- वृंदा यादव
उत्तराखण्ड हाईकोर्ट ने सुनवाई के दौरान अपना बड़ा फैसला सुनाते हुए 13 वर्षीय किशोरी के गर्भपात की मंजूरी दी है। इसके साथ ही मेडिकल बोर्ड टीम गठित करने का आदेश दिया है। चिकित्सकों का कहना है कि बच्ची 25 हफ्ते 4 दिन की गर्भवती है। लेकिन कानूनी रूप से गर्भपात कराने की अवधि 24 हफ्ते है। जिस पर कोर्ट ने यह निर्देश भी दिया है कि किसी भी तरह के खतरे की स्थिति के सामने आने पर मेडिकल बोर्ड को अपने विवेक का इस्तेमाल करना होगा। साथ ही कोर्ट ने मेडिकल बोर्ड को कहा है कि किशोरी के पिता से लिखित में अनुमति ले ली जाए की वह अपनी बच्ची का गर्भपात कराना चाहते हैं और इस अनुमति पत्र में न्यायालय द्वारा वर्चुअली रूप से दी गई अनुमति का भी जिक्र किया जाना आवश्यक है।
देश की कानून व्यवस्था इतनी मजबूत होने के बावजूद आए दिन लड़कियों के साथ होने वाले दुष्कर्म के मामले सामने आते रहते हैं। इस मामले में भी देहरादून की रहने वाली बच्ची के साथ करीबी रिश्तेदार ने दुष्कर्म किया था जिसके कारण वह गर्भवती हो गई। जब परिवार वालों को इस बात की जानकारी हुई तो उन्होंने जिला न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। इसके बाद परिजनों ने बच्ची के गर्भपात की मांग उठाते हुए हाईकोर्ट में याचिका दायर की। जिस पर फैसला सुनाते हुए हाईकोर्ट के वरिष्ठ न्यायाधीश संजय कुमार मिश्रा की एकलपीठ ने दिल्ली हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के कई ऐसे फैसलों को देखते हुए किशोरी के 25 सप्ताह 4 दिन हो चुके गर्भपात की अनुमति दे दी। साथ ही कोर्ट ने 9 दिसंबर तक गर्भपात कि रिपोर्ट पेश करने को कहा है। याद रहे कि उत्तराखण्ड में 10 महीने पूर्व ऐसे ही एक मामले में कोर्ट ने 16 साल की पीड़िता को 28 सप्ताह 5 दिन का गर्भपात कराने की अनुमति दी थी।
गर्भपात के लिए क्या है कानून
गर्भपात के लिए एक कानून ‘मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट’ देश में पहले से ही लागू है। जिसे वर्ष 1971 में लागू किया गया। इस कानून के अनुसार विवाहित महिलाएं 20 सप्ताह के गर्भ तक ही गर्भपात करा सकती हैं लेकिन इसकी कोई ठोस वजह होनी चाहिए। इस प्रकार के केस में केवल एक डॉक्टर की सलाह की आवश्यकता जरूरी होती है। लेकिन अगर गर्भपात कराने में 20 सप्ताह से देरी हो जाती है तो गर्भपात के लिए महिला को कानूनी रूप से मंजूरी प्राप्त करनी होगी। वर्ष 2021 में इस कानून में संसोधन किया गया जिसके तहत विवाहित महिलाओं को 24 सप्ताह तक दो डॉक्टरों की सलाह व जांच के बाद गर्भपात करने की मंजूरी दे दी गई थी। लेकिन यह कानून केवल उन्हीं महिलाओं के लिए है जिनके साथ बलात्कार हुआ हो या कोई अन्य पारिवारिक समस्या हो, तभी वह अपना अनचाहा गर्भ गिरा सकती हैं। यह कानून पहले अविवाहित लड़कियों के लिए नहीं था उनके लिए किसी भी प्रकार से गर्भपात का कानून नहीं बनाया गया था जिसे अब लागू कर दिया गया है।