जून 2014 में स्थापित उत्तराखण्ड अधीनस्थ चयन आयोग अपने जन्म के साथ ही घोटालों का अड्डा बना रहा। प्रश्न पत्र लीक घोटाले को लेकर राज्य की राजनीति गरमा गई है। इस मामले में विशेष पुलिस बल एसटीएफ की कार्रवाई से कई चेहरों के नकाब उतर गए हैं। अभी कई चेहरों के नकाब उतरने बाकी हैं। मुख्य आरोपी हाकम सिंह रावत सहित 18 आरोपियों को जेल भेजा जा चुका है। हाकम उत्तरकाशी का जिला पंचायत सदस्य बनने के बाद ‘भर्ती किंग’ के रूप में चर्चा में आया। कहा जा रहा है कि उसे पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के साथ ही प्रदेश के कई मंत्री, बड़े नेता और नौकरशाहों का संरक्षण प्राप्त था। वह सरकार, भाजपा संगठन और आला नौकरशाहों का कितना लाड़ला है, यह उसके सोशल मीडिया एकाउंट पर देखा जा सकता है। फिलहाल इस मामले को लेकर राज्य में सियासत भी जमकर हो रही है
उत्तराखण्ड अधीनस्थ चयन आयोग के अध्यक्ष वरिष्ठ नौकरशाह एस राजू ने आयोग के अध्यक्ष पद से नैतिकता के आधार पर अपना त्यागपत्र दे दिया है जबकि पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेद्र सिंह रावत ने आयोग को ही खत्म करने की बात कह कर आयोग पर ही गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। हैरत की बात यह है कि स्वयं त्रिवेंद्र रावत के कार्यकाल में चार भर्ती परीक्षाओं में घोटाले और धांधली किए जाने के मामले सामने आ चुके हैं लेकिन किसी भी मामले में कोई ठोस कार्यवाही तो दूर कई मामले में जांच भी नही हुई है जबकि आयोग द्वारा ही 2017 से लेकर 2021 तक के मामले में मुकदमा तक दर्ज करवाया जा चुका है। वर्तमान मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इस मामले में कड़ा कदम उठाते हुए मामले की जांच के लिए एसटीएफ का गठन किया है जिसमें धराधर धरपकड़ का काम चल रहा है और अभी तक 18 लोगों को जेल भेजा जा चुका है।
उत्तराखण्ड में भर्तियों में हुए घोटाले में बेहद चौंकाने वाले तथ्य सामने आ रहे हैं। एसटीएफ ने अभी तक कुल 18 लोगों को संदिग्ध मान कर उनको गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया है इनमें सचिवालय के अधिकारियों के साथ-साथ सरकारी शिक्षकों के नाम भी सामने आ रहे हैं। साथ ही इस पूरे मामले का सबसे बड़ा मास्टर मांइड उत्तरकाशी जिले का जिला पंचायत सदस्य हाकम सिंह को भी एसटीएफ ने गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया है। सूत्रों की मानें तो हाकम सिंह ने कई बड़े राज उगले हैं जिससे इस मामले के तार राजनीतिक और शासन-प्रशासन से भी जुड़ते नजर आ रहे हैं जिसमें कई राजनीतिक हस्तियों से जुड़े होने के संकेत आ रहे हैं। जानकारों की मानें तो इस भर्ती घोटाले में एक विधायक के भाई के 6 लोगों को भर्ती करवाए जाने की बात भी सामने आ रही है। एसटीएफ द्वारा गिरफ्तार व्यक्तियों से कई खुलासे होने के चलते मामला बड़ा होने की बात सामने आ रही है। जिसमें एक पूर्व रिटायर्ड नौकरशाह के अलावा कई अन्य अधिकारियों की संलिप्तता को भी देखा जा रहा है।
