31 अगस्त 1973 को उत्तर प्रदेश के बरेली में जन्मे अभिनव कुमार वर्तमान में उत्तराखण्ड के अपर पुलिस महानिदेशक कारागार हैं। देहरादून के दून स्कूल से प्रारम्भिक शिक्षा के बाद ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के मैन्सफील्ड काॅलेज से दर्शनशास्त्र, राजनीति और अर्थशास्त्र में स्नातक (बी.ए. ऑनर्स) की उच्च शिक्षा प्राप्त अभिनव की छवि एक कर्मठ, कठोर और ‘अभिनव प्रयोग’ के जरिए पुलिस सिस्टम में सुधार लाने वाले अधिकारी की है। 1996 बैच में आईपीएस अधिकारी के रूप में अभिनव कुमार हरिद्वार और देहरादून के एसएसपी, गढ़वाल रेंज के आईजी और 1 दिसम्बर 2023 से 30 नवम्बर 2024 तक उत्तराखण्ड के कार्यवाहक पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) रह चुके हैं। उन्होंने जम्मू-कश्मीर में भी प्रतिनियुक्ति पर आईजी सीमा सुरक्षा बल के रूप में सेवा दी है। यह वह कठिन समय था जब अनुच्छेद 370 हटाया गया था। अभिनव कुमार को उनकी उत्कृष्ट सेवाओं के लिए 2012 में पुलिस पदक और 2022 में राष्ट्रपति पुलिस पदक से सम्मानित किया गया है। अपर पुलिस महानिदेशक कारागार का पद सम्भालने के साथ ही अभिनव कुमार ने प्रदेश की जेलों में आमूल-चूल परिवर्तन लाने की कवायद शुरू कर दी है। ‘दि संडे पोस्ट’ ने राज्य के कारागारों की दशा-दिशा, अपेक्षित सुधारों और ‘अभिनव के अभिनव प्रयोगों’ पर विस्तार से बातचीत की
उत्तराखण्ड की जेलों में वर्तमान में कुल कितने कैदी हैं और यह राज्य की जेलों की क्षमता से कितने अधिक हैं?
पुलिस अनुसंधान एवं विकास ब्यूरो के आंकड़ों अनुसार पूरे देश की जेलों में ओवरक्राउडिंग का प्रतिशत 131.4 प्रतिशत है। राज्य की 10 कारागारों में 3581 क्षमता के सापेक्ष 5488 बंदी निरुद्ध हैं, जो क्षमता से लगभग 153 प्रतिशत अधिक है।
जेलों में अधिक भीड़भाड़ से किन प्रमुख समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है?
जेलों में ओवरक्राउडिंग के कारण बंदियों के रहन सहन हेतु समुचित स्थान का अभाव है, शौच एवं स्नान हेतु समुचित स्थान की कमी चलते बंदियों में त्वचा एवं संक्रमण सम्बंधी बीमारियों की आशंका बलबती होती है तथा अधिक संकुचित तरीके से सोने पर बंदियों में विवाद की स्थिति तो पैदा होती ही है, साथ ही बंदियों की निजता पर संक्रमण इत्यादि समस्याएं मुख्य हैं।
राज्य की जेलों में बुनियादी सुविधाओं (स्वास्थ्य, भोजन, रहने की स्थिति) की वर्तमान स्थिति कैसी है?
बंदियों को नवीन जेल मैनुअल, 2023 में की गई व्यवस्था के अनुरूप तीन समय पौष्टिक भोजन प्रदान किया जा रहा है। बंदी भोजन में प्रतिदिन 80-100 रुपए प्रति बंदी व्यय होता है। बंदियों की स्वास्थ सुविधाओं हेतु कारागारों पर चिकित्सक एवं फार्मासिस्ट के पद सृजित हैं तथा आवश्यक औषधियों की समुचित उपलब्धता है।
राज्य की जेलों में विचाराधीन कैदियों का प्रतिशत कितना है?
राज्य की जेलों में 59 प्रतिशत विचाराधीन बंदी निरुद्ध हैं।
विचाराधीन कैदियों की शीघ्र सुनवाई और न्यायिक प्रक्रिया में तेजी लाने के लिए क्या प्रयास किए जा रहे हैं? क्या राज्य सरकार विचाराधीन कैदियों के लिए जमानत प्रक्रिया को सरल करने की दिशा में काम कर रही है?
