अब तक आपने जमीन पर पौट्टो उगते देखे होंगे, लेकिन उत्तराखण्ड के उद्यान विभाग ने कागजों में पौट्टां को उगाने का नया अविष्कार कर दिखाया है। वह भी तब जब प्रदेश के कृषि मंत्री गणेश जोशी उद्यान विभाग के अट्टिकारियों को चेतावनी दे चुके हैं कि कागजों पर सुनहरे आंकड़े दिखाने के बजाय मुझे जमीन पर हो रहे काम दिखाएं। मंत्री की इस चेतावनी को दरकिनार कर विभागीय अट्टिकारियों ने कीवी को कागजों में उगाने का फर्जीवाड़ा कर डाला। आरोप है कि यह कारनामा भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरे उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण निदेशक डॉ. हरमिंदर सिंह बवेजा के इशारों पर किया गया। उद्यान विभाग पिथौरागढ़ के अट्टिकारी की एक ही दिन में जारी दो रिपोर्ट इस फर्जीवाड़े को उजागर करती है
चौबटिया गार्डन में भ्रष्टाचार का पौधा-2
छह मई 2022 की ही बात है जब प्रदेश के कृषि मंत्री गणेश जोशी ने कृषि एवं उद्यान विभाग के अधिकारियों से कहा था कि ‘हर बैठक में सिर्फ कागजी आंकड़े प्रस्तुत करना बंद करें। कागजों पर सुनहरे आंकड़े दिखाने के बजाय मुझे जमीन पर हो रहे काम दिखाएं।’ उन्होंने एक पखवाड़े के भीतर अधिकारियों को वास्तविक तथ्य और स्पष्ट रोड मैप बनाने की चेतावनी देने के साथ ही कहा कि जमीनी सत्यापन करने मैं स्वयं भी जाऊंगा। इस दौरान मंत्री ने कहा कि ‘याद रखिए कि मैं एक फौजी भी हूं और आपके इन खूबसूरत दिखने वाले आंकड़ों को जिन्हें आप कागज पर प्रस्तुत कर रहे हैं उसे स्वयं जमीन पर देखूंगा।’
सूबे के कृषि मंत्री को अपनी बात पर अमल करते हुए सत्यापन करने पिथौरागढ़ जरूर जाना चाहिए। जहां उनकी यह बात सच होती प्रतीत हो रही है जिसमे उन्होंने अधिकारियों से कहा कि कागजों पर सुनहरे आंकड़े दिखाने की बजाय मुझे जमीन पर हो रहे काम दिखाएं। अगर कृषि मंत्री पिथौरागढ़ पहुंचेंगे तो निश्चित तौर पर उन्हें यह सच दिखाई देगा जिसमे उद्यान अधिकारियों ने वह कारनामा कर दिखाया है जो जमीन पर कम और कागजों में ज्यादा हुआ। यहां यह भी बताना जरूरी है कि कृषि मंत्री गणेश जोशी 6 मई को जब अधिकारियों को फर्जीवाड़े न करने की सख्त हिदायत दे रहे थे तब उद्यान विभाग के निदेशक डॉ हरमिंदर सिंह बवेजा भी मीटिंग में मौजूद थे। आरटीआई कार्यकर्ता दीपक करगेती का आरोप है कि इन्ही बवेजा ने मंत्री के कड़े निर्देशों के बावजूद भी ऐसा घपला कर डाला है जिस चलते उद्यान विभाग एक बार फिर सवालों और संदेह के घेरे में आ गया है।
