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Uttarakhand state

‘यूसीसी’ की प्रयोगशाला बनेगा उत्तराखण्ड

इस समय देश में मौसम की तरह ही यूसीसी यानी समान नागरिक संहिता का मुद्दा भी गर्म है। देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस मुद्दे को भोपाल से हवा दी तो उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने देश में सबसे पहले इसका ड्राफ्ट तैयार कर इसे खाद-पानी देने का काम किया है। धारा-370 और राम मंदिर निर्माण के बाद अब भाजपा को ऐसे मुद्दे की शिद्दत से जरूरत भी है। सियासी हलकों में चर्चा है कि आगामी लोकसभा चुनावों में भाजपा इस मुद्दे पर चुनावी नैय्या पार लगाने की तैयारी में है। इसके लिए उत्तराखण्ड को प्रयोगशाला के तौर पर आगे बढ़ाया जा रहा है। मुख्यमंत्री धामी ने लव जिहाद, लैंड जिहाद और मजार जिहाद पर चाबुक चलाकर देवभूमि में यूसीसी का रास्ता भी तैयार कर लिया है। जल्द ही कैबिनेट में पास कर इसे मानसून सत्र में लागू कर उत्तराखण्ड देश का पहला ऐसा राज्य बन जाएगा जो आजादी के बाद यूसीसी युक्त कहलाएगा। राजनीतिक पंडितों का मानना है कि प्रधानमंत्री मोदी आगामी लोकसभा चुनाव में ‘उत्तराखण्ड यूसीसी माॅडल’ को चुनावी एजेंडे में शामिल कर मतदाताओं को आकर्षित कर सकते हैं

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने अपने 9 साल पूरे कर लिए हैं। इन नौ सालों में ऐसा पहली बार हुआ है जब बीती 27 जून को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यूसीसी यानी समान नागरिक संहिता पर इतने विस्तृत तरीके से बात की। भोपाल में एक कार्यक्रम के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने देश में समान नागरिक संहिता की वकालत करते हुए कहा कि ‘एक ही परिवार में दो लोगों के लिए अलग-अलग नियम नहीं हो सकते। ऐसी दोहरी व्यवस्था से घर कैसे चल पाएगा?’ प्रधानमंत्री मोदी ने आगे कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने बार-बार कहा है। सुप्रीम कोर्ट डंडा मारता है। कहता है काॅमन सिविल कोड लाओ। लेकिन ये वोट बैंक के भूखे लोग इसमें अड़ंगा लगा रहे हैं। भाजपा ‘सबका साथ, सबका विकास’ की भावना से काम कर रही है।

क्या कहता है सुप्रीम कोर्ट

  1. तीन तलाक से जुड़े 1985 के चर्चित शाह बानो केस में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अनुच्छेद 44 एक ‘मृत पत्र’ जैसा हो गया है। साथ ही कोर्ट ने देश में समान नागरिक संहिता लागू करने की जरूरत पर जोर दिया था।
  2. बहु विवाह से जुड़े सरला मुद्गल बनाम भारत संघ मामले में शीर्ष अदालत ने कहा था कि पंडित जवाहर लाल नेहरू ने 1954 में संसद में समान नागरिक संहिता के बजाय हिंदू कोड बिल पेश किया था। इस दौरान उन्होंने बचाव करते हुए कहा था कि यूसीसी को आगे बढ़ाने की कोशिश करने का यह सही समय नहीं है।
  3. गोवा के लोगों से जुड़े 2019 के उत्तराधिकार मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि राज्य के नीति निदेशक सिद्धांतों की चर्चा करने वाले भाग चार के अनुच्छेद-44 में संविधान के संस्थापकों ने अपेक्षा की थी कि राज्य भारत के सभी क्षेत्रों में नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता लागू करने की कोशिश करेगा। लेकिन, आज तक इस पर कोई कदम नहीं उठाया गया।

 