विचाराधीन कैदियों की शीघ्र सुनवाई और न्यायिक प्रक्रिया में तेजी लाया जाना माननीय न्यायालयों के कार्यक्षेत्र में है। हमारे स्तर पर विचाराधीन कैदियों की शीघ्र सुनवाई हेतु कारागार स्तर से कई प्रयास किए गए हैं। कारागारों में निरुद्ध बंदियों का शत-प्रतिशत रिमांड वी.सी. के माध्यम से कराया जा रहा है तथा सभी कारागारों में वी.सी. सेटअप का विस्तार किया जा रहा है, जिनमें प्रत्येक कारागार में वीसी हाॅल/क्यूबिक्लेक का निर्माण शामिल है। ‘जिला विधिक सेवा प्राधिकरण’ के माध्यम से निःशुल्क लीगल एड/वकील प्रदान किए गए हैं। इतना ही नहीं बेल बाॅन्ड/शर्तें न दे पाने वाले विचाराधीन बंदियों को शाॅर्ट टर्म बेल/पर्सनल बाॅन्ड पर जमानत पर छोड़ने की कार्यवाही कराई जाती है। जमानत प्रतिभूति जमा कर पाने वाले बंदियों को सपोर्ट टू पुअर प्रिसनजज स्कीम के अन्तर्गत रिहा किए जाने की कार्यवाही भी की जा रही है। विचाराधीन बंदियों को रिहा करने हेतु 436 सीआरपीई एवं 479 बीएनएसएस के अंतर्गत 1/2 एवं 1/3 अवधि पूर्ण कर चुके बंदियों के प्रकरण ‘अंडर ट्रायल रिव्यू कमेटी’ के सम्मुख प्रस्तुत कर कार्यवाही कराई जा रही है।
उत्तराखण्ड हाईकोर्ट ने जेल सुधार को लेकर कई बार सख्त रुख अपनाया है। इन सुधारों को लागू करने के लिए अब तक क्या प्रयास किए गए हैं। नवम्बर, 2021 में तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश राघवेन्द्र सिंह चौहान एवं न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की पीठ ने उत्तराखण्ड की जेलों की बाबत दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए कठोर टिप्पणी की थी। कोर्ट की उक्त सख्त टिप्पणी के बाद इस विषय पर क्या-क्या सुधारात्मक कदम उठाए गए?
माननीय उच्च न्यायालय में योजित जनहित याचिका संख्या-136/2000 में न्यायालय द्वारा पारित उक्त आदेशों के अनुपालन में बंदियों के चारित्रिक व नैतिक उत्थान के लिए उत्तराखण्ड कारागार विभाग सतत प्रयत्नशील है। इसके लिए राज्य के विभिन्न कारागारों में बंदियों के सुधार एवं पुनर्वास कार्यक्रमों को गति देने के लिए आधारभूत व्यवस्थाओं में वृद्धि की जा रही है। राज्य में उच्च अधिकार प्राप्त जेल डेवलपमेंट बोर्ड का गठन किया गया है, जिसके अन्तर्गत बंदियों के रहन-सहन की सुविधाओं में विस्तार तथा उनके कौशल विकास के कार्य किए जा रहे हैं। निजी संस्थाओं तथा एनजीओ से टाइअप कर सिलाई, मोटर बाइंडिंग, दरी उद्योग, गमला उद्योग, मोमबत्ती, लिफाफे, मशरूम, शिल्पकला, इलेक्ट्रिक वायरिगं इत्यादि का प्रशिक्षण प्रदान किया जा रहा है तथा कई संस्थाओं से जाॅब वर्क प्राप्त किया जा रहा है। प्रत्येक जेल में को-ऑपरेटिव सोसायटी का गठन किया गया है, जिसके माध्यम से भी