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Uttarakhand

नेता बनाम नौकरशाह

 

‘नेताओं की चप्पल उठाते हैं नौकरशाह’ पिछले साल 20 सितंबर को जब मध्य प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती ने यह विवादास्पद बयान दिया तो नौकरशाहों में उबाल आ गया था। देश की सर्वोच्च परीक्षा पास कर आईएएस बन सरकारी सेवा में आने वाले नौकरशाहों को यह उन नेताओं द्वारा तमाचा मारने के बराबर था जिनकी न कोई न्यूनतम योग्य­­ता और न ही कोई आयु सीमा रखी जाती है। कोई भी व्यक्ति चाहे आपराधिक पृष्ठभूमि वाला क्यों न हो, मंत्री बनकर देश-प्रदेश में हुक्म चला सकता है। राबड़ी देवी जो कि मुश्किल से मीडिल क्लास पढ़ी होंगी, बिहार जैसे बड़े प्रदेश की मुख्यमंत्री रहीं। इसी तरह शिबू सोरेन जैसे आपराधिक रिकॉर्ड वाले व्यक्ति केंद्र में मंत्री व झारखंड के तीन बार मुख्यमंत्री रहे। सवाल है कि यदि देश-प्रदेश की बागडोर ऐसे नेताओं के हाथ में हो तो अफसरशाही क्या करे? कुछ ऐसे ही सवालों से दो चार हो रहे हैं उत्तराखण्ड के आईएएस अफसर। अधिकारियों के मामलों में सबसे ज्यादा विवादास्पद रहने वाली प्रदेश की महिला मंत्री रेखा आर्या एक बार फिर चर्चाओं में है। कभी अल्मोड़ा के जिलाधिकारी सविन बंसल से उनका टकराव हुआ तो अब खाद्य सचिव से उनकी तकरार चर्चा का विषय बनी हुई है। इस बार रेखा आर्या पूर्व की भांति अपने ही सचिव सचिन कुर्वे पर आरोप-प्रत्यारोप लगा रही हैं। सवाल यह है कि आखिरकार क्यों आर्या का बर्ताव ऐसा है कि किसी भी अधिकारी से उनकी बनती नहीं? त्रिवेंद्र से लेकर तीरथ सरकार और अब पुष्कर सिंह धामी सरकार में आर्या की अधिकारियों से नूरा-कुश्ती जारी है, जिसका खामियाजा विभाग की योजनाओं और जनता को भुगतना पड़ता है। बहरहाल, सूबे की सियासत में एक बार फिर नेता और नौकरशाह के बीच शीतयुद्ध शुरू हो चुका है

 

कैबिनेट मंत्री रेखा आर्या का विवादों से हमेशा नाता रहा है। कैबिनेट मंत्री की हनक है कि वह अक्सर विवादों के केंद्र में रहती हैं। अपनी हठधर्मिता और कारनामों की वजह से ईमानदार माने जाने वाले प्रदेश के कई अधिकारियों के साथ भी रेखा आर्या विवादों में रह चुकी हैं। फिलहाल आर्या का 2003 बैच के आईएएस सचिन कुर्वे के साथ विवाद गरमा गया है। रेखा आर्या और ब्यूरोक्रेट्स के बीच घमासान का यह कोई पहला मामला नहीं है बल्कि इससे पहले भी वी षणमुगम से लेकर सौजन्य तक मंत्री रेखा आर्या के निशाने पर आ चुके हैं। जबकि मनीषा पंवार ने तो उनसे कन्नी ही काट ली थी। अल्मोड़ा का गेस्ट हाउस प्रकरण लोग अभी तक नहीं भूले हैं। तब जिलाधिकारी सेविन बंसल के साथ मंत्री की ‘हॉट टॉक’ चर्चा का विषय रही थी। उत्तराखण्ड की
राजनीति में रेखा आर्या हमेशा की तरह अपने अधिकारीयों को दबाव में लेने के लिए जानी जाती हैं। उत्तराखण्ड में इतने कैबिनेट मंत्रियों के बीच केवल रेखा आर्या का अपने अधीनस्थ अधिकारियों के साथ विवादों में रहना प्रदेश की भाजपा सरकार को असहज करता नजर आता है चाहे वह त्रिवेंद्र सिंह रावत की सरकार रही हो या तीरथ सिंह रावत की या वर्तमान पुष्कर सिंह धामी की सरकार। हालांकि नौकरशाह और मंत्री रेखा आर्या की लड़ाई में हर बार नौकरशाह ही भारी प

