हाल ही में उत्तराखण्ड विधानसभा में वित्त मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल द्वारा पहाड़वासियों के लिए अपशब्द कहे जाने पर बदरीनाथ से कांग्रेस विधायक लखपत सिंह बुटोला ने कड़ा विरोध दर्ज किया। उन्होंने आक्रोश में आकर सदन में कागज फाड़ दिए और कहा कि ‘क्या हम पहाड़ के विधायक गाली खाने के लिए इस सदन में आए हैं।’ चमोली जिले में आपदा के कारण हुए नुकसान को देखते हुए, लखपत सिंह बुटोला ने अगले छह महीने तक बढ़े हुए वेतन और भत्तों को स्वीकार न करने का निर्णय लिया है। लखपत सिंह बुटोला से हमारे विशेष संवाददाता कृष्ण कुमार की बातचीत
पृथक उत्तराखण्ड राज्य के गठन का उद्देश्य पहाड़ी जनता की सांस्कृतिक और आर्थिक समृद्धि का था। क्या आपको लगता है कि यह उद्देश्य पूरा हुआ है?
उत्तराखण्ड की जनता ने इस राज्य के निर्माण के लिए अपना बलिदान दिया, योगदान दिया तब हमें अपना उत्तराखण्ड राज्य मिला। लेकिन आज भी हम पहाड़ के लोगों का विकास नहीं हो पाया है। राज्य बनने के बाद पलायन रूका नहीं है। हमारे पास अच्छी शिक्षा नहीं है, अच्छे अस्पताल नहीं हैं। आज भी पहाड़ी जिलों के लोगों को अपने जिला मुख्यालयों में जाने के लिए डेढ़ सौ किमी. की यात्रा करनी पड़ती है और वहां जाकर भी उनको कोई राहत नहीं मिलती। हमारे यहां के अस्पताल रेफर सेंटर बने हुए हैं। इससे बड़ा दुर्भाग्य क्या होगा कि श्रीनगर मेडिकल काॅलेज भी आज रेफर सेंटर बना हुआ है। इलाज नहीं मिल पा रहा है, मजबूरी में हमें ऋषिकेश या देहरादून जाना पड़ता है। रोजगार नहीं हैं। हमारी खेती जंगली जानवरों के द्वारा नष्ट की जा रही है। ऐसे में पहाड़ के लोग जाएं तो कहां जाएं? इन सवालों पर मैंने सदन में भी बात रखी इसका जवाब तो मिलना ही चाहिए कि आखिर 24 वर्षों के बाद भी हम पहाड़ी क्षेत्रों के लोग विकास से क्यों नहीं जुड़ पाए हैं।
क्या वर्तमान सरकार पहाड़ की अस्मिता और संस्कृति की पहचान बनाए रखने में सक्षम है? अगर नहीं तो आप इसके लिए क्या समाधान सुझाते हैं?
देखिए, जब राज्य के संसाधनों पर पहाड़ के लोगों का अधिकार ही नहीं होगा और सरकार मनमर्जी से यहां के संसाधनों का उपयोग करेगी लेकिन उसका हिस्सा पहाड़ की जनता को नहीं मिलेगा तो कैसे हम सरकार को सक्षम कह सकते हैं। जब मैदान और पहाड़ को एक ही नजर से देखा जा रहा हो तो पहाड़ की दुर्दशा तो होगी ही। हमारे अपने संसाधनों पर हमारा अधिकार हमसे छीना जा रहा है। पहाड़ में विधानसभा का जितना क्षेत्रफल है मैदानी क्षेत्रों में उसमें दस-बीस विधानसभा आती है। बीस विधायक होंगे तो बीस गुना विधायक निधि आएगी लेकिन पहाड़ में उतने ही बड़े क्षेत्रफल में एक विधायक और एक विधायक निधि तो विकास का पैमाना कैसे सही होगा?
वित्त मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल ने सदन में पहाड़ के लोगों के लिए ‘साले’ शब्द कहा। क्या आपको यह शब्द असंवेदनशील लगता है या इसे गलत तरीके से समझा गया है?