बंदियों को जाॅब वर्क प्रदान किया जा रहा है। बंदियों को ‘इग्नू’ (इंदिरा गांधी नेशनल ओपन यूनिवर्सिटी) और ‘निओस’ (राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी शिक्षा संस्थान) के माध्यम से कारागार में सेंटर खोलकर साक्षर किया जा रहा है। विगत वर्षों में 300 से अधिक बंदियों को इन केंद्रों के माध्यम से शिक्षित किया गया है तथा इस वर्ष 130 से अधिक बंदी पंजीकृत हुए हैं। जेल में आने वाले प्रत्येक बंदी को उसकी अभिरूचि के अनुसार उसे किसी न किसी क्रियाविधि में नियोजित कर उसे समाज की मुख्यधारा में शामिल होने योग्य बनाने का प्रयास रहता है। बंदियों को समाज की मुख्यधारा में जोड़ने के लिए राज्य सरकार द्वारा दिनांक 09 फरवरी, 2021 द्वारा निर्गत समयपूर्व मुक्ति नीति मंे परिवर्तन कर समयपूर्व मुक्ति नीति, 2022 एवं जेल मैनुअल, 2023 के जरिए उसे बंदियांे की दृष्टि से अधिक उदार एवं पारदर्शी बनाया गया है, जिसमें रिहाई हेतु 16 वर्ष की अपरिहार सजा को कम करते हुए 14 वर्ष किया गया है। गम्भीर बीमारी से ग्रसित बंदियों की रिहाई हेतु सजावधि को 10 वर्ष की बाध्यता को समाप्त कर सजावधि पूर्णरूप से समाप्त की जा चुकी है। 70 वर्ष की एवं उससे अधिक के आयु के बंदियों को पूर्व नीति में 12 वर्ष की सजा व 80 वर्ष की एवं उससे अधिक के आयु के बंदियों को 10 वर्ष की सजा के स्थान पर 70 वर्ष एवं उससे अधिक की आयु के बंदियों को 10 वर्ष की अपरिहार सजा भोगने के उपरान्त रिहाई हेतु पात्रता रखी गई है। पूर्व नीति में कतिपय प्रतिबंधित श्रेणी की धाराओं में निरुद्ध बंदियों को समयपूर्व रिहाई का अवसर प्राप्त नहीं था जिसके स्थान पर प्रतिबंधित श्रेणी की धाराओं में निरुद्ध बंदियों के समयपूर्व रिहाई प्रकरणों में मुख्य सचिव, उत्तराखण्ड शासन की अध्यक्षता में गठित समिति के स्तर पर विचार का अवसर प्रदान किया गया है। पूर्व में समयपूर्व मुक्ति की प्रक्रिया स्वतंत्रता दिवस एवं गणतंत्र दिवस के अवसर पर ही सम्पन्न होती थी। अधिक बंदियों को समयपूर्व मुक्ति का अवसर प्रदान किए जाने के उद्देश्य से सरलीकरण करते हुए बंदियों के समयपूर्व मुक्ति की बैठकों को नियमित करते हुए उनकी संख्या बढ़ाते हुए वर्ष में 04 बार (त्रैमासिक रूप से) किया जा चुका है।
उच्चतम न्यायालय के दिशा-निर्देशों का उल्लेख करते हुए उक्त याचिका पर सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने यह भी टिप्पणी की कि कैदियों को उनके गृह क्षेत्र से दूर की जेलों में भेजा जाना उनके मौलिक अधिकारों का हनन है। टिहरी, चमोली तथा पौड़ी जनपदों के कैदियों को हरिद्वार तथा देहरादून जेल में भेजना संविधान के अनुच्छेद 21 का हनन है। इस विषय पर क्या सुधारात्मक कदम उठाए गए हैं?
