रमा देवी अपने स्वस्थ जीवन शैली के चलते चर्चाओं में हैं। पौड़ी जिले के कफोला गांव की रमा ने अपनी जिंदगी के शतक को शानदार तरीके से जिया है
हिमालयी राज्यों में खास तौर पर उत्तराखण्ड के बारे में कहा जाता है कि यहां के निवासियों की आयु बहुत लंबी होती है। एक अनुमान के अनुसार 80 वर्ष औसत आयु मानी गई है लेकिन कुछ लोग इस सीमा से भी परे जाकर दीर्घायु के प्रतीक बन चुके हैं और अपने जीवन का शतक पूरा करके जीवन की दूसरी पारी की ओर अग्रसर हैं। उनमें से एक हैं पोड़ी जिले के कल्जीखाल विकासखण्ड में के ग्राम मिरचौड़ा की रमा देवी असवाल। 105 वर्ष 3 माह की होने के बावजूद रमा देवी पूरी तरह से स्वस्थ हैं। वह बगैर किसी सहारे के आराम से चल-फिर सकती हैं। रमा देवी एक सामान्य मनुष्य की तरह अपना जीवन-यापन कर रही हैं। संभवतः उत्तराखण्ड में सबसे लंबी आयु की जीवित महिला का खिताब रमा देवी असवाल के ही खाते में आएगा। 100 पार की उम्र में भी बगैर चश्में की रमा देवी देख सकती हैं। दांतों की पूरी धवल पंक्तियां उनके स्वस्थ होने का प्रमाण दे रही है। हैरत की बात है कि उनके एक भी दांत को किसी प्रकार से क्षति नहीं पहुंची है। केवल कानों पर ही असर हुआ है। अब उन्हें कम सुनाई देने लगा है। आज तक कभी सामान्य बुखार के अलावा रमादेवी को कोई गंभीर बीमारी तक नहीं हुई है। यह भी आश्चर्य है कि रमा देवी को अपने जीवनकाल में कभी भी किसी रोग के चलते अस्पताल नहीं जाना पड़ा।
वर्ष 1917 में पोड़ी जिले के कपोल्स्युं पट्टी के कफोला गांव के मंगल सिंह बिष्ट के घर रमा देवी का जन्म हुआ। दुर्भाग्य से जन्म के कुछ ही समय बाद माता-पिता की प्राकृतिक आपदा में मृत्यु हो गई। जिसके कारण उनका लालन-पालन उनकी बड़ी बहन कुंवरी देवी ने किया। कुंवरी देवी की शादी कल्जीखाल विकासखंड के गोकुल गांव में हुई। इसी गोकुल गांव में रमा देवी का लालन-पालन हुआ। उनकी शादी 16 वर्ष की आयु में गोकुल गांव के समीप मिरचौड़ा गांव के थोकदार असवाल परिवार के गिरधारी सिंह असवाल के साथ हुई। बताते चले कि गढ़वाल रियासत के समय असवाल जाति के राजपूतों को गढ़वाल के राजाओं द्वारा थोकदारी दी गई थी। जिसमें एक बड़े भूभाग का भूमिधरी और राजस्व लेने का अधिकार उन्हें दिया गया था। इस बड़े भूभाग को असवाल जाति को दिए जाने के चलते इस पट्टी का नाम असवालस्यूं पड़ा जो कि आज तक राजस्व अभिलेखों में इसी नाम से चला आ रहा है। इसी असवालस्यूं पट्टी के असवालों के परिवार में रमा देवी का वैवाहिक जीवन बीता।
रमा देवी और गिरधारी सिंह असवाल की छह संतानें तीन पुत्र और तीन पुत्रियां हुईं। सबसे बड़ी पुत्री राजी की आयु इस समय 83 वर्ष है तो दूसरी पुत्री सरोज की 81 वर्ष तथा सबसे छोटी पुत्री संजु की आयु 58 वर्ष है। इसी तरह से सबसे बड़े पुत्र अब्बल सिंह 66 वर्ष तथा दूसरे पुत्र डबल सिंह का स्वर्गवास 64 वर्ष की आयु में हो गया था। जबकि तीसरे पुत्र नंदन सिंह की आयु 60 वर्ष है। वर्ष 1980 में रमा देवी के पति गिरधारी सिंह असवाल का देहांत हो गया तो रमा देवी ने अपने परिवार को बिखरने नहीं दिया और सभी को एक सूत्र में बांधे रखा। उनके बेटों ने देहरादून, कोटद्वार आदी नगरों में अपने अलग-अलग मकान बना लिए जहां वे अपने-अपने परिवार के साथ रह रहे हैं, लेकिन वे सभी रमा देवी से निरंतर संपर्क बनाए हुए हैं।