बात ‘साले’ या गलत शब्द सदन में कहने की नहीं है। बात यह है कि संसदीय कार्य मंत्री का यह दायित्व होता है कि सदन सुचारू चले। अगर कोई व्यवधान आता है तो उसे अपनी क्षमता और योग्यता से दूर करे लेकिन इसकी बजाय आप स्वयं ही व्यवधान पैदा करने का काम करते हैं। एक दिन पहले ही मुझसे प्रेमचंद अग्रवाल कह चुके थे कि क्या पहाड़ी-पहाड़ी करते हो? हम पहाड़ के लोग हैं तो पहाड़ की ही तो बात करेंगे। यह कोई सामान्य बात नहीं है, यह एक प्रवृति हो गई है कि पहाड़ के लोगों को गाली दो। पहले भी इनके विधायक चैम्पियन तमंचा लहराते हुए उत्तराखण्ड को गाली दे चुके हैं। वित्त मंत्री पहाड़ के विधायक को शराब पीकर सदन में आने की बात कह चुके हैं। हम सदन में अपने क्षेत्र की जनता की बात रखने आए हैं लेकिन हमें गालियां दी जाएं और हम विरोध भी न करे। भाजपा ने ऐसे लोगों पर कार्यवाही नहीं की, इनको मौन समर्थन दिया है। उत्तराखण्ड राज्य पहाड़ के लिए ही बना था, अगर पहाड़ के लोगों को सदन में एक मंत्री द्वारा अपशब्द कहे जाते हैं तो उसका विरोध होना चाहिए लेकिन इनकी चुप्पी साफ बता रही है कि इनका मौन समर्थन मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल को था और अब भी है।
इस बयान के खिलाफ आपने सदन में आवाज उठाई लेकिन आपको बोलने नहीं दिया गया। क्या आपको लगता है कि पहाड़ के लोगों की आवाज को जान-बूझकर दबाया जा रहा है?
देखिए, मैं पहाड़ी हूं मेरे पिता सेना में रहे हैं, मेरे भाई को कारगिल युद्ध में गोली लगी थी। पहाड़ी विनम्र होता है, सरल होता है, सज्जन होता है लेकिन पहाड़ी कमजोर कभी नहीं हो सकता। पहाड़ टूट सकते हैं लेकिन पहाड़ कभी झुक नहीं सकता। मैंने सदन में अपने क्षेत्र की बात की। मेरे क्षेत्र की जनता की समस्याओं पर मैंने बात की। मेरे क्षेत्र में जो बदहाली है उसकी बात की। सदन में हमें गालियां दी गईं। सदन हमारे लिए है। हमारे क्षेत्र की बात करने पर हमें कोई रोक नहीं सकता। हम हमेशा अपने लोगों अपने क्षेत्र की बात सदन में उठाते रहेंगे। मैं यह स्पष्ट कर दूं कि मैं मैदानी क्षेत्र का विरोधी नहीं हूं। मैं पहाड़ से आता हूं तो मैं पहाड़ की बात करूंगा। प्रत्येक व्यक्ति जो इस उत्तराखण्ड का है, इस राज्य में निवास करता है और जो इस उत्तराखण्ड के लिए सम्मान रखता होगा उस हर व्यक्ति को इसका प्रतिकार करना चाहिए।
पर्वतीय क्षेत्रों में पलायन एक गम्भीर समस्या बनी हुई है। क्या सरकार इस मुद्दे को हल करने के लिए सही कदम उठा रही है?
जब हमने अलग उत्तराखण्ड राज्य की मांग की थी तो हमारे सामने यही समस्याएं थी। हमारे लोग रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य के लिए पलायन करने पर मजबूर थे। राज्य बनने के बाद हालात वैसे के वैसे ही हैं। आज पहाड़ी क्षेत्रों में जंगली जानवरों सूअर, बंदर, बाघ के कारण खेती खत्म हो रही है। हमारे जानवर भी सुरक्षित नहीं हैं मानव जीवन भी असुरक्षित हो गया है। सरकार इस पर ध्यान देने की बजाय अपनी ही नीति हम पर थोप देती है। जब तक उत्तराखण्ड को पहाड़ की तरह से नहीं देखा जाएगा तब तक यहां कि स्थितियों में कोई बदलाव नहीं होगा। जो नीतियां मैदानी क्षेत्रों के लिए होती हैं या बनाई जा रही हैं उनको ऐज इट इज पहाड़ों में भी लागू किया जा रहा है ऐसे कैसे हो सकता है? पहाड़ और मैदान दोनों विपरीत स्थितियों के हैं, हम हिमालय और इसके अनुरूप नीतियों को नहीं बनाते। हम अपनी नीतियों को इस हिमालय पर थोप रहे हैं।
क्या मौजूदा सरकार इस पर सही काम नहीं कर रही है?