अन्य जनपदों में लम्बी सजा से दंडित बंदियों (आजीवन कारावास) को आधारभूत संरचना की उपलब्धता के दृष्टिगत राज्य की बड़ी जेलों (देहरादून एवं हरिद्वार) में स्थानांतरित किया जाता रहा है। केंद्रीय कारागार सितारगंज के क्रियाशील होने के बाद लम्बी सजा के बंदियों को वहां पर स्थानांतरित किया गया, परंतु प्रश्नगत जनहित याचिका में मा. उच्च न्यायालय द्वारा सुनवाई के दौरान की गई टिप्पणी के आलोक में वर्तमान में बंदियों के स्थानांतरण के समय यह ध्यान रखा जा रहा है कि किसी भी बंदी को उसके गृह जनपद से बहुत दूर की कारागार में स्थानांतरित न किया जाए। विभाग द्वारा पूर्व में स्थानांतरित ऐसे बंदियों की पारिवारिक एवं व्यक्तिगत समस्याओं के दृष्टिगत उनके अनुरोध पर उनकी मुलाकात की सुविधा आदि के दृष्टिगत उनकी इच्छित कारागार में स्थानांतरित किया गया है।
बंदियों के पैरोल/फरलो पर छोड़े जाने के बाद जेल में वापस न आने का विगत 2-3 वर्षों में कोई प्रकरण उत्तराखण्ड कारागार विभाग में नहीं हुआ। हां, कोरोनाकाल में वर्ष 2020-21 के दौरान हाई पावर्ड कमेटी की अनुशंसा पर छोड़े गए 301 सिद्धदोष बंदियों में से 69 तथा 1,101 विचाराधीन बंदियों में से 408 बंदियों ने आत्म-समर्पण नहीं किया है। इसके लिए शासन स्तर पर विचार-विमर्श के बाद नोडल अधिकारी नामित किए गए हैं। जेल विभाग द्वारा ऐसे बंदियों की पुनः गिरफ्तारी के लिए पुलिस तथा सम्बंधित मा. न्यायालय से समन्वय बनाकर कार्यवाही कराई जा रही है। कारागारों तथा कारागार मुख्यालय स्तर से भी सम्बंधित पुलिस अधीक्षक व जिला मजिस्ट्रेट से ऐसे बंदियों की पुनर्गिरफ्तारी हेतु अनुरोध किया जा रहा है और इसकी नियमित समीक्षा की जा रही है
राज्य मानवाधिकार आयोग, राष्ट्रीय जेल सुधार समिति और अन्य संस्थानों द्वारा दी गई सिफारिशों पर अमल की स्थिति क्या है?
इन संस्थाओं द्वारा की गई सिफारिशों के अनुसार उत्तराखण्ड विभाग द्वारा ओवरक्राउडिंग की समस्या के निराकरण हेतु अतिरिक्त बैरकों का निर्माण किया जा रहा है। कारागारविहीन जनपदों (उत्तराकाशी, पिथौरागढ़, रूद्रप्रयाग, बागेश्वर, चम्पावत) में नई जेलों का निर्माण एवं क्रियाशील करने की कार्यवाही की जा रही है। बंदियों को समय से चिकित्सा सुविधाओं के लिए मेडिकल कैम्पस एवं मानसिक स्वास्थ शिविर लगाए जाते हैं। सुधार एवं पुनर्वास कार्यक्रमों के लिए एनजीओ के माध्यम से उनके लिए कौशल विकास के विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं।
जेलों के निरीक्षण के दौरान कोई प्रमुख कमियां पाई गईं? यदि हां तो उन्हें सुधारने के लिए क्या योजनाएं बनाई गई हैं?
कारागारों का निरीक्षण नियमित रूप से सम्बंधित जनपद के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, सचिव, जिला विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा किया जाता है। जनपद के डीजे, डीएम, एसएसपी द्वारा त्रैमासिक रूप से कारागार का संयुक्त निरीक्षण किया जाता है। विगत में मा. उच्च न्यायालय के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश द्वारा भी कई जेलों (देहरादून, हरिद्वार, सितारगंज, टिहरी) का निरीक्षण किया गया है। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के स्पेशल रिपोर्टर द्वारा भी समय-समय पर कारागारों का निरीक्षण किया गया है। इन सभी निरीक्षणों में यद्यपि कोई विशेष कमियां या अनियमितता इंगित नहीं की गई है, तथापि कतिपय निरीक्षणों के समय अधिकारियों द्वारा बंदियों के सुधार, पुनर्वास व उनके कौशल विकास, चिकित्सा स्वास्थ्य तथा बंदियों की सूचनाओं हेतु ई-किऑस्क की स्थापना आदि से सम्बंधित कार्यवाही के निर्देश/सुझाव दिए गए हैं, जिस पर विभाग प्राथमिकता पर कार्यवाही कर रहा है।
उत्तराखण्ड की जेलों में कैदियों के बीच झगड़े और हिंसक घटनाएं अक्सर खबरों में रहती हैं। ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए क्या विशेष कदम उठाए जा रहे हैं?
