आज जब हम यह देख रहे हैं कि बजट सत्र 4 दिन में निपटा दिया जा रहा है। इसके विपरीत 2016 में हमने 11 मार्च से 28 मार्च तक बजट सत्र की अवधि निर्धारित की थी। हमारा लक्ष्य था कि बजट के साथ सम-सामयिक विषयों, पलायन बनाम रिवर्स पलायन, वन व परिवेसी क्षमता का रोजगार संवर्धन के उपयोग के लिए सम्भावनाएं, शिक्षा और महिला शिक्षा के क्षेत्र में आवश्यक सुधारों जैसे विषयों पर भी हम चर्चा करना व विधानसभा का मार्गदर्शन लेना चाहते थे। हमने ऐसा प्रयास गैरसैंण में भी किया था। विपक्ष द्वारा सदन के संचालन में रुचि न दिखाए जाने के कारण हमें गैरसैंण में स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे विषय पर आहुत की गई चर्चा को बिना पूरा किए ही सत्र का समापन करना पड़ा। विपक्ष ने दल-बदल करवा कर विधानसभा के सम्मुख उपस्थित अवसर का उपयोग नहीं होने दिया। स्पीकर महोदय द्वारा 9 सदस्यों की सदस्यता को रद्द किए जाने के आदेश पर रोक लगाने की मांग को लेकर दल-बदलुओं द्वारा माननीय हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई
- हरीश रावत
पूर्व मुख्यमंत्री, उत्तराखण्ड
जब वह मंत्रिमंडल के एक सहयोगी को विधानसभा में शक्ति परीक्षणसे पहले भाजपा में धकेलना चाहते थे और उनके खिलाफ चल रही जांचों आदि की जानकारी देकर के डराने पहुंचे। मेरे उस साथी ने उस समय बाहदुरी दिखाई। सारे दबावों के चलते हुए मेरे साथी ने बहादुरी दिखाई और सरकार के साथ रहे। मगर जो हमारे तथाकथित (डूअर) थे वह उस समय उनका रूप पूरी तरीके से नकारात्मक हो गया। मगर मैं इतना ब्यूरोक्रेसी को क्रेडिट दूंगा कि जिन्होंने उन बातों को क्योंकि मैं तीन बार मुख्यमंत्री बना और तीन बार पद से हटा और माननीय राज्यपाल महोदय जो बहुत ही इच्छुक थे कि मुख्यमंत्री के रूप में काम करने के वह हमारे निर्णयों को बदल रहे थे, मगर हमारे ब्यूरोक्रेसी ने जो हमारे सभी विधि सम्मत निर्णयों को क्रियान्वित किया और राज्य को आगे बढ़ाया। यह अलग बात है कि बजटीय प्राविधान के अभाव में बहुत कुशलता के साथ गवर्नर महोदय के साथ षड्यंत्र रचकर केंद्र सरकार ने हमारे विनियोग विधेयक को गवर्नर की स्वीकृति प्राप्त करने से वंचित कर दिया और 3 महीने मुझे उस विनियोग विधेयक को खोजने में लग गए।
अन्ततोगत्वा जब मेरी इस संदर्भ में तत्कालीन वित्त मंत्री श्री अरुण जेटली जी से बातचीत हुई तो मेरे समझ में आ गया कि केंद्रीय सत्ता ने अपनी अंतिम प्रतिष्ठा के रूप में विनियोग विधेयक को राज्यपाल की स्वीकृति न मिल जाए इसकी गांठ बांध ली है। श्री अरुण जी से मेरी थोड़ी व्यक्तिगत मित्रता भी थी तो उन्होंने सलाह दी कि विधानसभा सत्र बुलाकर पुनः विनियोग विधेयक को पारित करवाऊं। मैंने उनसे कहा कि मैं ऐसा करने के बजाय माननीय न्यायालय की शरण में जाऊंगा तो उन्होंने मुझे राय दी कि जब तक कोर्ट आपको राहत देगा, तब तक और 3 महीने बीत जाएंगे और चुनाव की घोषणा हो जाएगी तथा आचार संहिता लग जाएगी। तो मरता क्या न करता, मैंने उनसे राय परामर्श कर दूसरा वित्त विधेयक पारित करने का निर्णय लिया और उसके लिए विधानसभा सत्र आहूत करने का भी निर्णय लिया।