यहां बात सरकार की नहीं है, यहां बात प्रदेश की है। सरकार बड़े गर्व से कह रही है कि 60 करोड़ हिंदुओं ने कुम्भ स्नान किया। लेकिन उसी कुम्भ स्नान के लिए गंगा और यमुना तो हमने ही दी है। जब हम गंगा नहीं देते तो कैसे 60 करोड़ लोग स्नान करते। कम से कम इसी बात पर तो सरकार पहाड़ और प्रदेश की बात करे। आज हमारी अपनी नदियां तक सुरक्षित नहीं हैं। उत्तराखण्ड हिंदू धर्म का सबसे बड़ा क्षेत्र है। यहां गंगा-यमुना, चारधाम, पंचप्रयाग, पंचकेदार, हेमकुंट साहिब है। यहां देवताओं का वास है इसलिए इसे देवभूमि कहते हैं।
क्या आपको लगता है कि पहाड़ी जनता की उपेक्षा के कारण उत्तराखण्ड में क्षेत्रीय असंतोष बढ़ सकता है?
जब पहाड़ की समस्याओं पर कोई बात नहीं करेगा और जिस अवधारणा के लिए उत्तराखण्ड बना है उस अवधारणा को पूरा नहीं किया जाएगा तो लोगों को निराशा होगी ही। हम उस पहाड़ से आते हैं जहां हम लोग दूसरी रक्षा पंक्ति का काम करते हैं। पहाड़ का जीवन पहाड़ जैसा है। हर दिन जीवन जीना एक युद्ध सरीखा है। जब हम पहाड़ी क्षेत्रों के विधायक सदन में अपनी बात रखते हैं या सरकार के पास आते हैं तो सरकार को हमें दुलारना चाहिए, प्यार देना चाहिए। हम किन कठिन परिस्थितियों से गुजर कर आपके पास आते हंै। हम स्वास्थ्य की बात करें, रोजगार की बात करें, हमारी बातों को ज्यादा सुनना और उसका निदान करना चाहिए।
मैं पहाड़ी हूं मेरे पिता सेना में रहे हैं, मेरे भाई को कारगिल युद्ध में गोली लगी थी। पहाड़ी विनम्र होता है, सरल होता है, सज्जन होता है लेकिन पहाड़ी कमजोर कभी नहीं हो सकता। पहाड़ टूट सकते हैं लेकिन पहाड़ कभी झुक नहीं सकता। मैंने सदन में अपने क्षेत्र की बात की। मेरे क्षेत्र की जनता की समस्याओं पर मैंने बात की। मेरे क्षेत्र में जो बदहाली है उसकी बात की। सदन में हमें गालियां दी गईं। सदन हमारे लिए है। हमारे क्षेत्र की बात करने पर हमें कोई रोक नहीं सकता। हमेशा अपने लोगों अपने क्षेत्र की बात सदन में उठाते रहेंगे। मैं यह स्पष्ट कर दूं कि मैं मैदानी क्षेत्र का विरोधी नहीं हूं। मैं पहाड़ से आता हूं तो मैं पहाड़ की बात करूंगा। प्रत्येक व्यक्ति जो इस उत्तराखण्ड का है, इस राज्य में निवास करता है और जो इस उत्तराखण्ड के लिए सम्मान रखता होगा उस हर व्यक्ति को इसका प्रतिकार करना चाहिए।
महाराष्ट्र में बाला साहेब ठाकरे द्वारा मराठी अस्मिता और पहचान के लिए एक मजबूत क्षेत्रीय आंदोलन खड़ा किया गया था। क्या आपको लगता है कि उत्तराखण्ड में ठाकरे जैसे मजबूत नेता की जरूरत है जो पहाड़ की संस्कृति, अस्मिता और हकांे के लिए खड़ा हो सके?
