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Uttarakhand

पहाड़ से ढलान पर शिक्षा


राज्य सरकार प्रदेश के पहाड़ी जिलों में पलायन को लेकर खासी चिंता व्यक्त करती रही है। पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत ने तो प्रदेश में पलायन रोकने के लिए पलायन आयोग का गठन तक कर दिया था। हालांकि कुछ ही माह में स्वयं पलायन आयोग भी पौड़ी से देहरादून में स्थानांतरित हो गया था। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी भी पलायन रोकने और इसके लिए ठोस कार्यक्रम बनाए जाने को लेकर सरकार की प्रतिबद्धता की बात करते रहे हैं। भाजपा विधानसभा चुनाव में अपने चुनावी दृष्टि पत्र में पलायन को रोकने के लिए तमाम योजनाओं की बात कर चुकी है, फिलहाल प्रदेश में शिक्षा का पलायन शुरू हो चुका है

 


प्रदेश की पुष्कर सिंह धामी सरकार अपने पूर्ववर्ती मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत सरकार की ही तरह पालयन को रोकने के बड़े-बड़े दावे तो कर रही है लेकिन हकीकत इसके उलट दिखाई दे रही है। पहाड़ी जिलों से एक के बाद एक संस्थान मैदानी क्षेत्रों में स्थानांतरित किए जा रहे हैं। इस कड़ी में प्रदेश के एक मात्र विश्वविद्यालय श्री देव सुमन उत्तराखण्ड विश्वविद्यालय का नाम भी जुड़ गया है। टिहरी में स्थापित विश्वविद्यालय का दीक्षांत समारोह अब देहरादून में किए जाने का निर्णय लिए जाने से इसकी आशंका जोर पकड़ने लगी है कि आने वाले समय में श्री देव सुमन विश्वविद्यालय भी टिहरी की बजाय देहरादून से ही
संचालित होगा।


दरअसल, पूरा मामला भी दिलचस्प है। 6 जुलाई को श्री देव सुमन विश्वविद्यालय के तीसरे दीक्षांत समारोह को देहरादून के मसूरी डाईवर्जन रोड स्थित पीस्टल बीड कॉलेज ऑफ इंफॉरमेशन टेक्नोलॉजी में करवाए जाने का निर्णय लिया गया है। जिसके लिए कुलपति पीपी ध्यानी द्वारा टिहरी के विधायक किशोर उपाध्याय को कार्यक्रम में शामिल होने के लिए पत्र भेजा है। पत्र में स्पष्ट किया गया है कि राज्यपाल की स्वीकृति भी इसके लिए ली जा चुकी है। विश्वविद्यालय के इस निर्णय पर कई सवाल खड़े हो रहे हैं। क्या विश्वविद्यालय अपने दीक्षांत समोराह स्वयं के परिसर में करवाने में सक्षम है या इसके पीछे विश्वविद्यालय को स्थानांतरण किए जाने की पहल की जा रही है। जबकि श्री देव सुमन विश्वविद्यालय उत्तराखण्ड प्रदेश का एक मात्र राजकीय विश्वविद्यालय है जिसके तहत प्रदेश के राजकीय और निजी क्षेत्र के सैकड़ों उच्च शिक्षण संस्थान संबद्ध है। बावजूद इसके विश्वविद्यालय प्रशासन अपने ही दीक्षांत समोराह को करवाने में सक्षम नहीं है।


यह पूरा मामला केवल एक दीक्षांत समोराह का नहीं है। इसके पीछे राज्य की अफरशाही और राजनीति का एक बड़ा खेल चल रहा है जिसके चलते पहाड़ी जिलों से संस्थानों को सोची-समझी रणनीति के तहत हटाए जाने की कवायद का यह हिस्सा है। जिसमें टिहरी सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ है। श्री देव सुमन उत्तराखण्ड विश्वविद्यालय को भी टिहरी से स्थानांतरित करने के काम स्वयं राज्य सरकार पूर्व में कर चुकी है अब केवल इसका अधिकृत शासनादेश आना ही बाकी है।


