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Uttarakhand

2024 की परीक्षा का पेपर ‘आउट’

उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, झारखंड समेत देश के 6 राज्यों की 7 विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव के नतीजे आने के बाद राजनीतिक सरगर्मियां तेज हो गई हैं। पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ घोसी में अपने प्रत्याशी को जीता नहीं पाए। ऐसे में उत्तराखण्ड के बागेश्वर में भाजपा की जीत मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के लिए खास मायने रखती है। हालांकि सहानुभूति लहर के बावजूद जीत का अंतर कम होना नए राजनीतिक हालात की ओर इशारा कर रहा है। हार के बावजूद कांग्रेस के लिए यह चुनाव 2022 की अपेक्षा उत्साहित करता नजर आ रहा है। मुख्यमंत्री के धुआंधार प्रचार के बाद भी कांग्रेस की हार का अंतर 12 हजार से सिमटकर 2 हजार होना भाजपा के लिए आत्मचिंतन का विषय है। 2022 की जीत के अंतर को दोहरा नहीं पाने वाली भाजपा को 2024 के लिए नए सिरे से मशक्कत करनी पड़ेगी। आगामी लोकसभा और निकाय चुनाव दोनों ही महत्वपूर्ण माने जा रहे हैं। इसके मद्देनजर सूबे के मुखिया पुष्कर सिंह धामी को ही नहीं, बल्कि कांग्रेस अध्यक्ष करण माहरा को भी अपनी मजबूत टीम को मैदान में उतारने की जरूरत होगी। 2024 में 2019 का इतिहास दोहराने का सपना देख रहे सीएम धामी को भी कैबिनेट विस्तार व दायित्व वितरण में जुझारू, स्वच्छ छवि के नेता-कार्यकर्ताओं को जगह देनी होगी। जबकि कई धड़ों में बंटी कांग्रेस को एकजुट करने की चुनौती करण के सामने है

‘बागेश्वर में कांग्रेस के पास बसंत कुमार जैसा जमीनी और जुझारू प्रत्याशी होने के बावजूद पार्टी इस चुनाव में जीत के मुहाने पर पहुंचने के बाद भी उपचुनाव हार गई। इसका कारण था कांग्रेस के नेताओ में आपसी समन्वय का ना होना। दरअसल कांग्रेस के नेताओं को अपने प्रत्याशी के जिताने की कोशिश करने के साथ ही उनमे एक डर यह भी बना रहा कि अगर उनकी पार्टी यह चुनाव जितेगी तो इस जीत का सेहरा पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष करण माहरा के सिर बंधेगा। इसके चलते ही कांग्रेस के बड़े नेता तन से बेशक चुनावी प्रचार में नजर आ रहे थे लेकिन मन से नहीं थे। तन और मन के बाद अब आती है बात धन की। धन के मामले में कांग्रेस जहां बसंत कुमार का मुंह देखती रही तो बसंत कुमार यह सोचते रह गए कि पार्टी जीतेगी और इसके लिए वह दिल खोलकर खर्चा भी करेगी। जबकि मतदाता तो पिछले चुनाव की तरह ही बसंत से धनवर्षा की उम्मीद भी पाले थे। इसके साथ ही कांग्रेस भाजपा से चुनाव से चार दिन पहले उस समय प्रचार में पिछड़ गई जब मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने लगातार रोड शो और डोर टू डोर जनसंपर्क अभियान चलाया। एक मुख्यमंत्री लोगों के बीच तीन दिनों तक रहा, जबकि दूसरी तरफ कांग्रेस के पास एक पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के अलावा कोई करिश्माई चेहरा नहीं था। शुरू में भाजपा जीत के प्रति ओवरकॉन्फिडेंस में थी लेकिन जब उसे धरातल पर अपनी जमीन खिसकती नजर आई तो वह हवा में चुनाव लड़ने की बजाय जमीनी मेहनत कर अपनी लाज बचाने में कामयाब रही। कांग्रेस शुरू से आखिर तक जीत के प्रति बेहद आस्वस्त थी। वह लास्ट के दो दिनों में भाजपा के चुनावी मैनेजमेंट से मात खा गई।’

