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Uttarakhand

एक चिट्ठी ने दिखाया ‘जीरो टॉलरेंस’ का सच

 

‘दि संडे पोस्ट’ एक्सक्लूसिव

 

 

वन विभाग की भूमि पर लैंड जिहाद के खिलाफ सरकार का अभियान तेजी से चला और कॉर्बेट पार्क इलाके से वन विभाग की 455 हेक्टेयर भूमि को मजार जिहाद से मुक्त कर दिया गया। जिसे अंजाम देने वाले अधिकारी का नाम पराग मधुकर धकाते है। यही अधिकारी कॉर्बेट पार्क इलाके के पांच सितारा रिसॉर्ट एवं होटल्स द्वारा किए गए सरकारी जमीन पर अतिक्रमण के मामले में शिथिल होते नजर आते हैं। यह तब है जब पूर्व डीएफओ नेहा वर्मा इस बाबत हाईकोर्ट के आदेश पर अतिक्रमणकारियों पर रिपोर्ट दर्ज करा सरकारी जमीन को कब्जा मुक्त कराने के लिए चिन्हित कर चुकी है। चौंकाने वाली बात यह कि धकाते हाईकोर्ट के आदेशों की धज्जियां उड़ाते हुए रिसॉर्ट स्वामियों को राहत दे देते हैं। एक ईमानदार अधिकारी कुंदन कुमार जब डीएफओ बन कॉर्बेट पार्क इलाके में आते हैं तो अपने ही उच्चाधिकारी को हाईकोर्ट के आदेशों की अवहेलना करते पाते हैं। नेताओं और नौकरशाहों की नींद तब उड़ी जब कुंदन ने मुख्य वन संरक्षक को चिट्ठी लिख धकाते के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील करने की अनुमति मांगी। इस चिट्ठी ने सरकार के ‘जीरो टॉलरेंस’ का सच सामने ला दिया है

 

एक तरफ प्रदेश के युवा मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी प्रदेश में ‘जीरो टॉलरेंस’ की बात कर भ्रष्टाचार पर पूरी तरह नियंत्रण का दावा करते हैं तो वहीं दूसरी तरफ उनके मातहत अधिकारी ही उनके इस दावे पर पलीता लगाते नजर आते हैं। मामला विश्व प्रसिद्ध जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क का है जहां करीब 23 किलोमीटर लंबे हाथी कॉरीडोर पर लग्जरी और भव्य रिसॉर्ट एवं होटलों का कब्जा हो गया है। मानव-वन्य जीव संघर्ष होना और दर्जनों लोगों का इस परिक्षेत्र में बेमौत मारे जाने की एक वजह यह भी है। वन्य जीव खासकर हाथी जब जिम कॉर्बेट जंगल से कोसी नदी में पानी पीने आते हैं तो वहां तक रिसॉर्ट और होटल्स का अनाधिकृत कब्जा हो गया है। इस मामले की गंभीरता को समझते हुए 2012 में एक एनजीओ हिमालयन युवा ग्रामीण संस्था द्वारा हाईकोर्ट नैनीताल में याचिका दायर की गई थी। इस याचिका पर सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट द्वारा रामनगर वन विभाग को इस बाबत पूरे तथ्य न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करने के आदेश किए गए।