 

मंत्री द्वारा निरस्त स्थानांतरण पत्र

ड़ते रहे हैं। कारण, नौकरशाह कोमा, फुलस्टाप और एकवचन-बहुवचन का खेल खेलते हैं। यानी वह कागजी तौर पर मजबूत होते हैं। फिलहाल प्रदेश के आधा दर्जन जिलापूर्ति अधिकारियों के ट्रांसफर का मामला मुख्यमंत्री के दरबार जा पहुंचा है।


इस मामले की शुरुआत गत 20 जून को हुई। जब खाद्य आयुक्त एवं सचिव सचिन कुर्वे ने नैनीताल जिले के जिला पूर्ति अधिकारी मनोज बर्मन को अनिवार्य रूप से अवकाश पर भेजे जाने का आदेश जारी कर दिया था। विभागीय सूत्रों के मुताबिक नैनीताल जिले में कई दुकानों में बिना बायोमीट्रिक के लोगों को राशन दिया जा रहा था। हाल ही में हुई बैठक में इस प्रकरण का खुलासा हुआ था। बताया गया कि नैनीताल जिले की 26 राशन की दुकानों में बायोमीट्रिक प्रतिशत शून्य था, जबकि 163 दुकानों में बायोमीट्रिक प्रतिशत मात्र 15 से 17 फीसदी था। इस पर विभागीय सचिव ने संबंधित जिला पूर्ति अधिकारी को दस दिन की अनिवार्य छुट्टी पर भेजा था। जिस पर मंत्री रेखा आर्या ने कड़ी नाराजगी जाहिर करते हुए खाद्य आयुक्त द्वारा की गई कार्रवाई पर स्पष्टीकरण देने को कहा। खाद्य आयुक्त सचिन कुर्वे ने मंत्री को कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया बल्कि कई जिलों के जिला पूर्ति अधिकारियों के और स्थानांतरण कर दिए। मंत्री रेखा आर्या नैनीताल के जिला पूर्ति अधिकारी मनोज वर्मन को 10 दिन की अनिवार्य छुट्टी पर भेजने से पहले से नाराज थी और इसके बाद अधिकारियों के तबादलों से पूरे प्रकरण ने तूल पकड़ लिया है। रेखा आर्या ने इसके बाद मुख्य सचिव को पत्र लिखकर नाराजगी जताई। उन्होंने सचिन कुर्वे पर सख्त कार्रवाई करने की मांग की है। साथ ही इस प्रकरण को लेकर मुख्यमंत्री को भी शिकायत की है। इसके साथ ही मंत्री ने सचिव को हटाने की भी मांग कर डाली है। बताया जाता है कि सचिन कुर्वे ने मंत्री रेखा आर्या के पत्र का संज्ञान तक नहीं लिया। मंत्री रेखा आर्या के पत्र के बाद अब सचिन कुर्वे की तरफ से भी एक पत्र जारी हुआ है, जिसमें मंत्री की नाराजगी के बावजूद सचिन कुर्वे ने साफ कर दिया है कि ट्रांसफर कानूनी रूप से होकर ही रहेंगे।


