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Uttarakhand

एक मच्छर ने हिला डाला उत्तराखण्ड

उत्तराखण्ड में अब तक डेंगू के 1310 मामले सामने आ चुके हैं। अकेले राजधानी देहरादून में 810 लोग इससे पीड़ित हैं। बेलगाम मच्छर लोगों की जान लेने को आतुर है, लेकिन राज्य की त्रिवेंद्र सरकार को इसका कोई मलाल नहीं। यही वजह है कि सरकारी अस्पतालों में लोगों को इलाज नहीं मिल पा रहा है। वे मजबूरन निजी अस्पतालों में जा रहे हैं। लोग तड़प रहे हैं, मर रहे हैं, लेकिन मुख्यमंत्री की संवेदनहीनता की हद यह है कि उन्होंने संकट से निपटने के लिए अपने स्तर पर समीक्षा बैठक करने की जरूरत तक नहीं समझी। सरकार की संवेदनहीनता को भाजपा विट्टायक उमेश काउ के कथन से समझा जा सकता है कि बार-बार सीएम समेत सभी आला अधिकारियों से बात करने पर भी सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी है
उत्तराखण्ड राज्य का स्वास्थ्य विभाग आईसीयू में दिखाई दे रहा है। राजधानी देहरादून में डेंगू के मामले जिस तेजी से बढ़ रहे हैं उससे सरकार और विभाग पर गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं। पूरे प्रदेश में अब तक 1310 लोगों को डेंगू होने की पुष्टि हो चुकी है। इनमें आधे से भी अधिक मामले उस राजधानी देहरादून के हैं जहां से प्रदेश की सरकार चलती है। सरकार ओैर स्वस्थ्य विभाग डेंगू पर अंकुश लगाने में असफल हो चुके हैं। यही नहीं वायरल बुखार भी बड़ी तेजी से देहरादून में अपने पैर जमा चुका है। सैकड़ों लोगों को वायरल अपनी चपेट में ले चुका है। इसके चलते लोग इतने दहशत में हैं कि सामान्य बुखार होने पर भी डेंगू की आंशका से जांच कराने के लिए अस्पताल पहुंच जाते हैं। इससे अस्पतालों में बेतहाशा भीड़ बढ़ रही है। अब तक आठ मरीजों की डेंगू से मौत हो चुकी है, हालांकि स्वास्थ्य विभाग के अनुसार महज तीन ही मौतें हुई हैं।
ऐसा नहीं है कि देहरादून में अचानक ही डेंगू ने दस्तक दी हो। पहले भी इसके मामले सामने आते रहे हैं। प्रदेश में वर्ष 2016 में डेंगू के 2046 मामले सामने आए थे। 2017 में 849 मामले सामने आए। 2018 में 591 मामले ही सामने आए। लेकिन 2019 में अब तक पूरे प्रदेश में 1310 मामले सामने आ चुके हैं। देहरादून में 810 लोगों को डेंगू होने की पुष्टि हो चुकी है, जबकि माना जा रहा है कि अभी आने वाले समय में डेंगू की दहशत और भी बढ़ सकती है।
वर्ष 2018 में देहरादून के पथरीबाग क्षेत्र में सबसे ज्यादा डेंगू के मामले सामने आए थे। तब एक ही स्थान पर डेंगू का वायरस इतना तेजी से फैला कि पथरी बाग क्षेत्र में दहशत होने लगी। इस बार रायपुर क्षेत्र में सबसे पहले और सबसे ज्यादा मामले देखने को मिल रहे हैं। सरकार और स्वास्थ्य विभाग की उदासीनता के चलते अब हालात इतने बेकाबू हो चुके हैं कि रायपुर के अलावा अन्य क्षेत्रों में भी डेंगू का वायरल अपने पैर पसार चुका है।