हाईकोर्ट के इन आदेशों का पालन करते हुए जब तत्कालीन डीएफओ नेहा वर्मा ने जांच की तो 9 रिसॉर्ट एवं होटल्स ऐसे पाए गए जिन्होंने वन विभाग की आरक्षित जमीन पर कब्जा किया हुआ है। इस बाबत वन विभाग ने वाद दायर कर हाईकोर्ट के आदेशों पर सभी अतिक्रमण आरोपियों पर रामनगर थाने में मुकदमा दर्ज करा दिया। साथ ही वन विभाग द्वारा अपनी जमीन से अतिक्रमण हटाने को सभी 9 रिसॉर्ट एवं होटल्स चिन्हित भी किए जा चुके हैं। इससे पहले कि नेहा वर्मा द्वारा इन सभी के खिलाफ कार्रवाई कर सरकारी जमीन को कब्जे से छुड़ाया जाता उनका ट्रांसफर कर दिया गया। अतिक्रमण आरोपी भाजपा और कांग्रेस के नेता हैं जिन्होंने अपने रसूख के बल पर निष्पक्ष जांच कर रही नेहा वर्मा का न केवल तबादला कराया, बल्कि हाईकोर्ट के आदेशों के विपरीत वन संरक्षक (पश्चिमी वृत्त उत्तराखण्ड) पराग मधुकर धकाते के यहां अपील कर दी। धकाते ने पूर्व डीएफओ द्वारा फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया के नियमों का पालन न करने की बात कह बेदखली के आदेश निरस्त कर दिए। साथ ही उन्होंने फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया की गाइड लाइन को आधार बनाया और पुनः सर्वे कराने के आदेश कर दिए।

धकाते द्वारा एक बार फिर सर्वे कराकर रिसॉर्ट मालिकों को बेदखली की कार्यवाही से बचाने की तैयार की ही जा रही थी कि इसी दौरान नए डीएफओ कुंदन कुमार ने अप्रत्याशित कदम उठाया। उन्होंने अपने ही उच्चाधिकारी पराग धकाते के आदेशों पर सवाल खड़े कर दिए। वे यहीं नहीं रूके, बल्कि उन्होंने धकाते के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील करने की अनुमति मांग रिसॉर्ट स्वामियों को हैरत में डाल दिया।
फलस्वरूप एक बार फिर रिसॉर्ट मालिक अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर सत्ता में अपनी ताकत का अहसास कराने में कामयाब हो गए हैं। उन्होंने नेहा वर्मा की तर्ज पर ईमानदार अफसर कुंदर कुमार का भी स्थानांतरण करा दिया है। फिलहाल मामला चर्चा का विषय बना हुआ है। सरकार पर सवाल खड़े हो रहे हैं कि वह अपने अधिकारियों को कानून से खिलवाड़ करने की खुली छूट कैसे दे सकती है? आखिर एक अधिकारी हाईकोर्ट से बड़ा कैसे हो सकता है? ऐसे में जब हाईकोर्ट द्वारा अपने आदेशों में पूर्व में ही कहा गया था कि किसी भी नए कारणों के चलते दोबारा सर्वे नहीं किया जा सकेगा? इसी को हाईकोर्ट ने अपना फाइनल आदेश कहा था। लेकिन पराग धकाते हाईकोर्ट के आदेशों को धता बताते हुए सर्वे कराने के आदेश कर देते हैं।

प्रदेश की जनता आश्चर्यजनक इस बात पर है कि जब एक ईमानदार अधिकारी कुंदन कुमार ने अपने सीनियर ऑफिसर के खिलाफ चिट्ठी लिखकर उच्च न्यायालय जाने की परमिशन मांगी तो उसे अनुमति देने की बजाय उसका स्थानांतरण क्यों किया गया। लोग सवाल कर रहे हैं कि मुख्यमंत्री का मुंहलगा एक अधिकारी जब हाईकोर्ट से बड़ा बनकर भ्रष्टाचारियों को बचाने की कोशिश कर रहा है तो ऐसे में ‘जीरो टॉलरेंस’ सरकार की चुप्पी रहस्यमय है।


धकाते के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील करने की स्वीकृति बाबत कुंदन कुमार की चिट्ठी

