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Uttarakhand

सौदेबाजी तक सिमटी देवभूमि की राजनीति

धामी मंत्रिमंडल में कथित रूप से असंतुष्ट नेताओं को मनाने के दौरान हुई सौदेबाजी मंत्रियों को आवंटित विभागों में स्पष्ट नजर आ रही है। रूठे नेताओं में शामिल कहलाऐ जाने वाले सतपाल महाराज को भारी भरकम कहलाए जाने वाला लोक निर्माण विभाग दिया गया, यशपाल आर्य को आबकारी तो हरक सिंह रावत को ऊर्जा, मंत्रालय दे कर शपथ लेने को तैयार किया गया। पिछली सरकार में राज्य मंत्री रहे धन सिंह रावत, रेखा आर्या एवं यतीश्वरानंद को कैबिनेट मंत्री की प्रौन्नति दी गई। भारी-भरकम कहलाए जाने वाले मंत्रालयों के लिए जबरदस्त लॉबिंग करना इस राज्य की राजनीति के डीएनए का हिस्सा बन चुका है। जिन्हें भारी भरकम मंत्रालय कहा जाता है वे भारीभरकम अपने बजट के चलते कहलाए जाते हैं। जाहिर है ऐसे मंत्रालयों में ही सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार की गुंजाइश होती है। जनता के चुने हुए प्रतिनिधियों की राजनीति इन भारीभरकम अथवा मलाईदार मंत्रालयों के ईद-गिर्द सिमट कर रह जाना उत्तराखण्ड राज्य आंदोलन की अवधारणा को पूरी तरह खंडित करने का कारक बन गया है

उत्तराखण्ड को ‘देवभूमि’ कह पुकारा जाता है। उत्तर प्रदेश से अलग होने की छटपटाहट के पीछे पहाड़वासियों का देवभूमि की संतान होने का दर्द भी एक बड़ा कारण था। राज्य आंदोलन के दौरान यह बात प्रमुखता से कही जाती थी कि मां गंगा का धरती पर अवतरण हमारे यहां ही हुआ हैं, हमारे यहां बद्री-केदार हैं, गंगोत्री- यमनोत्री है। हम ऐसी भूमि के पुत्र-पुत्रियां हैं जहां जन्म लेने के लिए देवता भी तरसते है। बकायदा नाना प्रकार के वेदों में उत्तराखण्ड का महिमा मंडन करने वाले श्लोंको का जिक्र होता-

‘‘इति तत परमं स्थानं देवानामपि दुर्लभम्।
पंचाशतयोनायाम् त्रिशद्योजन विस्तृतम्।।
इदं वे स्वर्गगमनं न पृथ्वीं तामहो विभो।।’’

