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Uttarakhand

जनता त्रस्त नौकरशाह मस्त

भय, भूख और भ्रष्टाचार का समूल नाश जिस भाजपा का कभी घोषित लक्ष्य रहा हो, उसकी सरकार में भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों से घिरे आईएएस अफसर पंकज कुमार पाण्डेय की तूती बोलना उत्तराखण्ड भाजपा और वहां की सरकार को कठघरे में खड़ा कर देता है। पूर्व में भ्रष्टाचार के आरोप चलते सस्पेंड किए जा चुके पंकज पाण्डेय अब अपनी पत्नी के अहं को संतुष्ट करने के लिए एक वरिष्ठ महिला डॉक्टर को प्रताड़ित करने के चलते चर्चा में हैं। प्रश्न लेकिन इस ताजातरीन घटना से कहीं अधिक यह महत्वपूर्ण है कि हमारे राजनेताओं को ऐसे अहंकारी और विवादित छवि के अफसर क्योंकर इतना सुहाते हैं?

उत्तराखण्ड में विगत बीस वर्षों में सत्ता और शासन का अहंकार कई बार सामने आ चुका है, जिसमें सरकार चलाने वाले राजनेताओं और नौकरशाहों में अपने आप को सभी नियम-कानून से ऊपर मानने की प्रवृत्ति देखी गई है। पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने अपने जनता दरबार कार्यक्रम में एक महिला शिक्षिका उत्तरा पंत बहुगुणा को न सिर्फ बुरी तरह से झिड़का था बल्कि उसे गिरफ्तार करवाने की चेतावनी तक दे डाली थी। उस शिक्षिका का दोष सिर्फ इतना भर था कि दो दशक से भी ज्यादा समय से पर्वतीय क्षेत्र में सेवा देने के बाद वह अपने रिटायरमेंट की आयु में मैदानी क्षेत्र में अपना स्थानांतरण करवाने के लिए मुख्यमंत्री के जनता दरबार में अपनी फरियाद लेकर पहुंच गई थी। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत का यह कदम उनके सत्ता का अहंकार के तौर पर देखा गया और सरकार की जमकर फजीहत तो हुई, साथ ही यह मामला अंतरराष्ट्रीय मीडिया तक में खूब छाया रहा।

राज्य की नौकरशाही के बारे में भी इस तरह के कई प्रमाण समय-समय पर सामने आते रहे हैं जिसमें वरिष्ठ नौकरशाहों द्वारा अपने अधीनस्थों से नाराज होकर उनका उत्पीड़न किया गया है। गंभीर बात तो यह है कि इन मामलों में विभागीय उत्पीड़न के अलावा यौन उत्पीड़न तक किए जाने के मामले सामने आ चुके हैं। पुष्कर सिंह धामी के दूसरे मुख्यमंत्रित्व काल में स्वास्थ्य सचिव पंकज कुमार पाण्डेय ने सत्ता की हनक चलते दून मेडिकल कॉलेज की एक महिला चिकित्सक का स्थानांतरण सिर्फ इसलिए दिया क्योंकि स्वास्थ्य सचिव की पत्नी को उक्त महिला चिकित्सक का व्यवहार सही नहीं लगा इसलिए उनके अहंकार की तुष्टि के लिए स्थानांतरण किए जाने के तत्काल आदेश जारी कर दिए गए।