पूरे मामले को समझने के लिए आपको 11 साल पहले जाना होगा। वर्ष 2012। इस वर्ष हिमालयन युवा ग्रामीण सस्था द्वारा कोसी परिक्षेत्र में हाथी कॉरीडोर की बाबत हाईकोर्ट नैनीताल में एक जनहित याचिका दायर की गई थी जिसमें कॉर्बेट इलाके में ऐसे कई रिसॉर्ट और होटल्स का हवाला दिया गया था जिन पर न केवल वन विभाग की जमीन कब्जा करने के आरोप थे, बल्कि इनके निर्माण होने से वन्य जीवों खासकर हाथी कॉरीडोर को अवरुद्ध करने की बात भी कही गई थी। इस याचिका पर सुनवाई करते हुए 17 फरवरी 2018 को नैनीताल हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश केएम जोसेफ और शरद कुमार शर्मा ने आदेश करते हुए कहा कि 2012 और उसके बाद के वर्षों में कुछ व्यक्तियों के खिलाफ सार्वजनिक परिसर अधिनियम के तहत कार्यवाही शुरू की गई है जिसके तहत एक हलफनामा दायर कर ऐसे व्यक्तियों के खिलाफ की गई कार्यवाही से संबंधित तथ्यों को सामने लाया जाए जिसमें इस कार्यवाही का चरण भी शामिल होगा। मामले में हाईकोर्ट ने स्पष्ट रूप से पूछा कि कितने लोग अतिक्रमणकारी पाए गए हैं। साथ ही ऐसे व्यक्ति जिन्होंने कानून का उल्लंघन करके निर्माण किया है उन्हें चिन्हित कर यह भी बताया जाए कि किन-किन लोगों के खिलाफ कार्रवाई की गई।

इस पर वन विभाग सक्रिय हुआ। रामनगर की तत्कालीन डीएफओ नेहा वर्मा ने अपनी टीम के साथ कुल 12 रिसॉर्ट को चिन्हित किया जिनकी जांच की गई। जांच में जिन रिसॉर्ट पर अतिक्रमण करने की पुष्टि हुई उनकी संख्या 9 है। इनमें हृदयेश फार्म हाउस लदुवा राव, द ताज हाइवे रिसॉर्ट, कॉर्बेट रिवर साइट, हृदयेश होटल ढिकुली, द हृदयेश फार्म ढिकुली, क्लब महिंद्रा, कॉर्बेट कॉल, अशोक मारगो, सुखविन्दर गौरैया फार्म हाउस आदि हैं। सभी रिसॉर्ट द्वारा सरकारी जमीन पर अतिक्रमण पाया गया। जिनका अतिक्रमण चिÐत करते हुए डीएफओ नेहा वर्मा ने इसका पूरा विवरण प्रस्तुत किया है जिसके अनुसार गौरैया फार्म हाउस लदुवारो ढिकुली के द्वारा 0.318 हेक्टेयर आरक्षित वन भूमि पर अतिक्रमण किया गया है। इस मामले में सुखविन्दर सिंह के खिलाफ केस किया गया। इसके अलावा कॉर्बेट कॉल में 0.16 हेक्टेयर आरक्षित वन भूमि पर अतिक्रमण पाया गया जिसमें कॉर्बेट काल में प्रबंधक भुवन चंद्र एवं राकेश नैनवाल के खिलाफ वाद दायर किया गया। यहां यह भी बताना जरूरी है कि राकेश नैनवाल भाजपा के स्थनीय नेता भी है। वर्तमान में भाजपा के प्रदेश मंत्री के पद पर आसीन है।

 

ढिकुली स्थित क्लब महिंद्रा को 1.914 हेक्टेयर आरक्षित वन भूमि पर अतिक्रमण करने का दोषी पाया गया। इसके प्रबंधक के खिलाफ केस किया गया। इसी तरह हृदयेश फार्म हाउस ढिकुली के प्रबंधक के खिलाफ भी वाद दायर किया गया। हृदयेश फार्म हाउस के द्वारा 1.538 हेक्टेयर आरक्षित वन भूमि पर अतिक्रमण दर्शाया गया है। गर्जिया ढिकुली में बना कॉर्बेट रिवर साइट को भी अतिक्रमण का दोषी पाया गया है। इस रिसॉर्ट द्वारा कुल 1.318 हेक्टेयर आरक्षित वन भूमि पर कब्जा किया हुआ है। इसके प्रबंधक पर भी डीएफओ नेहा वर्मा द्वारा वाद दायर किया गया। ढिकुली रामनगर स्थित हृदयेश होटल को भी आरिक्षत वन भूमि पर अतिक्रमण में संलिप्त पाया गया है। हृदयेश होटल ने कुल 0.683 हेक्टेयर भूमि पर कब्जा किया हुआ है। इसके भी प्रबंधक को दोषी मानते हुए वाद दायर किया गया।