उत्तराखण्ड कारागार विभाग में निरुद्ध बंदियों के बीच झगड़े एवं हिंसक घटनाओं की कोई घटना घटित नहीं हुई है। हां, बंदियों के बीच कभी-कभार छोटे-मोटे मुद्दों पर कहा-सुनी या वाद-विवाद की स्थिति उत्पन्न हो जाते हैं, जिसे कारागार स्तर पर ही सुलझाया जाता है। कारागारों में सीसीटीवी कैमरा की स्थापना एवं बाॅडी वाॅर्न कैमरा के प्रयोग से इस प्रकार की घटनाओं को रोकने में काफी मदद मिलती है।
जेलों में संगठित अपराध को रोकने के लिए क्या विशेष रणनीतियां अपनाई जा रही हैं?
उत्तराखण्ड कारागार विभाग में विगत कई वर्षों से कारागार में निरुद्ध बंदियों द्वारा गुटबाजी करने एवं जेलों से अपराध घटित होने का कोई प्रकरण सामने नहीं आया है। फिर भी कारागारों में निरुद्ध कुख्यात एवं शातिर अपराधियों को कारागार नियमों के अनुसार रखने के लिए उन्हें सीसीटीवी कैमरा प्रणाली की निगरानी में रखा जा रहा है तथा उनकी सुरक्षा में स्वच्छ छवि के कार्मिकों की ड्यूटी लगाई जाती है। कुख्यात एवं शातिर बंदियों की मुलाकात अलग से कराई जाती है तथा मुलाकातियों पर नजर रखी जाती है। मुलाकात की सूचना एलआईयू एवं पुलिस-प्रशासन को दी जाती है। पुलिस-प्रशासन से प्राप्त इनपुट के आधार पर ऐसे कुख्यात एवं शातिर अपराधियों को एक जेल से अन्य जेल पर समय-समय पर प्रशासनिक आधार पर स्थानांतरित भी किया जाता है।
महिला बंदियों हेतु आरओ तथा गर्म पानी हेतु गीजर उपलब्ध हैं। नहाने एवं कपड़े धोने का साबुन, टूथपेस्ट, टूथब्रश, तेल आदि की व्यवस्था है। महिला बंदियों को पर्याप्त मात्रा में सेनेटरी नैपकिन उपलब्ध कराए जाते हैं तथा सेनेटरी नैपकिन वेंडिंग मशीन, सेनेटरी नैपकिन डिस्पोजल मशीन व डस्टबिन लगाए गए हैं। सभी महिला बंदियों को लीगल एड की सुविधा प्रदान की जाती है। निरक्षर महिला बंदियों को शिक्षित एवं साक्षर किया जा रहा है। कुछ कारागारों में निओस एवं इग्नू के अध्ययन केंद्र संचालित हैं। महिला बंदियों को जूट बैग मेकिंग, ब्यूटी पार्लर, पैन मेकिंग, अचार, पापड़, अगरबत्ती व धूपबत्ती बनाने का प्रशिक्षण प्रदान किया जा रहा है। समय-समय पर विजिटिंग गाइनोकोलाॅजिस्ट द्वारा स्वास्थ्य परीक्षण किया जाता है। समय-समय पर जिला चिकित्सालयों के माध्यम से चिकित्सा कैम्प लगाए जाते हैं। गर्भवती महिला बंदियों का आवश्यक स्वास्थ्य परीक्षण/टीकाकरण कराया जाता है। मानसिक तनाव को कम करने एवं आध्यात्मिक ज्ञान बढ़ाने के लिए आर्ट ऑफ़ लिविंग, बह्माकुमारी इत्यादि के कार्यक्रम आयोजित कराए जाते हैं
क्या जेल प्रशासन ने सुरक्षा उपायों को बढ़ाने के लिए सीसीटीवी निगरानी, बाॅडी स्कैनर और अन्य तकनीकों का उपयोग किया है?
प्रदेश की समस्त कारागारों में सीसीटीवी कैमरे संयोजित किए गए हैं। कारागारों में बैगेज स्कैनर, सिक्योरिटी पोल, डोर फेम मैटल डिटेक्टर, हैंड हैल्ड मैटल डिटेक्टर, वाॅकी-टाॅकी इत्यादि सुरक्षा उपकरणों का उपयोग किया जा रहा है।
हाल ही में पैरोल पर छोड़े गऐ कई कैदी जेल वापस नहीं लौटे। इस पर प्रशासन की क्या प्रतिक्रिया है? ऐसे कैदियों की गिरफ्तारी के लिए अब तक क्या कार्यवाही की गई?