दरअसल, देखा जाए तो यह मामला राज्य के लिए कोई नया नहीं है। जानकारी के अनुसार 31 मार्च को सामान्य दिनों की ही तरह दून मेडिकल कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. निधि उनियाल अपनी ओपीडी में मरीजों को देख रही थी कि अचानक से उन्हें स्वास्थ्य सचिव पंकज कुमार पाण्डेय की धर्मपत्नी की जांच करने के लिए उनके आवास पर जाने को कहा गया। डॉ. उनियाल ने ओपीडी में मरीजों की भीड़ होने के चलते असमर्थता व्यक्त की लेकिन अस्पताल प्रशासन के दबाब चलते उन्हें अपने साथ दो सहायक स्टॉफ को लेकर स्वास्थ्य सचिव के आवास में उनकी पत्नी अनुजा पाण्डेय का स्वास्थ्य परीक्षण करने जाना पड़ा। सचिव के घर पहुंच जब डॉ. उनियाल अनुजा का ब्लड प्रेशर देखने लगी तो उन्हें पता चला कि ब्लड प्रेशर मापने की मशीन कार में ही रह गई है जिस पर उन्होंने अपने सहायक को मशीन गाड़ी से लाने को भेजा। आरोप है कि ब्लड प्रेशर मशीन के कार में छूटने को लेकर अनुजा पाण्डेय बेहद नाराज हो गईं और फोन पर किसी को इस बात को लेकर शिकायत करने लगी। साथ ही डॉ. उनियाल को भी उलाहने देने लगी। दोनों के बीच बहस के बाद डॉ. उनियाल अपने सहायकों के साथ वापस आ गई और ओपीडी में फिर से मरीजों को देखने लगीं।

डॉ. उनियाल को अस्पताल प्रशासन द्वारा कहा गया कि वे स्वास्थ्य सचिव पाण्डेय की पत्नी से क्षमा मांग लें, परंतु डॉ. उनियाल ने माफी मांगने से साफ इंकार कर दिया तो कुछ ही देर में डॉ. उनियाल को उनका स्थानांतरण आदेश उनके व्हाट्सएप नंबर पर मिला जिसमें उनका स्थानांतरण सोबन सिंह जीना राजकीय आयुर्विज्ञान एवं शोध संस्थान अल्मोड़ा में एसोसिएट प्रोफेसर के तौर पर किए जाने का उल्लेख किया गया है। डॉ. उनियाल ने इस बारे में जानकारी ली तो उनको बताया गया कि उनका तबादले का आदेश जारी हो गया है। अपने साथ किए गए दुर्व्यवहार और बगैर किसी वाजिब कारण जबरन स्थानांतरण किए जाने पर डॉ. उनियाल ने अपना त्यागपत्र सचिव स्वास्थ्य और शिक्षा को भेज दिया। त्यागपत्र में उन्होंने सभी बातों का जिक्र करते हुए स्वयं उनका शोषण किए जाने का भी उल्लेख किया है।

डॉ. उनियाल द्वारा इस तरह से त्याग पत्र देने की खबर सामने आते ही दून मेडिकल कॉलेज और शासन में हड़कंप मच गया। साथ ही सोशल मीडिया में इस बात को लेकर तमाम तरह की चर्चाएं होने लगी और इस मामले को भाजपा सरकार के कार्यकाल में महिलाओं के उत्पीड़न से जोड़ा जाने लगा। यहां तक कि इस मामले को ‘रुपहाड़ की बेटी को इंसाफ दो’ मुहिम शुरू कर दी गई। कांग्रेस, उक्रांद और अन्य सामाजिक संगठनों के निशाने पर सरकार और स्वास्थ्य सचिव को लेकर तमाम तरह की पोस्ट वायरल होने के साथ ही मुख्यमंत्री धामी एक्टिव हो गए। उन्होंने डॉ. उनियाल का स्थानांतरण रद्द करते हुए मुख्य सचिव एसएस सिंधु को इस मामले की जांच के लिए एक कमेटी बनाने के आदेश भी जारी कर दिए। फिलहाल मामला शासन की कमेटी की जांच पर टिका है। डॉ. उनियाल ने अभी तक अपना त्यागपत्र वापस नहीं लिया है और न ही वे अपनी नौकरी पर वापस गई हैं।

इस पूरे प्रकरण में सरकार अपने आप को बचाने का प्रयास करती दिखाई दे रही है और जांच के बाद कड़ी कार्यवाही करने की बात कह रही है। लेकिन हैरत की बात यह हे कि डॉ. निधि उनियाल का स्थानांतरण स्वयं प्रदेश के स्वास्थ्य और चिकित्सा शिक्षा मंत्री धनसिंह रावत के ही द्वारा अनुमोदित किया गया है। बावजूद इसके स्वास्थ्य मंत्री इस मामले में महिला चिकित्सक की गरिमा और आत्मसम्मान को बरकरार रखे जाने के बड़े-बड़े दावे कर रहे हैं। जबकि हकीकत में इसके लिए स्वास्थ्य मंत्री भी उतने ही जिम्मेदार हैं जितना दून अस्पताल प्रशासन, स्वास्थ्य सचिव और उनका विभागीय अमला है।