मैंने आपसे मार्च 2016 के घटनाक्रम से सक्रिय रूप से सम्बद्ध एक संस्था ब्यूरोक्रेसी की स्थिति पर कुछ बातें कही थी। मार्च 2016 में घटित घटनाक्रम में कई संस्थाओं ने सकारात्मक या नकारात्मक अपनी भूमिका अदा की, इनमें माननीय स्पीकर, माननीय गवर्नर, माननीय राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री, माननीय न्याय पालिका, राजनीतिक दल के रूप में भाजपा व कांग्रेस, अन्य विपक्षी दल, मीडिया, कहीं न कहीं जुड़े हुए हैं। एक प्रसंग का दूसरे प्रसंग से जुड़ाव बनता है और 2016 के घटित घटनाक्रम को समूचे रूप में समझने के लिए इन संस्थाओं द्वारा अदा की गई भूमिका का ब्यौरा रखना भी मेरा कर्तव्य है। माननीय सुप्रीम कोर्ट ने किन-किन मामलों में न्यायिक विवेचना हो सकती है, लोकसभा, विधानसभा, स्पीकर और गवर्नर रूपी संस्था के किन-किन कदमों की न्यायिक विवेचना हो सकती है और कौन-कौन से कदम न्यायिक विवेचना से परे हैं के संदर्भ में स्पष्ट व्याख्या की है। उत्तराखण्ड की विधानसभा में स्पीकर महोदय ने उस कठिन क्षण में जिस प्रकार से विधानसभा को संचालित किया उससे हमारी विधानसभा का गौरव बढ़ा और जो विधानसभा अध्यक्ष रूपी संस्था है वह और प्रभावी हुई। मैंने उस घटनाक्रम को आपके साथ साझा किया है।
शक्तिमान की टांग तोड़ने के अपराध में एक-दो भाजपा के राजनीतिक कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी को लेकर सदन को नहीं चलने दिया गया, नारेबाजी से लेकर कागज के गुल्ले बनाकर के स्पीकर महोदय के ऊपर फेंके गए, जो पुस्तकें विधानसभा के पटल पर उपलब्ध थीं उनको स्पीकर महोदय पर फेंका गया, माइक तोड़ करके उनको फैंकने का प्रयास किया गया, विधानसभा सचिव और उनके सहयोगियों की टेबल विधानसभा का अभिन्न अंग होती हैं उस टेबल को उलट दिया गया और कुछ टेबलों पर चढ़कर के स्पीकर महोदय तक पहुंचने की कुचेष्टा की गई। स्पीकर महोदय ने शांत भाव से सब चीजों को झेला। मैंने सुझाव दिया था कि ऐसे विधायकों को कुछ दिनों के लिए विधानसभा से निलंबित किया जा सकता है। माननीय स्पीकर और संसदीय कार्य मंत्री ने कहा हमें कोई ऐसी नई शुरुआत अपनी विधानसभा में नहीं करनी चाहिए, ऐसा करेंगे तो कटुता और बढ़ेगी। जिस दिन दल-बदल हुआ, उस दिन जो कुछ भी विधानसभा की प्रक्रिया के संचालन और नियमावली में कहा गया है और संविधान द्वारा विधानसभा के संचालन के संदर्भ में जो कुछ कहा गया है उसके अनुरूप ही माननीय विधानसभा अध्यक्ष जी ने विनियोग विधेयक को पारित घोषित किया और सदन को 27 मार्च तक के लिए स्थगित कर दिया। क्योंकि पहले से ही बजट सत्र 28 मार्च तक के लिए आहूत किया गया था। माननीय स्पीकर महोदय के इस निर्णय को माननीय न्यायालय ने भी पूर्णतः उचित और सम्यक बताया।
मैंने पूर्व में भी कुछ जानकारियां आपके सम्मुख रख चुका हूं। हमने 18 मार्च को माननीय स्पीकर महोदय द्वारा सदन के स्थगन की घोषणा के तत्काल बाद ही उन सब साक्ष्यों को समेटना प्रारम्भ कर दिया था जो साक्ष्य ‘उज्याड़ू बल्दो’ं को दल बदलू सिद्ध करने में सक्षम थे। हमारे रखे हुए साक्ष्य माननीय स्पीकर महोदय और उसके बाद माननीय हाईकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट में प्रस्तुत किए गए और अकाट्य सिद्ध हुए। सदन के संचालन के नियमों से अवगत न होना भाजपा और दल-बदलुओं के लिए सदन के पटल पर 18 मार्च, 2016 को उनकी कुयोजना के विफलता का कारण तो बना ही, उत्तेजना में माननीय गवर्नर को नेता प्रतिपक्ष के लेटर हेड में संयुक्त हस्ताक्षरयुक्त पत्र देना एक ऐसा अकाट्य साक्ष्य सिद्ध हुआ जिससे यह पूर्णतः सिद्ध हो गया कि दल-बदल भाजपा ने करवाया है और दल-बदलू भाजपा के साथ हैं। कांग्रेस विधायक दल ने संसदीय कार्य मंत्री जी के माध्यम से माननीय विधानसभा अध्यक्ष को दल-बदलुओं को नामित कर उनकी सदस्यता रद्द करने का अनुरोध पत्र तत्काल सौंप दिया था और लिखित तथा विजुअल, दोनों प्रकार के साक्ष्य भी माननीय विधानसभा अध्यक्षजी को सौंप दिए। आगे बढ़ते हुए घटनाक्रम के साथ हमारी भी बेचैनी