ऐसी महिमा वाली भूमि का राजकाज जैसे ही इसके सपूतों के हाथ आया देवभूमि से देवताओं का पलायन शुरू होने लगा। आज जब राज्य बने 20 बरस से अधिक का समय हो चुका है, देवभूमि पूरी तरह पतित भूमि में तब्दील हो चुकी है। प्रदेश की बुनियाद बेहद कमजोर पड़ी, हमारे राज नेताओं में दूर दृष्टि का सर्वथा अभाव रहा जिसका खामियाजा पूरा प्रदेश भुगत रहा है। राजनीति प्रदेशवासियों के लिए नीति बनाने के बजाए राजनेताओं के लिए व्यापार बन कर रह गई है। पिछली तमाम सरकारों में ऐसे मंत्रालयों के लिए मंत्रियों को लॉबिंग करते, जोर-आजमाइश करते, ब्लैक मेलिंग करते आम देखा गया जो ‘ऊपरी’ कमाई के लिए कुख्यात हैं। ऐसा हरेक सरकार में हुआ है, चाहे कांग्रेस सत्ता में रही या भाजपा, सत्ता की मलाई चाटने के लिए नेताओं में होड़ से लेकर जूतमपैजार तक होती रही है। कुछ ऐसा ही देखने को मिला। हरीश धामी को मुख्यमंत्री बनाए जाने का ऐलान होने के साथ ही तीरथ सरकार में शामिल रहे कुछेक मंत्रियों के नाराज होने और उनकी नाराजगी को दूर करने के लिए भाजपा के बड़े नेताओं का उनके संग बैठक करना, ऐसे कई नेताओं का देहरादून से दिल्ली आ पार्टी आलाकमान से मिलना मीडिया की सुर्खियों में रहा। धामी का शपथग्रहण समारोह इस कथित नाराजगी के चलते एक दिन आगे बढ़ाया गया। 4 जुलाई (रविवार) की शाम पंाच बजे के बजाए शपथग्रहण का दिन सोमवार शाम 6 बजे रखा जाना नाना प्रकार की कयासबाजियों का कारण बना। मीडिया में खबरों का बाजार गर्म रहा कि सतपाल महाराज, हरक सिंह रावत, बिशन सिंह चुफान एवं यशपाल आर्य को विशेष रूप से धामी की ताजपोशी का फैसला नागवार गुजरा है। ऐसी खबरें भी चार और पांच जुलाई को जमकर चलीं कि ये चार मंत्री धामी सरकार में मंत्री बनने से इंकार कर रहे हैं।
बातचीत और मान मन्नौवल के दौर बाद शाम 6 बजे धामी सरकार के शपथग्रहण में इन सभी नेताओं ने मंत्री पद की शपथ ले भले ही इन कयासबाजियों पर तात्कालिक विराम लगा डाला, मुख्यमंत्री द्वारा अपने मंत्रियों को आवंटित किएगए मंत्रालयों से साफ झलकता है कि धामी के नेतृत्व को बगैर शर्त नहीं स्वीकारा गया है। त्रिवेंद्र सिंह रावत ने अपने पास पीडब्ल्यूडी, ऊर्जा, स्वास्थ्य आबकारी एवं औद्योगिक विकास समेत 41 विभाग रखे थे। उनके बाद सीएम बने तीरथ सिंह रावत ने इनमें से औद्योगिक विकास मंत्रालय नए कैबिनेट मंत्री बने गणेश जोशी को दिया था। साथ ही उस समय भी सीएम पद की केस में शामिल रहे धन सिंह रावत को बतौर राज्य मंत्री आपदा एवं पुनर्वास एवं प्रोटोकॉल विभाग अतिरिक्त दिया गया था। त्रिवेंद्र सरकार में धन सिंह के पास मात्र सहकारिता एवं उच्च शिक्षा विभाग थे। धामी मंत्रिमंडल में कथित रूप से असंतुष्ट नेताओं को मनाने के दौरान हुई सौदेबाजी मंत्रियों को आवंटित विभागों में स्पष्ट नजर आ रही है। रूठे नेताओं में शामिल कहलाऐ जाने वाले सतपाल महाराज को भारी भरकम कहलाए जाने वाला लोक निर्माण विभाग दिया गया तो यशपाल आर्य को आबकारी तो हरक सिंह रावत को ऊर्जा, मंत्रालय दे कर शपथ लेने को तैयार किया गया। पिछली सरकार में राज्य मंत्री रहे धन सिंह रावत, रेखा आर्या यतीश्वरानंद को कैबिनेट मंत्री की प्रौन्नति दी गई। भारीभरकम कहलाए जाने वाले मंत्रालयों के लिए जबरदस्त लॉबिंग करना इस राज्य की राजनीति के डीएनए का हिस्सा बन चुका है। जिन्हें भारी भरकम मंत्रालय कहा जाता है वे भारीभरकम अपने बजट के चलते कहलाए जाते हैं। जाहिर है ऐसे मंत्रालयों में ही सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार की गुंजाइश होती है। जनता के चुने हुए प्रतिनिधियों की राजनीति इन भारीभरकम अथवा मलाईदार मंत्रालयों के ईद-गिर्द सिमट कर रह जाना उत्तराखण्ड राज्य आंदोलन की अवधारणा को पूरी तरह खंडित करने का कारक बन गया है। धामी मंत्रिमंडल में मंत्री परिषद को विभागों के आवंटन का अधिसूचना पत्र (2/2/XXI/2021सी ़एक्स) भी खासा दिल चस्प है। इसमें मुख्यमंत्री के पोर्टफोबियो में औद्योगिक विकास मंत्रालय का हिस्सा रहे खनन विभाग को स्पष्ट परिभाषित करते हुए इसे मुख्यमंत्री को आवंटित दिखाया गया है।

