मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी अब बेलगाम नौकरशाही के पर कतरने की दिशा में निर्णायक रूप से आगे बढ़ रहे हैं। मुख्यमंत्री न केवल एग्रेसिव मोड में हैं, बल्कि एग्रेसिव मूड में भी हैं। यह अब स्पष्ट रूप से नजर आ रहा है। हरिद्वार नगर निगम द्वारा किए गए एक बड़े जमीन खरीद घोटाले पर ‘दि संडे पोस्ट’ में प्रकाशित खबर के बाद मुख्यमंत्री ने एक ‘धाकड़’ एक्शन लिया है। इस घोटाले में 15 करोड़ की जमीन को 56 करोड़ में खरीदे जाने का मामला उजागर हुआ था। रिपोर्ट सामने आते ही मुख्यमंत्री ने दो आईएएस और एक पीसीएस अधिकारी समेत 12 अफसरों को निलम्बित कर दिया। इससे पहले भ्रष्टाचार के मामलों में एक आईएएस को जेल भेजा गया, एक पीसीएस अधिकारी के खिलाफ खुली विजिलेंस जांच जारी है। उद्यान निदेशक समेत कई अधिकारियों पर भी गाज गिर चुकी है। भ्रष्टाचार के खिलाफ उनकी ‘जीरो टाॅलरेंस’ नीति अब महज नारा नहीं, बल्कि एक कड़वी सच्चाई बनकर नौकरशाही पर असर दिखा रही है। मुख्यमंत्री ने सख्त शब्दों में कहा- ‘‘उत्तराखण्ड में अब पद नहीं, जवाबदेही चलेगी’’
उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त रुख अख्तियार करते हुए राज्य के प्रशासनिक तंत्र में बड़े पैमाने पर कार्रवाई की है। इस कड़ी में गत चार जून को हरिद्वार नगर निगम में हुए 54 करोड़ रुपए के भूमि घोटाले को लेकर एक निर्णायक कदम उठाते हुए दो आईएएस और एक पीसीएस अधिकारी समेत कुल 12 अधिकारियों को तत्काल प्रभाव से निलम्बित करने का आदेश दिया। यह कार्रवाई न केवल राज्य में पहली बार इतनी बड़ी संख्या में वरिष्ठ अफसरों के खिलाफ हुई है, बल्कि यह मुख्यमंत्री की ‘जीरो टाॅलरेंस’ नीति का प्रत्यक्ष प्रमाण भी है।
घोटाले की शुरुआत हरिद्वार नगर निगम द्वारा एक विवादास्पद भूमि खरीद से हुई, जिसमें 15 करोड़ रुपए मूल्य की कृषि भूमि को 56 करोड़ रुपए में खरीदा गया। इस खरीद प्रक्रिया में न केवल भूमि का श्रेणी परिवर्तन नियमों के विरुद्ध जल्दबाजी में किया गया, बल्कि भूमि चयन से लेकर भुगतान और निरीक्षण तक कई स्तरों पर अनियमितताएं पाई गईं। सचिवालय स्तर पर की गई जांच में पाया गया कि लैंड पुलिंग कमेटी से स्वीकृति लिए बिना ही यह भूमि अधिग्रहण किया गया। न केवल यह खरीद वित्तीय दृष्टि से अपारदर्शी थी, बल्कि इससे नगर निगम को भारी आर्थिक नुकसान भी हुआ।
इस मामले में जिन अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई हुई उनमें हरिद्वार के तत्कालीन जिलाधिकारी कर्मेंद्र सिंह, नगर आयुक्त वरुण चैधरी, उपजिलाधिकारी अजयवीर सिंह, वरिष्ठ वित्त अधिकारी निकिता बिष्ट, कानूनगो राजेश कुमार, मुख्य प्रशासनिक अधिकारी कमलदास, वरिष्ठ वैयक्तिक सहायक विक्की शामिल हैं। इनके अलावा पहले से निलम्बित प्रभारी सहायक नगर आयुक्त रविंद्र कुमार दयाल, प्रभारी अधिशासी अभियंता आनंद सिंह मिश्रवाण, कर एवं राजस्व अधीक्षक लक्ष्मीकांत भट्ट और अवर अभियंता दिनेश चंद्र कांडपाल के खिलाफ भी कार्रवाई की पुष्टि की गई। सम्पत्ति लिपिक वेदपाल का सेवा विस्तार समाप्त करते हुए उनके विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्रवाई की प्रक्रिया भी शुरू कर दी गई है।