मामले में कई ऐसी बाते सामने आई हैं जिनमें सबसे चौंकाने वाली बात तो यह है कि राज्य के बड़े अधिकारियों और उनके परिजनों के स्वास्थ्य परीक्ष

ण करने के लिए सरकारी चिकित्सकों को अफसरों के आवासों में भेजे जाने की परिपाटी चलाई जा रही है जबकि नियमों के अनुसार मुख्यमंत्री अथवा राज्यपाल को ही इस तरह की सुविधा प्रोटोकॉल के तहत मिलती है, अन्य कोई भी चाहे वह कितना भी उच्चाधिकारी यहां तक कि मुख्य सचिव ही क्यों न हो, को इस प्रकार की सुविधा अनुमान्य नहीं है। चूंकि यहां पर बात अपने ही विभागीय सचिव की पत्नी की स्वास्थ्य जांच का था इसलिए नियम न होने के बावजूद डॉ. उनियाल को सचिव के आवास पर भेजा गया जहां उनके साथ दुर्व्यवहार तो किया ही गया साथ ही नोकरशाही की हनक को पूरा करने के लिए उन्हें दंडित कर स्थानांतरण कर दिया गया। अब प्रांतीय चिकित्सक संघ भी इस मामले में मुखर हो चुका है। साथ ही दून अस्पताल के डॉ. और स्टॉफ भी वीआईपी के आवास में आपातकाल स्थिति को छोड़कर बगैर लिखित आदेश के स्वास्थ्य जांच के लिए नहीं जाने का निर्णय ले चुका है

इस प्रकरण के सूत्रधार स्वास्थ्य सचिव पकंज कुमार पाण्डेय राज्य के सबसे चर्चित भूमि मुआवजा घोटाला एनएच 74 के मामले में भी आरोपित रह चुके हैं। इस मामले में उनको निलंबित भी किया जा चुका है। हालांकि तत्कालीन सरकार के मुखिया त्रिवेंद्र रावत के खासे करीबी होने के चलते पाण्डेय के कई मामलों को नजर अंदाज किया जाता रहा है जिसमें एनएच 74 के मामले में उनका निलंबन भी न सिर्फ वापस किया गया बल्कि उनको कई बड़े विभागों का दायित्व भी दिया गया जिसमें स्वास्थ्य सचिव का पद भी शामिल है।

एनएच 74 के फर्जी मुआवजा घोटाले में पकंज पाण्डेय की भूमिका को लेकर अब सीबीआई जांच चल रही है। हाल ही में सीबीआई ने इस प्रकरण से जुड़े एक उच्चाधिकारी के आवास पर छापा भी डाला है। त्रिवेंद्र सरकार में पंकज पाण्डेय की धमक इतनी बड़ी थी कि वे कई महत्वपूर्ण विभागों का जिम्मा संभाल रहे थे। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत के खास और चहेते अफसर होने के चलते वह सूचना महानिदेशक के अलावा प्रधानमंत्री मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट कौशल विकास मिशन के सचिव और निदेशक के पद पर तैनात थे। इस योजना में बड़े ही सुनियोजित तरीके से घोटाला किए जाने का मामला सामने आ चुका है। ‘दि संडे पोस्ट’ ने ‘ड्रीम प्रोजेक्ट पर घोटाले की घुन’ शीषर्क से दो भागों में समाचार प्रकाशित किया था जिसमें बड़े स्तर पर घोटाले को अंजाम दिया गया। ‘दि संडे पोस्ट’ में खबर छपने के बाद सरकार ने कौशल विकास मिशन के प्रशासनिक ढांचे में बदलाव किया था।

