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Uttarakhand

आखिर क्यों रूठ गई काली और गौरी…?

नेपाल ने नदियों के रौद्र रूप से बचने के लिए महाकाली नदी के किनारे तटबंध बनाए हैं, लेकिन भारतीय क्षेत्र में लगातार भूकटाव हो रहा है। इससे हजारों लोगों पर खतरा मंडरा रहा है। यही नहीं भूकटाव से भारत की धरती सिकुड़ती जा रही है

जनपद पिथौरागढ़ के सीमांत क्षेत्र से निकलने वाली काली व गोरी नदी पिछले कई दशकों से रूठी हुई हैं। हर बरसात में इनके तांडव की कीमत सीमांत के लोगों को जान व माल का नुकसान उठाकर चुकानी पड़ रही है। यह नदियां अपना रास्ता बदल बस्तियों की तरफ रुख कर तबाही मचा रही हैं। विशेषज्ञ पहाड़ों में भूगर्भीय हलचलों के साथ ही नदियों की अविरलता एवं निर्मलता से छेड़छाड़ व गाद भरना इसकी वजह मानते हैं। गाद भरने से इनकी जल ग्रहण क्षमता खत्म हो रही है जिससे यह अपना रास्ता बदलने को मजबूर हैं। इसके अलावा इनके किनारे बसने वाले लोगों ने इन नदियों को डंपिंग यार्ड में तब्दील कर रखा है। बस्तियों का सीवर कूड़ा करकट एवं तमाम गंदगी इनमें समाहित हो रही है।

पहले बात करते हैं काली नदी की, यह नदी व सिर्फ भारतीय आबादी के लिए खतरा बन रही है बल्कि यह भारत की तरफ कटाव कर नेपाल सीमा पर भारत का भूगोल भी बदलने में लगी है। भूस्खलन के चलते भारतीय भूभाग नेपाल की तरफ जा रहा है। 2013 में आई आपदा के बाद से यह सिलसिला शुरू हुआ जो निरंतर जारी है। गीठिगड़ा, कानड़ी सीपू, बलतड़ी, खर्कतड़ी, तपोवन, खोनिला, छारछू में भूस्खलन के चलते भूमि नेपाल की तरफ जा रही है। काली नदी लगातार भारतीय भूभाग की तरफ मुंह मोड़ रही है। वर्ष 2013 की आपदा में काली नदी के प्रवाह के चलते झूलाघाट में 28 मकान हवा में लटक गए जो आज भी लटके हुए हैं। यही हाल इस नदी के किनारे बसे धारचूला, बलुवाकोट, जौलजीबी, नया बस्ती, छारछम का भी हुआ था। इस आपदा में एक झूला पुल सहित 50 से अधिक मकान ध्वस्त हो गए थे। इस आपदा के बाद नेपाल ने सबक लेते हुए तीन अरब रुपए खर्च कर अपने क्षेत्र में 5 किमी ़, लंबे तटबंध बनाये लेकिन भारत सिर्फ धारचूला के पास ही कुछ तटबंधों का निर्माण कर सका है।

तटबंध न बनने से काली नदी लगातार कटाव कर रही है जिसके चलते धारचूला से झूलाघाट तक को 31 हजार से अधिक की आबादी खतरे में है। हर बरसात में काली खतरे के निशान से ऊपर बहती है, अपना रास्ता बदलती है जिसके चलते इसके किनारे बसे सैकड़ों परिवारों को अन्यत्र शरण लेनी पड़ती है। धारचूला के पास खोतिला गांव जिसकी आबादी करीब एक हजार के पास है खतरे में है। काली नदी अब तक अपने तेज बहाव के चलते कई आवासीय भवनों की जमीन को बहा चुकी है। एक दर्जन से अधिक मकान अभी भी तेज बहाव के खतरे में हैं। यह लंबे समय से इस गांव का कटाव कर रही है। खोतिला में ही रहे भूस्खलन के चलते काली नदी का प्रवाह भी प्रभावित हो रहा है। टनकपुर, तवाघाट हाईवे पर भी खतरा है। खोतिला में भूकटाव कोई नया नहीं है। वर्ष 1971 में इसके निकट स्थित ज्यूती गाड़ में बादल फटने से भारी तबाही मची थी।

खोतिला ही नहीं, गोठी, नया बस्ती, छारछुम, राथी, बलुवाकोट की एक बड़ी आबादी खतरे में है। सात दर्जन से अधिक मकान खतरे की जद में हैं। नदी किनारे पक्के तटबंध नहीं बनने से आबादी को खतरा पहुंचा है। काली ही नहीं उसकी सहायक गौरी भी रौद्र रूप में है। गोरी नदी ने 1995 में अपना बहाव क्षेत्र भदेली गांव की ओर किया और अपने साथ पूरे गांव को बहा ले गई। पिछली बारिश में लीलम के पास इस नदी में एक झील बन गई थी। जिससे आस-पास के 14 गांवों पर खतरा मंडराया हुआ है। मल्ला जोहार के इन गांवों के लोग इसलिए डरे हुए हैं कि गोरी नदी नाहर के पास से कभी भी अपना रास्ता बदल सकती है। यह नदी हर बरसात में बंगापानी, लुम्ती, बसंतकोट, छोरीबगड़, भदेली,मदकोट, सेराघाट, बंगापानी, बरम, जौलजीबी में कहर बरपाती रही है।