इस कार्रवाई के बाद मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने स्पष्ट शब्दों में कहा, ‘‘हमारी सरकार में पद नहीं, जवाबदेही महत्वपूर्ण है। यदि कोई अधिकारी जनहित की उपेक्षा करता है या भ्रष्टाचार में लिप्त पाया जाता है, तो चाहे वह कितना भी वरिष्ठ क्यों न हो, कार्रवाई अवश्य होगी।’’ उन्होंने यह भी कहा कि इस घोटाले की जांच रिपोर्ट आईएएस अधिकारी रणवीर सिंह चैहान द्वारा सौंपी गई थी, जिसमें स्पष्ट रूप से भूमि खरीद प्रक्रिया को नियमविरुद्ध बताया गया था। उसी के आधार पर यह कठोर निर्णय लिया गया।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी द्वारा उठाए जा रहे कठोर कदम न केवल नौकरशाही में अनुशासन स्थापित कर रहे हैं, बल्कि आम जनता में यह भरोसा जगा रहे हैं कि अगर वे भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाएंगे तो सरकार उनके साथ खड़ी होगी। यह पहली बार है जब किसी राज्य ने इस स्तर पर वरिष्ठ आईएएस, पीसीएस, इंजीनियर, लेखपाल और निदेशकों को एक ही नीति के तहत कटघरे में खड़ा किया है। इससे स्पष्ट है कि उत्तराखण्ड में अब न तो भ्रष्टाचार के लिए और न ही उसे संरक्षण देने वालों के लिए कोई जगह है।
शंकर कोरंगा, उपाध्यक्ष, जलागम परिषद् उत्तराखण्ड
हरिद्वार की इस ताजा कार्रवाई से पहले भी मुख्यमंत्री धामी ने वर्ष 2023 में कई ऐसे उदाहरण पेश किए थे, जिनमें भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की गई। सबसे प्रमुख मामला था सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी रामविलास यादव का, जिन्हें विजिलेंस जांच के बाद आय से 540 गुना अधिक सम्पत्ति रखने के आरोप में गिरफ्तार किया गया। रामविलास यादव पर मनी लाॅन्ड्रिंग के आरोप भी लगे और बाद में उन्हें न्यायिक हिरासत में भेजा गया। मुख्यमंत्री कार्यालय ने इस पर तत्काल संज्ञान लेते हुए उनकी सेवाएं निलम्बित कर दी थीं। यह पहला मौका था जब किसी प्रमोटेड आईएएस अधिकारी के खिलाफ इतनी बड़ी कार्रवाई की गई थी।
इसके बाद जांच के दायरे में आईं वरिष्ठ पीसीएस अधिकारी निधि यादव, जिन पर भी आय से अधिक सम्पत्ति के गम्भीर आरोप लगे। उनके खिलाफ विजिलेंस ने खुली जांच शुरू की और प्रमोशन पर रोक लगा दी गई। निधि यादव लम्बे समय से सरकार के विभिन्न विभागों में महत्वपूर्ण पदों पर कार्यरत रही हैं और इस कारण उनकी सम्पत्ति को लेकर उठे सवालों ने शासन को गम्भीर स्थिति में ला दिया।
इसी दौरान उद्यान विभाग के निदेशक डाॅ. हरविंदर सिंह बवेजा के खिलाफ वित्तीय अनियमितताओं के आरोपों की जांच शुरू हुई। बवेजा पर आरोप था कि उन्होंने विभागीय बजट का दुरुपयोग किया और अपने आवास व निजी नर्सरी पर भारी सरकारी धन खर्च किया। मुख्यमंत्री के निर्देश पर गठित एसआईटी ने प्रारम्भिक जांच में इन आरोपों को सही पाया, जिसके बाद उन्हें पद से निलम्बित कर दिया गया।