उल्लेखनीय है कि तत्कालीन कौशल विकास मंत्री हरक सिंह रावत ने इस योजना में सचिव पंकज पाण्डेय द्वारा बड़े स्तर पर भ्रष्टाचार और अनियमितता बरतने के किए गंभीर आरोप लगाए थे। हरक सिंह रावत ने इशारों-इशारों में तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत को भी इसमें लपेट लिया था। त्रिवेंद्र रावत कौशल विकास मिशन के विभागीय मंत्री भी थे और हरक सिंह रावत को यह विभाग मिलने से पूर्व उनके ही पास था। हरक सिंह रावत ने इस पूरे मामले में भ्रष्टाचार और घोटाले की बात सामने आने पर मुख्यमंत्री से पूछने की बात कहकर सनसनी मचा दी थी। इसके बाद पाण्डेय से कौशल विकास ओैर सूचना महानिदेशक का पद वापस ले लिया गया था।

डॉ. निधि उनियाल प्रकरण में साफ तौर पर प्रदेश की अफसरशाही के अहंकार का मामला सामने आया है जबकि पूर्व में कई मामले इस तरह से सामने आ चुके हैं। हालत इस कदर हो चुके हैं कि सरकार और मुख्य सचिव को पत्र लिखने पर मजबूर होना पड़ा है। त्रिवेंद्र सरकार के समय तो मुख्य सचिव को दो बार राज्य के सभी विभागों के विभागाध्यक्षों को विधायकों और सांसदों के पत्रों का संज्ञान लेने और उनके पत्रों पर कार्यवाही करने के आदेश तक जारी करने पड़े। हैरत की बात यह हे कि दो-दो मुख्य सचिव तब बदले गए और दोनों ही मुख्य सचिवों को इस तरह के पत्र लिखने पड़े।

सीएम सौम्य, अफसर अहंकारी


जहां एक ओर इस प्रकरण में अफसरों और उनके परिवार के अहंकार की बात सामने आई है वहीं मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के परिवार की सौम्यता भी सामने आई है। अति विशिष्ट परिवार के प्रोटोकॉल में होने के बावजूद मुख्यमंत्री की माता बगैर किसी लाव-लश्कर के ही अपनी स्वास्थ्य जांच के लिए दून के जाने माने न्यूरो सर्जन डॉ. महेश कुड़ियल के नर्सिंग होम में पहुंच गईं। बताया जा रहा है कि मुख्यमंत्री की माता जी कई बार इसी तरह से अपना ईलाज करवाने के लिए स्वयं चिकित्सक के पास जाती रहती हैं। जबकि प्रदेश के प्रोटोकॉल नियम के अनुसार उनके स्वास्थ्य जांच और उपचार के लिए उनके आवास में किसी भी चिकित्सक को बुलाया जा सकता है। इसके विपरीत स्वास्थ्य सचिव की पत्नी अनुजा पाण्डेय पहले भी हनक दिखाने के मामले में चर्चित रही हैं। इस प्रकरण के बाद अनुजा पाण्डेय का एक वीडियो तेजी से वायरल हो रहा है जिसमें दस वर्ष पूर्व बंगलौर में उनके द्वारा एक महिला पुलिस अधिकारी को थप्पड़ मारने का मामला है।

सोशल मीडिया में दस वर्ष पूर्व 31 जनवरी का पूरा मामला बताया जा रहा है जिसमें कोरामंगला खेल गांव में अनुजा पाण्डेय द्वारा वीआईपी श्रेणी के गेट से प्रवेश को लेकर बताया जा रहा है। इसमें बताया गया हे कि सुरक्षा में तैनात महिला पुलिस
इंस्पेक्टर अंजुमाला नायक द्वारा अनुजा पाण्डेय को भीड़ ज्यादा होने के चलते रुकने को कहा गया लेकिन वह उनसे विवाद करने लगी और इसी विवाद में उन्होंने उक्त महिला पुलिस अधिकारी को थप्पड़ तक मार दिया। इस मामले में अनुजा पाण्डेय को गिरफ्तार किया गया और आईपीसी की धारा 353 के तहत मामला दर्ज किया गया था।