उत्तराखण्ड अधीनस्थ चयन आयोग द्वारा वर्ष 2015 से कुल 88 परीक्षाओं का आयोजन किया गया है जिसमें 5 परीक्षाओं में विवाद के मामले सामने आए हैं। 2017 से लेकर 2021 तक आयेग ने 76 परीक्षाओं का आयोजन किया है। जिसमें पांच परीक्षाओं में धांधली और विवाद के मामलों में आयोग द्वारा मुकदमा भी दर्ज करवाया जा चुका है। इन में 2017 में सहायक अध्यापक परीक्षा, 2018 में टेक्नीशियन ग्रेड परीक्षा, 2019 में स्नातक स्तरीय परीक्षा तथा 2020 में फॉरेस्ट गार्ड भर्ती परीक्षा प्रमुख रही है। इसके अलावा 2021 में स्नातक स्तरीय परीक्षा का आयोजन आयोग द्वारा किया गया जिसमें पेपर लीक किए जाने का मामला सामने आया है। इसी भर्ती परीक्षा के बाद पूरा मामला चर्चाओं में है।
पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने उत्तराखण्ड अधीनस्थ चयन आयोग को ही खत्म करने की बात कही है जबकि हकीकत में 2017 से लेकर 2021 मार्च तक चार वर्ष उनकी ही सरकार रही है और उनके ही कार्यकाल में 4 परीक्षाओं में धांधली और घोटाले सामने आए हैं। जिन पर आयोग द्वारा एफआईआर भी दर्ज करवाई गई है लेकिन तत्कालीन सरकार ने इस पर कोई कदम नहीं उठाया। यहां तक कि 2016 में ग्राम पंचायत अधिकारी भर्ती परीक्षा में हुई धांधली पर आयोग द्वारा विजिलेंस को शिकायत दर्ज कराई गई लेकिन इस पर सिर्फ मुकदमा दर्ज होने के अलावा कोई कार्यवाही नहीं की गई जबकि आयोग के अध्यक्ष एस राजू छह बार विजिलेंस को इस मामले में पत्र भी लिख चुके हैं।
इसी तरह से फॉरेस्ट गार्ड भर्ती परीक्षा में ब्लूटूथ के जरिए नकल किए जाने का मामला सामने आया था जिस पर भी पुलिस ने अपने स्तर पर कार्यवाही तो की लेकिन आयोग से कोई जांच साझा नहीं करने के आरोप भी एस राजू ने लगाए हैं। इससे यह तो साफ हो जाता है कि तत्कालीन सरकार के समय शासन और सत्ता इन मामलों को दबाने का काम कर रही थी जबकि प्रदेश के भर्ती आयोग पर अनेक गंभीर सवाल खड़े हो रहे थे। यह प्रदेश की एक संवैधानिक संस्था की ईमानदारी और उसके कार्यालय का मामला होने के बावजूद सरकार कोई कार्यवाही करने से परहेज करती दिखाई दी।
वर्तमान में जिस मामले को लेकर सबसे ज्यादा चर्चा है वह मामला 2021 में स्नातक स्तरीय भर्ती परीक्षा में पेपर लीक करवा कर नकल करवाने के तौर पर सामने आया है जिस पर पूरे प्रदेश में हाहाकार मचा हुआ है। अभी तक 18 लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है जिसमें अनेक खुलासे हो रहे हैं।
इस मामले में मास्टर माइंड उत्तरकाशी जिले के जिला पंचायत सदस्य और भाजपा नेता हाकम सिंह रावत को बताया जा रहा है। उसके संबध त्रिवेन्द्र रावत से सबसे नदजीक के रहे हैं। भाजपा के सूत्रों की मानें तो त्रिवेंद्र सरकार के समय हाकम सिंह की तूती शासन और सत्ता के गलियारों में खूब बोलती थी। मुख्यमंत्री के कार्यालय में आने-जाने पर हाकम सिंह पर कोई रोक नहीं थी। मुख्यमंत्री से बेहद नजदीकियों के चलते हाकम सिंह तरक्की पर तरक्की करता रहा। उसके बारे में कहा जाता रहा है कि महज दस साल पूर्व वह अपने गांव में बकरियां चराता था लेकिन इस दस वर्षों में उसने अकूत सम्पत्ति जोड़ी जिसमें करोड़ों का विशाल और भव्य रिजॉर्ट है। इस रिजॉर्ट में कई उच्च पदों के अधिकारियों की छुट्टियां बिताने की बात भी सामने आ रही है।
