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Uttarakhand

भूलाए नहीं भूलता मार्च 2016/भाग-8

माननीय हाइकोर्ट के निर्णय के परिणाम स्वरूप हमारी बर्खास्त सरकार बर्खास्तगी की तिथि से ही अस्तित्व में आ गई अर्थात राष्ट्रपति शासन व सभी निहितार्थों को रद्द घोषित कर दिया गया। हमने माननीय राज्यपाल महोदय से भेंट कर माननीय हाइकोर्ट के निर्णय की उनको जानकारी दी और उनकी अनुमति लेकर मुख्यमंत्री के रूप में कार्य प्रारम्भ कर दिया। हमने यह कदम अपने वरिष्ठ अधिवक्ताओं के परामर्श के आधार पर उठाया। जिस समय माननीय मुख्य न्यायधीश की खंडपीठ राष्ट्रपति शासन की वैधता को चुनौती देने सम्बंधी हमारी याचिका को सुन रही थी उसके साथ-साथ माननीय हाइकोर्ट की एकलपीठ 30 मार्च को श्री सुबोध उनियाल, श्री कुंवर प्रणव सिंह द्वारा स्पीकर महोदय द्वारा जारी नोटिस और दल-बदलुओं की सदस्यता को बर्खास्त करने सम्बंधी निर्णय की वैधता तथा उस निर्णय को रद्द करने को लेकर दायर की गई याचिका की सुनवाई कर रही थी, एकलपीठ द्वारा 9 मई, 2016 को इन दोनों याचिकाओं को आधारहीन पाते हुए उन्हें रद्द कर दिया गया और विधानसभा अध्यक्ष के निर्णय को सही घोषित किया गया

 

  • हरीश रावत
    पूर्व मुख्यमंत्री, उत्तराखण्ड

माननीय खंडपीठ द्वारा 21 अप्रैल को एक ऐसा ऐतिहासिक निर्णय दिया गया जिसके निष्कर्ष माननीय उच्चतम न्यायालय में चली लम्बी कानूनी प्रक्रिया के बावजूद यथावत कायम रहे। माननीय हाइकोर्ट के खंडपीठ ने 21 अप्रैल, 2016 को अपना फैसला सुनाया और केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित अधिसूचना जिसके द्वारा उत्तराखण्ड में राष्ट्रपति शासन लगाया गया था उसे निरस्त कर दिया गया और दल-बदलुओं (उज्याड़ू बल्दों) की शेष अवधि की सदस्यता को दल-बदल कानून के तहत रद्द कर दिया गया। माननीय हाइकोर्ट के निर्णय से पस्त केंद्र सरकार के वरिष्ठ अधिवक्ताओं ने खंडपीठ से कहा कि वह उनके निर्णय को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देना चाहते हैं। अतः सुप्रीम कोर्ट का निष्कर्ष आने तक माननीय खंडपीठ अपने निर्णय को स्थगित रखे। माननीय खंडपीठ ने उनके इस अनुरोध को भी रद्द कर दिया, तदनुरूप माननीय हाइकोर्ट के आदेशानुसार राज्य में राष्ट्रपति शासन समाप्त हो गया और विधिक परिणाम स्वरूप निर्वाचित सरकार मुख्यमंत्री और मंत्रिमंडल सहित बहाल हो गई।

माननीय हाइकोर्ट के निर्णय के परिणाम स्वरूप हमारी बर्खास्त सरकार बर्खास्तगी की तिथि से ही अस्तित्व में आ गई अर्थात राष्ट्रपति शासन व सभी निहितार्थों को रद्द घोषित कर दिया गया। हमने माननीय राज्यपाल महोदय से भेंट कर माननीय हाइकोर्ट के निर्णय की उनको जानकारी दी और उनकी अनुमति लेकर मुख्यमंत्री के रूप में कार्य प्रारम्भ कर दिया। हमने यह कदम अपने वरिष्ठ अधिवक्ताओं के परामर्श के आधार पर उठाया। जिस समय माननीय मुख्य न्यायधीश की खंडपीठ राष्ट्रपति शासन की वैधता को चुनौती देने सम्बंधी हमारी याचिका को सुन रही थी उसके साथ-साथ माननीय हाइकोर्ट की एकलपीठ 30 मार्च को श्री सुबोध उनियाल, श्री कुंवर प्रणव सिंह द्वारा स्पीकर महोदय द्वारा जारी नोटिस और दल-बदलुओं की सदस्यता को बर्खास्त करने सम्बंधी निर्णय की वैधता तथा उस निर्णय को रद्द करने को लेकर दायर की गई याचिका की सुनवाई कर रही थी, एकलपीठ द्वारा 9 मई, 2016 को इन दोनों याचिकाओं को आधारहीन पाते हुए उन्हें रद्द कर दिया गया और विधानसभा अध्यक्ष के निर्णय को सही घोषित किया गया। माननीय न्यायालय ने विस्तृत विवेचना के बाद यह निष्कर्ष दिया कि माननीय विधानसभा अध्यक्ष द्वारा प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन करते हुए न केवल विधिवत नोटिस जारी किए, बल्कि सुनवाई का तर्कसंगत अवसर भी दिया उन्होंने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 191(2) स्वपठित दसवीं अनुसूची के प्रस्तर 2(1) (क) के तहत निर्णय घोषित किया और उनकी सदस्यता को रद्द घोषित करना तथा उन 9 विधानसभाओं के प्रतिनिधित्व को रिक्त घोषित करना उचित माना।

