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Uttarakhand

सांप्रदायिकता के आगोश में चुनाव

  • गुंजन कुमार

 

उत्तराखण्ड विधानसभा चुनाव में धीरे-धीरे सांप्रदायिकता का रंग चढ़ने लगा है। कांग्रेस पार्टी इससे बचने की पूरी कोशिश कर रही है ताकि चुनाव जनहित के मुद्दों पर हो सके। जनता मुद्दों का आकलन कर वोट दें लेकिन भाजपा इस चुनावी महासंग्राम को सांप्रदायिक मुद्दों की ओर मोड़ने में सफल होती दिख रही है। कांग्रेस के प्रदेश उपाध्यक्ष अकील अहमद ने सरकार बनाने पर मुस्लिम विश्वविद्यालय बनाए जाने की बात कह बैठे-बिठाये यह मुद्दा भाजपा की झोली में डाल दिया है। इसके बाद भाजपा ने फ्रंट फुट पर आकर बैटिंग करनी शुरू कर दी है। पार्टी सोशल मीडिया पर एडिटेड फोटो और वीडियो को वायरल कर रही है। भाजपा के छोटे से लेकर बड़े नेता अब हिंदू-मुस्लिम खेल खेलने लगे हैं। हर चुनावी सभा में मुख्यमंत्री से लेकर केंद्रीय नेता तक मुस्लिम यूनिवर्सिटी की बात को उठा रहे हैं। पिछले चुनाव में कांग्रेस की हार के कई कारणों में एक कारण हिंदू-मुस्लिम भी था। उस चुनाव में भाजपा ने तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत के एक कथित आदेश को मुद्दा बनाया था, जिसमें उन्होंने जुमे के दिन अल्पसंख्यक समुदाय को नमाज के लिए 2 घंटे की छुट्टी देने की घोषणा की थी

उत्तराखण्ड में चुनाव के लिए अब एक सप्ताह का भी समय नहीं है। ऐसे में अब सोशल मीडिया और राजनीतिक दलों के नेताओं की जुबान पर तुष्टीकरण की छाप साफ दिख रही है। पिछले सप्ताह कांग्रेस के प्रदेश उपाध्यक्ष अकील अहमद ने राज्य में मुस्लिम यूनिवर्सिटी बनाए जाने की मांग क्या कर दी, भाजपा ने सोशल मीडिया में कांग्रेस के खिलाफ जबरदस्त माहौल बना दिया है। कांग्रेस की कमी यह रही है कि वह इसका खंडन माकूल तरीके से नहीं कर पा रही है। दरअसल, मुस्लिम यूनिवर्सिटी से शुरू हुई राजनीति अब चुनावी प्रचार को तुष्टीकरण की तरफ ले चली है। भाजपा उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की तर्ज पर उत्तराखण्ड में कांग्रेस को मुस्लिम हिमायती दिखाने में जुट गई है। हालांकि कांग्रेस की ओर से पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत इस नई हवा की रुख को मोड़ने के प्रयास में लगे हुए हैं। वे चुनाव को बेरोजगारी, महंगाई, पलायन जैसे मुद्दों पर लाने का भरसक प्रयास कर रहे हैं। इसमें वे कितना सफल हो पाते हैं, यह तो चुनाव का नतीजा ही बताएगा।
यह मामला शुरू हुआ कांग्रेस के प्रदेश उपाध्यक्ष अकील अहमद के एक बयान से। वे सहसपुर विधानसभा सीट से टिकट के दावेदार थे। पार्टी ने उन्हें टिकट नहीं दिया। यहां से पिछले चुनाव में पूर्व मुख्यमंत्री एनडी तिवारी के ओएसडी रहे आयेंद्र शर्मा पार्टी बगावत कर निर्दलीय लड़े थे। पार्टी ने इस बार उन्हें ही मैदान में उतारा है। इस पर अकील अहमद नाराज हो गए। वह निर्दलीय चुनाव में उतरने की बात करने लगे। पार्टी ने उन्हें मनाने का प्रयास तेज किया। वे मान भी गए। लेकिन कुछ दिनों बाद अकील अहमद ने मीडिया के सामने उत्तराखण्ड में मुस्लिम यूनिवर्सिटी बनाने की मांग कर दी। यह मांग करते हुए उन्होंने कहा ‘मैं भी सहसपुर से टिकट मांग रहा था। पार्टी ने मुझे टिकट नहीं दिया। निर्दलीय चुनाव में नहीं उतरने के लिए हरीश रावत और पार्टी प्रभारी देवेंद्र यादव ने मेरे साथ समझौता किया है। समझौते अनुसार सरकार बनने पर राज्य में मुस्लिम छात्रों के लिए मुस्लिम विश्वविद्यालय की स्थापना की जाएगी। इसी समझौते पर मैं निर्दलीय चुनाव में नहीं उतरा।’ अकील अहमद के इस बयान को भाजपा ने लपक लिया और वह कांग्रेस पर हमलावर हो चली है।