हाकम सिंह आईपीएल क्रिकेट टीम के मामले में भी सुर्खियों में आया था जब खिलाड़ी गांव के दो युवाओं ने हाकम सिंह से 90 लाख रुपए की ठगी की थी। अपने नकल के कारोबार और शासन सत्ता से नजदीकियों के चलते हाकम सिंह हर सरकार में ताकतवर होता चला गया और जिस तरह से सोशल मीडिया में बड़े-बड़े राजनीतिक हस्तियों और शासन-प्रशासन के लोगों के साथ उसकी फोटो समाने आ रही है उससे तो यह साफ हो गया है कि हाकम सिंह की तरक्की और आकूत संपत्ति के पीछे किसी न किसी का संरक्षण मिलता रहा है। संभवत इसी के चलते जांच एजेंसियों के हाथ हाकम सिंह के गिरेबान तक नहीं पहुंच पाए।
हाकम सिंह के राजनीतिक और शासन में बैठे अधिकारियों के साथ कैसे संबंध रहे हैं और कैसे उन संबंधों का उपयोग किया जाता है यह एसटीएफ के खुलासे से पता चल रहा है। 2017 में पंतनगर विश्वविद्यालय में हुई इंजीनियर भर्ती में भी एक इंजीनियर की पत्नी को लाखों रुपए लेकर परीक्षा मे पास करवाए जाने की जानकारी चर्चाओं में है। कई अन्य परीक्षाओं में पेपर लीक करवाने और लाखों रुपए लेकर भर्ती करवाने की बात भी चर्चाओं में हो रही है।
राज्य में हुई भर्ती परीक्षाओं में भले ही पांच परीक्षाओं मे धांधली और घोटाले की बात सामने आई हो लेकिन जिस तरह से पेपर लीक करवा कर लाखां रुपए लेकर परीक्षा पास करवाने की बात सामने आई है उससे अब आयोग की सभी परीक्षाएं सवालों के घेरे में है। इसका सबसे बड़ा प्रमाण 2016 में ग्राम विकास अधिकारी भर्ती परीक्षा में गड़बडियां होने की शिकायत पर परीक्षा को रद्द कर दिया गया और 2017 में फिर से इस परीक्षा का आयोगन किया गया। हैरत की बात यह है कि इस बार की परीक्षा में 2016 के टॉपर और अधिक नंबर से पास हुए लोग फेल या सबसे कम नम्बर ले सके। इससे संदेह हुआ कि 2016 में परीक्षा में नकल करवाई गई या पेपरलीक करवा कर परीक्षा पास करवाई गई।
हालांकि 2016 में कांग्रेस की हरीश रावत सरकार थी जिसके कार्यकाल में यह घोटाला किया गया लेकिन 2017 में फिर से इस परीक्षा का आयोजन किया गया और 2016 में हुए घपले पर मुहर लगी। बावजूद इसके त्रिवेन्द्र रावत सरकार ने इस पर कोई कार्यवाही नहीं की और 2020 मे आयोग द्वारा विजिलेंस में मुकदमा दर्ज करवाया गया जिस पर कोई जांच आगे नही बढ़ी।
2021 में हुई स्नातक स्तरीय परीक्षा में धांधली और पेपर लीक मामले के सामने आने के बाद मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने तत्काल ही इस मामले में एसटीएफ का गठन कर के जांच के आदेश दिए और उसका ही परिणाम रहा है कि अभी तक 18
लोगों को जेल भेजा गया है। अगर इसी तरह से त्वरित कार्यवाही त्रिवेंद्र रावत सरकार के समय में भी की जाती तो प्रदेश में भर्तियों में घोटाले के मामले नही होते।