भाजपा के कोर एजेंडे में तीन मुद्दे शामिल रहे हैं। अयोध्या में राम मंदिर निर्माण, जम्मू और कश्मीर से धारा-370 हटाना और देश में समान नागरिक संहिता लागू करना। इनमें से राम मंदिर का निर्माण शुरू हो चुका है और धारा-370 खत्म हो गई है। अब बचा है तीसरा मुद्दा यूसीसी यानी समान नागरिक संहिता का। स्वाभाविक है कि अब मोदी सरकार इस मुद्दे पर ध्रुवीकरण कर मतदाताओं को अपने पाले में लाने का प्रयास कर सकती है। ऐसे में कहा जाने लगा है कि भाजपा अपना आखिरी ब्रह्मास्त्र चलाने को तैयार है। राजनीतिक गलियारों में यूसीसी को भाजपा का अखिरी हथियार करार दिया जा रहा है। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि केंद्र की मोदी सरकार ने इस पर काम शुरू कर दिया है। जिसके लिए प्रयोगशाला के रूप में उत्तराखण्ड को चुना जा चुका है। प्रदेश के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी इस प्रयोगशाला के संचालक बन उभर रहे हैं।

अब तक नक्शे पर धार्मिक पर्यटन की पहचान रखने वाला पहाड़ी राज्य उत्तराखण्ड यूसीसी मुद्दे पर पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर जाना जाने लगा है। उसकी एक खास वजह युवा सीएम पुष्कर सिंह धामी हैं। देश में सबसे पहले धर्मांतरण कानून को लागू कर धामी भाजपा के उन युवा मुख्यमंत्रियों में योगी आदित्यनाथ के बाद दूसरे बागान पर हैं जिन्हें हिंदुत्व की राजनीति के नायकों के तौर पर देखा जाने लगा है। डबल इंजन की सरकार में धामी केंद्र की शक्ति के साथ मिल कर नया राजनीतिक अध्याय लिखने की ओर अग्रसर हैं। उन्होंने जिस तरह से समान नागरिक संहिता का सबसे पहले ड्राफ्ट तैयार किया गया है उससे उत्तराखण्ड देश का पहला राज्य हो जाएगा और निश्चित रूप से धामी अपनी
राजनीतिक धमक में इजाफा कर लेंगे।

श्री धामी से पूछा जाना चाहिए कि आपका काॅमन सिविल कोड का तथाकथित ड्राफ्ट की अब क्या उपयोगिता है? संविधान स्पष्ट तौर पर कहता है कि समवर्ती सूची के विषय पर राज्य कानून बनाता है, केंद्र भी उस पर कानून बनाता है तो फिर केंद्र का कानून ही लागू होगा अर्थात् राज्य की जो पूरी मशक्कत है, वह बेकार है? श्री मोदी और भाजपा, पहले ही स्पष्ट कह रहे हैं कि वे काॅमन सिविल कोड लाएंगे और हमने भी स्पष्ट तौर पर कहा है कि हम मसौदा देखेंगे। हमारा संविधान कई सामाजिक समूहों, महिलाओं, एससी-एसटी, कुछ क्षेत्र विशेष में रहने वाले लोगों, कुछ विलुप्त होते हुए सामाजिक समूहों को विशेष संरक्षण देता है, जैसे आरक्षण। क्योंकि इन संवैधानिक संरक्षणों को समय-समय पर कांग्रेस सरकारों ने संवैधानिक संशोधन के जरिए पुष्ट किया है। यदि सरकार के किसी भी कदम से इनके हितों पर चोट पहुंचेगी तो हम आवाज उठाएंगे। लेकिन श्री धामी जी के काॅमन सिविल कोड के ड्राफ्ट पर हम क्या कहें? क्योंकि यह ड्राफ्ट तो अब अर्थहीन हो चुका है। सरकार एक ही बात कर रही है काॅमन सिविल कोड, काॅमन सिविल कोड, काॅमन सिविल कोड! लेकिन बेरोजगारी पर चुप है, महंगाई पर चुप है, सड़कें बदहाल हैं यहां तक कि देहरादून, मसूरी, नैनीताल तक बदहाल हैं। केदारनाथ जी के साथ तक धोखा हो रहा है, अंकिता की हत्या का वीआईपी कौन, उस पर सरकार मौन है, किसानों के गन्ने का बकाये का भुगतान नहीं हुआ है, किसानों को खाद मिल नहीं रही है, जोशीमठ खतरे में है, सरकार है कि केवल कोड, कोड, कोड कहे जा रही है, जो अब टिप्पणी करने लायक भी नहीं रहा है। पूछा श्री धामी जी से जाना चाहिए कि यह राज्य का पैसा क्यों खर्च कर दिया आपने? जब केंद्रीय कानून ही आना था तो इंतजार कर लेते, अब बताइए कि उत्तराखण्ड इस ड्राफ्ट के झुनझुने का क्या करेगा?
हरीश रावत, पूर्व मुख्यमंत्री उत्तराखण्ड