माननीय राज्यपाल महोदय से भेंट के बाद मैंने मुख्य सचिव को निर्देश दिए कि सायंकाल मंत्रिमंडल की बैठक बुलाई जाए। मैंने उस बैठक के लिए कई जनकल्याणकारी मामलों में कैबिनेट के निर्णय के लिए एजेंडा पेपर तैयार करने के निर्देश दिए, जिनमें विधवा, विकलांग और वृद्धावस्था सहित सभी समाज कल्याण की राशि पेंशनों में वृद्धि, आंगनबाड़ी, भोजन माताएं और आशा बहनों के मानदेय सम्बंधी मुद्दों के निस्तारण सहित लगभग एक दर्जन लोक कल्याणकारी मामलों को स्वीकृत करने सम्बंधी बिंदु सम्मिलित थे। जैसा हमें आभास था कि खंडपीठ के आदेश को केंद्र सरकार, सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देगी। उन्होंने 22 अप्रैल, 2016 को सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई जिस पर सुनवाई करते हुए माननीय सुप्रीम कोर्ट ने पक्षकारों को नोटिस जारी किए और 27 अप्रैल 2016 की तिथि नियत करते हुए माननीय खंडपीठ के आदेश पर रोक लगा दी।

माननीय सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय के परिणाम स्वरूप राज्य में राष्ट्रपति शासन पुनः प्रभावी हो गया अर्थात 27 मार्च, 2016 की स्थिति पुनः कायम हो गई। मैं पुनः पूर्व मुख्यमंत्री हो गया और गवर्नर महोदय को पुनः मुख्यमंत्री के रूप में काम करने के अधिकार मिल गए। माननीय राज्यपाल महोदय द्वारा यह न्यायिक सलाह मांगी गई कि क्या हाइकोर्ट के निर्णय के बाद हमारे द्वारा बुलाई गई मंत्रिमंडल की बैठक और उसमें किए गए निर्णय वैध हैं या नहीं, उनको प्रशासनिक और न्यायिक, दोनों पक्षों से यह सलाह दी गई कि मंत्रिमंडल के निर्णयों को रद्द नहीं किया जा सकता है क्योंकि मंत्रिमंडल के निर्णयों को रद्द करने का अधिकार केवल मंत्रिमंडल के पास ही है। उस समय तक माननीय गवर्नर महोदय ने अपने सलाहकार भी नियुक्त नहीं किए थे, मगर इसके साथ प्रशासनिक लुका-छिपी और प्रशासनिक अनिश्चितता का दौर पुनः प्रारम्भ हो गया।

माननीय सुप्रीम कोर्ट ने विशेष अनुमति याचिका संख्या-11567 वर्ष 2016, यूनियन आॅफ इंडिया बनाम हरीश चंद्र सिंह रावत में सुनवाई करते हुए 22 अप्रैल, 2016 को सभी पक्षकारों को नोटिस जारी किए और मामले में अग्रिम सुनवाई के लिए 27 अप्रैल, 2016 की तिथि निर्धारित की और खंडपीठ के आदेश पर रोक लगा दी। 27 अप्रैल को अटाॅर्नी जनरल महोदय ने माननीय कोर्ट से कहा कि हमारे पास कोर्ट की जजमेंट की पूरी काॅपी अभी 26 अप्रैल को उपलब्ध हुई है, अतः हमें एसएलपी में कुछ परिवर्तन करने हैं इसलिए कोई दूसरी तारीख निर्धारित की जाए। हमारे पक्ष ने कहा कि हम इस मामले की सुनवाई शीघ्र चाहते हैं, राज्य में अनिश्चितता न रहे, मामले का शीघ्र निस्तारण किया जाए, माननीय सुप्रीम कोर्ट ने 4 मई, 2016 की तारीख निर्धारित की। 4 मई को एडिशनल एजी तुषार मेहता जी ने माननीय कोर्ट को सूचित किया कि हम सक्षम स्तर से आदेश ले रहे हैं और इस मामले में फ्लोर टेस्ट पर विचार किया जा सकता है। 6 मई 2016 को माननीय सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने जिसमें वरिष्ठतम जज दीपक मिश्रा जी और जस्टिस शिवाकीर्ति सिंह थे, उन्होंने आदेश दिया कि 10 मई को 11 बजे विधानसभा का विशेष सत्र आहूत किया जाए जिसमें हरीश रावत को अपनी सरकार का बहुमत साबित करना होगा।