मंत्रालय के बंटवारे में झलकता है नए सीएम का खनन प्रेम

गौरतलब है कि प्रथम निवार्चित सरकार के समय से ही खनन को औद्योगिक विकास मंत्रालय के अधीन रखा जाता रहा है। राज्य में खनन एक बड़ा राजस्व का श्रोत तो है ही, ऊपरी कमाई का भी यह सबसे बड़ा साधन है। ऐसे में इस विभाग को लेकर राजनीतिक सौदेबाजी सबसे ज्यादा देखने को मिलती रही है। 2012 में विजय बहुगुणा सरकार में पूरा औद्योगिक विकास मंत्रालय मुख्यमंत्री ने अपने पास रखा था। हरीश रावत ने इस मंत्रालय को तो अपने मुख्यमंत्रित्वकाल में डॉ ़ इंदिरा हृदयेश को आवंटित किया लेकिन खनन विभाग को सीधे अपने नियंत्रण में रखा। त्रिवेंद्र रावत ने पूरा औद्योगिक विकास मंत्रालय अपने पास ही रखा तो तीरथ सिंह रावत ने पहली बार मंत्री बने गणेश जोशी को यह मंत्रालय तो दिया लेकिन खनन का नियंत्रण उन्होंने भी अपने पास ही रखा। दिलचस्प यह कि तीरथ सिंह रावत मंत्रिमंडल आवंटन की अधिसूचना में यह साफतौर पर उल्लेखित नहीं किया गया कि खनन विभाग किसके अधीन रहेगा। पुष्कर सिंह धामी मंत्रिमंडल की अधिसूचना में इस अस्पष्टता को स्पष्ट तौर पर स्पष्ट करते हुए इसे मुख्यमंत्री को आवंटित दिखाया गया है।
राज्य में अवैध खनन हमेशा से ही बड़ा मुद्दा रहता आया है। हरिद्वार में गंगा नदी के आस-पास बड़े पैमाने पर होता आया खनन हर सरकार के कार्यकाल में बदस्तूर जारी रहता है। 2011 में इस अवैध खनन को लेकर मातृसदन, हरिद्वार के स्वामी निगमानंद सरस्वती ने 68 दिनों तक आमरण- अनशन कर अंतरराष्ट्रीय मीडिया तक का ध्यान इस समस्या की तरफ आकर्षित किया था। 13 जून 2011 में संदेहास्पद हालातों में उनकी मृत्यु अस्पताल में होने के पीछे खननन माफिया का हाथ होने की बात सामने आई थी। 18 जून, 2011 को निगमानंद की मृत्यु के बाद तत्कालीन पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने तत्कालीन मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ को कहा पत्र लिखकर अवैध खनन को न रोक पाने में राज्य सरकार की भूमिका पर प्रश्नचिन्ह लगा डाला था। स्वामी निगमानंद की शहादत बाद भी गंगा में अवैध खनन कभी रूका नहीं।
अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त वैज्ञानिक प्रो जीडी अग्रवाल ने इसको एवं अन्य पर्यावरण संरक्षण से जुड़े महत्वपूर्ण मुद्दों को लेकर फरवरी 2018 में आमरण-अनशन शुरू किया। 86 वर्षीय अग्रवाल का अनशन 111 दिन तक चला था। 111वें दिन 11 अक्टूबर 2018 के दिन उनकी भी शहादत हो गई, अवैध खनन का धंधा लेकिन रूका नहीं। अक्टूबर 2014 में ‘इंडिया अगेंस्ट करप्शन’ के संस्थापक अन्ना हजारे ने भी उत्तराखण्ड में बढ़ रहे अवैध खनन को लेकर चिंता जताते हुए तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी से इस काले कारोबार की सीबीआई जांच कराने का अनुरोध किया था। राज्य में बड़े पैमाने पर अवैध खनन का कारोबार न्यायालयों की निगाह में भी लगातार बना रहा है। कई जनहित याचिकाएं इस मुद्दे पर दाखिल की गई जिन पर उच्च न्यायालय के निर्णय राज्य सरकारों की परेशानी का सबब बनते रहे हैं। कोर्ट के आदेश के बाद कुछ समय के लिए अवश्य इस अवैध धंधे पर रोक- टोक लगती है फिर सब कुछ पहले जैसा हो जाता है।मंत्री परिषद में किसे कौन सा मंत्रालय अथवा विभाग मिले इसका फैसला मुख्यमंत्री काविशेषाधिकार है। लेकिन खनन् को लेकर यदि हर मुख्यमंत्री संवेदनशील हो तो प्रश्न उठने स्वाभाविक हैं। मात्र कुछ महीनों के मुख्यमंत्री अथवा उनकी सरकार से किसी करिश्मे की उम्मीद तो शायद ही राज्य की जनता कर रही होगी, मंत्रालयों का बंटवारा अवश्य सरकार की नीयत और साख पर सवाल खड़े कर रहा है।