2022 के विधानसभा चुनाव का नतीजा आने से पहले मुख्यमंत्री धामी ने सबसे पहले यूसीसी की बात की थी। मार्च-2022 में दूसरी बार मुख्यमंत्री की शपथ लेते ही धामी ने सबसे पहले इसी कानून की वकालत की। इस दिशा में धामी ने पिछले साल ही प्रभावी कदम उठाते हुए एक उच्च स्तरीय कमेटी बनाई थी। 27 मई, 2022 को सुप्रीम कोर्ट की रिटायर्ड जस्टिस रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय समिति बनी। इस समिति में सेवानिवृत्त न्यायाधीश प्रमोद कोहली, सामाजिक कार्यकर्ता मनु गौर, सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी शत्रुघ्न सिंह और दून यूनिवर्सिटी की कुलपति सुरेखा डंगवाल को शामिल किया गया है। इस मामले में जारी एक अधिसूचना में कहा गया है कि उत्तराखण्ड में रहने वाले नागरिकों के व्यक्तिगत नागरिक मामलों को नियंत्रित करने वाले सभी प्रासंगिक कानूनों की जांच करने और मसौदा कानून या मौजूदा कानून में संशोधन के साथ उस पर रिपोर्ट देने के लिए समिति बनाई गई है। यह विशेषकर समिति विवाह, तलाक, संपत्ति के अधिकार, उत्तराधिकार से संबंधित लागू कानून और विरासत, गोद लेने और रख-रखाव एवं समान नागरिक संहिता के परीक्षण एवं क्रियान्वयन के लिए गवर्नर की मंजूरी से बनाई गई है। कमेटी को इसका ड्राफ्ट तैयार करने की जिम्मा सौंपा गया है। समिति यह कमेटी सभी पक्षों से बात करके और उनके सुक्षावों को लेकर इसका मसौदा तैयार कर चुकी है। 13 माह के कार्यकाल में 52 बैठकें हुईं और ढाई लाख से अधिक सुझाव मिले। यूसीसी का ड्राफ्ट 30 जून को ही सरकार को मिल चुका है। हो सकता है कि अगली कैबिनेट बैठक में इसे मंजूर भी कर दिया जाएगा। चर्चा है कि मानसून सत्र में इसे सदन में पेश कर दिया जाएगा। जहां सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा का बहुमत होने के चलते इसे पास भी करा दिया जाएगा। इस बाबत मुख्यमंत्री धामी पहले ही साफ कर चुके हैं कि यूसीसी को जल्द ही सूबे में लागू किया जाएगा।

यूनिफाॅर्म सिविल कोड लागू होना चाहिए। हम ‘एक देश, एक कानून’ के पक्षधर हैं लेकिन इसके साथ-साथ हम यह भी चाहते हैं कि समाज के आदिवासी और अन्य वंचित तबकों के संरक्षण का भी ध्यान रखा जाए।
शिव प्रसाद सेमवाल, केंद्रीय मीडिया प्रभारी, उक्रांद

 