पार्टी ने तत्काल मीडिया को संबोधित करते हुए कहा, ‘भाजपा देवभूमि में मुस्लिम विश्वविद्यालय को किसी हाल में स्वीकार नहीं करेगी।’ अकील अहमद के इस बयान के बाद भाजपा ने सीधे हरीश रावत पर हमला बोला। जिसके जवाब में हरीश रावत को सफाई देने पर मजबूर होना पड़ा है। उन्होंने कहा, ‘मैं तुष्टीकरण की राजनीति नहीं करता। यदि यह कोई साबित कर दे तो मैं इस्तीफा दे दूंगा।’ हरीश रावत के इस सफाई के बाद भी भाजपा शांत नहीं हुई। उसके बाद भाजपा ने हरीश रावत के छह साल पुराने एक कथित शासनादेश को वायरल कर डाला। इस पत्र में तब मुख्यमंत्री रहे हरीश रावत ने सरकारी सेवा में कार्यरत मुसलमानों को जुमे के दिन अल्पावकाश देने की घोषणा की थी। इस पत्र के बहाने भी भाजपा पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत और कांग्रेस पर हमलावर हो रही है। चुनाव प्रचार से लेकर पार्टी रोजाना इस पर प्रेस ब्रीफिंग करने लगी है।

ऐसे कहा भी जाता है कि चुनाव के दौरान इतिहास में दबे मुद्दे और गड़े मुर्दे भी बाहर निकाले जाते हैं। उत्तराखण्ड चुनाव में भी इसे आजमाया जा रहा है। तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत द्वारा आदेशित 2016 का यह पत्र भी गड़े मुर्दे की तरह है। जिसे भाजपा ने चुनाव से ऐन पहले लाकर हिंदू-मुस्लिम कार्ड खेलने का प्रयास किया है। भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता सुरेश जोशी कहते हैं ‘तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत की ओर से 29 दिसंबर 2016 को इस संबंध में शासनादेश जारी किया गया था। इस शासनादेश में हरीश सरकार ने नमाज के लिए मुस्लिम समुदाय के लोगों के लिए अल्पावकाश की व्यवस्था की थी। हरीश रावत ऐसे किसी आदेश को सार्वजनिक जारी करने के बाद राजनीति से संन्यास लेने की बात कह रहे थे। ऐसे में अब हरीश रावत को अपने इस बयान का अनुपालन करते हुए राजनीति से संन्यास लेना चाहिए।’

पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने भाजपा के इस आरोप का जवाब भी दिया। अपने फेसबुक पेज पर एक लंबा संदेश लिखा। उन्होंने लिखा है ‘हमने सिर्फ जुमे के लिए अल्पवकाश नहीं दिया। हमने सभी समुदायों को विशेष प्रार्थना के लिए अल्पावकाश दिया था। फिर हमने छठ पूजा के लिए अवकाश दिया। महिलाओं को भी अवकाश दिया। भाजपा वालों को वह नहीं दिखेगा। क्योंकि उन्हें तुष्टीकरण की राजनीति करनी है। भाजपा से इससे ज्यादा का उम्मीद भी नहीं कर सकते।’
दूसरी तरफ विवाद बढ़ता देख कांग्रेस के प्रदेश उपाध्यक्ष अकील अहमद ने सफाई देते हुए कहा कि उन्होंने सिर्फ एक मांग उठाई है। आज राज्य में न ही उनकी सरकार है और न ही पार्टी ने इस पर कुछ कहा है। जबरन मामले को तूल दिया जा रहा है। कुल मिलाकर उत्तराखण्ड विधानसभा चुनाव मूल मुद्दों से हटकर धार्मिक तुष्टीकरण की ओर जाने लगा है। देहरादून के सत्ता गलियारों में चर्चा यह भी है कि कांग्रेस को मुस्लिम वोट को लेकर डर सता रहा है। उन्हें लग रहा है कि मुस्लिम वोट कहीं उससे छिटक कर आम आदमी पार्टी या बसपा की ओर न चला जाए। इसलिए कांग्रेस ने मुस्लिम यूनिवर्सिटी का शगूफा स्वयं छेड़ा है।

 

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी भी इसे चुनावी मुद्दा बना रहे हैं। वे अपनी हर चुनावी सभा में मुस्लिम यूनिवर्सिटी और जुमे वाला पत्र को उठा रहे हैं। छह फरवरी को पिथौरागढ़ की एक सभा में उन्होंने कहा कि कांग्रेस हमेशा से ही तुष्टीकरण की राजनीति करती आई है। एक तरफ कांग्रेस चारधाम की बात कर रही है। वहीं दूसरी तरफ देवभूमि में कांग्रेस मुस्लिम यूनिवर्सिटी बनाने की पैरवी कर रही है। इस बीच सोशल मीडिया पर कई तरह के एडिटेड फोटो वायरल किया जाने लगे है। हरीश रावत के बड़े-बड़े दाढ़ी वालो फोटो डालकर उन्हें मुस्लिम यूनिवर्सिटी का पहला कुलपति बताया जाने लगा। इस कांग्रेस ने चुनाव आयोग को शिकायत भी की है। 5 फरवरी देर रात उत्तराखण्ड भाजपा इकाई को आयोग ने एक नोटिस दिया है। चुनाव आयोग ने पार्टी से आधिकारिक ट्विटर हैंडल पर हरीश रावत की मॉर्फ्रड छवि डालने पर अपना रुख स्पष्ट करने के लिए कहा है। चुनाव आयोग ने भाजपा से नोटिस मिलने के 24 घंटे के भीतर स्पष्टीकरण दाखिल करने को कहा है।

मुस्लिम यूनिवर्सिटी और जुमा बम का मामला शांत होता कि उससे पहले सहसपुर से एक और खबर आ गई। भाजपा आईटी सेल ने सहसपुर से कांग्रेस विधायक के प्रचार को लेकर एक वीडियो वायरल किया। इसमें कांग्रेस के प्रत्याशी के जिंदाबाद के नारे के साथ-साथ ‘अल्लाह हू अकबर’ के नारे भी लग रहे हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह सब इसलिए किया जा रहा है क्योंकि भाजपा चुनाव को हिंदू बनाम मुस्लिम करने की कोशिश कर रही है। हालांकि इस मामले में सहसपुर से कांग्रेस उम्मीदवार आयेंद्र शर्मा तुरंत सक्रिय हो गए। जैसे ही यह वीडियो वायरल हुआ आयेंद्र शर्मा की तरफ से वीडियों में छेड़छाड़ होने के संबंध में तीन थानों में तहरीर दी गई है। कांग्रेस के राज्य प्रभारी देवेंद्र यादव ने इस पूरे मसले पर कहते हैं कि ‘भाजपा का यही चाल और चरित्र है। वह हिंदू-मुस्लिम का अलावा और कुछ नहीं कर सकती है क्योंकि उनके पास कोई विजन ही नहीं है।’ जो भी हो 14 फरवरी तक यह मामला खत्म होता नजर नहीं आ रहा है। चुनावी नतीजे के बाद ही पता चल पाएगा कि भाजपा इसमें सफल हुई या कांग्रेस ने इनके मनसूबे को ध्वस्त कर दिया।

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