राज्य में खनन एक बड़ा राजस्व का श्रोत तो है ही, ऊपरी कमाई का भी यह सबसे बड़ा साधन है। ऐसे में इस विभाग को लेकर राजनीतिक सौदेबाजी सबसे ज्यादा देखने को मिलती रही है। 2012 में विजय बहुगुणा सरकार में पूरा औद्योगिक विकास मंत्रालय मुख्यमंत्री ने अपने पास रखा था। हरीश रावत ने इस मंत्रालय को तो अपने मुख्यमंत्रित्वकाल में डॉ. इंदिरा हृदयेश को आवंटित किया लेकिन खनन विभाग को सीधे अपने नियंत्रण में रखा। त्रिवेंद्र रावत ने पूरा औद्योगिक विकास मंत्रालय अपने पास ही रखा तो तीरथ सिंह रावत ने पहली बार मंत्री बने गणेश जोशी को यह मंत्रालय तो दिया लेकिन खनन का नियंत्रण उन्होंने भी अपने पास ही रखा। दिलचस्प यह कि तीरथ सिंह रावत मंत्रिमंडल आवंटन की अधिसूचना में यह साफ तौर पर उल्लेखित नहीं किया गया कि खनन विभाग किसके अधीन रहेगा। पुष्कर सिंह धामी मंत्रिमंडल की अधिसूचना में इस अस्पष्टता को स्पष्ट तौर पर स्पष्ट करते हुए इसे मुख्यमंत्री को आवंटित दिखाया गया है

 

नौकरशाही पर नकेल

पूर्व मुख्य सचिव ओम प्रकाश

राज्य के नए मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने बड़े स्तर पर नौकरशाहों का तबादला कर डाला है। सत्ता संभालते ही धामी ने त्रिवेंद्र और तीरथ सरकार में मुख्य सचिव रहे विवादित छवि के आईएएस ओमप्रकाश को पदमुक्त कर उनकी जगह तेज-तर्रार लेकिन स्वच्छ छवि के सुखबीर सिंह सिद्धू को केंद्र की प्रतिनियुक्ति से वापसी करा नया मुख्य सचिव बना नौकरशाही में बड़े बदलाव का संकेत दे डाला था। उत्तराखण्ड कैडर के सिद्धू लंबे समय से राज्य में तैनात नहीं रहे हैं। केंद्र सरकार में अपनी सेवाएं देने से पूर्व वे पंजाब में बंटी नौकरशाही को पहला सख्त संदेश सिद्धू को नया मुख्य सचिव बनाकर दिया। इसके बाद नए सीएम ने उन तमाम अफसरों के पर कतर डाले जो त्रिवेंद्र सिंह रावत के मुख्यमंत्रित्वकाल में मंत्रियों तक की नहीं सुनने के लिए कुख्यात थे। अब ऐसे अफसरों को कम महत्व के विभागों में भेज दिया गया है। त्रिवेंद्र के खासे करीबी नीरज खैरवाल को उत्तराखण्ड परिवहन निगम का प्रबंध निदेशक बनाया गया है। गौरतलब है कि धामी मंत्रिमंडल में परिवहन मंत्रालय यशपाल आर्य के पास है। आर्य की नीरज खैरवाल से नाराजगी जगजाहिर है। ऊधमसिंह नगर का जिलाधिकारी रहते खैरवाल जिले के प्रभारी मंत्री को प्रोटोकॉल के तहत मिलने नहीं जाने से लेकर मंत्री के निर्देशों को रद्दी की टोकरी में डालने की खबरें तब आम सुनी जाती थी। सीएम धामी ने अब खैरवाल को सीधे तौर पर यशपाल आर्य के अधीन कर डाला है। इसी प्रकार त्रिवेंद्र सरकार में सबसे ताकतवर नौकरशाह कहलाए जाने वाले आईएएस नितेश कुमार झा से गृह एवं कारागार हटा लिया गया है। अब झा को कम महत्व के पंचायती राज विभाग का दायित्व दिया गया है।