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की मानें तो ‘हम समान नागरिक संहिता को जल्द से जल्द लागू करने के लिए काम करेंगे। उस पर समिति बनाई गई है। इसके लिए सेवानिवृत्त जज रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता में ड्राफ्ट कमिटी बनी है। कमिटी ने दो लाख से भी ज्यादा लोगों के विचार लिए हैं। विभिन्न धार्मिक संगठनों के लोगों से बात की गई है। सभी भागीदारों, हर समुदाय के लोग, हर धर्म के लोग से बात की है। बड़े विद्वान लोगों ने भी इसमें अपनी राय दी है। सबका संकलन हो रहा है, सबकी राय आ रही है। कई जगह के कानून को देख कर तुलनात्मक अध्ययन किया गया है। विधि आयोग भी इस पर काम कर रहा है। सबके विचार आ गए हैं और ड्राफ्ट हमें मिल गया है। मैं समझता हूं कि किसी को इस पर चिंतित होने की आवश्यकता नहीं है। भारत के संविधान की भावना के अनुरूप इसमें सारे प्रावधान होंगे। ड्राफ्ट का आकलन हो जाने के बाद हम आगे बढ़ेंगे और जल्द ही उत्तराखण्ड में समान नागरिक कानून संहिता को लागू करेंगे। यह राज्य के लोगों के साथ किया गया वायदा है जो जल्द ही पूरा होने जा रहा है। हम राज्य में जल्द ही देवतुल्य जनता के जनादेश को लागू करेंगे। उत्तराखण्ड की जनता ने हमें अपना आशीर्वाद दिया। दोबारा सेवा करने का अवसर दिया तो हमने अपना जो वायदा किया था, हमारा जो संकल्प था, उसे पूरा करने के लिए कदम बढ़ाया। भारत के संविधान के अनुच्छेद-44 को आप जब विस्तार से पढ़ेंगे तो उसकी आवश्यकता और जरूरत दोनों समझ में आ जाएंगे।’

पीएम मोदी यूसीसी को लागू करने के लिए उत्तराखण्ड को पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर अग्रणी राज्य बना रहे हैं। यहां यूसीसी को लागू करके केंद्र सरकार एक प्रयोग कर रही है। जहां से वह यह देखना चाहती है कि इसका कितना विरोध और कितना समर्थन होगा। लेकिन मेरी नजर से यूसीसी के लिए पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर उत्तराखण्ड सही राज्य नहीं है। यहां ज्यादातर हिंदू मेज्योरिटी के लोग निवास करते हैं। उत्तराखण्ड पूरा देश नहीं है। देश में सिख भी हैं, जैन भी हैं और आदिवासी भी हैं। सभी के अलग रीति-रिवाज और परंपराए हैं। हिंदुओं में भी अलग-अलग परंपराए है। पंजाब में यूसीसी का सिख विरोध कर रहे हैं। वहां के सीएम ने इसके खिलाफ बयान दिया है। पूर्वोत्तर में मेघालय के सीएम विरोध कर रहे हैं। जबकि नागालैंड में भी इसका विरोध हो रहा है। सिखों के साथ ही मुस्लिम पसर्नल लाॅ बोर्ड भी इसके दायरे से अपने आपको बाहर करने की मांग कर रहा है। बेशक बीजेपी इस मुद्दे पर 2024 का लोकसभा चुनाव लड़ेगी लेकिन इस मामले में जल्दबाजी करना उचित नहीं होगा। माना कि बीजेपी ने अपने दो मुख्य मुद्दे धारा-370 और राम मंदिर पर काम कर लिया है लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कि धारा-370 एक राज्य विशेष का मामला था तो राम मंदिर का मामला भी एक स्थान विशेष का था। लेकिन यहां बात पूरे देश की हो रही है। स्वाभाविक है कि यूसीसी से पूरा देश प्रभावित होगा। ऐसे में बहुत ही सोच-समझकर कदम उठाए जाने की जरूरत है। यह मुद्दा आज का नहीं है संविधान सभा में भी यह मुद्दा उठा था लेकिन तब इसे अमल में न लाकर समय पर छोड़ दिया गया था। आज की स्थिति को देखें तो यूसीसी एक राजनीतिक मुद्दा बन गया है। ऐसे में केंद्र सरकार को चाहिए कि वह सभी दलों से बात करे और सहमति बनाए तभी इसको सामने लाए।
विनोद अग्निहोत्री, सलाहकार संपादक, ‘अमर उजाला’