रमा देवी अपने हंसमुख स्वभाव के चलते अपने परिवार के लोगों में बेहद पंसद की जाती हैं। रमा देवी अपने परिवार के नाती-पोतों और पुत्र वधु के साथ-साथ पौत्र वधुओं को भी हर पर्व-त्यौहार के अलावा मांगलिक कार्यों में एक साथ रखती हैं। भले ही अब परिवार के लोग अलग-अलग स्थानों में रह रहे हों, लेकिन कोई भी परिवार का सदस्य रमा देवी से मिले बगैर नहीं रह पाता। उपेन्द्र सिंह असवाल की पत्नी पूनम से रमा देवी का सबसे ज्यादा लगाव है और वे ही उनकी सेवा करती हैं।
रमा देवी की याददास्त ज्यों-का-त्यों बनी हुई है। कई यादों को कुरेदने पर उनकी स्मृति में बातें ताजा हो उठती हैं। रमा देवी आजादी का संघर्ष और अंग्रेजों से देश को आजाद कराने की बातों को बताती हैं लेकिन उनमें तारतम्य नहीं रह पाता। रमा देवी को एक दुख रहा है कि वे कभी स्कूल में नहीं जा सकीं। पुराने समय में मैदानी गांवों में बालिकाओं को स्कूली शिक्षा बहुत कम दी जाती थी जबकि रमा देवी पहाड़ की निवासी रहीं। जहां मीलों दूर स्कूल होते थे। जिन बच्चों को प्राथमिक शिक्षा मिल पाती थी वे भाग्यशाली होते थे। रमा देवी दुखी मन से कहती हैं कि वे पढ़ना नहीं जानती और न ही उनको बचपन में स्कूल भेजा गया।
रमा देवी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री हेमवती नंदन बहुगुणा के कांग्रेस से बगावत करने और लोकसभा चुनाव जीतने की बातें बड़े चाव से बताती हैं। साथ ही जगमोहन सिंह नेगी और चंद्र मोहन सिंह नेगी की चुनावी बातों को याद करती हैं। मिरचौड़ा गांव में सड़क, पानी, बिजली के बिना कैसे जीवन रहा है और कब गांव में तरक्की आई ये सभी स्मृतियां उनको अच्छी तरह से याद है। आज तक जितने भी ग्रामसभा, विधानसभा या फिर
लोकसभा के चुनाव हुए वह हर चुनाव में मतदान करने से पीछे नहीं रही हैं।
करीब 5 वर्ष पूर्व रमा देवी अपने पौत्र उपेन्द्र सिंह असवाल पुत्र स्वर्गीय डबल सिंह असवाल के कोटद्वार के नजदीक दिल्ली फार्म में रहने लगी हैं। परिवार के लोग बताते हैं कि रमा देवी गांव छोड़ने को कभी तैयार नहीं थीं। उनके पौत्र उपेन्द्र सिंह असवाल और परिवार की बेहद जिद्द, प्यार के चलते वे दिल्ली फार्म आ गईं। उनके ही साथ रह रही हैं। ऐसा नहीं है कि रमा देवी कोटद्वार आकर अपने गांव को याद नहीं करती हैं। जब रमा देवी का 100वां जन्मदिन था तो कोटद्वार से अपने गांव मिरचौड़ा गईं और वहां से खड़ी चढ़ाई चढ़कर पैदल ही मुंडनेश्वर महादेव की यात्रा बगैर किसी सहारे के पूरी की। अपनी दीर्घायु के बारे में बात करते हुए रमा देवी बताती हैं कि मेहनत और खुशी से बढ़कर कुछ नहीं है। परिवार के लोगों का प्रेम और उनका साथ ही उनकी लंबी आयु का राज है।
आमतौर पर पहाड़ की बुजुर्ग महिलाओं में ध्रूमपान की आदत देखी जाती है लेकिन रमा देवी ने इस आदत को कभी नहीं अपनाया। इतना जरूर है कि सर्दियों में रमा देवी कभी-कभी ब्रांडी या शराब जरूर लेती रही हैं जो उनके ढलती उम्र के लिए किसी दवा से कम नहीं है। हालांकि वह अब इससे भी दूर हो गई है। आज रमा देवी पहाड़ की उन महिलाओं के लिए एक प्रेरणा है जो कठिन से कठिन परिस्थितियों में रहकर अपने आप को अपनी जड़ों से जोड़े रखती हैं। 105 साल की लंबी और स्वस्थ आयु रमा देवी की बतौर आदर्श प्रस्तुत करती है। उनकी दोनों आंखें पूरी तरह से सुरक्षित हैं और बगैर चश्मे के ही वे देख सकती हैं। एक तरह से देखा जाए तो रमा देवी 105 सालों का जीता-जागता इतिहास समेटे हुए हैं।