हरिद्वार जिले पर कांग्रेस अपना आधिपत्य जताती रही है। गत् विधानसभा चुनाव में अगर किसी जिले से पार्टी के सबसे अधिक विधायक बने तो वह हरिद्वार ही है। लेकिन पिछले दिनों हुए पंचायत चुनाव में पार्टी को वह सफलता नहीं मिली जिसकी उम्मीद की जा रही थी। करारी हार के बाद जब कार्यकर्ताओं पर मुकदमे दर्ज हुए तो विधायक अनुपमा रावत उनकी पैरवी करती नजर आईं। अनुपमा का साथ देने जब पार्टी का कोई बड़ा नेता नहीं पहुंचा तो ऐसे में हरीश रावत आगे आए। उन्होंने रातभर थाने पर धरना दिया और सुबह कसरत की। राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो हरदा की यह कसरत आगामी लोकसभा चुनावों की तैयारी से पहले का ‘वार्मअप’ है। लगातार तीन विधानसभा और एक लोकसभा चुनाव हारने के बाद अब कहा जा रहा है कि हरदा हरिद्वार से आखिरी दांव खेलने की तैयारियों में जुट गए हैं
देश के पूर्व मुख्यमंत्री रह चुके हरीश रावत उत्तराखण्ड की राजनीति में किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। उनका राजनीतिक जीवन भले ही उतार-चढ़ाव भरा रहा हो, लेकिन तमाम हार के बावजूद खड़ा होना उनकी जिजीविषा को दर्शाता है। संगठन के सबसे निचले पायदान से मुख्यमंत्री पद तक पहुंचने वाले हरीश रावत पिछले पांच सालों में चार प्रमुख चुनाव हारने के बाद भी हिम्मत नहीं हारे हैं। चर्चा है कि वह सक्रिय राजनीति की अपनी आखिरी पारी हरिद्वार से ही खेलना चाहते हैं। हरिद्वार पंचायत चुनाव में बुरी हार के बाद पार्टी कार्यकर्ताओं के विरुद्ध दर्ज मुकदमों के खिलाफ आवाज उठाकर हरीश रावत ने एक बार फिर कार्यकर्ताओं में उत्साह बढ़ाने का काम किया है। पार्टी कार्यकर्ताओं के उत्पीड़न को लेकर बहादराबाद थाने में 2 दिन तक धरने पर बैठने वाले हरीश रावत के इस कदम ने पार्टी कार्यकर्ताओं के भीतर जान फूंक दी है। अभी तक नेतृत्वविहीन नजर आ रही जनपद कांग्रेस को उम्मीद की एक किरण नजर आने लगी है।
गौरतलब है कि पिछले दिनों हरिद्वार जिले में पार्टी के 5 विधायक होने के बावजूद पार्टी कार्यकर्ताओं और कुछ प्रमुख नेताओं के विरुद्ध मुकदमें दर्ज किए गए। लेकिन चौकाने वाली बात यह है कि उन मुकदमों के खिलाफ जिला स्तर अथवा प्रदेश स्तर पर सक्रिय वरिष्ठ नेतागण आवाज उठाने में नाकाम रहे। ऐसे नेताओं ने हरीश रावत के धरने से भी दूरी बनाए रखी लेकिन इस धरने से रावत ने जहां एक ओर अपनी नई पारी का संकेत दिया तो वहीं दूसरी ओर स्थानीय पार्टी कार्यकर्ताओं को भी एकजुट करने में सफलता हासिल की है।
2017 और 2022 में उत्तराखण्ड में हुए विधानसभा चुनाव हरीश रावत के नेतृत्व में ही लड़े गए। लेकिन दोनों चुनाव में कांग्रेस बुरी तरह हार गई। इतना ही नहीं 2017 में तो मुख्यमंत्री रहते हरिद्वार ग्रामीण विधानसभा सीट और उधमसिंह नगर की किच्छा विधानसभा सीट से चुनाव मैदान में उतरे हरीश दोनों जगह से हार गए थे। बावजूद इसके पार्टी हाईकमान की नजरों में उनकी अहमियत लगातार बरकरार रही। यही कारण था कि 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में एक बार फिर कांग्रेस हाईकमान ने हरीश रावत पर भरोसा जताते हुए उनको नैनीताल उधमसिंह नगर लोकसभा सीट से प्रत्याशी घोषित किया। लेकिन हरीश रावत को अजय भट्ट के मुकाबले वहां भी बुरी तरह से हार का सामना करना पड़ा। 