स्थानांतरण को लेकर जारी शासनादेश

इसी प्रकार आईएएस राधिका झा को ऊर्जा विभाग से हटाकर धामी ने झा दंपत्ति के रूतबे को खासा कम कर डाला है। राधिका झा को स्थानिक आयुक्त नई दिल्ली के पद से भी मुक्त कर दिया गया है। झा दंपत्ति की तूती त्रिवेंद्र सरकार में खासी चर्चित रही है। मुख्यमंत्री धामी ने हर सरकार में महत्वपूर्ण विभाग पाते रहे आईएएस आर मिनाक्षी सुंदरम को भी तगड़ा झटका देते हुए उनसे खनन विभाग हटा डाला है। त्रिवेंद्र सरकार के गठन के बाद हाशिए में डाल दिए गए आईएएस डॉ आर राजेश को राजधानी देहरादून का जिलाधिकारी बना मुख्यमंत्री ने नौकरशाही को गुटबाजी से दूर रहने के स्पष्ट संकेत दे डाले हैं। सूत्रों की मानें तो धामी अब व्यापक स्तर पर
आईपीएस अफसरों के दायित्वों को बदलने जा रहे हैं। खबर है कि वर्तमान पुलिस महानिदेशक की तैनाती तय हो चुकी है। जल्द ही इस बाबत शासनादेश आ जाएगा। इस सबके चलते राज्य की नौकरशाही को सदमें में बताया जा रहा है। खबर है कि सीएम धामी ने अपने अस्थाई सरकारी निवास बीजापुर गेस्ट हाउस में अफसरों के आने पर पाबंदी लगा डाली है। अफसरों को सीएम केवल कैंप कार्यालय अथवा सचिवालय में ही मिलते हैं। नए सीएम के सख्त तेवरों से नौकरशाही के साथ-साथ भाजपा के वे कार्यकर्ता भी सकते हैं जिनकी सीएम संग खासी निकटता रही है। सूत्रों की मानें तो पिछले दिनों बागेश्वर जिले के एक भाजपा नेता खुद का नए सीएम का खासमखास बताते हुए बीजापुर गेस्ट हाउस के एक वीवीआईपी कक्ष में काबिज हो गए। यह जानकारी जब सीएम धामी तक पहुंची तो उनके निर्देश पर इस नेता का समान वीवीआईपी कक्ष से बाहर कर दिया गया। इस खबर का असर खुद को मुख्यमंत्री के करीबी समझने वालों पर पड़ा है। इस बीच यह खबर भी छनकर आ रही है कि त्रिवेंद्र रावत के सलाहकार रहे दो व्यक्तियों के खिलाफ धामी सरकार ने विजिलेंस जांच कराने का फैसला किया है। इनमें से एक व्यक्ति पर चिट्फंड कंपनी की आड़ में मनी लॉन्ड्रिंग के आरोप पिछले दिनों लगे थे तो एक अन्य सलाहकार पर देहरादून के निकट निजी जमीनें खरीद वहां सरकारी कोष से जमीन और पुल बनाने का आरोप है। पत्रकार उमेश शर्मा इस मुद्दे को लेकर हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर कर चुके हैं।

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