बंदियों के पैरोल/फरलो पर छोड़े जाने के बाद जेल में वापस न आने का विगत 2-3 वर्षों में कोई प्रकरण उत्तराखण्ड कारागार विभाग में नहीं हुआ। हां, कोरोनाकाल में वर्ष 2020-21 के दौरान हाई पावर्ड कमेटी की अनुशंसा पर छोड़े गए 301 सिद्धदोष बंदियों में से 69 तथा 1,101 विचाराधीन बंदियों में से 408 बंदियों ने आत्म-समर्पण नहीं किया है। इसके लिए शासन स्तर पर विचार विमर्श के बाद नोडल अधिकारी नामित किए गए हैं। जेल विभाग द्वारा ऐसे बंदियों की पुनः गिरफ्तारी के लिए पुलिस तथा सम्बंधित मा. न्यायालय से समन्वय बनाकर कार्यवाही कराई जा रही है। कारागारों तथा कारागार मुख्यालय स्तर से भी सम्बंधित पुलिस अधीक्षक व जिला मजिस्टेªट से ऐसे बंदियों की पुनर्गिरफ्तारी हेतु अनुरोध किया जा रहा है और इसकी नियमित समीक्षा की जा रही है।
कैदियों के पुनर्वास और समाज में पुनः समावेशन के लिए किन कार्यक्रमों को लागू किया जा रहा है?
वर्तमान में राज्य की कारागारों में विभिन्न गैर सरकारी संस्थाओं के माध्यम से कौशल विकास कार्यक्रम संचालित किए जा रहे हैं, जिसमें बंदियों को कम्प्यूटर, इलेक्ट्रिक वायरिंग, गमला निर्माण, फर्नीचर, मोमबत्ती, दरी कालीन निर्माण, लिफाफे, मशरूम उत्पादन, बांस, शिल्पकला, कपड़ा, सिलाई, बुनाई, बैकरी उत्पाद आदि व्यवसायों का प्रशिक्षण प्रदान किया जा रहा है।
उत्तराखण्ड की जेलों में सुरक्षाकर्मियों और अन्य प्रशासनिक कर्मचारियों की कितनी कमी है?
उत्तराखण्ड की जेलों में सुरक्षाकर्मियों के स्वीकृत 871 पदों के सापेक्ष 759 सुरक्षाकर्मी तैनात हैं तथा 112 पद रिक्त हैं। इन रिक्त पदों पर 14 सुरक्षाकर्मी आउटसोर्स (उपनल) से तैनात हैं। रिक्त सम्पूर्ण पदों पर नियमित नियुक्ति हेतु अधियाचन प्रेषित किया जा रहा है।
क्या जेल कर्मचारियों की भर्ती और प्रशिक्षण के लिए नई योजनाएं बनाई जा रही हैं?
रिक्त सम्पूर्ण पदों पर नियमित नियुक्ति हेतु अधियाचन प्रेषित किया जा रहा है। जेल बंदी रक्षक कार्मिकों को नए कानून, जेल मैनुअल-2023 एवं आधुनिक शस्त्रों के प्रशिक्षण हेतु एक माह का रिफ्रेशर कोर्स सशस्त्र प्रशिक्षण केंद्र, हरिद्वार में प्रदान किया जा रहा है। नवनियुक्त पुरुष/महिला बंदी रक्षकों का 5 माह का आधारभूत प्रशिक्षण डाॅ. सम्पूर्णानंद कारागार प्रशिक्षण संस्थान लखनऊ में प्रदान किया जा रहा है। समय-समय पर भारत सरकार (एनसीआरबी, बीपीआर और डी सेंट्रल पुलिस ट्रेनिंग एकेडमी, आईसीए चंडीगढ़) द्वारा कार्मिकों को विभिन्न विषयों पर ऑनलाइन एवं ऑफलाइन प्रशिक्षण नियमित रूप करवाए जा रहे हैं।
जेलकर्मियों की सुरक्षा और कार्यस्थल के माहौल को सुधारने के लिए क्या प्रयास किए जा रहे हैं?
कारागारों में शस्त्रों के आधुनिकीकरण हेतु 100 एसएलआर एवं 309 एमएम पिस्टल्स का क्रय किया गया है। कारागार कर्मियों को इन आधुनिक शस्त्रों का प्रभावी प्रशिक्षण प्रदान किया जा रहा है।
राज्य में नई जेलों के निर्माण को लेकर क्या योजनाएं हैं?