2022 विधानसभा चुनाव में एक बार फिर पार्टी हाईकमान ने हरीश को चुनाव कैंपेन समिति का चेयरमैन बनाकर उनके कंधों पर जीत की जिम्मेदारी डाली लेकिन इस चुनाव में भी कांग्रेस को कड़ी हार का सामना करना पड़ा। खुद रावत लालकुआं विधानसभा सीट से चुनाव हार गए। जिसको लेकर राजनीतिक गलियारों में हरीश की पारी समाप्त होने की चर्चाएं चलने लगीं। जिसके बाद हरदा ने दिल्ली में सक्रिय होने का सोशल मीडिया के जरिए एलान किया। किंतु उनकी कर्मभूमि बन चुकी हरिद्वार में अपनी उपस्थिति दर्ज कराते रहे। हालांकि प्रदेश संगठन में व्याप्त आंतरिक गुटबाजी चलते पंचायत चुनाव में उनको किसी तरह से पार्टी स्तर पर सक्रिय नहीं देखा गया।

पंचायत चुनाव में हुई तमाम गड़बड़ियों की बात सामने आने और मतगणना के दौरान कांग्रेस से जुड़े पार्टी नेताओं पर बड़ी संख्या में गैरजमानती धाराओं में मुकदमे दर्ज हुए। इसके बाद कुछ समय तक चुप्पी साधे रहे हरीश रावत सोशल मीडिया पर अपना गुस्सा जिला प्रशासन के प्रति जाहिर करते नजर आए। हरिद्वार ग्रामीण विधानसभा सीट से विधायक उनकी बेटी अनुपमा रावत तब सक्रिय हुईं और जनपद के बहादराबाद थाने में पार्टी कार्यकर्ताओं के विरुद्ध झूठे मुकदमे दर्ज किए जाने एवं कार्यकर्ताओं का उत्पीड़न किए जाने जैसे गंभीर आरोप लगाते हुए धरने पर बैठ गईं। इसके बाद हरीश खुद मैदान में उतरे। जिस तरह से हरीश रावत ने हरिद्वार क्षेत्र में कांग्रेसी कार्यकर्ताओं के पक्ष में आकर सरकार के खिलाफ बिगुल बजाया। बहादराबाद थाने के बाहर टेंट लगाकर प्रदर्शन किया, वह हरीश रावत का बड़ा सियासी दांव माना जा रहा है। बहरहाल, हरीश रावत के इस कदम से पंचायत चुनाव के बाद मरणासन्न स्थिति में पहुंच चुकी कांग्रेस के भीतर एक जान-सी पड़ती नजर आ रही है। अपनी बेटी और हरिद्वार ग्रामीण की विधायक अनुपमा रावत के समर्थन में कांग्रेसी कार्यकर्ताओं के उत्पीड़न को लेकर हरीश न केवल खुलकर विरोध करते नजर आए अपितु वह थाने के भीतर ही सोते हुए और सुबह योग करते हुए भी नजर आए। जिसकी वीडियो सोशल मीडिया पर जमकर वायरल भी हुई।
गौरतलब है कि पंचायत चुनाव में एकतरफा हार के बाद कांग्रेस का वजूद लगभग समाप्त होता नजर आ रहा था तो वहीं दूसरी ओर पार्टी कार्यकर्ताओं का मनोबल भी दिख रहा था। क्योंकि पंचायत चुनाव में हमेशा से दमदार प्रदर्शन करती चली आ रही कांग्रेस को 2022 में संपन्न पंचायत चुनाव में मात्र 5 सीटों पर कामयाबी मिली और वह जनपद में अपना एक ब्लॉक प्रमुख तक भी नहीं जीता पाई। जिताना तो दूर यहां तक कि ब्लॉक प्रमुख पद पर अपने प्रत्याशी तक खड़े नहीं कर पाई। जिसको लेकर पार्टी नेताओं में असंतोष व्याप्त था। रही सही