सबसे पहले श्री देव सुमन विश्वविद्यालय की बात करें तो तमाम मांगों और आंदोलन के बाद 2010 में तत्कालीन भाजपा की ‘निशंक’ सरकार द्वारा टिहरी के समीप बादशाही थौल में श्री देव सुमन विश्वविद्यालय की स्थापना की गई थी। यह राज्य का पहला और एकमात्र सरकारी विश्वविद्यालय है जो प्रदेश के शैक्षणिक संस्थानों को अपनी संबद्धता प्रदान करता है। 2018 में त्रिवेंद्र रावत सरकार द्वारा डोईवाला विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत विश्वविद्यालय परिसर स्थानांतरित करने का आदेश जारी कर चुकी है। जब इस आदेश का विरोध हुआ तो सरकार ने दावा किया कि विश्वविद्यालय का डोईवाला में केवल परिसर के तौर पर ही प्रयोग किया जाएगा जबकि विश्वविद्यालय टिहरी से ही संचालित होता रहेगा। लेकिन सरकार की असल मंशा तुरंत ही सामने आ गई जब तत्कालीन उच्च शिक्षा राज्य मंत्री धनसिंह रावत ने भी ऋषिकेश के पं ललित मोहन राजकीय महाविद्यालय में श्री देव सुमन विश्वविद्यालय के कैंपस को तुरंत आरंभ करने का आदेश दिया। एक ही जिले में एक ही विश्वविद्यालय के दो-दो परिसर बनाए जाने से यह साफ है कि सरकार की मंशा श्री देव सुमन विश्वविद्यालय को टिहरी से देहरादून में स्थानांतरित करने की है।
ऐसा नहीं है कि टिहरी जिले से पहली बार कोई संस्थान स्थानांतरित किया गया हो। राज्य बनने के बाद सबसे ज्यादा सरकारी योजना और परियोजना टिहरी से अन्यत्र स्थानांतरित की जा चुकी है। इनमें कृषि औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय जो कि टिहरी के लिए स्थापित किया गया था जिसे खण्डूड़ी सरकार द्वारा पौड़ी के भरसार में स्थानांतरित किया गया। इसी तरह गढ़वाल विश्वविद्यालय का टिहरी और चौरास परिसर का मामला भी टिहरी के नसीब में दुखद स्वप्न की ही तरह रहा है जिसमें सरकार ओैर प्रशासन की उदसीनता और अज्ञानता टिहरी जिले को भुगतना पड़ा है। पूर्व मुख्यमंत्री बीसी खण्डूड़ी द्वारा गढ़वाल विश्वविद्यालय को केंद्रीय विश्वविद्यालय की मंजूरी देने के मामले में सरकार औेर राजनीतिक उदसीनता देखने को मिली है।

गढ़वाल विश्वविद्यालय का लगभग 80 फीसदी क्षेत्र टिहरी जिले के चौरास क्षेत्र में आता है जो सैकड़ों एकड़ में फैला है। साथ ही बादशाही थोल में स्वामी रामतीर्थ संगठक महाविद्यालय को भी केंद्रीय विद्यालय को सौपने से आज प्रदेश सरकार के पास कोई ऐसा स्थान नहीं बचा है जहां बड़ा विश्वविद्यालय स्थापित हो सके। राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद् का मामला भी सरकार की नीति और नियत को बताने के लिए बड़ा प्रमाण है। स्वर्गीय नारायण दत्त तिवारी के कार्यकाल में नरेंद्र नगर में राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद् यानी एससीआरटी का मुख्यालय स्थापित किया गया था। जिसे देहरादून में स्थानांतरित किया जा चुका है। सरकार और प्रशासन के आलावा राजनेताओं की घोर उदासीनता कहें या लापरवाही, यह मुख्यालय नाम के लिए ही नरेंद्र नगर से संचालित होता रहा है। 2012 के बाद तो पूरी तरह से इसे देहरादून में ही संचालित किया जाने लगा लेकिन कागजों में और सरकारी सूचना निदर्शिनी में यह एससीईआरटी का मुख्यालय नरेंद्र नगर से ही संचालित होने का दिखावा किया जाता रहा है। मौजूदा सरकार भी इस पर उदासीन बनी रही और 2019 में अब पूरी तरह से एनसीईआरटी का मुख्यालय देहरादून के नालापानी में राजीव गांधी नवोदय विद्यालय में स्थानांतरित हो गया है।


