उत्तराखण्ड के गरुड़ में गरुड़ गंगा के बीचोंबीच बनाई जा रही बहुमंजिला पार्किंग परियोजना पर नैनीताल हाई कोर्ट ने रोक लगा दी है। शासनादेश दिनांक 7 जून 2024 के अनुसार यह निर्माण ‘ग्राम पाये’ में होना था, लेकिन इसे नदी के प्रवाह क्षेत्र में स्थानांतरित कर दिया गया। ब्रिडकुल द्वारा नियमों की अनदेखी कर भारी मशीनों से नदी में निर्माण शुरू कर दिया गया, जिससे पर्यावरणीय असंतुलन और बाढ़ जैसी आपदा की आशंका गहरा गई। जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट की खंडपीठ ने इस निर्माण पर तत्काल रोक लगाई है। यह निर्णय केवल कानूनी नहीं, पर्यावरणीय चेतावनी भी है
हरीश जोशी
(लेखक गरुड़ सिविल सोसायटी के संरक्षक हैं।)
उत्तराखण्ड के बागेश्वर जिले की तहसील गरुड़ के एक अत्यंत संवेदनशील भू-क्षेत्र में बन रही 22 करोड़ रुपए की बहुमंजिला पार्किंग परियोजना पर नैनीताल हाईकोर्ट ने तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी है। यह रोक एक जनहित याचिका के आधार पर लगाई गई, जिसमें कहा गया था कि यह निर्माण कार्य न केवल राज्य शासन के 7 जून 2024 के आदेश की अवहेलना कर रहा है, बल्कि गरुड़ गंगा जैसी प्राकृतिक धरोहर के अस्तित्व को भी खतरे में डाल रहा है। जनपद के ग्राम ‘पाये’ में इस पार्किंग को बनाने की योजना राज्य सरकार द्वारा बनाई गई थी, लेकिन कार्यदायी संस्था ब्रिडकुल, पिथौरागढ़ द्वारा परियोजना स्थल को मनमाने ढंग से बदलकर गरुड़ गंगा के प्रवाह क्षेत्र में निर्माण कार्य आरम्भ कर दिया गया। यह कार्य न केवल अवैध है, बल्कि इसके कारण भविष्य में भारी बाढ़, तटीय कटाव और स्थानीय पर्यावरण पर गम्भीर दुष्प्रभाव की आशंका व्यक्त की गई है।
न्यायालय का हस्तक्षेप
स्थानीय निवासी दिनेश चंद्र सिंह द्वारा दायर जनहित याचिका में स्पष्ट कहा गया कि जिस शासनादेश के तहत यह परियोजना स्वीकृत हुई थी, उसमें स्थल के रूप में ‘ग्राम पाये’ उल्लेखित है, लेकिन इसके उलट निर्माण कार्य गरुड़ नगर पंचायत के गोलू मार्केट टैक्सी स्टैंड के ठीक ऊपर गरुड़ गंगा के मध्य भाग में शुरू कर दिया गया। इस परियोजना के तहत 15 मीटर ऊंची और 96 मीटर लम्बी बहुमंजिला पार्किंग का निर्माण प्रस्तावित है। नैनीताल हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जी. नागेंद्र एवं न्यायमूर्ति आलोक मेहरा की खंडपीठ ने इस याचिका की सुनवाई करते हुए स्पष्ट आदेश दिए हैं कि अग्रिम आदेशों तक इस निर्माण कार्य पर रोक लगाई जाती है।
शासनादेश का उल्लंघन और तकनीकी हेर-फेर
7 जून 2024 को जारी शासनादेश के अनुसार, इस पार्किंग निर्माण का स्थान स्पष्ट रूप से ‘ग्राम पाये’ तय किया गया था। इसका उद्देश्य स्थानीय ट्रैफिक को व्यवस्थित करना और बाजार क्षेत्र पर बोझ कम करना था।लेकिन कार्यदायी संस्था ने इस आदेश को दरकिनार करते हुए नदी क्षेत्र में निर्माण शुरू कर दिया। यह कार्य न केवल प्रशासनिक शिथिलता का प्रमाण है, बल्कि जान-बूझकर नदी क्षेत्र को अतिक्रमण की ओर धकेलने का प्रयास भी प्रतीत होता है। क्या यह मात्र ‘सुविधा’ की बात है या इसके पीछे कोई भू-माफिया या निर्माण लाॅबी की भूमिका है, यह जांच का विषय बन चुका है।
पर्यावरणीय खतरा
गरुड़ गंगा, जो कि सरयू नदी की एक प्रमुख सहायक धारा है, न केवल धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि पर्यावरणीय संतुलन में भी इसकी अहम भूमिका है। इस नदी के मध्य में जेसीबी और भारी निर्माण सामग्री डालकर पांच मंजिला पार्किंग बनाना सीधे-सीधे नदी के प्रवाह को बाधित करना है। बारिश के मौसम में उत्तराखण्ड की नदियां अत्यधिक वेग से बहती हैं। ऐसी स्थिति में इस प्रकार की संरचना जलधारा को रोक सकती है, जिससे फ्लैश फ्लड, नदी मार्ग में परिवर्तन और निकटवर्ती बस्तियों में जलभराव की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। साथ ही यह निर्माण पारिस्थितिकीय प्रणाली को नुकसान पहुंचाने के साथ-साथ नीचे बसे गांवों और लोगों के जीवन के लिए खतरा बन सकता है। राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) के स्पष्ट निर्देश हैं कि किसी भी नदी के प्रवाह क्षेत्र या बाढ़ प्रभावित क्षेत्र में कोई स्थायी निर्माण नहीं किया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट के भी निर्देश हैं कि पारिस्थितिकीय रूप से संवेदनशील क्षेत्रों में निर्माण से पहले पर्यावरणीय प्रभाव का समुचित आकलन किया जाए। लेकिन गरुड़ गंगा पर बन रही यह परियोजना इन सभी मानकों की अवहेलना कर रही है। स्थानीय निवासियों और पर्यावरण कार्यकर्ताओं के अनुसार बिना ईएलए (पर्यावरणीय प्रभाव आकलन) के यह निर्माण कार्य शुरू किया गया है, जो कानूनन गलत है।