पिछले दिनों हुई बारिश के चलते लुमती के 8 परिवारों को जंगल में तो धापा, मवानी-दवानी व तोमिक के 18 परिवारों को राहत कैंपों में शरण लेनी पड़ी थी। तल्ला घुरूड़ी में 30 परिवार खतरे की जद में आ गए हैं। हर बरसात में सड़कें, पैदल व मोटर पुल के साथ ही आवागमन के लिए बनी गरारी बह जाते हैं। भारत-नेपाल सीमा पर हो रहे खतरे का दोनों देशों के अधिकारी कई बार संयुक्त निरीक्षण भी कर चुके हैं। नेपाल ने तो सबक लेते हुए अपने क्षेत्र में तटबंध बनाकर अपनी आबादी को सुरक्षित रखने का काम किया है लेकिन भारतीय प्रशासन इस मामले में ढीला-ढाला ही साबित हुआ है। काली नदी उत्तराखण्ड की प्रमुख नदियों में से एक है। इसे महाकाली, कालीगंगा एवं शारदा के नाम से जाना जाता है। इसका उद्गम समुद्र तल से 3600 मीटर की ऊंचाई पर लिपुलेख दर्रे के पास कालापानी है। इसके पास में काली माता का मंदिर भी है।

कालाी माता के नाम से ही इसका नाम काली नदी पड़ा। इसका झुकाव क्षेत्र 15260 वर्ग किमी ़ है। जिसमें से 9943 वर्ग किमी ़ उत्तराखण्ड में है, शेष नेपाल में है। धौली गंगा, गोरी, सरयू, लढ़िया, कुटी, चमेलिया, रामगुण इसकी सहायक नदियां हैं। सरयू काली नदी की सबसे सहायक नदी है। तवाघाट में धौली गंगा, जौलजीबी में गोरी नदी एवं पंचेश्वर में सरयू नदी इसमें मिलती हैं। काली नदी के तट पर धारचूला, जौलजीबी, झूलाघाट, पंचेश्वर, टनकपुर, बनबसा, महेंद्रनगर बसे हैं। यह समुद्र तल में 3600 मीटर की ऊंचाई पर है। यह नदी भारत और नेपाल का प्राकृतिक बार्डर भी बनाती है। मैदानी क्षेत्रों में यह शारदा के नाम से जानी जाती है। इसके उद्गम के पास लिपुलेख दर्रा स्थित हैं। यहां पर तिब्बत एवं भारत की सीमा भी निर्धारित होती है। यह नेपाल के साथ भारत को पूर्वी सीमा बनाती है। इसकी लंबाई 350 मीटर है। पंचेश्वर में सरयू इसमें मिलती है। इसीलिए पंचेश्वर के आस-पास के क्षेत्र को काली कुमाऊं कहा जाता है।

इस नदी के पूर्व में नेपाल एवं पंचेश्वर में भारत का धारचूला क्षेत्र स्थित है। क्षेत्र काफी उपजाऊ रहा है। मालभोग, केला, हंसराज, जड़न, झूसिया, बासमती, कालाजड़िया, झीनी, चिनभुटी, गुरुघोला, कुरमुली, अंचना जैसी धान की किस्मों के साथ खजिया चावल, उड़द, मसूर, गहत, भट्ट मडुवा की भरपूर पैदावार के साथ नदी किनारे नागकेशर, देसी खीरा, तेजपत्ता, बेलपत्री, गिलोई, आंवला, हरड़, बरड़ भी पैदा होते हैं। यहां साल, शीशम, हल्दू, बल, रोला और च्यूरा का सघन वन क्षेत्र भी है। अगर महाकाली एवं गोरी नदी क्षेत्र की जैव विविधता को देखा जाए तो इन दोनों नदियों के बेसिन क्षेत्र में करीब 2359 वनस्पतियां विद्यमान हैं। इन नदियों के पूरे बेसिन क्षेत्र में पक्षियों की 330 प्रजाजियां मौजूद हैं। गोरी नदी के गोरी गंगा एवं स्थानीय भाषा में गोरीगाड़ भी कहा जाता है। यह मिलम ग्लेशियर से निकलती है। यह नदी ‘वी’ आकार की घाटी बनाती है। मदकनी, सुरिंगगाड़, जिमियागाड़, पांछूगाड़, बुर्फूगाड़, रामलगाड़, ल्वागाड़, पोटिंगगाड़, धोसीगाड़, रौंतीस इसकी सहायक नदियां हैं। लेकिन पिछले कई दशकों से यह मानव आबादी के लिए खतरा बनती जा रही हैं। अब इन रूठी नदियों को कैसे मनाया जाय, यह शासन- प्रशासन को तय करना है।

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