माननीय सुप्रीम कोर्ट ने सदन के आहूत करने से लेकर सदन के संचालन, व्यवस्था के क्रियान्वयन और एक विशेष अधिकारी की नियुक्ति जो इस मतदान के प्रक्रिया को क्रियान्वित करेगा तथा समस्त कार्रवाई की वीडियो ग्राफी करने तथा उस कोर्ट के सम्मुख मतदान के परिणाम बंद लिफाफे के साथ 11 मई को प्रातः 10ः30 बजे कोर्ट में प्रस्तुत किए जाने के निर्देश माननीय विधानसभा अध्यक्ष को दिए गए और उन्हें भी स्पष्ट कर दिया गया कि वह सभा की कार्रवाई की शुरुआत कर अध्यक्ष की पीठ से उठकर सदन में बैठ जाएंगे और यदि आवश्यकता पड़ी तो वह अपने मत का उपयोग कर सकते हैं। माननीय सुप्रीम कोर्ट ने विश्वास मत के प्रस्ताव की शब्दावली भी निर्धारित कर हमें दी और यह स्पष्ट आदेश दिए कि हम केवल विश्वास प्रस्ताव को प्रस्तुत करेंगे और उस पर मतदान की प्रक्रिया माननीय कोर्ट द्वारा निर्धारित तरीके से ही सम्पन्न होगी। कोर्ट यह सुनिश्चित करना चाहती थी कि मतदान की प्रक्रिया को किसी तरीके से भी प्रभावित न करने दिया जाए। संविधान के अनुसार माननीय स्पीकर महोदय अपने मत का प्रयोग उसी स्थिति में कर सकते हैं, जब पक्ष और विपक्ष के वोट बराबर हों।

माननीय सुप्रीम कोर्ट का सुप्रीम निर्णय बहुत स्पष्ट और सीधा था अर्थात 11 मई को हमको बहुमत हासिल करना है। माननीय सुप्रीम कोर्ट ने प्रकिया के सभी नियम और उसकी सीमाएं सब बांध दी। निष्पक्ष पर्यवेक्षक भी नियुक्त कर दिए मगर राजनीति का खेल इतना सरल नहीं होता है, जितना सुप्रीम कोर्ट के निर्णय में दिखाई दे रहा है। केंद्रीय सत्ता ने पूरी शक्ति लगा दी फिर से 6 तारीख की शाम से वही गेम शुरू हो गया जो मार्च 17 और 18 को खेला गया था। फिर लोग थैले के थैले गाड़ियों में लिए संभावित दल-बदल की तलाश कर रहे थे। ईडी, इनकम टैक्स, सीबीआई, अपने तरीके से कमजोर सम्भावित लोगों को ढूंढने लगी।