खाद्य सचिव कुर्वे ने मंत्री रेखा आर्या के कार्यालय में अटैच श्याम आर्या का पिथौरागढ़, मुकेश कुमार का हरिद्वार, देहरादून के जिला पूर्ति अधिकारी जसवंत सिंह कंडारी का चमोली, हरिद्वार के जिला पूर्ति अधिकारी केके अग्रवाल का रुद्रप्रयाग, नैनीताल के जिला पूर्ति अधिकारी मनोज वर्मन को बागेश्वर और रुद्रप्रयाग के जिला पूर्ति अधिकारी मनोज डोभाल का नैनीताल तबादला किया है। कहा जा रहा है कि ये ट्रांसफर प्रक्रिया को अपनाए बिना आनन-फानन में किए गए हैं। ट्रांसफर के लिए पात्र अधिकारियों की विभाग की वेबसाइट पर न सूची जारी हुई न ही संबंधित अधिकारियों से तबादलों के लिए दस विकल्प लिए गए। तबादलों में पारदर्शिता के लिए सरकार की ओर से तबादला एक्ट बनाया गया है। एक्ट के तहत 30 अप्रैल तक विभागाध्यक्ष को मानक के अनुसार कार्यस्थल चिÐत करने थे, एक मई तक शासन, विभागाध्यक्ष, मंडल और जिला स्तर पर तबादला समितियों का गठन होना था। इसके बाद 15 मई तक हर संवर्ग के लिए सुगम और दुर्गम स्थल तय होने थे। इसके बाद 20 मई तक अनिवार्य तबादलों के लिए पात्र कार्मिकों से 10 इच्छित स्थानों के लिए विकल्प मांगे जाने थे। 31 मई तक अनुरोध के आधार पर आवेदन मांगे जाने थे। 25 से पांच जुलाई तक तबादला समिति की बैठक होनी थी। इसके बाद 10 जुलाई तक तबादला आदेश जारी होना था। विभागीय सचिव पर आरोप है कि उन्होंने तबादला एक्ट के मुताबिक प्रक्रिया को अपनाए बिना सारी कार्रवाई मात्र डेढ़ घंटे में पूरी कर दी।


खाद्य सचिव कुर्वे ने अपने पत्र में दावा किया है कि स्थानांतरण एक्ट में जब तबादले होते हैं तो किसी मंत्री की इजाजत नहीं ली जाती है। एक निर्धारित समय तक ही किसी अधिकारी को एक जगह पर तैनात किया जाता है। इसके मद्देनजर ही उन्होंने ट्रांसफर एक्ट का पालन करते हुए सभी अधिकारियों के स्थानांतरण किए हैं। ऐसे में उनके द्वारा एक बार तबादले की सूची जारी होने पर किसी कीमत पर भी स्थानांतरण को निरस्त नहीं किया जाएगा। सचिन कुर्वे ने अपने पत्र में कहा कि अगर ऐसा होता है तो विभाग में विवाद और अराजकता का माहौल फैल जाएगा। इसके साथ ही सचिव कुर्वे ने कैबिनेट मंत्री रेखा आर्या को लिखे पत्र में अधिनियम 2017 का भी हवाला दिया है। जिसमे उन्होंने कहा कि विभाग में समूह ख वर्ग के अधिकारी, जो कि जिला पूर्ति अधिकारी और क्षेत्रीय खाद्य अधिकारी होते हैं, उनके स्थानांतरण से पहले विभागीय सचिव और विभागीय मंत्री से अनुमोदन लेने की आवश्यकता नहीं होती है। सचिव कुर्वे ने अपने पत्र में स्पष्ट लिखा है कि इन स्थानांतरण के लिए स्थायी स्थानांतरण समिति का अनुमोदन जरूरी है, जो कि विभाग में पहले से ही गठित है। इसी समिति के अनुमोदन पर यह स्थानांतरण किए गये हैं। सचिव सचिन कुर्वे ने कहा साल 2018 और 2019 में भी यही प्रक्रिया अपनाई गई थी। उस समय भी मंत्री के अनुमोदन के बिना ही स्थानांतरण लिस्ट जारी की गई थी।


