रशासन पर कई गंभीर सवाल खड़े होते रहे हैं। पशुपालन विभाग केंद्रीय भेड़ एवं ऊन अनुसंधान केंद्र चमोली जिले के गोपेश्वर में स्थापित किया गया था, लेकिन अधिकारियों की आरामतलबी के चलते इसे ऋषिकेश के पशुलोक में स्थानांतरित किया गया, जबकि इस पशुलोक को चारा विकास और पशुओं की नस्ल सुधार के लिए गाय, सूअर और घोड़ों के केंद्र के तोर पर स्थापित किया गया था।

इसी पशुलोक में पूर्व में घोड़ों की मौतों का भी मामला सामने आ चुका है। जमीनों पर अवैध कब्जों के मामले तो हमेशा से चर्चाओं में रहे हैं। जैसे कि पूर्व में सिंचाई विभाग पर पशुलोक प्रशासन अपनी 88.89 एकड़ भूमि के अवैध कब्जे का अरोप लगा चुका है, लेकिन जांच और भूमि पैमाइश में सिंचाई विभाग के पास पशुलोक की भूमि नहीं पाई गई। लेकिन इससे इतना तो साफ हो गया कि पशुलोक की 88 एकड़ से ज्यादा भूमि पहले ही गायब हो चुकी थी और अब 6.815 एकड़ भूमि एम्स के नाम पर गायब की जा चुकी है।

अब केंद्र सरकार और प्रदेश सरकार ने एम्स को फिर से आईडीपीएल की 200 एकड़ अतिरिक्त भूमि देने का निर्णय ले लिया है, लेकिन पूर्व में जो 6.815 एकड़ भूमि गायब हो चुकी है उसकी क्या स्थिति है, यह न तो पशुलोक प्रशासन बता पा रहा है और न ही एम्स प्रशासन अपनी भूमि को लेने का प्रयास करता दिख रहा है। अगर जेपी त्रिपाठी की बातों को सही मानें तो पशुलोक प्रशासन एम्स की गायब भूमि को जानबूझकर लापता बता रहा है, उस भूमि को भी अवैध कब्जों के नाम पर ठिकाने लगा दिया गया है। यह बात कहां तक सही है अभी कुछ कहा नहीं जा सकता, लेकिन अगर इस मामले की सही तरीके से जांच हो जाए तो कई बड़े खुलासे भी हो सकते हैं। इस बारे में प्रभागीय वनाधिकारी देहरादून वन प्रभाग का कहना है कि मुझे इस मैटर को देखना पड़ेगा। मैं इसको जानता नहीं हूं। पहले देख लूं तब कुछ कहूंगा।

बात अपनी-अपनी

पशुलोक प्रशासन और पशुपालन विभाग ने ही एम्स की जमीन को गायब किया है। जिस तरह से पशुलोक की भूमि पर टिहरी बांध के लोगों को अवैध तरीके से बसाया गया है उसी तरह से इस भूमि को भी कब्जा करवाया गया है। एम्स ने अपनी जमीन को लेने का प्रयास नहीं किया तो लगता है कि एम्स भी इसमें शामिल हो सकता है। ऐसा कैसे हो सकता है कि केंद्र सरकार का इतना बड़ा संस्थान अपनी जमीन को पाने का प्रयास तक नहीं कर रहा है। अभी हाईकोर्ट में पशुलोक को फटकार मिल चुकी है। इस मामले में भी जांच हो जाए तो यह बड़ा खेल किसने रचा सब बाहर आ जाएगा। -जे.पी. त्रिपाठी, आरटीआई एक्टिविस्ट

हमने जमीन फॉरेस्ट विभाग को सुपुर्द कर दी थी। फॉरेस्ट विभाग ने एम्स को कितनी जमीन दी है, यह तो वही बता सकता है। आप फॉरेस्ट विभाग से ही पूछें। -राजेंद्र वर्मा, परियोजना निदेशक पशुपालन विभाग केंद्रीय भेड़ एवं ऊन अनुसंधान केंद्र पशुलोक ऋषिकेश

नोटः अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान ऋषिकेश के प्रशासन से इस पूरे प्रकरण में उनका पक्ष जाने के लिए ‘दि संडे पोस्ट’ सवांददाता ने लगातार कई बार प्रयास किया। दो बार एम्स में निदेशक प्रोफेसर डॉक्टर रविकांत से इस मामले में बात करने के लिए मुलाकात का समय मांगा, लेकिन दोनों बार समय नहीं दिया गया। यहां तक कि टेलीफोन पर बात करने के लिए भी अवसर नहीं दिया गया। इसके बाद संवाददाता को डॉक्टर बिजेन्द्र सिंह जो कि शरीर रचना विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष के साथ ही कि सूचना अधिकार अधिनियम के तहत प्रथम अपीलीय अधिकारी भी हैं, से इस मामले में बात करने को कहा गया। लेकिन उनके द्वारा इस मामले को पहले देखने और फिर बात करने का आश्वासन दिया गया है। समाचार लिखने तक डॉक्टर बिजेंद्र सिंह का कोई पक्ष ‘दि संडे पोस्ट’ को नहीं मिल पाया। इसके अलावा एम्स के मुख्य जनसंपर्क अधिकारी हरीश थपलियाल से भी टेलीफोन पर संपर्क करने का प्रयास किया गया, लेकिन उनसे संपर्क नहीं हो पाया है।

कृष्ण कुमार

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