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Uttarakhand

सरकारी जमीन पर शिक्षण संस्थान का कब्जा

घोटालों का निगम/भाग-एक

 

प्रदेश के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी सरकारी जमीनों से अतिक्रमण हटाने का अभियान चलाए हुए है। सैकड़ों धार्मिक स्थलों से जमीन कब्जा मुक्त कराई जा चुकी है। धामी सरकार ने इस प्रकरण में काफी सुर्खियां बटोरी है। लेकिन नगर निगम देहरादून में एक ऐसा मामला सामने आया है जहां एक पार्षद द्वारा शिक्षण संस्थान के कब्जे पर शिकायत करने के बाद भी जमीन को अतिक्रमण मुक्त किए जाने की बजाय प्रशासन हाथ पर हाथ धरे बैठा है। यहां तक कि सूचना अधिकार अधिनियम के तहत भी इस प्रकरण में स्पष्ट सूचना नहीं दी जा रही है। इस पर सूचना आयुक्त भी विभाग को फटकार लगा चुके हैं

 

प्रश्नगत प्रकरण नगर निगम की व्यवस्था एवं कायज़् संस्कृति पर सवाल है। नगर निगम अथाज़्त् छोटी सरकार जनतंत्र के लिहाज से एक अहम संस्था है, जब एक जनप्रतिनिधि की सुनवाई नहीं है तो कैसे उम्मीद की जाए कि वहां जनता की सुनवाई होती होगी। सवाल यह है कि नगर निगम देहरादून किसके लिए है?

देहरादून नगर की जनता के लिए अथवा कुछ खास लोगों के लिए? नगर निगम की जमीनें खुलेआम कब्जा हो रही हैं। खुदज़्-बुदज़् की जा रही हैं और नगर निगम प्रशासन खामोश है। इसे क्या कहा जाए लूट की छूट, सााजिश, अराजकता, लारपवाही, अकर्मण्यता या कुछ और? एक जनप्रतिनिधि को अगर निगम हित में उठाए गए मुद्दे पर कायज़्वाही के लिए सूचना के अधिकार का सहारा लेना पड़ रहा है तो इससे दुर्भाग्यपूर्ण कुछ हो ही नहीं सकता। नि:संदेह यह बेहद गंभीर एव भविष्य के लिए भयावह स्थिति का संकेत है। यह जनतंत्र पर सवाल ही नहीं है, सरकार की प्रतिष्ठा पर भी प्रश्नचिन्ह है। समय रहते हालात पर काबू नहीं किया गया तो इसके दुष्परिणाम भुगतने होंगे।’

राज्य सूचना आयुक्त योगेश भट्ट द्वारा एक मामले की सुनवाई के बाद जारी किए गए आदेश में दी गई उक्त टिप्पणी प्रदेश के वतज़्मान हालातों को बयां करती है। जिसमें प्रदेश के संसाधनों की हो रही लूट-खसोट को सरकारी अधिकारियों का संरक्षण दिए जाने का मामला सामने आया है।

यह मामला राज्य के सबसे बड़े नगर निगम देहरादून का है जिसमें निगम की सहधिारा रोड स्थित डांडा लाखैण्ड और डांडा खुदानेवाला की कई बीघा जमीन पर अवैध कब्जा कर निमाज़्ण हो चुका है। निगम प्रशासन कारज़्वाई करने की बजाय कब्जाधारियों के ही हितों का सरंक्षण कर रहा है। यहां तक कि कब्जों पर कारज़्वाई न करना पड़े इसके लिए सूचना के अधिकार के तहत सूचना भी नहीं दी जा रही है। इस मामले में राज्य सूचना आयोग को भी हैरत में डाल दिया। फलस्वरूप आयोग को सुनवाई के दौरान निगम प्रशासन के खिलाफ कड़ी टिप्पणी करने पर मजबूर होना पड़ा है। इस प्रकरण पर प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष करन माहरा द्वारा 24 जून को देहरादून में एक संवाददाता सम्मेलन आयोजित कर इस मुद्दे पर सरकार की घेराबंदी करते हुए कहा कि जब भाजपा के पाषज़्दों की ही शिकायत पर कायज़्वाही नहीं हो रही है तो आम आदमी के काम कैसे होंगे? साथ ही उन्होंने इस मामले की जांच हाईकोटज़् के जज से कराने की मांग की।