विवाद का केंद्र बना सचिन कुर्वे का यह स्थानांतरण पत्र


मंत्री रेखा आर्या ने इस पर कहा कि सचिव का यह सब कहना बिल्कुल सही नहीं है। शायद सचिव को एक्ट की जानकारी नहीं है। उन्होंने कहा कि हो सकता है कि निजी स्वार्थों की वजह से ऐसा कुछ किया गया हो, लिहाजा उन्होंने सचिव कार्मिक को पत्र लिखकर सचिन कुर्वे की गोपनीय प्रविष्टि से संबंधित मूल पत्रावली मांगी है। मंत्री ने कहा 6 जिला पूर्ति अधिकारियों के तबादला आदेश करना किसी भी तरह से न्यायसंगत नहीं है, जबकि इस मामले में उनसे पूछा ही नहीं गया है। उन्होंने कहा जिस तरह से विभाग में ट्रांसफर किये गये वे पूरी तरह से एक्ट का उल्लंघन है। मंत्री रेखा आर्या ने इस मामले पर कहा कि 20 जून को खाद्य सचिव कुर्वे ने उनकी इजाजत के बिना नैनीताल के जिला पूर्ति अधिकारी को अनिवार्य छुट्टी पर भेजा था। इस पर उन्होंने इस आदेश को रद्द करने और इस पर उनका अनुमोदन कराने के लिए उनसे जवाब-तलब किया था। खाद्य आयुक्त व विभागीय सचिव ने उनके निर्देश को मानने के बजाए उसी दिन छह जिला पूर्ति अधिकारियों के तबादले कर दिए, वह भी उनके अनुमोदन के बिना किए गये। तबादले इतनी जल्दबाजी में किए गए हैं कि इससे संबंधित बैठक के मिनिट्स में 22 जून 2022 की तारीख के बजाय 22 जून 2019 की तारीख लिखी गई है। संबंधित अधिकारियों ने भी बिना देखे इस पर साइन कर दिए।


जब डीएम ने निरुत्तर किया था मंत्री को
उत्तराखण्ड की कैबिनेट मंत्री रेखा आर्या का यह पहला मामला नहीं है जब वह किसी आईएएस अधिकारी से उलझी हों बल्कि इससे पहले भी कई मामले ऐसे सामने आ चुके हैं। 4 अप्रेल 2017 को अल्मोड़ा स्थित सर्किट हाउस में राज्यमंत्री रेखा आर्या विभागीय अधिकारियों की समीक्षा बैठक लेने पहुंची थी। जहां ही उन्होंने डीएम सविन बंसल से कुछ मामलों में आपत्ति जताई। वह बोली- ‘डीएम साहब जनशिकायतों के प्रति आपका रिस्पॉन्स नहीं रहता ऐसा क्यों’। इस पर डीएम बोले- ‘इसका जवाब जनता ही देगी। जनसमस्याओं का निदान उनकी प्राथमिकता में शामिल है, आम ग्रामीण भी उनसे सीधा आकर मिलता संतुष्ट होकर लौटता है।’ फिर राज्यमंत्री ने डीएम को यह कह कर घेरने का प्रयास किया कि ‘डीएम साहब! आप फोन भी रिसीव नहीं करते, ऐसा क्यों? ‘डीएम ने जवाब दिया जिलाधिकारी का फोन रिसीव होता है या नहीं इसका फीडबैक जनता से ले लीजिए। पास ही खड़े एसएसपी डीएस कुंवर की ओर देखने के बाद राज्यमंत्री ने लगे हाथ पूछ ही लिया कि उनके पति के खिलाफ दर्ज मुकदमे का क्या हुआ। इस पर डीएम शालीनता से बोले- ‘मैडम, आप अपने विभाग की समीक्षा बैठक लें। सार्वजनिक रूप से इस पर बात नहीं की जा सकती। वह मुख्यमंत्री, गृहमंत्री या गृहसचिव से ही बात करेंगे आपको अगर डीएम पसंद नहीं तो बदलवा दें।’ इस तल्खी के बाद विभागीय समीक्षा बैठक शुरू हुई। बताया जाता है कि तब राज्यमंत्री रेखा आर्या अपने पति बरेली निवासी गिरधारी लाल पप्पू के खिलाफ चुनाव के समय दर्ज हुए मुकदमों को वापस कराने के लिए आईएएस सविन बंसल पर अप्रत्यक्ष तौर पर दबाव डालने की कोशिश कर रही थी। लेकिन सविन बंसल की स्पष्टवादिता के सामने वह निरुत्तर हो गई।