हृदयेश होटल के अलावा लदुवारो स्थित हृदयेश फार्म हाउस को भी वन विभाग की आरक्षित भूमि पर अतिक्रमण करने का दोषी पाया गया है। इसके द्वारा कुल 1.27 हेक्टेयर जमीन पर कब्जा किया हुआ है। गौरतलब है कि हृदयेश होटल और हृदयेश फार्म ढिकुली तथा द हृदयेश फार्म हाउस तीनों ही प्रदेश की पूर्व कैबिनेट मंत्री रही कांग्रेस की दिवंगत नेता इंदिरा हृदयेश के हैं। ढिकुली में स्थित गेटवे ताज हाइवे पर 0.03 हेक्टेयर जमीन पर अतिक्रमण होना पाया गया है। इसके अलावा कार्बेट रिबर साईट के द्वारा भी वन भूमि पर कब्जा किया गया है। कब्जा किया हुआ क्षेत्रफल 1 ़318 हेक्टेयर है। यहां यह भी बताना जरूरी है कि कार्बेट रिबर साईट रिसॉर्ट कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व सांसद अकबर अहमद डंपी का है। अतिक्रमण के अन्य आरोपियों की तरह इसके प्रबंधक पर भी प्रभागीय वनाधिकारी नेहा वर्मा द्वारा वाद दायर किया गया। साथ ही पूरी जांच रिपोर्ट हाईकोर्ट को दे दी। जून 2018 को उक्त सभी के खिलाफ आईपीसी की धाराओं के अंतर्गत एफआईआर दर्ज करने के निर्देश दिए। इसके चलते सभी अतिक्रमणकारियों के विरुद्ध रामनगर कोतवाली में मुकदमे दर्ज कराए गए।

कॉर्बेट में हुए अतिक्रमण की सूची

इसके बाद सभी आरोपी रिसॉर्ट मालिक वन संरक्षक (पश्चिमी वृत्त उत्तराखण्ड) पराग मधुकर धकाते की शरण में पहुंचे और तत्कालीन डीएफओ नेहा वर्मा द्वारा किए गए बेदखली के आदेशों को निरस्त कराने की अपील की। उन्होंने सभी की सुनवाई की। सभी आरोपियों ने अपने-अपने पक्ष उनके सम्मुख रखे। जहां अपील करने वाले आरोपी रिसॉर्ट मालिकों ने पराग मधुकर धकाते को भारत सरकार के फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया द्वारा जारी किए गए दिशा-निर्देशों की प्रति उपलब्ध कराते हुए अवगत कराया कि संयुक्त टीम द्वारा भारत सरकार के फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया द्वारा दिए गए निर्देशों के अनुसार सर्वे और सीमांकन किया जाना चाहिए था, जो नहीं किया गया। इसको आधार बनाते हुए धकाते ने 5 नवंबर 2018 को एक आदेश दिया जिसमें उन्होंने कहा कि प्रभागीय वनाधिकारी रामनगर वन प्रभाग (नेहा वर्मा) द्वारा 18 सितंबर 2018 को पारित आदेश बलहीन होने तथा विधि संवत् न पाए जाने के कारण खारिज किया जाता है। फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया के निर्देशों को ध्यानरत रखते हुए पुनः जांच कराया जाना सुनिश्चित किया जाए।

