देहरादून। प्रदेश में नौकरशाही तो पहले से ही बेलगाम रही है, लेकिन अब ताक हालत यह हो गई है कि निचले स्तर के अधिकारी और कर्मचारी तक माननीयों को कुछ नहीं समझते। प्रदेश में नई तरह की संस्कृति पूरी तरह से अपनी जडें़ जमा चुकी है। जनप्रतिनिधियों के प्रति सरकारी अधिकारी ओैर बाबुओं का व्यवहार इतना खराब हो चला है कि इस पर कई माननीय अपना रोष तक व्यक्त कर चुके हैं। शायद इसी को देखते हुये मुख्य सचिव उत्पल कुमार के द्वारा प्रदेश के सभी अधिकारियों को माननीयों के साथ सही व्यवहार करने के आदेश जारी करवाने पड़े।
मुख्यसचिव के द्वारा प्रदेश की नौकरशाही अपर मुख्य सचिवांे, सचिवों अपर सचिवों और प्रभारी सचिवों तथा मण्डलों के आयुक्तों सहित सभी तेरह जनपदो के जिलाधिकारियों के साथ साथ राज्य के सभी सरकारी विभागों और कार्यालयों के अध्यक्षों को सचिवालय प्रशासन के द्वारा एक आदेश जारी किया गया है जिसमें कहा गया है कि माननीय विधायकों और सांसदों के साथ हर समय शिष्टाचार का भाव दिखाना है। उनकी बात को धैर्य पूर्वक सुनकर गम्भीरता से विचार करना है।
इस पत्र की भाषा के अनुसार सभी को यह ताकीद दी गई है कि सभी माननीय विधायकों और सांसदांे की बातों को गम्भीरता से सुनना है ओैर गुण दोष के अनुसार अपना विवेकपूर्ण निर्णय करना है। यदि कोई कार्य करने में असमर्थ हैं तो शिष्टतापूर्वक कारणों को अवगत करना है। यही नहीं अपने कार्यालय में आपसी सहमति और प्राथमिकता के आधार पर मुलाकात का समय देना है।
मुख्य सचिव के इस आदेश को शासन की एक सामान्य प्रक्रिया मानाकर हल्के में नहीं लिया जा सकता। इसके पीछे तमाम तरह के तर्क और आरोपों की छाया भी है जिसके चलते प्रदेश के मुख्य सचिव को आगे आने के लिये विवश होना पड़ा है और प्रदेश के सभी सरकारी अधिकारियों तक को आदेश निकालकर माननीयों का सम्मान बनाये रखने का जतन करना पड़ रहा है।
दरअसल प्रदेश में अफसरशाही और बाबूगीरी की संस्कृति में यह देखने को मिलता रहा हेै कि जनप्रतिनिधियों के साथ सरकारी विभागों में बुरा व्यवहार किया जाता रहा है। विधायकों के साथ भी कुछ इसी तरह के व्यवहार किये जाने के आरोप लगते रहे हैं। संासद और विधायकों के साथ सरकारी विभागों में हो रहे दुव्र्यवहार की खबरें हों या सांसादों के पत्रों पर कोई कार्यवाही नहीं होने के प्रमाण कई बार सामने आ चुके हंै। यह आरोप आज के दौर में ही लग रहा है ऐसा नही है। राज्य बनने के बाद से लेकर अनेक बार संासदों ने प्रदेश की नौकरशाही और सरकारी विभागों की कार्यशैली को लेकर खासी नारजगी भी जताई है। हैरत की बात यह है कि इनमे अधिकतर नाराजगी विकास कार्यों में लापरवही बरतने और संासदांे के द्वारा सवीकृत योजनाओं पर उनके पत्रों की अनदेखी के आरोप कई बार लग चुके हंै। अब तो हालात यहां तक हैं कि सांसदों और विधायकों के प्रोटोकाल का भी ध्यान नहीं रखा जाता।
पिछले वर्ष देहरादून नगर निगम के मेयर और धर्मपुर के विधायक विनोद चमोली के साथ तत्कालीन जिलाधिकारी देहरादून के साथ हुये विवाद में भी यही देखने को मिला था। विनोद चमोली अपने क्षेत्र में विकास कार्यों के लिए जिलाधिकारी से मिलने उनके कार्यालय में गये लेकिन जिलाधिकारी कार्यालय में नहीं थे। इस पर चमोली के द्वारा नारजगी जताई गई तो जिलाधिकारी ने यह कहकर मामले को और बढ़ा दिया कि चमोली को उनसे मिलने के लिये समय लेना चाहिये था।