बढ़ रही थी। स्पीकर महोदय ने हमारे प्रार्थना पत्र पर क्या कार्यवाही की है उस संदर्भ में हमें कोई जानकारी नहीं मिल रही थी। स्पीकर महोदय और विधानसभा के सचिव महोदय से हमारा कोई भी व्यक्ति सम्पर्क नहीं कर पा रहा था। भाजपा और दल-बदलू, माननीय न्यायालय में पहुंचे। माननीय न्यायालय ने भी उन्हें कोई राहत नहीं दी। दल-बदलुओं के सूत्रों के माध्यम से मालूम हुआ कि माननीय स्पीकर महोदय ने उनके हर संभावित पते पर उन्हें नोटिस भेजकर कहा है कि वह 25 मार्च तक अपना पक्ष प्रस्तुत करें ताकि दल-बदल विरोधी कानून के तहत स्पीकर महोदय को प्राप्त अधिकारों का वह निर्वहन कर सकें।
मैं और मेरे सहयोगी भले ही हमारी पिटीशन पर माननीय स्पीकर महोदय द्वारा उठाए जा रहे कदम को लेकर अंधकार में हों, मगर भाजपा और दल-बदलू पक्ष में स्पीकर महोदय के कार्यालय से मिले नोटिसों के बाद हड़कंप मचा हुआ था। उन्होंने पहले माननीय हाईकोर्ट के सामने गुहार लगाई और यह प्रयास किया कि किसी तरीके से माननीय विधानसभा अध्यक्ष को दल-बदल कानून के तहत कदम उठाने से रोका जाए। उन्होंने माननीय हाईकोर्ट के दरवाजे खटखटाए लेकिल माननीय हाई कोर्ट ने उनसे कहा कि आप स्पीकर के सम्मुख अपना पक्ष रखें। अब भाजपा और दल -बदलू पक्ष के पास माननीय स्पीकर महोदय के कोर्ट में अपना पक्ष रखने के अलावा कोई विकल्प नहीं रह गया था। उन्होंने इलाहाबाद हाईकोर्ट तथा सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठतम अधिवक्ता श्री राकेश द्विवेदी एवं श्री सुब्रमण्यम जी सहित लगभग आधा दर्जन से ज्यादा अधिवक्ताओं के माध्यम से कई बार, कई दिन तक माननीय स्पीकर के सम्मुख अपना पक्ष रखा। प्रतिदिन माननीय स्पीकर महोदय प्रातः 10ः00 से 12ः00 बजे तक उनके पक्ष को सुनते थे, वह दूसरे दिन नए तर्कों के साथ स्पीकर महोदय के कार्यालय में फिर उपस्थित हो जाते थे। इसी दौरान भाजपा ने एक दूसरे मोर्चे पर भी काम करना प्रारम्भ किया और एक पूर्व मुख्यमंत्री जी के शिष्य, स्टिंग की कला में दक्ष कलाकार को, मेरा स्टिंग करने का दायित्व सौंपा गया। उनको कहा गया कि किसी तरीके से हरीश रावत से विधायकों के दल-बदल पर बातचीत का कुछ संदर्भ ले आओ। स्टिंग कलाकार के एक दोस्त दल बदल किए गए वरिष्ठ विधायक की सेवाएं भी इस अपवित्र कार्य के लिए जोड़ी गई। दिल्ली में कांग्रेस सर्कल में विशेष तौर पर एआईसीसी में यह माहौल बनाया गया कि हरीश रावत से दुखी लोगों ने दल बदल किया है, उनमें से कुछ लोग विजय बहुगुणा को छोड़कर वापस कांग्रेस में जाना चाहते हैं। यह अभियान 20 मार्च से ही प्रारम्भ हो गया था। मुझसे एक-दो वरिष्ठ नेताओं ने बातचीत भी की। यह भी माहौल बनाया गया कि हरीश रावत ने गढ़वाल में कांग्रेस का सारा नेतृत्व पार्टी से बाहर भगा दिया है। अब कुछ लोग वापस आना चाहते हैं, मगर हरीश रावत उन्हें पार्टी में वापस नहीं लेना चाहते हैं।
इस दौरान मेरी तीन बहनों ने 20 और 21 मार्च को लगातार मेरे ऊपर इस बात के लिए मानसिक दबाव पैदा किया कि मैं दो-तीन लोगों को कांग्रेस में वापस लेने के लिए तैयार हो जाऊं। उन्होंने कहा कि उन व्यक्तियों को उनके द्वारा उठाए गए कदम पर गहरा दुख है। मेरे साथ कार्यरत मेरे एक सलाहकार श्री हरिपाल रावत भी इस सारे प्रचार तंत्र के झांसे में आ गए और उन्होंने स्टिंग कलाकार की कुछ इस तरीके से मीटिंग प्लान कर दी कि मुझे स्टिंग कलाकार से बात करनी ही पड़ी। मेरा दुर्भाग्य था कि मैं उनकी कलाकारी के उच्चतम स्तर से ज्यादा परिचित नहीं था। खैर उस स्टिंग में कुछ था या नहीं, भाजपा ने ही अपने कार्यालय में