तत्कालीन डीएफओ (प्रभागीय वनाधिकारी रामनगर वन प्रभाग) नेहा वर्मा का स्थानांतरण कर दिया गया। तब कहा जाने लगा कि मामले को दबाने के लिए ही रसूखदार लोगों द्वारा नेहा वर्मा का ट्रांसफर कराया गया है। इसके बाद इस मामले में टर्निंग प्वाइंट उस समय आया जब नेहा वर्मा की जगह कुंदन कुमार को डीएफओ रामनगर बनाया गया। कुंदन कुमार ने आते ही सबसे पहले एक ऐसा अप्रत्याशित कदम उठाया जिसकी किसी को उम्मीद भी नहीं थी। खासकर उन रिसॉर्ट मालिकों को जिन पर वन विभाग की आरक्षित जमीन को अवैध रूप से कब्जाने के मामले में तत्कालीन डीएफओ नेहा वर्मा द्वारा रामनगर थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई गई थी।

कुंदन कुमार ने उस समय उन सभी रिसॉर्ट मालिकों को हैरत में डाल दिया जब 31 मई 2023 को उन्होंने प्रदेश के मुख्य वन संरक्षक (सतर्कता एवं विधि प्रकोष्ठ) को एक पत्र लिखा जिसमें उन्होंने अपने ही सीनियर अधिकारी वन संरक्षक, (पश्चिमी वृत्त उत्तराखण्ड) पराग मधुकर धकाते द्वारा पूर्व डीएफओ के बेदखली आदेशों को खारिज किए जाने के मामले पर सवाल उठाए। साथ ही कुंदन कुमार ने मुख्य वन संरक्षक से अपने उच्चाधिकारी पराग मधुकर धकाते के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील किए जाने की अनुमति मांगी। मुख्य वन संरक्षक को पत्र में कुंदन कुमार ने हाईकोर्ट में पराग मधुकर धकाते के विरुद्ध अपील करने के संबंध में हाईकोर्ट के पूर्व में दिए गए उन आदेशों को आधार बनाया जिसमें ‘उच्च न्यायालय द्वारा स्पष्ट किया गया था कि किसी भी नए कारणों के चलते अतिक्रमण के आरोपी रिसॉर्ट की बाबत अब दोबारा सर्वे नहीं होगा, जो भी फैसला दिया गया है वह फाइनल होगा।’

हैरान करने वाला मामला यह है कि उस दौरान डीएफओ रामनगर कुंदन कुमार को अपने उच्चाधिकारी पराग मधुकर धकाते के विरुद्ध हाईकोर्ट में जाने की अनुमति देने की चिट्ठी पर फैसला लेने की बजाय वन विभाग ने दूसरा ही खेला कर डाला। वन विभाग ने जिस तरह इस मामले में पूर्व डीएफओ नेहा वर्मा का ट्रांसफर किया था ठीक इसी तरह का रवैया कुंदन कुमार के साथ भी किया गया। होना तो यह चाहिए था कि कुंदन कुमार के पत्र की गंभीरता को देखते हुए जहां उन्हें पराग मधुकर धकाते के विरुद्ध हाईकोर्ट जाने की स्वीकृति दी जानी चाहिए थी लेकिन ऐसा करने की बजाय वन विभाग ने कुंदन कुमार को ही रास्ते से हटा दिया। बहरहाल, कुंदन कुमार के साथ भी नेहा वर्मा जैसा ही सलूक किया गया और उनका भी स्थानांतरण ढेला रेंज में कर दिया गया।

 

‘जीरो टॉलरेंस पर कोई सवाल नहीं उठा सकता’
हमारा लक्ष्य प्रदेश को भ्रष्टाचार से मुक्ति दिलाना है। साथ ही अवैध अतिक्रमण का भी सफाया करना है। अवैध अतिक्रमण चाहे कहीं का भी हो। अतिक्रमण करने वाले किसी भी पार्टी से जुड़े हो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। कॉर्बेट पार्क में जिन रिसॉर्ट के अतिक्रमण की आप बात कर रहे हैं उस पर हाईकोर्ट के
आदेशों का पालन पूरी तरह किया जाएगा। सरकारी जमीन पर अतिक्रमण बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। पराग मधुकर धकाते से हम बात करेंगे कि किस वजह से उन्होंने रि-सर्वे कराने और पूर्व डीएफओ नेहा वर्मा के बेदखली के आदेश निरस्त किए हैं। रही बात जीरो टॉलरेंस की तो उस पर कोई सवाल नहीं उठा सकता। क्योंकि सरकार पारदर्शिता के आधार पर काम कर रही है।
पुष्कर सिंह धामी, मुख्यमंत्री, उत्तराखण्ड