डेंगू  के चलते मरीजों में दहशत का माहौल है, इसका असर दून के सरकारी अस्पतालों पर भी पड़ रहा है। आज हालात यहां तक हैं कि सामान्य दिनों में जहां महज 2-5 सौ मरीज अस्पतालों में आते थे, वहीं आज 15 सौ से 2 हजार मरीज इन अस्पतालों में रोज आ रहे हैं। बावजूद इसके सरकार और स्वास्थ्य विभाग द्वारा व्यवस्था में कोई सुधार नहीं किया गया है। न तो अस्पतालों में चिकित्सकों की संख्या बढ़ाई गई है और न ही बेडों की संख्या में इजाफा किया है। यहां तक कि रक्त जांच के लिए भी कोई अलग से व्यवस्था नहीं की गई है। इसके चलते पांच से सात दिनों का बैकलॉग मरीजों के रक्त नमूने के लिए रखा जा रहा है।
डेगूं की जांच के लिए सरकारी अस्पतालों में पांच दिन से भी ज्यादा का समय लग रहा है। यानी कि मरीज को अगर जांच करवानी है तो उसका शुल्क तो आज जमाकर लिया जा रहा है, लेकिन रक्त का नमूना देने के लिए उसे पांच दिन के बाद बुलाया जा रहा है। दून अस्पताल हो या कोरोनेशन अस्पताल या फिर गांधी शताब्दी चिकित्सालय सभी में यही हालात देखने को मिल रहे हैं। इसके चलते दहशतजदा मरीज निजी पैथोलॉजी लैब में महंगी जांच करवाने के लिए मजबूर हो रहे हैं, परंतु सरकारी चिकित्सक तब तक मरीज को डेंगू का मरीज नहीं मान रहे हैं जब तक उसकी जांच रिपोर्ट न आ जाए। इसी कारण मरीजों को प्राइवेट अस्पताल और निजी लैब में रक्त की जांच करवाने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है।
सरकार की अनदेखी और स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही के कारण आज देहरादून में प्राइवेट रक्त जांच केंद्रों में जबरदस्त भीड़ देखी जा रही है। निजी लैब में मरीजों को जांच के नाम पर लूटा जा रहा है। इसके कई मामले सामने आ चुके हैं। जो डेंगू की सामान्य जांच सरकारी अस्पतालों में निशुल्क है, तो प्राइवेट लैब इसके लिए 1 हजार से 16 सौ तक ले रहे हैं। मरीजों की लाचारी का फायदा उठाने का आलम यहां तक है कि गली-मुहल्लां में रक्त के नमूने लेने के कलेक्शन सेंटर बड़ी तादाद में खुल चुके हैं। घर से रक्त नमूना लेने के लिए भी निशुल्क व्यवस्था इन प्राइवेट लैब संचालकां द्वारा की गई है।
अब सरकारी उदासीनता की बात करें तो आज तक किसी भी सरकार ने डेंगू को अपनी प्राथमिकता में रखा ही नहीं है, जबकि हर बार डेंगू के मामले बढ़ रहे हैं। इस बार भी यही सब देखने को मिला है। डेंगू के हालात प्रदेश और खासतौर पर देहरादून में गंभीर होने के बावजूद अभी तक शासन स्तर पर या मुख्यमंत्री स्तर पर इसकी कोई समीक्षा तक नहीं की गई है। इससे स्पष्ट है कि सरकार डेंगू के प्रति संवेदनहीन बनी हुई है। 6 सितंबर हो  स्वास्थ्य महानिदेशक कार्यालय में अपर सचिव स्वास्थ्य के साथ- साथ स्वास्थ्य महानिदेशक ने एक समीक्षा बैठक जरूर की, लेकिन वह भी महज रस्मआदायगी ही साबित हुई। मुख्य चिकित्साधिकारी देहरादून के उप मुख्य चिकित्साधिकारी का कहना है कि इस बैठक में 21 टीमें बनाई गई जो जनता में डेंगू के प्रति जागरूकता पैदा करने और डेंगू के लार्वे को नष्ट करने का काम करेंगी, जबकि आज हालत कुछ और ही हैं। अस्पताल में रक्त जांच केंद्रां में स्टाफ की भारी कमी बनी हुई है।