नगर निगम देहरादून के वाडज़् संख्या 27 के पाषज़्द अजय सिंघल द्वारा नगर निगम क्षेत्र डांडा लाखौण्ड सहधिारा रोड पर सिद्धाथज़् पैरामेडिकल कॉलेज डांडा खुदानेवाला में नगर निगम की लगभग 6 बीघा भूमि पर अवैध कब्जा करके उस पर ऑडिटोरियम का निमाज़्ण किए जाने की शिकायत नगर आयुक्त से की गई थी लेकिन निगम प्रशासन द्वारा अपने ही पाषज़्द की शिकायत पर कोई कारज़्वाई तक नहीं की गई। इस बाबत पाषज़्द अजय सिंघल द्वारा 30 माचज़् 2022 को नगर निगम में सूचना के अधिकार के तहत सूचना प्राप्त करने के लिए आवेदन किया गया। आवेदन में दो बिंदुओं पर सूचना मांगी गई। जिसमें सिद्धाथज़् पैरामेडिकल कॉलेज द्वारा नगर निगम की भूमि पर अवैध कब्जा करके ऑडीटोरियम का निमाज़्ण करने की शिकायत पर निगम द्वारा की गई कारज़्वाई और दूसरे बिंदु में निगम की जमीन पर अतिक्रमण हुआ है तो निगम उस पर क्या कारज़्वाई कर रहा है।

निगम के लोक सूचना अधिकारी द्वारा अजय सिंघल को 20 मई 2022 को राजस्व उप निरीक्षक एवं निरीक्षक भूमि अनुभाग द्वारा सूचना उपलब्ध करवाई गई जो कि पयाज़्प्त और स्पष्ट नहीं थी। अजय सिंघल द्वारा उनको अधूरी और गुमराह करने वाली सूचना दिए जाने पर प्रथम अपील दायर की गई। जिसका निस्तारण 8 जुलाई 2022 को किया गया और लोक सूचना अधिकारी/ सहायक नगर आयुक्त नगर निगम को भविष्य के लिए चेतावनी देते हुए आवेदक के दोनों बिंदुओं पर स्पष्ट और प्रामाणिक सूचना देने का आदेश जारी किया गया। बावजूद इसके सूचना देने के आदेश को भी लोक सूचना अधिकारी द्वारा अनुपालन नहीं किया गया जिस पर मजबूर होकर अजय सिंघल द्वारा 15 सितंबर 2022 को राज्य सूचना आयोग में द्वितीय अपील दायर की गई। जिस पर 28 अप्रैल 2023 व 13 जून 2023 को राज्य सूचना आयोग योगेश भट्ट की पीठ में सुनावाई की गई। जहां नगर निगम की जमीन पर अवैध कब्जेधारियों को स्वयं निगम के अधिकारियों द्वारा किस प्रकार से बचाने का प्रयास किया जाता रहा इसका खुलासा हुआ।

नगर निगम द्वारा पाषज़्द की शिकायत पर 12 अगस्त 2022 को जांच की गई। जांच में पाया गया कि सिद्धाथज़् पैरामेडिकल कॉलेज द्वारा निगम की जमीनों के अलग-अलग खसरा संख्या पर 0-3196 हेक्टेयर यानी कि लगभग साढ़े तीन बीघा भूमि पर अवैध कब्जा किया गया है।

नगर निगम की जांच रिपोटज़् में यह भी स्पष्ट हुआ कि सिद्धाथज़् एजुकेशन सोसायटी द्वारा अपनी भूमि के साथ नगर निगम की भूमि खसरा नंबर 246 रकवा 0-0240 हेक्टेयर खसरा नंबर 250 रकवा 0-0080 हेक्टेयर एवं खसरा नंबर 251 रकवा 0-0020 हेक्टेयर कुल रकवा 0-340 हेक्टेयर भूमि जो कि 3-1 हेक्टेयर भूमि खाला, नगर निगम में दजज़् कागजात है। उक्त भूमि पर 68 गुणा 17 मीटर कुल 1156 मीटर भूमि खसरा रकवा 197 जंगल झसड़ी पर 100 मीटर गुणा 17 मीटर कुल 1700 मीटर एंव भूमि खसरा नंबर 246 मि0 रकवा 0-0240 हेक्टेयर खसरा नंबर 250 रकवा 0-0080 हेक्टेयर भूमि पर सिद्धाथज़् एजुकेशन सोसायटी का कब्जा पाया गया है। इस तरह से कुल क्षेत्रफल 0-3196 हेक्टेयर पर कॉलेज का कब्जा पाया गया है।