 

अशोक खेमका की राह पर कुंदन कुमार
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 2047 तक भारत को विकसित देश बनाने का लक्ष्य रख चुके हैं। यह लक्ष्य पाने के लिए सबसे पहले भारत से भ्रष्टाचार को जड़ से उखाड़ फेंकना होगा। देश को अशोक खेमका के साथ ही कुंदन कुमार सरीखे अधिकारियों की जरूरत होगी। बेशक, ईमानदारी की राह में मुश्किलें आ सकती हैं। लेकिन इसके साथ बना रास्ता रोका नहीं जा सकता है। खेमका की राह पर निकले उत्तराखण्ड के अधिकारी कुंदन कुमार ने भी जैसे भ्रष्टाचार को जड़विहीन करने का संकल्प लिया है। रामनगर वन प्रभाग में डीएफओ के पद पर नियुक्त होते ही उन्होंने जिस तरह की बैटिंग शुरू की देवभूमि के इतिहास में ऐसा कम ही देखने को मिला है। अपने ही उच्चाधिकारी के खिलाफ हाईकोर्ट में जाने की अपील कर चर्चाओं में आए कुंदन कुमार को उत्तराखण्ड का अशोक खेमका कहा जा रहा है।

जिस तरह खेमका का हर छठे महीने ट्रांसफर होता है कुंदन कुमार के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ है। उनका पिछले आठ महीने में दो बार स्थानांतरण हो चुका है। कुंदन कुमार का तराई पश्चिमी वन विभाग (रामनगर) से ट्रांसफर होने का कारण एक चिट्ठी बनी थी जिसमें उन्होंने अपने उच्चाधिकारी के खिलाफ लिखने की कोशिश की थी। इसके बाद कुंदन कुमार को ढेला परिक्षेत्र में स्थानांतरित किया गया। उन्होंने रामनगर से स्थानांतरण होने के बाद भी वह कारनामा कर डाला जिसकी उम्मीद कम से कम उन जनप्रतिनिधियों को नहीं थी जो सरकार का अंग बने हुए हैं। ढेला परिक्षेत्र अमूमन अवैध खनन के लिए जाना जाता है। कुंदन कुमार जब यहां गए तो कोसी नदी के इलाके में हो रहे अवैध खनन को सहन नहीं कर पाए।