चिकित्सकां की भी भारी कमी देहरादून के सरकारी चिकित्सालयों में बनी हुई है। लेकिन इस कमी को दूर करने के लिए कोई प्रयास नहीं किए गए, जबकि जिन जिलों में डेंगू या मौसमी बुखार के मामले कम हैं उन जिलों से चिकित्सकां को अस्थाई तौर पर दून में तैनात किया जा सकता है जैसा कि सरकार हर वर्ष चारधाम यात्रा के समय करती है। मुख्यमंत्री स्तर पर कोई समीक्षा बैठक नहीं हुई है। मुख्यमंत्री औद्योगिक विकास विभाग, पर्यटन विभाग आदि की समीक्षा कर चुके हैं, लेकिन डेंगू के मामलों में बेहद तेजी होने के बावजूद अभी तक कोई समीक्षा बैठक मुख्यमंत्री स्तर पर नहीं की गई है।
देहरादून में विगत कुछ वर्षों से डेंगू के मामले देखने में आए हैं। प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग हर बार शहर को डेंगू मुक्त करने का दावा करता रहा है, लेकिन मामलों के तेजी बढ़ने से लगता है कि यह दावा धरातल पर खरा नहीं उतर पाया है। पिछले तीन वर्ष में देहरादून में डेंगू के मामलों में तेजी देखने को मिली है। हैरानी इस बात की है कि यह मामले तब ज्यादा सामने आए हैं कि जब प्रदेश सरकार स्वच्छता अभियान के नाम पर बड़े-बड़े दावे करती रही है, जबकि पूर्व में देहरादून में डेंगू के मामले दो-चार ही होते थे, लेकिन जबसे स्वच्छता अभियान की शुरुआत की गई है तबसे वायरल बुखार और डेंगू के मामले बढ़े हैं।
वर्ष 2016 में गांधी जयंती के दिन प्रधानमंत्री मोदी द्वारा स्वच्छ भारत अभियान की शुरुआत की गई थी। इसमें अपनी भागीदारी दिखाने के लिए सरकारी स्तर पर बड़े-बड़े दावे और कार्यक्रम किए गए थे। प्रदेश को स्वच्छ करने के लिए सरकार ने जमकर प्रचार भी किया था। एक वर्ष के बाद सचिवालय में भी बड़ा नाटक देखने को मिला। मुख्यसचिव और नौकरशाहों द्वारा सचिवालय में झाड़ लगाए जाने का कार्यक्रम किया गया जिसमें मीडिया को खास तौर पर बुलाया गया। नौकरशाहों ने अपने हाथों में झाड़ लेकर सफाई करने का अभिनय किया। अपनी तस्वीरों को अखबारों में और सोशल मीडिया में जमकर प्रचार के लिए शेयर किया।
  • जिस सचिवालय के नौकरशाहों ने स्वच्छता अभियान का सोशल मीडिया पर जमकर प्रचार किया उसी के कर्मचारी डेंगू से पीड़ित
  • डेंगू से निपटने वाले अस्पताल के मुख्य गेट पर ही कई दिनों से जल जमाव
  • सरकारी अस्पतालों में रक्त जांच केंद्रों, स्टाफ और डॉक्टरों की भारी कमी। मरीजों से पटे निजी अस्पताल
  • सरकार उदासीन, मगर विपक्ष ने भी की रस्म अदायगी
  • अब तक आठ मौतें, स्वास्थ्य सलाहकार का मोबाइल बंद
विडंबना देखिए कि उसी सचिवालय में डेंगू का लार्वा मिला और कई कर्मचारियों को डेंगू होने की जानकारी भी चर्चाओं में है। इससे साफ है कि सरकार और शासन की स्वच्छता को लेकर अभी भी संवेदनहीन हैं। जिस सचिवालय में प्रदेश का पूरा सरकारी अमला बैठता हो उसी सचिवालय में डेंगू का लार्वा मिलना कई सवाल खड़े करता है। यह भी सवाल खड़े करता है कि जब सचिवालय में ही स्वच्छता का यह आलम है तो पूरे प्रदेश या खासतौर पर देहरादून जो कि राज्य की राजधानी है, के हालात क्या होंगे?