यह विवाद इस कदर बढ़ा कि विनोद चमोली जिलाधिकार्यालय में ही अपने समर्थकों के साथ धरने में बैठ गये। हैरानी की बात यह रही कि स्वंय मुख्यमंत्री भी इस विवाद में एक तरह से जिलाधिकारी के ही पक्ष में दिखाई दिये ओैर अधिकारियों पर काम का बोझ होने की बात कह कर विवाद को खत्म करने के बजाय बढ़ाया। हालांकि बाद में विवाद तो खत्म हो गया, लेकिन यह विवाद साफ कर गया कि राज्य में नौकरशाही इतनी निरंकुश हो चली है कि एक चुने हुये जनप्रतिनिधी जो कि नगर निगम का मेयर होने के साथ साथ निर्वाचित विधायक भी है, को मिलने के लिये जिलाधिकारी से पहले समय लेना पड़ रहा है।
राज्य के वन एवं आयुष मंत्री हरक सिंह रावत भी अनेक बार राज्य की नौकरशाही के द्वारा जनप्रतिनिधियों के साथ किये जा रहे व्यवहार के आरोप खुल कर लगा चुके हंै। यहां तक कि मुख्यमंत्री के सामने विभागीय समीक्षा बैठक में भी हरक सिंह रावत ने कई गंभीर आरोप लगाकर राज्य की अफसरशाही को आईना दिखाने मे ंकोई कसर नहीं छोड़ी।
जिला स्तर हो या सचिवालय स्तर हो तकरीबन हर जगह पर अधिकारियों के व्यवहार को लेकर विाद भी सामने आ चुके हंै। पूर्ववर्ती कांग्रेस और भाजपा की सरकारों के समय में यह मामले बड़ी तेजी से समाने आये थे कि कई मामले आपस में मारपीट की घटनाओ में भी तब्दील हुये थे। हरक सिंह रावत के द्वारा तत्कालीन खाद्य आपूर्ति सचिव और पासपोर्ट अधिकारी के कार्यालय में मारपीट करने के आरोप भी सामने आये थे। आरोप लगा था कि अधिकारी उनकी बात को न तो सुनते है और न हीं उनक पत्रो पर कार्यवाही करना दूर जबाब तक नही देते। जब इस मामले को लेकर हरक सिंह रावत अधिकारी के कार्यालय में गये तो उनके साथ बुरा व्यवहार किया गया जिसके चलते यह विवाद सामने आये।
वर्तमान विधानसभा अध्यक्ष और ऋषिकेश के विधायक प्रेमचंद अग्रवाल के तो कई ऐसे मामले सामने आ चुके हैं जिसमें उनके साथ सरकारी विभागों में विवाद हुये हैं। अधिकतर मामलों में भी यही देखने को मिला है कि प्रेमचंद अग्रवाल के क्षेत्र के निवासियों की मांगांे को अधिकारी अनसुना करते रहे हैं जिस पर नारज होकर अग्रवाल के द्वारा हंगामा और विवाद होने के आरोप लगते रहे हैं।
हांलाकि मुख्यसचिव के पत्र में विधायक ओैर संासदांे का ही उल्लेख किया गया है, जबकि पंचायत स्तर के जनप्रतिनीधियों के साथ तो बुरे व्यवहार के आरोप सबसे ज्यादा लगते रहे हैं। यह बात और है कि इस प्रकार की खबरें प्रदेश के मुख्यधारा के मीडिया की सुर्खियां नहीं बन पाते। कारेाना संकट के दौरान सबसे ज्यादा पंचायत के जनप्रतिनिधियों के साथ अधिकारियों के दुव्र्यहार की खबरें सुनने को मिल रही हैं।
प्रधानों के जिम्मे प्रवासियों के क्वांरटीन कियेे जाने के मामले हों या फिर सुविधाओं को जुटाने के मामलों में ग्राम प्रधानों के साल विवादों ख्ूाब हुये हैं। देवप्रयाग के उपजिलाधिकारी ग्राम सभा के जनप्रतिनिधी के बीच हुये विवाद में भी यही बात समने आई है। उपजिलाधिकारी ने अपनेे पद का रौब दिखा कर ग्राम सभा के जनप्रतिनिधि को डराने का काम किया साथ ही गाली- गलौच करने की बात भी सामने आ चुकी है। बहरहाल मुख्य सचिव के आदेश से साफ है कि सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों से जबदस्ती माननीयों का सम्मान करने को कहा जा रहा है। दिल से वे उन्हें कुछ नहीं समझते।