वे बताते हैं कि अब देश के अंदर एक संविधान, एक विधान, एक निशान की मांग हो रही है। यह सबके लिए अच्छा होगा। बाबा साहब भीमराव अंबेडकर ने जब संविधान बनाया था तो सभी वर्गों को ध्यान में रखा था। संविधान को देश के विद्वानों ने मिल कर सभी के हित में बनाया था। संविधान को सबकी सुरक्षा के लिए, सबके अधिकारों के लिए बनाया गया था। जब इतने विद्वान लोगों ने भारत का संविधान बनाया तो उन्होंने उस समय जरूर इसका आकलन किया होगा। आज इस पर सवाल खड़े करने वाले वही लोग हैं जो समाज को बांटने का काम करते हैं। ये तुष्टीकरण करने वाले लोग हैं। हम किसी के खिलाफ नहीं हैं। हम भारत के संविधान के साथ चलने वाले लोग हैं।

सीएम धामी इस मामले में चल रही चर्चाओं पर अपना पक्ष रखते हुए कहते हैं कि आज के समय में हिंदू विवाह कानून अलग है, मुस्लिम पर्सनल लाॅ अपने समुदाय के लिए है, पारसियों और ईसाइयों के लिए भी अलग नियम है। जैसा कि नाम से समझ में आ रहा है समान नागरिक संहिता मतलब देश में रहने वाले हर नागरिक के लिए एक समान नियम। सरल शब्दों में समझें तो धर्म आधारित नियम-कानून की जगह अब एक सार्वजनिक कानून का होना। जब संविधान तैयार हो रहा था, उस समय भी इसकी चर्चा हुई थी और बाद में सुप्रीम कोर्ट कई बार इसकी जरूरत समझा चुका है। यह देश के धर्मनिरपेक्ष स्वरूप को भी मजबूत करेगा क्योंकि यूसीसी सभी धर्मों के लोगों के लिए एक समान होगा। यानी मौजूदा धार्मिक कानून से इतर यह निष्पक्ष कानून होगा।

ऐसा नहीं है कि समान नागरिक संहिता की चर्चा सिर्फ उत्तराखण्ड में हो रही है। असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा कह चुके हैं कि वह राज्य में यूसीसी लागू करेंगे। इसके अलावा यूपी के उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य भी इसके संकेत दे चुके हैं। ज्यादा समय नहीं बीता जब गृहमंत्री अमित शाह ने कहा था कि अब समान नागरिक संहिता की बारी है।

राम मंदिर और अनुच्छेद-370 के मुद्दे का भाजपा ने चुनावों में फायदा ले लिया है। ऐसे में पार्टी को अब एक ऐसा मुद्दा चाहिए था जिस पर ध्रुवीकरण किया जा सके। जिसके लिए यूसीसी फिट बैठता है। कर्नाटक चुनाव में मिली हार के बाद पार्टी अब कोई जोखिम नहीं ले सकती है। आगामी दिनों में तीन राज्यों के चुनाव होने हैं और 2024 का लोकसभा चुनाव भी है। ऐसे में भाजपा ने अपना अगला चुनावी एजेंडा सेट कर लिया है। जिसकी शुरुआत होगी उत्तराखण्ड से। उत्तराखण्ड में क्योंकि इस मुद्दे पर ज्यादा विरोध प्रदर्शन होने की संभावना नहीं है। इसलिए इसे मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी जल्दी ही लागू कर भाजपा के यूसीसी ब्रांड नेता बन जाएंगे।
सुनील दत्त पाण्डेय, वरिष्ठ पत्रकार, ‘जनसत्ता’