एनसीसी अकादमी देवप्रयाग का स्थानांतरण भी त्रिवेंद्र सरकार के समय में ही हुआ है। कांग्रेस की हरीश रावत सरकार के समय देवप्रयाग में एनसीसी एकेडमी की स्थापना के लिए शासन को निर्देश जारी किए गए थे। लेकिन सत्ता परिवर्तन के बाद त्रिवेंद्र रावत प्रदेश के मुख्यमंत्री बने और इस अकादमी को अपने गृह जनपद पौड़ी के देवार में स्थानांतरित करने का आदेश जारी कर दिया। इस पर भारी विवाद भी हुआ और मामला हाईकोर्ट में गया। जहां से हाईकोर्ट ने सरकार के पक्ष को ही सही मानते हुए इस मामले का पटाक्षेप कर दिया और अब एनसीसी एकेडमी पौड़ी में ही स्थापित की जाएगी।


इस मामले को लेकर स्थानीय विधायक किशोर उपाध्याय खासे नाराज हैं। उन्होंने अपनी नाराजगी से राज्यपाल कार्यालय और कुलपति को अवगत करवा दिया है लेकिन अब किशोर उपाध्याय भाजपा के विधायक हैं और जिस प्रकार से पूर्व में वे अपनी ही सरकार की कई नीतियों के खिलाफ मुखर रहे हैं मौजूदा समय में वह दिखाई नहीं दे रहे हैं। श्री देव सुमन उत्तराखण्ड विश्वविद्यालय के प्रकरण में त्रिवेंद्र रावत सरकार के समय जिस प्रकार से किशोर उपाध्याय मुखर होकर सरकार की आलोचना कर रहे थे इस बार उनके स्वर उतने मुखर तो नहीं हैं लेकिन उनका कहना है कि वे इस मामले में मुख्यमंत्री से बात करेंगे और दीक्षांत समारोह विश्वविद्यालय में ही कराए जाने की मांग करेंगे।


बात अपनी अपनी
 यह पहली बार नहीं हो रहा है कि टिहरी से संस्थानों को हटाया जा रहा है। कई संस्थान हटाए जा चुके हैं। अब केवल नाम के लिए विश्वविद्यालय टिहरी पर थोपा हुआ है और सारा काम देहरादून से ही चलाना है तो इस विश्वविद्यालय को भी पूरी तरह से हटा देना चाहिए। जब अपना दीक्षांत समारोह तक विश्वविद्यालय में नहीं करवा पा रहे हैं इससे बुरा और क्या हो सकता है। मैंने महामहिम राज्यपाल के सचिव और विश्वविद्यालय के कुलपति को अपनी नाराजगी बता दी है और जल्द ही मुख्यमंत्री जी से इस बारे में बात करूंगा।
किशोर उपाध्याय, विधायक टिहरी
विश्वविद्यालय के पास मुश्किल से आठ कमरे हैं। दीक्षांत समारोह जैसे कार्यक्रम जिसमें बड़ी संख्या में लोग आएंगे। तमाम मंत्री और वीआईपी लोग होंगे। इन सभी की व्यवस्था विश्वविद्यालय में नहीं हो सकती। इसीलिए पहले के दोनों दीक्षांत समारोह हमने बाहर करवाए। क्या करें, जब जगह और सुविधा न हो तो कहीं तो करवाना ही पड़ेगा, दीक्षांत कहीं भी हो नाम तो श्री देव सुमन जी का ही रहेगा।
केआर भट्ट, कुल सचिव श्री देव सुमन विश्विद्यालय

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