इतना ही नहीं, जून 2023 में चार अन्य अधिकारियों के खिलाफ भी भ्रष्टाचार के आरोप में कार्रवाई हुई। पंतनगर कृषि विश्वविद्यालय से जुड़े एक वरिष्ठ भंडार अधिकारी के खिलाफ आय से अधिक सम्पत्ति का मामला सामने आया, जिस पर विजिलेंस जांच शुरू की गई और प्राथमिकी दर्ज हुई। इसी तरह कोचर काॅलोनी विवाद में दो लेखपालों के खिलाफ मुकदमा दर्ज हुआ, जिसमें 25 साल पुराने भ्रष्टाचार मामले को फिर से खोला गया। लक्सर तहसील, हरिद्वार में एक लेखपाल महिपाल सिंह को घूस लेते हुए रंगेहाथ पकड़ा गया और उसे भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत गिरफ्तार किया गया। देहरादून में उप निबंधक रामदत्त मिश्र को मुख्यमंत्री के औचक निरीक्षण में अभिलेखों में अनियमितता पाए जाने पर निलम्बित कर दिया गया। चमोली जिले में जल संस्थान और ऊर्जा निगम के अभियंताओं को भी लापरवाही बरतने के मामले में निलम्बन का सामना करना पड़ा। बीते तीन सालों में धामी सरकार ने भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के मद्देनजर 150 से अधिक अधिकारियों एवं कर्मचारियों पर कार्यवाही की है।
कौड़ी की और कूड़े की जमीन को करोड़ों में खरीदने वाला यह मामला अति गम्भीर है। जमीन का लैंड यूज परिवर्तित कर इसे एनएच-74 की तर्ज पर अंजाम दिया गया है। मैंने इस मुद्दे पर जिस दिन धरना देने की घोषणा की थी, मुख्यमंत्री ने उसी दिन कार्रवाई कर दी, लेकिन सीएम ने आरोपी अधिकारियों को सतर्कता और कार्मिक विभाग के साथ अटैच कर गलत किया है। आरोपी अधिकारियों को इन दोनों विभागों से अटैच नहीं किया जाना चाहिए था क्योंकि इससे कार्यवाही प्रभावित हो सकती है।
करण माहरा, अध्यक्ष, उत्तराखण्ड कांग्रेस
वन विभाग भी मुख्यमंत्री की निगाहों से अछूता नहीं रहा है। यहां तैनात रहे आईएफएस किशनचंद पर पद के दुरुपयोग और आय से अधिक सम्पत्ति मामले में कड़ी कार्रवाई की गई। इसके अलावा आईएफएस अधिकारी रहे आरबीएस रावत पर यूकेएसएससी परीक्षा धांधली मामले में कार्रवाई कर उन्हें जेल भेजा गया। विभाग के 16 आईएफएस अधिकारियों के खिलाफ लम्बित जांचों की स्थिति पर मुख्यमंत्री ने नाराजगी जताते हुए प्रमुख सचिव को त्वरित रिपोर्ट सौंपने के निर्देश दिए। दो ऐसे अधिकारियों की जांच अब तक पूरी नहीं हुई, जो इस बीच सेवानिवृत्त हो चुके हैं या जिनकी मृत्यु हो चुकी है। बावजूद इसके, मुख्यमंत्री ने स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि मामले की गम्भीरता को देखते हुए जांच को हर स्थिति में पूरा किया जाए।
मुख्यमंत्री ने हाल ही में दिए एक सार्वजनिक बयान में कहा, ‘‘भ्रष्टाचार के लिए राज्य में कोई जगह नहीं है। उत्तराखण्ड देवभूमि है और हम इसे भ्रष्टाचार मुक्त बनाकर नई कार्य संस्कृति की ओर बढ़ना चाहते हैं।’’ उन्होंने यह भी जोड़ा कि ‘‘अब समय आ गया है कि शासन व्यवस्था में पारदर्शिता, जवाबदेही और समयबद्धता सर्वोपरि हो।’’