इससे बुरे हालात और क्या होंगे कि जिस राजकीय कोरोनेशन अस्पताल को खासतौर पर डेंगू के इलाज के लिए घोषित किया गया है, उसी अस्पताल के मुख्य गेट के सामने पेयजल लाइन क्षतिग्रस्त है। तकरीबन एक सप्ताह से निरंतर साफ पीने का पानी मुख्यगेट के सामने फैला हुआ है। स्वास्थ्य विभाग नागरिकों को निरंतर बताता रहा है कि डेंगू  का लार्वा साफ पानी में पैदा होता है, लेकिन कोरोनेशन अस्पताल में अभी तक स्वास्थ्य विभाग और नगर निगम या पेयजल निगम को साफ रुका पानी नहीं दिखाई दे रहा है, जबकि स्वास्थ्य विभाग ने डेंगू का लार्वा मिलने पर जुर्माना लगाने की भी घोषणा की हुई है। तीन हजार घरों का सर्वे भी स्वास्थ्य विभाग की टीम द्वारा किया गया है, लेकिन कोरोनेशन अस्पताल के मुख्यगेट के सामने पानी के गड्ढ़ों को बंद करने का प्रयास नहीं किया गया। इसी का नतीजा है कि स्वयं कोरोनेशन अस्पताल में चिकित्सकों और कर्मचारियों को भी डेंगू का डंक झेलना पड़ा है।
कांग्रेस ने सरकार पर डेंगू के मामले में गंभीर लापरवाही का आरोप लगाया है। हालांकि यह भी गौर करने वाली बात है कि डेंगू के मामले जिस तेजी से लगातर बढ़ते रहे उसके बावजूद मुख्य विपक्षी कांग्रेस अपनी भूमिका में दिखाई नहीं दी। जब स्थिति गंभीर हो गई तब जाकर कांग्रेस अध्यक्ष प्रीतम सिंह ने प्रेसवार्ता करके रस्म अदायगी की। उन्होंने सरकार पर गंभीर आरोप लगाए। इसके अलावा पूर्व प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय ने कई राजनीतिक दलों को साथ लेकर गांधी पार्क में डेंगू पर सरकार की लापरवाही के खिलाफ मार्च निकाला और मलिन बस्तियों में होम्योपैथी के शिविर लगाए। साथ ही पूर्व दर्जाधारी और विधायक राजकुमार ने डेंगू के मामले में सरकार की लापरवाही और संवेदनहीनता को लेकर राज्यपाल को ज्ञापन भी सौंपा है। लेकिन इस सबमें एक बात गौर करने वाली है कि मुख्यमंत्री के स्वास्थ्य सलाहकार डॉक्टर नवीन बलूनी की कोई भूमिका अभी तक डेंगू के मामले में देखने को नहीं मिली। यहां तक कि उनका टेलीफोन नंबर जो कि सरकारी सूचना डायरी में दर्ज है, वह भी बंद बता रहा है। यहां तक कि स्वयं मुख्यमंत्री कार्यालय से मुख्यमंत्री के स्वास्थ्य सलाहकार डॉ नवीन बलूनी का नया नंबर जानकारी लेने पर भी नहीं मिल पा रहा है।
सरकार की नाकामी के खिलाफ प्रदर्शन
इसके अलावा यह भी गौर करने वाली बात है कि मलिन बस्तियों और नदी-नालों के किनारे बसी बस्तियों के हाईकोर्ट के आदेश पर ध्वस्त करने की कार्यवाही के समय भाजपा विधायकों ने अपनी ही सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलकर सरकार को कार्यवाही करने से पीछे हटने पर मजबूर किया तो सरकार को अध्यादेश लाना पड़ा। आज वही विधायक देहरादून में डेंगू के विकराल होते मामलों में चुप्पी साधे हुए हैं, जबकि डेंगू के अधिकतर मामले उन्हीं क्षेत्रों में देखने को मिल रहे हैं जिनके लिए भाजपा विधायकों ने अपनी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोला था। रायपुर क्षेत्र में ही सबसे ज्यादा और सबसे पहले डेंगू के मामले सामने आए थे। स्थानीय विधायक उमेश शर्मा काउ द्वारा सरकार या स्वास्थ्य विभाग को कई बार कहा जा चुका है, लेकिन सुनवाई नहीं हो पा रही है।