यह दोनों मामले अपने आप में ही सब कुछ कह रहे हैं। एक तरफ मुख्यमंत्री की मां, जिनको प्रोटोकॉल के तहत सभी सुविधाएं अनुमान्य है लेकिन वे सामान्य लोगां की ही तरह चिकित्सक के पास स्वयं अपने उपचार के लिए जा रही हैं तो दूसरी ओर शासन की हनक लिए हुए अनुजा पाण्डेय हैं जो कि किसी भी प्रोटोकॉल के तहत अपने आवास में सरकारी चिकित्सक को बुलाने की अधिकृत भी नहीं है, के लिए सरकारी डॉक्टर को भेजा जाता है।

बात अपनी-अपनी
देखिए यह मामला सामान्य स्थानांतरण का है। ट्रांसफर का एक प्रोसेस होता है उसके तहत ही किया गया है। जहां जरूरत होगी वहां भेजा जाएगा। जो आरोप लगाए जा रहे हैं उनकी जांच कमेटी करेगी उसमें सब आ जाएगा। ट्रांसफर में स्वयं मंत्री जी ने अनुमोदन किया है। मैंने मंत्री जी से अनुमोदन लिया है। बगैर विभागीय मंत्री जी के अनुमोदन से तो किसी का भी ट्रांसफर हो ही नहीं सकता।
पंकज कुमार पाण्डेय, सचिव स्वास्थ्य

मुझे जो कहना था मैं कह चुकी हूं, अब मेरे पास इसमें बोलने के लिए कुछ नहीं है। मैंने अपना त्यागपत्र वापस नहीं लिया है।
डॉ.. निधि उनियाल

यह पूरा मामला महिलाओं के सम्मान से जुड़ा है। एक डॉक्टर को सिर्फ इसलिए ट्रांसफर कर दिया गया है कि स्वास्थ्य सचिव की पत्नी का दबाव है। पहले तो उस डॉक्टर का सम्मान करना चाहिए जो कि नियम न होते हुए भी स्वास्थ्य सचिव की पत्नी को देखने उनके आवास में गई और फिर वहां उस डॉक्टर का अपमान किया जाता है। माफी मांगने को कहा जाता है, माफी नहीं मांगने पर उसका ट्रांसफर कर दिया गया है। मुख्यमंत्री जी को धन्यवाद देती हूं कि उन्होंने इस मामले को संज्ञान में लिया है और ट्रांसफर रद्द किया है। लेकिन स्वास्थ्य सचिव पर कोई कार्यवाही क्यों नहीं हुई है? यह स्वास्थ्य सचिव अपनी पत्नी के बीमार होने पर त्वरित कार्यवाही कर रहे हैं तब से कहां थे जब हजारों लोग कोरोना से मर रहे थे? कोरोनाकाल में पूरा स्वास्थ्य सिस्टम लाचार हो गया था।
गरिमा दासौनी, प्रदेश प्रवक्ता कांग्रेस

इस प्रदेश का दुर्भाग्य है कि इसको नौकरशाह चला रहे हैं न कि राजनेता। सभी राजनेताओं की कुंडली नौकरशाहों को पता है जिसके कारण वे इस तरह से निरंकुश हो गए हैं और वे जनता के हित की बजाय अपने और राजनेताओं के हितों की बात करते हैं। पंकज पाण्डेय पर भ्रष्टाचार के कई मामले सामने आ चुके हैं। सस्पेंड भी किया गया लेकिन उसी सरकार ने उन्हें वापस लिया और बड़े विभागों में बैठा दिया। उत्तराखण्ड के लोगों के लिए उत्तराखण्ड में कोई स्थान नहीं है। इन्हीं नौकरशाहों ने पूर्व में सरकारी विभागों में अपने प्रदेश के लोगों को पिछले दरवाजे से भर्ती किया था और आज भी कर रहे हैं। इस मामले में सरकार भी पूरी तरह से जिम्मेदार है। स्वास्थ्य मंत्री को इसकी जिम्मेदारी लेनी पड़ेगी। उक्रांद अब इस मामले और इस तरह के मामलों, जिसमें उत्तराखण्ड की अस्मिता पर चोट पहुंचाई जा रही हो, को लेकर चुप नहीं बैठने वाली। हम पूरे प्रदेश में बड़ा आंदोलन खड़ा करने वाले है।
शिव प्रसाद सेमवाल, वरिष्ठ पत्रकार एवं उक्रांद नेता

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