ब्यूरोक्रेसी के एक कमजोर हिस्से को इस खेल में उपयोग में लाया गया। दो-दो भूतपूर्व मुख्यमंत्री इस खेल में ऐसे लोगों को मार्गदर्शन देने लगे कि कहां जाओ, किसके पास जाओ, किसके माध्यम से जाओ? मुझे 7 मई को यह सूचना मिली कि अमुक-अमुक व्यक्ति के घर में एक अमुक-अमुक व्यक्ति बैठे हुए हैं उनका नाम………….!! यदि मैं नाम बताऊंगा तो फिर जिसके घर में बैठे हुए थे उनका नाम भी सामने आ जाएगा और व्यक्ति ऐसे हैं जिनके विषय में हम कल्पना नहीं कर सकते थे कि उनकी निष्ठा पर उंगली उठाने का कोई साहस भी कर सकता था। मैंने तत्कालीन आईजी को कहा कि दो घरों के सामने आप खड़ी अमुक-अमुक गाड़ियों की तलाशी लो। न जाने कैसे यह तलाशी लेने का आदेश लीक होता है और हड़बड़ा करके वह व्यक्ति उस घर से निकल आता है और गाड़ी लेकर के भाग खड़ा होता है जिसके पीछे कुछ पुलिस अधिकारी भी भागते हैं लेकिन अंततोगत्वा वह उनको चकमा देने में सफल हो जाता है। हमने तीन स्थानों पर बराबर नजर रखी, मार्च 2016-17 में जो गलती कर गए थे हम वह गलती नहीं करना चाहते थे। हमने कहा कि कोई भी व्यक्ति जो धन लेकर के घूम रहे हैं, बस एक जानकारी थोड़ी देर में मिली, थानांे के फाॅरेस्ट बंगले को लेकर जब तक हम वहां पहुंचे तब तक वहां से दिल्ली से आए हुए पंछी उड़ गए। एक व्यक्ति हमारे एक विधायक जी के पास पहुंचे। उन्होंने बहुत सारी बातें उनसे कहीं लेकिन विधायक जी उनसे बड़े कलाकार थे, उन्होंने कहा चलो मैं तुम्हें एयरपोर्ट छोड़ आता हूं। जब वह उनको अपनी गाड़ी में एयरपोर्ट लेकर जा रहे थे तो हमने पीछे पुलिस भी लगा दी। आधे रास्ते में दल-बदल करवाने वाले कलाकार उस गाड़ी से उतर गए और अपनी गाड़ी में बैठ गए। उनकी गाड़ी चेक की गई लेकिन पुलिस के लोगों से एक गलती हुई कि सम्भावित एक दूसरी गाड़ी जो सीआरपीएफ की थी, जो उनकी गाड़ियों को कवर कर रही थी, उन्होंने इसकी जांच नहीं की। यह जानकारी मुझको मिली तो मैंने आदेश दिए कि ऐसे लोगों को सेंटर प्रोटेक्शन मिला हुआ है सीआरपीएफ की यदि वह गाड़ियां हैं तो वह गाड़ियां भी उसी तरीके से चेक होनी चाहिए जैसे सामान्य गाड़ियां चेक होती हैं, हमने पुलिस को वह विशेष आदेश दिया और सीआरपीएफ के प्रोटेक्शन धारियों का नाम लेकर के दिया। केंद्र से आए हुए जो भी नेतागण हैं जिनको सीआरपीएफ प्रोटेक्शन दे रही थी हमने कहा उनके साथ लगी हुई उन गाड़ियों को भी चेक किया जाए और उसका परिणाम था कि उनको केवल एक जगह सफलता मिली। जहां मेरा विश्वास हार गया, जब मैं एम्स में लेटा हुआ था, जीवन के संघर्ष से सामना कर रहा था तो उसी समय हमारे 3 विधानसभा क्षेत्र जिनमें डोईवाला, धारचूला और सोमेश्वर में उपचुनाव घोषित हुए। धारचूला से तो मुझे लड़ना था और डोईवाला से हम पार्टी के वरिष्ठ नेता का नाम तय कर चुके थे, सोमेश्वर में मैं मानसिक रूप से अपने पुराने एक सहयोगी के लिए मन बनाए बैठा था। मगर सोमेश्वर और सोमेश्वर के चारों तरफ के सारे कांग्रेसजनों ने एम्स दिल्ली में डेरा डाल दिया। मैंने उनको स्पष्ट मना किया कि नहीं, वह भाजपा के एक बड़े नेता के प्रभाव में हैं और मैं जानता हूं तुम लोगों का कलकुलेशन गलत है, उस महिला को हम टिकट नहीं देंगे। मेरे भाई को साथ लेकर के आए तब भी मैंने उनको मना किया। मगर तीसरी बार वह मेरे भाई के साथ अकेले आई और मुझको उस सैया में लेटे देखकर वह इतने आंसू बहाने लग गई और उसने अपने लिए कुछ नहीं कहा, मेरा मन द्रवित हो गया। तर्क के ऊपर भावनाएं आ गईं और मैंने अपना मन बदल दिया। टिकट दिया, पैसे लगाए, जब उम्मीदवार बन गए तो उन्होंने सारी व्यवस्थाएं भी हमारे ऊपर थोप दी, क्योंकि उस समय वह मेरी बेटी बन चुकी थी। जब विधायक बन गई तो हमेशा पारिवारिक हिंसा का डर बताकर मुझसे कुछ न कुछ काम करवाया जाता था। इस बार कहा कि मेरी बड़ी दीदी की किडनी बदलनी है, कोलंबो में किडनी बदलेगी बड़ा खर्चा आ रहा है, मेरे पास पैसा नहीं था, मेरे बेटे ने अपनी जीवन भर की कमाई की जो एफडी बना रखी थी उसको तोड़कर के पैसा लाया और पैसा दिया। किस तरीके से हमने उनके जीवन को बचाने के लिए क्योंकि मैं उसे बेटी बना चुका था और मेरे बेटे ने भी यह मान लिया कि यह मेरी बहन है, मुझसे कहा पापा कोई बात नहीं, बाद में देख लेंगे। लेकिन हमने सोचा भी नहीं था कि वहां दिल्ली के खिलाड़ियों को सफलता मिल जाएगी और वहां दल-बदल करवाने में वह सफल हुए। पहाड़ी मन का विश्वास हार गया। धन की जीत हुई।

क्रमशः
(यह लेखक के अपने विचार)

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