कांग्रेस नेता और पूर्व सांसद अकबर अहमद डम्पी का कॉर्बेट रिवर साइट रिसॉर्ट

बताया जाता है कि उन्होंने एक ही दिन में 109 खनन सामग्री से भरे ट्रकों को छापा मारने के दौरान अवैध खनन के आरोप में पकड़ लिया। इस दौरान उन्होंने अपना मोबाइल स्विच ऑफ कर संपर्क खत्म कर लिया। सभी 109 अवैध सामग्री से भरे ट्रकों को पकड़ने के तुरंत बाद ही उन्होंने चालान काट डाले। वे यहीं नहीं रूके, बल्कि सभी पकड़े गए ट्रकों को उन्होंने रामनगर थाने में पहुंचाकर फटाफट मुकदमा दर्ज करा दिया। जब सभी ट्रक सीज हो चुके थे इसके बाद ही उन्होंने अपने स्विच ऑफ मोबाइल को ऑन किया। इस दौरान अवैध खनन करने वाले माफियाओं को बेचैनी होने लगी और वे अपने- अपने राजनीतिक आकाओं से संपर्क साधते रहे। वे अपने वाहनों को सीज न कराने और मुकदमा दर्ज न कराने की गुजारिश-सिफारिस करते रहे। लेकिन उनकी सारी गुजारिश और सिफारिस उस समय दम तोड़ गई जब उनके राजनीतिक आकाओं का कुंदन कुमार से संपर्क नहीं हो पाया था। जब उनका कुंदन कुमार से संपर्क भी हुआ तो तब तक वे आरोपियों पर कानूनी कारवाई कर चुके थे। यही नहीं कानूनी कार्यवाही भी कागजी कार्रवाई में तब्दील हो चुकी थी।
सूत्र बताते हैं कि एक भाजपा विधायक का जब अवैध खनन से भरे वाहनों पर कार्रवाई न कराने की बाबत फोन आया तो कुंदन कुमार ने उनको ‘सॉरी’ बोलते हुए कहा कि आपका फोन लेट आया है क्यांकि अब तक तो उनको सीज भी किया जा चुका है और उनके मालिकों पर एफआईआर भी दर्ज कराई जा चुकी है। ऐसे में भाजपा विधायक अपना माथा पकड़ कर रह गए।

कुंदन कुमार के इस कदम की हर तरफ सराहना हो रही है। उनको अशोक खेमका की संज्ञा दी जा रही है। गौरतलब है कि अशोक खेमका हरियाणा कैडर के 1991 बैच के आईएएस अधिकारी हैं। जिन विभागों में वह तैनात हुए उसमें उन्होंने भ्रष्टाचार का खुलासा किया। इसके चलते उन्हें हरियाणा के अपने गृह कैडर में बार-बार स्थानांतरित किया जाता रहा है। 2012 में अशोक खेमका उस समय मीडिया की सुर्खियां बने थे जब उन्होंने कांग्रेस नेता सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा और रियल एस्टेट दिग्गज डीएलएफ के बीच हुए जमीन सौदे का म्यूटेशन रद्द करने का आदेश दिया था। तब केंद्र में कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए सरकार थी। हरियाणा में भी कांग्रेस की सरकार थी। अशोक खेमका की भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में हर किसी ने उनकी सराहना की थी। खेमका के तबादलों का दौर बंसीलाल के नेतृत्व वाली सरकार से शुरू हुआ था। आईएनएलडी सरकार में खेमका का 5 वर्ष में 9 बार ट्रांसफर हुआ। उनका टकराव तकरीबन हर राजनीतिक दल की सरकार से हुआ। इसका खामियाजा खेमका को बार-बार ट्रांसफर के रूप में झेलना पड़ा है। एक बार तो उनकी सरकारी गाड़ी तक छीन ली गई थी। खेमका पैदल ही घर से ऑफिस आते-जाते रहे। वह अपने खिलाफ चार्जशीट का भी सामना कर चुके हैं। अपने 31 साल के करियर में खेमका ने करीब 56 बार ट्रांसफर का सामना किया है।

 

बात अपनी-अपनी
पूर्व डीएफओ नेहा वर्मा ने हमारा पक्ष नहीं सुना। फिलहाल हमारा मामला कोर्ट में विचाराधीन है। फॉरेस्ट ने पूर्व में एक एग्रीमेंट किया था जिसमें कोसी नदी की बीच धारा को सरहद माना गया था। लेकिन अब फॉरेस्ट अपने ही एग्रीमेंट को मानने को तैयार नहीं है।
राकेश नैनवाल, प्रदेश मंत्री भाजपा

मेरे सामने अभी यह मामला नहीं आया है। अनूप मलिक, मुख्य वन संरक्षक, उत्तराखण्ड मेरी पोस्टिंग कुछ दिन पहले ही हुई है। मुझे इस संबंध में ज्यादा जानकारी नहीं है।
दिगांथ नायक, डीएफओ, रामनगर

नोट : वन संरक्षक पराग मधुकर धकाते से उनका पक्ष जानने के लिए फोन पर संपर्क किया गया लेकिन वह उपलब्ध नहीं हो पाए।

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