निदेशक की गुमशुदगी को लिखा था पत्र
तत्कालीन राज्य मंत्री रेखा आर्या और महिला सशक्तीकरण एवं बाल विकास विभाग के निदेशक वी ़षणमुगम के बीच विवाद हुआ था। यह विवाद एक निजी आउटसोसिंग कंपनी को टेंडर जारी करने को लेकर हुआ। जिसे लेकर रेखा आर्या ने आपत्ति जताई थी। इसके मद्देनजर राज्यमंत्री ने निदेशक को कई बार मिलने के लिए भी बुलाया था। मगर बार-बार बुलाए जाने के बावजूद भी जब निदेशक मंत्री से मिलने नहीं पहुंचे तो उन्होंने निदेशक की गुमशुदगी को लेकर शिकायत पत्र डीआईजी देहरादून को भेजा था। मंत्री द्वारा देहरादून के एसएसपी को लिखा गया पत्र सियासी चर्चाओं में रहा था। इस पत्र में मंत्री रेखा ने लिखा था कि महिला सशक्तीकरण बाल विकास निदेशक के पद पर तैनात अपर सचिव 20 सितंबर से ‘गायब’ हैं। उनका फोन बंद है और उनसे संपर्क करने की कोशिशें कई बार नाकाम हो गई हैं। उन्होंने एसएसपी को पत्र में आगे लिखा था, ऐसा लगता है जैसे किसी ने निदेशक का अपहरण कर लिया है या फिर वह खुद ही अंडर ग्राउंड हो गए हैं। क्योंकि फिलहाल महिला सशक्तीकरण एवं बाल विकास विभाग में मानव संसाधन आपूर्ति के लिए निविदा प्रक्रिया गतिमान थी। इसमें गड़बड़ी और धांधली होने पर वह अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकते। ऐसी स्थिति में खुद को बचाने के लिए वह भूमिगत हो गए हैं। कृपया वी षणमुगम की खोजबीन कर उन्हें सकुशल लाए जाने की कार्रवाई सुनिश्चित करें। साथ ही उन्हें यह भी बताया जाए कि विभागीय मंत्री ने उन्हें तलब किया है। इसके बाद जब पुलिस घर पहुंची तो वी षणमुगम सही सलामत मिले।

 

sachin kurve

उन्होंने बताया कि वह क्वारंटीन हैं। इस पुरे मामले पर पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने ट्वीट कर मंत्री रेखा आर्या और तत्कालीन त्रिवेंद्र सरकार पर तंज कसा था। जिसमे उन्होंने लिखा, ‘‘मैं समझता हूं, मुझ जैसे राजनीतिक स्थिरता के वकीलों को भी अब चुप्पी साध लेनी चाहिए। हद हो गई है, सरकार की एक मंत्री अपने विभागाध्यक्ष, जो अपर सचिव (एडिशनल सेक्रेटरी) भी हैं, राज्य सरकार के उनको तलब करने के लिए (उनको हाजिर करवाने के लिये) पुलिस अधीक्षक को पत्र लिख रही हैं। पत्र सार्वजनिक हो रहा है। सरकार का इकबाल खत्म हो चुका है और भ्रष्टाचार के लिए सरकार का साहस खुली चुनौती दे रहा है। अब राज्य वासियों आप तय करिए कि इसकी सजा किसको दी जानी चाहिए? अपर सचिव को? मंत्री को या पूरी भाजपा सरकार को?’’ यह मामला इतना विवादास्पद हो गया था कि तत्कालीन त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार को राज्य मंत्री रेखा आर्या और आईएएस वी ़षणमुगम प्रकरण की जांच करानी पड़ी थी। महिला एवं बाल विकास विभाग में ऑउट सोसिंग एजेंसी के चयन को लेकर रेखा आर्या ने निदेशक पर वित्तीय अनिमियता के आरोप लगाए थे। तब से दोनों के बीच तनातनी चल रही थी। आईएएस षणमुगम ने मंत्री रेखा आर्या के साथ काम करने से इंकार कर दिया था तो वहीं मंत्री ने भी तेवर सख्त किए थे जिसके बाद मामले की जांच के आदेश दिए गए। जांच मनीषा पंवार को सौंपी गई थी। मनीषा पंवार की जांच रिपोर्ट में षणमुगम को क्लीन चिट मिली थी। जिसमें षणमुगम दोषी नहीं पाए गए। रिपोर्ट में साफ हुआ कि टेंडर प्रक्रिया में आईएएस षणमुगम की कोई गलती नहीं पाई गई। अपर सचिव षणमुगम के साथ विवादों में आने के उपरांत मंत्री रेखा आर्या की सचिव सौजन्या ने भी पद छोड़ दिया था। जिसके बाद अपर मुख्य सचिव मनीषा पवार को पद दिया गया था लेकिन उन्होंने भी 20 दिन होने के बाद भी इस पद को ज्वाइन नहीं किया था।