देखिए, मैंने कभी मैदान और पहाड़ी की बात नहीं की है। मैंने सिर्फ यह कहा है कि उत्तराखण्ड का निर्माण पहाड़ी संस्कृति और इसके लोगों को बचाने के लिए हुआ है। हमारी अवधारणा ही पहाड़ की थी तो उसे हम या कोई कैसे नकार सकता है? पहाड़ का जीवन एक पहाड़ के जैसा ही है, हर रोज यहां हम जीने के लिए बहुत कठिन श्रम करते हैं तब जाकर हम अपना और अपने परिवार का पालन-पोषण करते हैं। हमारी समस्याएं मैदानी क्षेत्रों से अलग हैं और ज्यादा विकट है इसलिए हमारे लिए पहाड़ के जैसे ही सोचना और समझना होगा। हमारी अस्मिता और अस्तित्व का सवाल है। हमारी अलग परम्पराएं और संस्कृति है, हम सदियों से अपनी परम्पराओं और अपने संसाधनों की रक्षा करते आ रहे हैं। देश की रक्षा के लिए हम दूसरी रक्षा पंक्ति हैं इसलिए हमें विकास की अवधारणा में प्रथम पंक्ति में रखना जरूरी है। लेकिन हो इसके उलट रहा है। राज्य बने हुए 24 वर्ष हो गए लेकिन जो राज्य बनने से पहले समस्याएं और अभाव थे वे आज भी जैसे के तैसे ही हैं। सरकार अपना ढोल पीटकर पहाड़ों का विकास का दावा करती है लेकिन सच्चाई को छुपा देती है, अगर सरकार के दावे सही हैं तो सबसे पहले सरकार ये बताए कि श्रीनगर मेडिकल काॅलेज क्यों वर्षों से रेफर सेंटर बना हुआ है। हमारे लोग ऋषिकेश एम्स में कई-कई सौ मील से चल कर आते हैंे, वहां हमें क्यों नहीं इलाज मिल पाता। कई दिनों तक पहाड़ का आदमी एम्स में बाहर पड़ा रहता है। क्यों नहीं एम्स जैसे अस्पताल पहाड़ों में बनाए जाते हैं और जो बनाए हैं वे रेफर सेंटर बने हुए हैं। जिला मुख्यालय के अस्पताल आज भी रेफर सेंटर से ज्यादा कुछ नहीं हैं, अगर इस तरह से पहाड़ के क्षेत्रों की उपेक्षा होती रहेगी और युवाओं में निराशा का भाव उत्पन्न होगा तो जरूर ऐसा हो सकता है।
सदन में तो 34 पहाड़ी क्षेत्रों के विधायक हैं फिर आप ही क्यों सबसे नाराज दिखाई दिए?
हमने अपनी पीड़ा सदन में बोली तो सबके पेट में मरोड़ क्यों होने लगी यह मेरी समझ में नहीं आया। आज भी हम आपदा से जूझ रहे हैं। जोशीमठ आपदा से आज भी हमें राहत नहीं मिली पाई है। सदन हमारे लोगों की बातों को रखने का मंच है। मेरा साथ सभी ने दिया। मैं धन्यवाद देता हूं उन विधायकों को जिन्होंने मेरी बात का समर्थन किया। मेरी पार्टी कांग्रेस के सभी विधायकों ने मेरी बातों का समर्थन किया। लेकिन मैं आज भी उन सभी को बता रहा हूं जो सदन में मौन थे, जो यहां रहकर पहाड़ का प्रतिनिधित्व करते हंै उन सभी को सोचना पड़ेगा कि वे सभी सदन में क्यों मौन थे? इसमें भाजपा और कांग्रेस की बात नहीं है। जब हमें गाली दी गई तो वे सभी पहाड़ी विधायक जो मौन थे उनको बताना पड़ेगा कि उनकी मौन स्वीकृति क्यों थी? मैं भाजपा के सांसद त्रिवेंद्र जी को बहुत-बहुत धन्यवाद देना चाहता हूं जिन्होंने खुलकर इसके विरोध में बात कही लेकिन भाजपा के पहाड़ से प्रतिनिधित्व करने वाले विधायक क्यों मौन थे? क्यों नहीं उन्होंने प्रेमचंद अग्रवाल को टोका और क्यों नहीं उन्होंने विरोध किया?
उत्तराखण्ड की जनता को क्या संदेश देना चाहते हैं खासतौर पर युवा पीढ़ी को जो अपनी पहचान और संस्कृति को लेकर चिंतित हैं?
मेरा एक ही संदेश है कि हम सबको अपने इस पहाड़ी प्रदेश उत्तराखण्ड को बचाना है। इसको आंदोलनकारियों और बलिदानियों के सपनों का प्रदेश बनाना है। हम सभी को अपने प्रदेश, अपने हिमालय और अपनी संस्कृति और अस्मिता को बचाने के लिए काम करना है। किसी ऐसे व्यक्ति जो हमारी संस्कृति और अस्मिता को चोट पहुंचाने का काम करता है उसका विरोध करना है। साथ ही जो लोग हमें गलियां दे रहे हैं और जो लोग मौन समर्थन कर रहे हैं उन सभी से सवाल पूछना चाहिए कि आखिर वे चुप क्यों रहे? ऐसे लोगों को सिर्फ एक ही रास्ते से जवाब दिया जा सकता है और वह रास्ता लोकतंत्र ने हमें दिया है। जब ये लोग हमारे दरवाजे पर वोट मांगने आएं तो इनसे सवाल जरूर पूछेंगे।