यहां यह भी बताना जरूरी है कि भारत में गोवा एकमात्र ऐसा राज्य है जहां यूसीसी लागू है। संविधान में गोवा को विशेष राज्य का दर्जा दिया गया है। इसे गोवा सिविल कोड के नाम से भी जाना जाता है। वहां हिंदू, मुस्लिम और ईसाई समेत सभी धर्म और जातियों के लिए एक ही फैमिली लाॅ है। इस कानून के तहत गोवा में कोई भी तीन तलाक नहीं दे सकता है। यही नहीं बल्कि रजिस्ट्रेशन कराए बिना शादी कानूनी तौर पर मान्य नहीं होगी। शादी का रजिस्ट्रेशन होने के बाद तलाक सिर्फ कोर्ट के जरिए ही हो सकता है। संपत्ति पर पति-पत्नी का समान अधिकार है। इसके अलावा अभिभावकों को कम से कम आधी संपत्ति का मालिक अपने बच्चों को बनाना होगा, जिसमें बेटियां भी शामिल हैं। गोवा में मुस्लिमों को 4 शादियां करने का अधिकार नहीं है, जबकि कुछ शर्तों के साथ हिंदुओं को दो शादी करने की छूट दी गई है।

दुनिया की बात करें तो समान नागरिक संहिता का पालन कई देशों में होता है। इनमें पाकिस्तान, बांग्लादेश, मलेशिया, तुर्की, इंडोनेशिया, सूडान, मिस्र, अमेरिका, आयरलैंड आदि शामिल हैं। इन सभी देशों में सभी धर्मों के लिए एक समान कानून है।
इतिहास में समान नागरिक कानून का जिक्र पहली बार 1835 में ब्रिटिश काल में किया गया था। उस समय ब्रिटिश सरकार की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि अपराधों, सबूतों और ठेके जैसे मुद्दों पर समान कानून लागू करने की जरूरत है।

संविधान के अनुच्छेद-44 में सभी नागरिकों के लिए समान कानून लागू करने की बात कही गई है। लेकिन फिर भी भारत में अब तक इसे लागू नहीं किया जा सका। इसका कारण भारतीय संस्कृति की विविधता है। यहां एक ही घर के सदस्य भी कई बार अलग-अलग रिवाजों को मानते हैं। आबादी के आधार पर हिंदू बहुसंख्यक हैं, लेकिन फिर भी अलग-अलग राज्यों में इनके रीति-रिवाजों में काफी अंतर मिल जाएगा। सिख, जैन, बौद्ध, ईसाई और मुसलमान आदि तमाम धर्म के लोगों के अपने अलग कानून हैं। ऐसे में अगर समान नागरिक संहिता को लागू किया जाता है तो सभी धर्मों के कानून अपने आप खत्म हो जाएंगे।

यूनिफाॅर्म सिविल कोड पर जब संविधान सभा में बहस चल रही थी तब संविधान के ड्राफ्ंिटग कमिटी के अध्यक्ष भीम राव अंबेडकर ने कहा था कि देश में सिविल लाॅ है जिसके प्रावधान समान रूप से देश पर लागू हैं। लेकिन शादी के साथ-साथ
उत्तराधिकार आदि के कानून एक समान रूप से लागू नहीं हैं। हम इस पर एक समान कानून नहीं बना पाए हैं इसलिए हमारी इच्छा है कि इस मामले में सकारात्मक बदलाव हो। वहीं, संविधान सभा के सदस्य कृष्णास्वामी अय्यर ने कहा था कि इस आर्टिकल का मकसद है कि बंधुता बढ़े। समान नागरिक आचार संहिता लागू होने से आपसी बंधुता कम नहीं, बल्कि मजबूत होगी।

उत्तराधिकार या इस प्रकार के अन्य मामलों में अलग-अलग व्यवस्थाएं ही भारतीय नागरिकों में भिन्नता पैदा करती हैं। समान नागरिक संहिता का मूल मकसद विवाह उत्तराधिकार के मामलों में एक समान सहमति तक पहुंचने का प्रयास करना है।

गौरतलब है कि भारत के 22वें विधि आयोग ने बीते 14 जून को समान नागरिक संहिता के मुद्दे पर धार्मिक संगठनों और आम लोगों से राय मांगी थी। आयोग ने इसके लिए एक महीने का वक्त रखा है। इससे पहले साल 2018 में 21वें विधि आयोग ने कहा था कि इस स्तर पर समान नागरिक संहिता न तो आवश्यक है और न ही वांछनीय।

 

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