बात अपनी-अपनी

डेंगू के मामले कभी बढ़ते हैं तो कभी घट जाते हैं। 2016 में बहुत बढ़े थे तो 2017 में घटे थे। इसी तरह 2019 में बढ़े हैं। डेंगू के लिए कोई अलग से बजट नहीं होता है। तीन लाख का बजट होता है प्रचार -प्रसार के लिए। जनता में बुखार, डेंगू मलेरिया से बचाव के लिए जागरूकता का कार्यक्रम चलाया जाता है।
डॉ. सुभाष जोशी, जिला मलेरिया एवं डेंगू उन्मूलन प्रभारी अधिकारी
स्वास्थ्य विभाग में हमेशा समीक्षा बैठक होती है। जून माह में भी समीक्षा बैठक हुई है। अभी 6 सितंबर को डीजी हेल्थ और अपर सचिव स्वास्थ्य ने समीक्षा बैठक की थी। जिसमें 21 टीमें बनाई गई हैं। जो डेंगू से बचाव के लिए काम कर रही हैं। मुख्यमंत्री स्तर पर कोई समीक्षा बैठक नहीं हुई है। हमारी स्वास्थ्य महानिदेशक स्तर पर ही बैठकें होती हैं।
मुख्य चिकित्साधिकारी, देहरादून कार्यालय
सरकार ने डेंगू के मरीजों को भगवान के भरोसे छोड़ दिया है। सरकारी अस्पतालों में खून की जांच के लिए एक हफ्ते से ज्यादा का समय लग रहा है। ऐसे में प्राइवेट लैब वाले जनता को जमकर लूट रहे हैं। अस्पतालां में डॉक्टरों की कमी है। बेड नहीं हैं। मरीज जाए तो कहां जाए। यह सरकार डेंगू बीमारी को ही नहीं रोक पा रही है तो इससे और क्या उम्मीद कर सकते हैं। हमने जब देखा कि सरकार कुछ करने के बजाय लापरवाह बनी हुई है तो हमने होम्योपैथी के चिकित्सकों के स्वास्थ्य शिविर लगाए हैं। एक ही दिन में 2 हजार मरीजों को होम्योपैथी की दवाएं बांटी गई हैं। जब एलौपैथी में डेंगू का इलाज नहीं है और होम्योपैथी में इसका इलाज है तो सरकार क्यों नहीं डेंगू प्रभावित क्षेत्रों में होम्योपैथी के शिविरों का आयोजन कर रही है।
किशोर उपाध्याय, पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष
हमारी तो कुछ समझ में नहीं आ रहा है। मुख्यमंत्री जी से चार-चार बार कह चुके हैं। स्वास्थ्य सचिव को कई पत्र लिख चुके हैं। डीजी हेल्थ को पत्र दे चुके हैं, लेकिन कोई सुनने को ही तैयार नहीं है। पूरे रायपुर विधानसभा क्षेत्र में डेंगू का कहर टूट पड़ा। आज स्थिति में सुधार हो रहा है, लेकिन जो होना चाहिए वह नहीं हो रहा है। अब पूरे देहरादून शहर के हालात रायपुर जैसे होने लगे हैं। अभी पूरे शहर को डेंगू का कहर झेलना पड़ेगा।
उमेश शर्मा काउ, विधायक रायपुर
सरकार जिस तरह से डेंगू को लेकर लापरवाह बनी हुई है वह सरकार की नाकामी को ही दिखा रहा है। बरसात से पहले ही सरकार को सचेत हो जाना चाहिए था। अब डेंगू विकराल हो गया है, तो फिर भी सरकार सुस्त बनी हुई है। सरकार डेंगू के मामलों को भी छुपा रही है। पारदर्शिता का अभाव सरकार के कामकाज पर साफ तौर पर दिखाई दे रहा है। आज देहरादून में ही डेंगू से हालात बदतर हो चुके हैं, लेकिन सरकार इस पर ध्यान ही नहीं दे रही है।
गरिमा दासौनी, प्रदेश प्रवक्ता कांग्रेस

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