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  • के.एस. असवाल

जहां आज हर कोई पहाड़ से शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के नाम पर बदस्तूर पलायन कर रहे हैं। गांवों से शहर की ओर पलायन करने वालों में टीचर व फौजी सबसे आगे हैं। वहीं एक फौजी ऐसा भी है जो रिटायरमेंट के बाद भी गांव में ही फूलों की खेती कर हजारों रुपए कमा रहा है। स्वरोजगार के नाम पर पलायन करने वालों को भी आईना दिखा रहा है। फौजी के हाथों में अक्सर बंदूक होती है लेकिन चमोली जिले के कुशाल नेगी नामक फौजी इसकी परिभाषा बदल रहे हैं। यह फौजी अब खेतों में फूल खिलाने के लिए याद किए जा रहा है।


चमोली जिले के पोखरी ब्लॉक के करछूना गांव के कुशाल सिंह नेगी का जन्म 1962 में हुआ था। गरीब किसान परिवार में जन्मे नेगी हाईस्कूल की परीक्षा पास कर 1982 में फौज में भर्ती हो गए। 28 वर्षों तक निरंतर देश सेवा करने के बाद नेगी 2009 में सेवानिवृत्त हुए। तब उन्होंने घर में खेती-बाड़ी करने के साथ ही से नजदीकी नगर गौचर में म्यूजिक क्लास चलाई। कला एवं रंगकर्मी नेगी ने अपनी संस्कृति से विमुख हो रहे युवाओं को इससे जोड़ने के उद्देश्य से ही गौचर में म्यूजिक क्लास के साथ-साथ हिमतरंग लोक कला संस्था का अध्यक्ष का पदभार संभाला।


हिमतरंग संस्था लंबे समय से अपनी लोक संस्कृति संरक्षण के लिए काम कर रही थी। संस्था में मुख्य गायक लोक गायक
दिगम्बर बिष्ट और महिला गायक मंजू सुंदरियाल हैं। कुशाल नेगी ने बताया कि उन्होंने जीतू बगडवाल की भूमिका भी निभाई और इसके साथ-साथ संस्था के द्वारा दो एलबम बनाई गई। पहली ‘चूड़ी बाजे छमा-छम’ एवं दूसरी ‘भाना बामणी’ बनाई गई। जिसको लोगों ने काफी पसंद किया। संस्था अपना प्रोग्राम गौचर मेला, बंड विकास मेला पीपलकोटी, पोखरी, उत्तरकाशी माघ मेला तथा बागेश्वर और भी कई जगह दे चुकी है। उन्होंने कहा की तीन साल गौचर में म्यूजिक क्लास चलाने के बाद उन्हें सीआरपीएफ में कोबरा कमांडो ट्रेनिंग के लिए जाना पड़ा। तब उन्हें म्यूजिक क्लास को बंद करना पड़ा। 7 साल तक उन्होंने सीआरपीएफ में दोबारा अपनी सेवा दी। 2019 में यहां से रिटायर होने के बाद उन्होंने गांव में आकर खेती करना शुरू कर दिया। इसके बाद 2020 में इन्होंने उद्यान विभाग की मदद से गांव में पांच नाली जमीन पर फूलों की खेती शुरू कर दी। नेगी द्वारा गांव में गेंदे के साथ अन्य फूलों की खेती कर उसे गौचर बाजार बेचा जाता है, जिससे उन्हें अच्छी आय मिल जाती है। नेगी कहते हैं कि पहाड़ के गांव में ही बहुत कुछ करने के लिए है लोग मेहनत कर गांव में ही स्वरोजगार से जुड़कर आत्मनिर्भर हो सकते हैं।

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