स्थानीय समाज की भूमिका और चेतावनी
गरुड़ सिविल सोसाइटी ने शासन से मांग की थी कि इस निर्माण को शुरू करने से पहले शासनादेश की सभी शर्तों का पालन किया जाए और इस क्षेत्र की पारिस्थितिकी की समुचित जांच हो। स्थानीय नागरिकों ने चेतावनी दी थी कि यह परियोजना अगर इसी तरह आगे बढ़ी, तो यह 22 करोड़ रुपए की बर्बादी ही नहीं, बल्कि एक बड़े मानव निर्मित आपदा को भी जन्म दे सकती है। सोसायटी का यह भी कहना है कि नदी के भीतर इस प्रकार की परियोजना की कल्पना करना ही त्रुटिपूर्ण है। उन्होंने इस मुद्दे को अदालत तक ले जाकर यह साबित किया है कि जब प्रशासन चुप हो जाए, तब समाज को आगे आना पड़ता है।
उत्तराखण्ड की नदियों पर हो रहा हमला
उत्तराखण्ड की अनेक नदियां जैसे भागीरथी, अलकनंदा, मंदाकिनी, और अब गरुड़ गंगा पिछले वर्षों में अनियंत्रित निर्माण, हाइड्रो प्रोजेक्ट्स, अवैध खनन और शहरीकरण की भेंट चढ़ती जा रही हैं। 2013 की केदारनाथ आपदा इसका एक स्पष्ट उदाहरण है, जब मंदाकिनी नदी के किनारे अनियंत्रित निर्माणों ने आपदा को और भयावह बना दिया। गरुड़ गंगा पर यह निर्माण उसी कहानी की पुनरावृत्ति का खतरा लिए हुए है। यह मात्र एक ‘पार्किंग’ नहीं, बल्कि भविष्य के किसी सम्भावित संकट की प्रस्तावना है।
क्या हैं सम्भावित समाधान?
- परियोजना की स्थल समीक्षा: निर्माण स्थल को मूल योजना यानी ‘ग्राम पाये’ में ही स्थानांतरित किया जाए।
जनसुनवाई अनिवार्य की जाए: स्थानीय निवासियों की राय के बिना कोई भी निर्माण परियोजना प्रारंभ न हो।
ईएलए को अनिवार्य बनाया जाए: पहाड़ी क्षेत्रों की प्रत्येक परियोजना के लिए पर्यावरणीय आकलन की प्रक्रिया अनिवार्य हो।
नदी पुनरुद्धार योजना: गरुड़ गंगा जैसे जलस्रोतों की रक्षा के लिए एक पृथक ‘नदी पुनरुद्धार नीति’ बने।
नियंत्रण और जवाबदेही: कार्यदायी संस्था और सम्बंधित अधिकारियों की जवाबदेही तय हो।
कुल मिलाकर गरुड़ गंगा पर बन रही यह बहुमंजिला पार्किंग परियोजना केवल प्रशासनिक उदासीनता या नियमों की अनदेखी का मामला नहीं है। यह उस बड़े प्रश्न की ओर इशारा करती है कि हम अपने पर्यावरणीय संसाधनों के साथ किस प्रकार का व्यवहार कर रहे हैं। नदी के प्रवाह को कंक्रीट से बांधना, उसकी आत्मा को मशीनों से कुचलना और उस पर पार्किंग जैसी योजनाएं थोपना, केवल ‘विकास’ की गलत परिभाषा को दर्शाता है। हाई कोर्ट का यह आदेश समय पर दिया गया हस्तक्षेप है, लेकिन इससे भी जरूरी है जनमानस का सजग रहना।
बात अपनी-अपनी
नदियों को बचाना हर नागरिक, सरकार व कोर्ट का कर्तव्य है। गरुड़ गंगा नदी के बीच बहाव में बन रहा बहु मंजिला कार पार्किंग का निर्माण आपदा को आमंत्रित करना है। इस निर्माण पर रोक लगाना जरूरी है।
एडवोकेट डी.के. जोशी, हाईकोर्ट नैनीताल
एनजीटी और पर्यावरण के नियमों को ताक पर रख कर हो रहे निर्माण कार्य वो भी बड़े सरकारी बजट से घोर लापरवाही है जिसके विरुद्ध न्यायालय की शरण लेनी पड़ी और माननीय उच्च न्यायालय ने निर्माण पर रोक लगा दी है।
दिनेश सिंह नेगी, याचिकाकर्ता
करोड़ों रुपए की लागत से निर्माणाधीन मल्टी लेवल पार्किंग की निर्माण एजेंसी को स्थानीय राजनीतिक दल,व्यापार संगठन और निकाय को विश्वास में लेकर आम राय बनाकर स्थल चयन करना चाहिए था। नदी के साथ छेड़छाड़ को सहन नहीं किया जा सकता,मैं माननीय उच्च न्यायालय के निर्णय के साथ हूं। जहां के लिए प्रोजेक्ट स्वीकृत है उसी स्थान पर निर्माण होना चाहिए।
ललित फस्र्वाणा, पूर्व विधायक