इस मामले में नगर निगम प्रशासन द्वारा सिद्धाथज़् एजुकेशन सोसायटी के हितों को साधने के लिए बड़ा खेल रचा गया। पूरा प्रशासन सिद्धाथज़् एजुकेशन सोसायटी को बचाने का काम कर रहा था इसका प्रमाण यह है कि पाषज़्द अजय सिंघल द्वारा आयोग में अपील दायर की सुनवाई की तारीख से एक दिन पूवज़् 12 जून 2023 को ही को संयुक्त सीमांकन का पत्र जारी किया गया।

नगर निगम अपनी ही भूमि के अवैध कब्जे को लेकर जान-बूझकर विरोधाभासी कायज़् करता रहा। एक नोटिस में नगर निगम 0-3196 हेक्टेयर भूमि पर कब्जे की बात करता है, वहीं दूसरी तरफ 12 दिसबंर 2022 को सिद्धाथज़् एजुकेशन सोसायटी को दिए गए नोटिस में 0-0300 हेक्टेयर भूमि पर कब्जे का उल्लेख करता है। खास बात यह है कि सिद्धाथज़् एजुकेशन सोसायटी को बेदखली की कारज़्वाई के लिए सिटी मजिस्ट्रेड को भेजे गए प्रारूप में महज 0-030 हेक्टेयर भूमि को कब्जा मुक्त करवाने का उल्लेख किया गया है।

दिलचस्प बात यह हैे कि सूचना आयुक्त योगेश भट्ट की पीठ ने सुनावाई के दौरान भी यह बात निगम के अधिकारियों से पूछी थी लेकिन वे भी इसका आयोग के समक्ष संतोषजनक उत्तर तक नहीं दे पाए।

सिद्धाथज़् एजुकेशन सोसायटी द्वारा नगर निगम के नोटिस के जवाब में 27 मई 2023 को प्रति उत्तर दिया गया जिसमें नोटिस को विधि विरुद्ध बताते हुए कहा गया कि सोसायटी द्वारा नगर निगम की भूमि पर कोई अतिक्रमण या अनाधिकृत कब्जा नहीं किया गया। साथ ही यह भी उल्लेख किया गया कि 28 दिसंबर 2021 को राजस्व उप निरीक्षक नगर निगम मौके पर आए थे तब सोसायटी द्वारा 12 जनवरी 2022 को नगर निगम कायाज़्लय का अपने स्वामित्व वाली भूमि के समस्त दस्तावेज उपलबध करवा दिए गए थे जिस पर नगर निगम के तत्कालीन अधिकारी संतुष्ट हो गए थे और कारज़्वाई पूणज़्त: समाप्त कर दी गई थी। सोसायटी द्वारा विधिवत सीमांकन करवाने के साथ ही नोटिस को निरस्त करने की भी मांग की गई थी। इससे भी यह साफ हो जाता हेै कि नगर निगम के अधिकारी किस सीमा तक अपनी जमीन के अवैध कब्जाधारी के लिए नियमों को ताक पर रख रहे थे। यहां तक कि जांच को भी कब्जाधारी के पक्ष में करने का काम कर रहे थे।

इस पूरे प्रकरण की अब 2 अगस्त 2023 को सुनवाई करने की तरीख तय की गई है। देखना इस मामले में निगम प्रशासन क्या कारज़्वाई करता है। साथ ही शहरी विकास विभाग को भी आयोग द्वारा यह है कि इस मामले में कारज़्वाई करने के लिए
आदेश की प्रतिलिपि दी गई है। शहरी विकास विभाग जिसके अधीन नगर निगम आता है वह क्या कदम उठाता है। राज्य सरकार के सरकारी जमीनों पर अवेैध कब्जे को हटाने की नीति पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं। एक ओर राज्य सरकार और स्वयं मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी साफ कर चुके हैं कि सरकारी भूमि पर अवैध कब्जों का हर हाल में मुक्त करवाने के लिए सरकार प्रतिबद्ध है। अब सरकार इस मामले में क्या कायवाही करती है जिसमें जांच में जमीन पर कब्जे का प्रमाण स्वयं सरकारी संस्था को मिल चुका है। यह देखना दिलचस्प होगा।

 

मैं अपीलीय अधिकारी नहीं रहा। मेरे समय का यह मामला नहीं है। मैं इसको चेक करवाता हूं, अगर कोई ऐसा मामला है तो नियम-कानून के अनुसार कारज़्वाई की जाएगी।
मनुज गोयल, नगर आयुक्त नगर निगम देहरादून

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