वर्तमान में जनपद पिथौरागढ़ में एक नई जेल का निर्माण कार्य अंतिम चरण में। चम्पावत में कारागार के निर्माण हेतु प्रथम किश्त 1113.55 लाख रुपए अवमुक्त है। ऊधमसिंह नगर में कारागार निर्माण प्रारम्भिक आगणन स्वीकृति शासन में विचाराधीन है। उत्तरकाशी में कारागार निर्माण प्रशासनिक स्वीकृति शासन में विचाराधीन है। बागेश्वर एवं रूद्रप्रयाग में भूमि चयन/स्थानांतरण की कार्यवाही प्रचलित है।
क्या जेलों के डिजिटलीकरण और प्रशासनिक प्रक्रियाओं को आसान बनाने के लिए कोई नई तकनीक अपनाई जा रही है?
कारागारों में ई-प्रिशन पोर्टल संचालित, जिसमें बंदी की कारागार से प्रवेश से मुक्ति, आवागमन, मुलाकात, रिहाई इत्यादि की सम्पूर्ण जानकारी डिजिटल रूप में संकलित है। प्रशासनिक कार्यों को सुगम बनाए जाने हेतु विभाग में ई-प्रिशन प्रारम्भ करने की कार्यवाही गतिमान है।

ओपन जेल (खुली जेल) की अवधारणा को लेकर सरकार की क्या योजना है?
मा. उच्चतम न्यायालय एवं मा. उच्च न्यायालय द्वारा प्रत्येक राज्य में खुली कारागार का होना आवश्यक बताया गया है। देश की सबसे प्राचीन खुली कारागार सितारगंज में अवस्थित है (1960)। खुली कारागार में शिविरवासी बंदियों द्वारा कृषि कार्य, गौशाला, बागवानी का कार्य किया जा रहा है। खुली जेल सम्पूर्णानंद शिविर, सितारगंज की सुविधाओं के विस्तार एवं बंदियों के रहने हेतु बॉम्बो/फैब्रिकेटेड हट्स बनाए जाने का प्रस्ताव विचाराधीन है।
उत्तराखण्ड की जेलों में महिला कैदियों की स्थिति कैसी है और उनके पुनर्वास के लिए क्या विशेष योजनाएं हैं?
महिला बंदियों हेतु आरओ तथा गर्म पानी हेतु गीजर उपलब्ध हैं। नहाने एवं कपड़े धोने का साबुन, टूथपेस्ट, टूथब्रश, तेल आदि की व्यवस्था है। महिला बंदियों को पर्याप्त मात्रा में सेनेटरी नैपकिन उपलब्ध कराए जाते हैं तथा सेनेटरी नैपकिन वेंडिंग मशीन, सेनेटरी नैपकिन डिस्पोजल मशीन व डस्टबिन लगाए गए हैं। सभी महिला बंदियों को लीगल एड की सुविधा प्रदान की जाती है। निरक्षर महिला बंदियों को शिक्षित एवं साक्षर किया जा रहा है। कुछ कारागारों में निओस एवं इग्नू के अध्ययन केंद्र संचालित हैं। महिला बंदियों को जूट बैग मेकिंग, ब्यूटी पार्लर, पैन मेकिंग, अचार, पापड़, अगरबत्ती व धूपबत्ती बनाने का प्रशिक्षण प्रदान किया जा रहा है। समय-समय पर विजिटिंग ज्ञाइनोकोलाॅजिस्ट द्वारा स्वास्थ्य परीक्षण किया जाता है। समय-समय पर जिला चिकित्सालयों के माध्यम से चिकित्सा कैम्प लगाए जाते हैं। गर्भवती महिला बंदियों का आवश्यक स्वास्थ्य परीक्षण/टीकाकरण कराया जाता है। मानसिक तनाव को कम करने एवं आध्यात्मिक ज्ञान बढ़ाने के लिए आर्टऑफ़ लिविंग, बह्माकुमारी इत्यादि के कार्यक्रम आयोजित कराए जाते हैं।
किशोर कैदियों के लिए सुधार गृहों की क्या स्थिति है और उनमें कोई विशेष सुधार की योजना बनाई गई है?