यह कहना है बागेश्वर के निवासी नरेंद्र खेतवाल का। खेतवाल की तरह ही अधिकतर लोगो का मानना है कि कांग्रेस ने बेशक इस चुनाव में भाजपा को कड़ी टक्कर दी और शुरुआत में कांग्रेस के पास जनसमर्थन था लेकिन अंतिम समय तक वह मतदाताओं को अपने पक्ष में जोड़े रखने में सफल नहीं हुई। हालांकि इस चुनाव की हार जीत से भाजपा को कोई खास फर्क पड़ने वाला नहीं था क्योंकि वह पहले से ही सत्ता बहुमत में है लेकिन मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के लिए यह चुनाव प्रतिष्ठा का प्रशनचिन्ह बन चुका था कारण यह कि अगर पार्टी यह हारती तो उनकी विरोधी लॉबी को उनके खिलाफ खड़ा होने का मौका मिल जाता। मुख्यमंत्री के लिए चंपावत उपचुनाव और हरिद्वार पंचायत चुनाव की जीत के बाद इस अग्नि परीक्षा को किसी भी सूरत में पास करना चाहते थे जिसमें वह आखिर येन-केन प्रकारेण सफल हो ही गए। भाजपा की पार्वती दास ने बागेश्वर उपचुनाव में कांग्रेस के बसंत कुमार को 2405 मतों के अंतर से हरा दिया है। कुमाऊं मंडल की इस सीट पर उपचुनाव पांच सितंबर को हुए थे, जिसमें 55.44 फीसदी मतदान हुआ था। इस सीट पर बीजेपी और कांग्रेस के बीच अच्छी टक्कर मानी जा रही थी, लेकिन बीजेपी अपना किला बचाने में कामयाब रही।

पार्टी प्रत्याशी की जीत से गदगद मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि बागेश्वर धन्यवाद! बाबा बागनाथ की पवित्र भूमि बागेश्वर की गर्वशील जनता ने फिर से भाजपा के प्रति विश्वास जताया है। इस जीत ने मातृशक्ति, युवाशक्ति और वरिष्ठजनों के भाजपा सरकार के प्रति अटूट विश्वास का प्रमाण दिया है। इस उपचुनाव में बागेश्वर विधानसभा की आदरणीय जनता ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र और प्रदेश सरकारों द्वारा चलाई जाने वाली जनहितैषी योजनाओं को मंजूरी दी है।’

मुख्यमंत्री ने इस जीत को ऐतिहासिक बताया और कहा कि ‘यह ऐतिहासिक जीत बागेश्वर के चहुमुंखी विकास का नया अध्याय लिखेगी। बागेश्वर विधानसभा से नवनिर्वाचित भाजपा विधायक श्रीमती पार्वती दास जी को उनके उज्ज्वल कार्यकाल हेतु हार्दिक शुभकामनाएं।’ भाजपा की इस जीत पर राजनीतिक पंडितो का आकलन कुछ और ही है जिसके अनुसार भाजपा यह चुनाव जीतकर बेशक खुशी जाहिर कर रही है लेकिन जिस तरह से सहानुभूति लहर थी और सत्तापक्ष का उपचुनाव जीतने का रिकॉर्ड रहा है उसको देखते हुए आगामी निकाय चुनाव और लोकसभा चुनाव जीतना इतना आसान भी नहीं होगा।

कांग्रेस इस हार को पचा नहीं पा रही है। प्रदेश अध्यक्ष करण माहरा ने बागेश्वर में हुई हार के बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस की जिसमंे उन्होंने कहा कि बागेश्वर में बीजेपी की नैतिक हार हुई है। करण माहरा ने आरोप लगाया कि बीजेपी ने चुनाव में प्रशासनिक अमले का इस्तेमाल किया। तमाम कवायद के बावजूद बीजेपी वोट बैंक नहीं बढ़ा पाई। उन्होंने कांग्रेस का 20 फीसद वोट बैंक बढ़ने का दावा किया। माहरा का मानना है कि बागेश्वर उपचुनाव के परिणाम कांग्रेस के लिए 2024 में शुभ संकेत हैं। आने वाले दिनों में कांग्रेस और बेहतर काम करेगी और बेहतर रिजल्ट लाएगी, जबकि बीजेपी के लिए यह चुनाव परिणाम उल्टी गिनती शुरू करने वाले हैं। इस चुनाव में बड़ी बात यह भी रही कि नोटा पर 1200 से अधिक वोट पड़े हैं जो कि अपने आप में सोचने वाली बात है। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष ने इस मसले पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि ये सिस्टम के खिलाफ वोट है। अगर यह वोट कांग्रेस को पड़े होते तो निश्चित रूप से बहुत बड़ा फर्क पड़ता। नोटा की संख्या देखकर कहा जा सकता है कि युवा सरकार से खिन्न चल रहा है।