कसर चुनाव व मतगणना के दौरान पार्टी नेताओं और पार्टी कार्यकर्ताओं के विरुद्ध दर्ज मुकदमें ने भी पूरी कर दी। नेताओं पर आरोप है कि मैदान में आकर सरकारी उत्पीड़न के विरुद्ध संघर्ष करने के बजाय घरों में दुबक कर बैठ गए। ऐसे में हरीश रावत का इस मुद्दे पर सामने आना प्रशासन को भी चुनौती देता नजर आया कि कांग्रेसी कार्यकर्ता असहाय नहीं हैं, बल्कि उनकी चिंता करने वाले नेता हरीश रावत आज भी उनके साथ खड़े हैं।
अब हरिद्वार की सियासत में हरदा की सक्रियता इस बात का संकेत है कि हरीश रावत हरिद्वार लोकसभा से आखिरी दांव खेलने का मन बना चुके हैं। उल्लेखनीय है कि यह वही हरिद्वार है जिसने हरीश रावत के वनवास को समाप्त कर उनको 2009 लोकसभा चुनाव में जीताकर दिल्ली भेजा और वह केंद्र में मंत्री बने थे। उसके बाद 2012 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को मिली कामयाबी के बाद विजय बहुगुणा को मुख्यमंत्री बनाया गया। विजय बहुगुणा को मुख्यमंत्री पद से हटाकर हाईकमान ने हरीश रावत को मुख्यमंत्री की सीट पर बैठाया था। गत् विधानसभा चुनाव के बाद से हरीश रावत ने एक प्रकार से हरिद्वार से जैसे किनारा ही कर लिया था लेकिन अब पार्टी कार्यकर्ताओं के उत्पीड़न को लेकर प्रशासन के खिलाफ आवाज उठाकर वह 2024 के लोकसभा चुनाव में अपनी दमदार दावेदारी की ओर इशारा करते नजर आ रहे हैं।
पंचायत चुनाव की हार के बाद हरीश रावत ने अपनी सियासी पिच तैयार करने की शुरुआत कर दी है। फिलहाल कार्यकर्ताओं को भी एकजुट कर उनका विश्वास बढ़ाने को लेकर भी हरीश लॉबी जनपद में सक्रिय हो गई है। लेकिन तमाम गुटों में बटी कांग्रेस के लिए 2024 लोकसभा चुनाव इतना आसान भी नहीं है जिसकी उम्मीद हरीश रावत कर रहे हैं। दरअसल, देवेंद्र यादव के प्रदेश प्रभारी बनाए जाने के बाद जिस प्रकार से कांग्रेस लगातार राज्य में होने वाले तमाम चुनाव में कमजोर होती गई है उसको लेकर हाईकमान की चुप्पी किसी के गले नहीं उतर रही है। 2022 के विधानसभा चुनाव में टिकटों का बंटवारा हो या फिर हरिद्वार पंचायत चुनाव में पार्टी नेताओं की निष्क्रियता, यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि कांग्रेस का प्रदेश नेतृत्व पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ खड़े होने के बजाय आंख मूंदकर उनका उत्पीड़न होते देख रहा है। हरीश रावत के बहादराबाद थाने में दो दिन धरना दिए जाने के दौरान जनपद के प्रमुख कांग्रेसी नेताओं ने जिस प्रकार धरने से दूरी बनाई है उससे भी पार्टी कार्यकर्ताओं में गलत संदेश गया है। हरीश रावत के धरने के दौरान भले ही पूर्व प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल और नेता विपक्ष यशपाल आर्य धरने में शामिल हुए हों लेकिन पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष करण माहरा सहित अन्य प्रदेश स्तरीय नेता धरने से दूरी बनाए रहे, इस कारण पार्टी कार्यकर्ताओं में प्रदेश नेतृत्व के खिलाफ असंतोष पनप रहा है।