ट्रांसफर पर राधा से भी उलझी थी रेखा
रेखा आर्या की न जाने क्यों अधिकारियों से पट नहीं पाती है। इसको इससे समझा जा सकता है कि आमतौर पर शांत और सुलझी हुई मानी जाने वाली तत्कालीन प्रमुख सचिव राधा रतूड़ी को रेखा आर्या के साथ काम करना मुश्किल लगने लगा था और उन्होंने खुद ही विभाग छोड़ने के लिए पहल कर दी थी। राधा रतूड़ी ने लंबे समय से संभाल रखे महिला सशक्तीकरण, बाल विकास मंत्रालय को छोड़ने की इच्छा जताई थी। बताया जाता है कि तब विभाग की सचिव की मंत्री रेखा आर्या से नाराजगी इतनी बढ़ गई है कि रेखा आर्या के विभाग से छुटकारा पाने के लिए राधा रतूड़ी ने मुख्य सचिव को पत्र तक लिख दिया था। इसके पीछे का कारण भी विभागीय तबादले बताया गया था। जिस तरह वर्तमान में मंत्री रेखा आर्या सचिव कुर्वे के ट्रांसफर निरस्त कराना चाहती हैं इसी तरह उन्होंने विभागीय अधिकारियों के तबादलों को निरस्त करवा दिया था।


अधिकारी और मंत्री के बीच में योजनाएं जमीन पर नहीं उतर रही अगर इसको लेकर नाराजगी होती तो ठीक था। लेकिन इस प्रकरण में तो सीधा-सीधा मामला ट्रांसफर पोस्टिंग से जुड़ा है। मंत्री रेखा आर्या की ट्रांसफर पोस्टिंग को लेकर अपने अधिकारियों से हमेशा ही तनातनी होती रही है इस पूरे खेल को समझा जा सकता है कि आखिर अधिकारियों से मंत्री जी की नाराजगी सिर्फ ट्रांसफर और पोस्टिंग को लेकर ही क्यों होती है। इस प्रकरण में आईएएस अधिकारी ने सभी तथ्यों के साथ अपनी बातों को रखा है। साथ ही उन्होंने इसे नियम और न्याय संगत भी बताया है। जिन अधिकारियों पर भ्रष्टाचार के आरोप थे उन्हें अगर स्थानांतरित कर दिया गया तो इसे इतना बड़ा तूल क्यों दिया जा रहा हैं सबसे बड़ी बात यह है कि अब सरकार के कई मंत्री ट्रांसफर एक्ट का ही विरोध कर रहे हैं। वे चाहते हैं कि उनके विभाग को इस एक्ट से दूर रखा जाए। आखिर ऐसा क्या है इस ट्रांसफर एक्ट में जो भाजपा सरकार के मंत्री अपने विभागों को इस एक्ट से ही दूर रखना चाह रहे हैं।
करण माहरा, प्रदेश अध्यक्ष कांग्रेस

 

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