फिलहाल जीत के बाद भी भाजपा इस उपचुनाव में कांग्रेस से मिले कड़े मुकाबले पर राजनीतिक विश्लेषण भी कर रही है कि आखिर तमाम सहानुभूति के बावजूद क्यों उनकी प्रत्याशी पार्वती दास इतने कम वोटों के अंतर से जीती। सवाल है कि क्या पार्वती के साथ सहानुभूति थी या नहीं। या इसके पीछे कोई और वजह भी जिम्मेदार है। निश्चित तौर पर चंदन राम दास की कार्यशैली से तो लोग काफी प्रभावित थे। लेकिन उनके बेटों खासकर बड़े बेटे गौरव दास को लेकर भी एक नाराजगी थी। जिसकी चर्चा लोगों के बीच तेज रही। साथ ही बगल की विधानसभा सीट कपकोट से विधायक सुरेश गढ़िया की कार्यशैली भी सवालों के घेरे में रही है। चर्चा तो यहां तक रही कि 2022 के विधानसभा चुनाव में जिस खड़िया लॉबी ने सुरेश गढ़िया को चुनाव जिताने के लिए पूरा सहयोग और समर्थन दिया वह खड़िया लॉबी इस उपचुनाव में अगर सुरेश गढ़िया से नाराज थी तो क्यों? कहा जा रहा है कि खड़िया लॉबी की नाराजगी का आलम यह रहा कि वह कांग्रेस प्रत्याशी बसंत कुमार के साथ आकर खड़ी हो गई। जिसने सामाजिक और आर्थिक रूप से बसंत का खूब साथ दिया। जिससे वोटर प्रभावित हुआ और चुनाव कड़ी टक्कर में तब्दील हो गया। तीन सितम्बर को भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट के केंद्रीय चुनाव आयोग के पर्यवेक्षक के आचरण के खिलाफ चुनाव आयोग को पत्र लिखने से साफ जाहिर हो गया था कि मुकाबला कांटे का होने जा रहा है, कम अंतर की जीत ने इस आशंका को और भी पुख्ता कर दिया। प्रदेश अध्यक्ष की प्रेस कॉन्फ्रेंस के पीछे की कई चर्चाओं ने जन्म लिया जिसमें कहा गया कि भाजपा हार की संभावनाओं से भयभीत हो चुनाव पर्यवेक्षक को कांग्रेस का एजेंट बताने लगी थी। दूसरी चर्चा यह भी चली कि चुनाव पर्यवेक्षक ने भाजपा के एक विधायक की गाड़ी को पकड़ लिया था जिसे चुनाव आयोग की गाइडलाइन के अनुरूप नहीं पाया गया था।

लोगों का कहना है कि ऐसे कई मुद्दे थे जिन पर कांग्रेस ने गंभीरता से सोचकर नई रणनीति बनाने की तरफ ध्यान दिया होता तो पार्टी प्रत्याशी के सर पर जीत का सेहरा बंध सकता था। हालांकि पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत इस हार को हार नहीं, बल्कि पार्टी के लिए एक सबक करार देते हैं वह कहते हैं कि हो सकता है कि हमसे कुछ चूक हो गई जिससे हम यह चुनाव जीतने से चूक गए। लेकिन इसमें दो राय नहीं कि हमारा प्रत्याशी और पार्टी का वोट पहले से मजबूत हुआ है। यह चुनाव पार्टी के लिए नई ऊर्जा का संदेश भी देता है कि आने वाला लोकसभा चुनाव पार्टी के पक्ष में रहेगा।

माकपा नेता और वरिष्ठ पत्रकार इंद्रेश मैखुरी सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा पर ऊंगली उठाते हुए कहते हैं कि बागेश्वर में उपचुनाव के दौरान सरकारी शिकंजा किस कदर कसा हुआ था, इसका अंदाजा बागेश्वर की जिलाधिकारी अनुराधा पाल के एक मीडिया कर्मी के संबंध में दिए गए बयान से समझा जा सकता हैं। जिसका एक वीडियो भी वायरल हुआ है। उक्त वीडियो में जिलाधिकारी कह रही हैं कि उसके पास उत्तराखण्ड की दूसरे प्रेस का पास होगा, लेकिन बागेश्वर का तो नहीं है, वो बागेश्वर का सर्टिफाइड प्रेस वाला तो नहीं है। आखिर सरकार को किसका डर था जो बाहरी पत्रकारों की मौजूदगी से खुलासा होने का डर था?

इसी के साथ मैखुरी बेरोजगार संघ के अध्यक्ष बॉबी पंवार की बागेश्वर में हुई गिरफ्तारी पर भी सवाल उठाते है। वह कहते है कि बॉबी पंवार को किस कसूर के तहत गिरफ्तार किया गया? वह गए तो बागनाथ मंदिर के दर्शन करने थे लेकिन जिस तरह से मंदिर में गिरफ्तारी हुई वह भी सरकार पर सवाल है। सवाल यह भी है कि उत्तराखण्ड में रोजगार की लूट के खिलाफ आवाज उठाए जाने से किसको डर लग रहा था, कौन था, जो बेरोजगार संघ के युवाओं की बागेश्वर में उपस्थिति मात्र से भयभीत था?

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