उस स्टिंग का वीडियो जारी किया। यह पवित्र कार्य श्रीमती निर्मला सीतारमण जी के कर कमलों से हुआ। इस तथाकथित वीडियो को स्वीकार्य बनाने हेतु आनन -फानन में केंद्र सरकार ने उसे रविवार की छुट्टी के दिन फाॅरेंसिक जांच के लिए चंडीगढ़ की फाॅरेंसिक लैब में भेजा। चार घंटे के अंदर वह वीडियो क्लिप दिल्ली वापस भी आ गई और उसी दिन 2 दिन की असम यात्रा पर पहुंचे माननीय प्रधानमंत्री जी भी गुवाहाटी से वापस आए। उनके द्वारा रात देर में मंत्रिमंडल की बैठक बुलाई गई। केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक से काफी समय पहले माननीय स्पीकर महोदय ने दल-बदल पर सुनवाई पूर्ण कर अपना निर्णय दे दिया। स्पीकर महोदय ने अपने विस्तृत 9 अलग- अलग आदेशों में सभी की सदस्यता रद्द कर दी और तद्सम्बंधी आदेश को विधिवत अधिसूचित कर दिया गया। देर रात केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में उत्तराखण्ड की निर्वाचित सरकार को बर्खास्त करने और राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने का निर्णय लिया गया और उसे स्वीकार किए जाने के लिए महामहिम राष्ट्रपति महोदय को भेजा गया। ‘एसआर बोमोई केस’ के आलोक में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को देखते हुए हमें कुछ भिन्न आशा थी, मगर महामहिम राष्ट्रपति जी के हस्ताक्षर के बाद देर अपराहन राष्ट्रपति शासन की अधिसूचना जारी कर दी गई और मानसिक रूप से तत्पर बैठे हुए माननीय राज्यपाल महोदय द्वारा कार्यभार सम्भाल लिया गया।
आज जब हम यह देख रहे हैं कि बजट सत्र 4 दिन में निपटा दिया जा रहा है। इसके विपरीत 2016 में हमने 11 मार्च से 28 मार्च तक बजट सत्र की अवधि निर्धारित की थी। हमारा लक्ष्य था कि बजट के साथ सम- सामयिक विषयों, पलायन बनाम रिवर्स पलायन, वन व परिवेसी क्षमता का रोजगार संवर्धन के उपयोग के लिए सम्भावनाएं, शिक्षा और महिला शिक्षा के क्षेत्र में आवश्यक सुधारों जैसे विषयों पर भी हम चर्चा करना व विधानसभा का मार्गदर्शन लेना चाहते थे। हमने ऐसा प्रयास गैरसैंण में भी किया था। विपक्ष द्वारा सदन के संचालन में रुचि न दिखाए जाने के कारण हमें गैरसैंण में स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे विषय पर आहुत की गई चर्चा को बिना पूरा किए ही सत्र का समापन करना पड़ा। विपक्ष ने दल-बदल करवा कर विधानसभा के सम्मुख उपस्थित अवसर का उपयोग नहीं होने दिया। स्पीकर महोदय द्वारा 9 सदस्यों की सदस्यता को रद्द किए जाने के आदेश पर रोक लगाने की मांग को लेकर दल-बदलुओं द्वारा माननीय हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई। माननीय हाईकोर्ट ने दल-बदलुओं और सरकार, दोनों पक्षों को सुना। माननीय हाईकोर्ट ने माननीय स्पीकर महोदय के पक्ष को भी सुना और माननीय हाईकोर्ट द्वारा 28 मार्च को विधानसभा का सत्र बुलाने के माननीय स्पीकर महोदय के निर्णय को उचित मानते हुए यह आदेश किया कि इसी दिन बहुमत का फैसला करने के लिए मतदान कर लिया जाए। मतदान के बाद दल-बदलुओं की सदस्यता कायम है या नहीं तथा उनके वोट मान्य होंगे या नहीं, उस पर बाद में फैसला होगा। क्योंकि इसी दौरान पूरी हड़बड़ाहट में केंद्रीय सत्ता, राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू कर चुकी थी और सरकार को बर्खास्त कर चुकी थी। ऐसी स्थिति में हमारे सामने माननीय हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार के निर्णय विरुद्ध याचिका दायर करने के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं था।
क्रमशः
(यह लेखक के अपने विचार हैं।)