प्रदेश में पृथक से किशोर बंदी गृह संचालित नहीं है। कारागारों में ही उपलब्ध किशोर बैरकों में 18-21 वर्ष आयु के किशोर बंदियों को निरुद्ध किया जाता है। किशोर बंदियों के समुचित खान-पान, स्वास्थ्य एवं खेलकूद की सुविधाएं उपलब्ध हैं।
उत्तराखण्ड की जेलों में कैदियों को स्वास्थ्य सुविधाएं कितनी उपलब्ध हैं? जेलों में डॉक्टरों, मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों और चिकित्सा कर्मचारियों की कितनी कमी है?
सभी कारागारों में चिकित्साधिकारी का पद सृजित है। जिला कारागार, देहरादून पर नियमित एवं जिला कारागार, हरिद्वार में संविदा चिकित्साधिकारी तैनात हैं। चिकित्सा अधिकारी के सृजित 11 पदों के सापेक्ष 10 पद रिक्त हैं। रिक्त पदों पर नियमित नियुक्ति हेतु चिकित्सा विभाग से लगतार अनुरोध किया जा रहा है। कारागारों हेतु मनोचिकित्सक का कोई पद सृजित नहीं है। एनडीपीएस एक्ट, 1985 के अंतर्गत जिला कारागार, देहरादून में निरुद्ध बंदियों को समाज की मुख्य धारा से जोड़ने एवं उनके पुनर्वास हेतु शासन ने सुभारती चिकित्सालय के माध्यम से न्यूरोफिजिथेरेपिस्ट, क्लिनिकल फिजिकोलाॅजिस्ट को सप्ताह में 03 दिन के लिए नामित किया गया है। कारागारों हेतु चीफ फार्मासिस्ट के 04 पद, फार्मासिस्ट के 16 सृजित पदों के सापेक्ष 10 पद रिक्त हैं। रिक्त पदों पर भर्ती की प्रक्रिया अधीनस्थ चयन सेवा आयोग के स्तर पर गतिमान है। सीधी भर्ती होने तक के लिए आउटसोर्स से 8 फार्मासिस्टों को तैनात किया गया है। कारागारों में सृजित लैबोरेटरी टेक्नीशियन एवं नर्स का 1-1 पद रिक्त हैं।
क्या मानसिक स्वास्थ्य से जूझ रहे कैदियों के लिए कोई विशेष परामर्श या थेरेपी कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं?
मानसिक देखरेख अधिनियम, 2017 के प्रावधानों के अंतर्गत केंद्रीय कारागार, सितारगंज में 50 बेड के निर्माणाधीन चिकित्सालय में मानसिक बंदियों के स्वास्थ्य स्थापन केंद्र का संचालन किया जाना प्रस्तावित है।
अभिनव कुमार की बहुत पहचान अभिनव प्रयोग करने वाले पुलिस अधिकारी की एवं एक कठोर प्रशासक की रही है। बतौर जेल महानिदेशक आप कौन से ऐसे अभिनव प्रयोग करने जा रहे हैं जिनसे उत्तराखण्ड की जेल व्यवस्था देश में आदर्श व्यवस्था के रूप में उभर कर आए?
कारागारों में संयोजित सीसीटीवी कैमरों के मुख्यालय स्तर पर पर्यवेक्षण हेतु आर्टिफिशिय इंटेलिजेंस (एआई) आधारित वीडियो वाॅल लगाए जाने की स्वीकृति दी गई है। कारागारों पर पैनिक अलार्म सिस्टम एवं बायोमेट्रिक अटैंडेंस सिस्टम लगाए जाने की स्वीकृति दी जा चुकी है। संवेदनशील 4 कारागारों में चारदीवारी पर फाइवरऑप्टिक इंस्ट्रक्शन डिटेक्शन सिस्टम लगाए जा रहे हैं। जेल विकास बोर्ड के माध्यम खुली कारागार सितारगंज एवं उप कारागार, रुड़की में पेट्रोल पम्प की स्थापना पर विचार चल रहा है। बंदियों द्वारा निर्मित सामग्री हेतु कारागारों पर विक्रय केंद्र (आउटलेट) की स्थापना अभिनव के अभिनव प्रयोग शुरू की जा रही है। खुली जेल सितारगंज में जेल टूरिज्म की सम्भावनाओं पर भी हम विचार कर रहे हैं। जिला कारागार देहरादून में लेदर शू यूनिट स्थापित किए जाने पर कार्य शुरू किया जा रहा है।