जानकारी के अनुसार गत 6 जुलाई को कीवी के पौधों की सूचना जिला स्तरीय अधिकारियों से मांगी गई थी। जबकि शासन स्तर से यह जांच स्थलीय निरीक्षण करके की जानी थी। चौंकाने वाली बात यह है कि कीवी के पौधों की मूल सूचना को ही बदल दिया गया है। सूत्रों की मानें तो यह काम उद्यान निदेशक द्वारा कराया गया। जिससे कि अच्छी रिपोर्ट पेश कर सरकार को गुमराह करने का कार्य किया जा सके। पिथौरागढ़ जिले से प्राप्त उद्यान विभाग की मूल रिपोर्ट में यह घपला स्पष्ट हो रहा है जिसमें कीवी के पौधों की दो-दो रिपोर्ट बनाई गई। पिथौरागढ़ के मुख्य उद्यान अधिकारी ज्ञानेंदर प्रताप सिंह के द्वारा पहली रिपोर्ट 7 जुलाई 2022 को पत्रांक संख्या 796 से बनाई गई। जिसमें दो योजनाओं के तहत विवरण भेजा गया था। पहली योजना मुख्यमंत्री पलायन रोकथाम योजना है जिसके तहत लगे कीवी के पौधों की जीवितता 55 प्रतिशत बताई गई। जबकि दूसरी योजना राज्य सेक्टर योजना के अंतर्गत कीवी के निःशुल्क फल पौध वितरण के तहत जीवितता 60 प्रतिशत बताई गई है। आंकड़ों की यह बाजीगरी इसलिए की गई ताकि कागजों में विभाग की कार्यशैली को बेहतर दर्शाया जा सके। पिथौरागढ़ के मुख्य उद्यान अधिकारी की रिपोर्ट को देखें तो दोनों योजनाओं में बहुत से पौधे मृत पाए गए। मुख्यमंत्री पलायन रोकथाम योजना के तहत रोपित किये गए कुल कीवी के पौधों की संख्या 1912 थी, जिनमें जीवित पाए गए
पौधों की संख्या 1052 ही रह गई थी। यानी की 45 प्रतिशत पौधे पनपने ही नहीं पाए। ये पौधे ऐसे थे जो मृत अवस्था में हो गए। इसके अलावा दूसरी राज्य सेक्टर योजना के अंतर्गत निःशुल्क फल पौध वितरण के तहत रोपित किये गए कुल पौधे 3000 थे। जिनमे जीवित बचे पौधों की संख्या 1800 थी।
इस सच्चाई को लेकिन उद्यान निदेशक पचा नहीं पाए। सूत्र बताते हैं कि यह रिपोर्ट मिलते ही सरकार की आंखों में धूल झोंकने के उद्देश्य से उद्यान निदेशक बवेजा द्वारा उसी समय पिथौरागढ़ के उद्यान अधिकारी को मूल रिपोर्ट बदलने और जीवितता प्रतिशत बढ़ाकर देने को कहा। बताया गया कि दबाव के बाद पिथौरागढ़ के मुख्य उद्यान अधिकारी ज्ञानेंद्र प्रताप सिंह ने आनन-फानन में ही एक बार फिर दूसरी रिपोर्ट बनाकर निदेशक हरमिंदर सिंह बवेजा को भेजी। ‘दि संडे पोस्ट’ के पास मौजूद इस रिपोर्ट में क्रमांक संख्या पहले जैसी रिपोर्ट का क्रमांक 796/विविध/2022-23 ही है। यही नहीं बल्कि दिनांक भी वही 7 जुलाई 2022 था लेकिन रिपोर्ट परिवर्तित कर बवेजा के मनमुताबिक बना दी गई। उद्यान विभाग पिथौरागढ़ द्वारा जो दूसरी रिपोर्ट निदेशालय भेजी गई उसमें कीवी की दोनों योजनाओं के पौधों की जीवितता बढ़ा दी गई है। बढ़ी हुई जीवितता के अनुसार जो दूसरी रिपोर्ट बनाई गई उसमें मुख्यमंत्री पलायन रोकथाम योजना के रोपित पौधे की संख्या तो वही पुरानी 1912 थी लेकिन जीवितता जो पहले 1052 थी उसे बढ़ाकर 1625 कर दिया गया है। इस तरह इस योजना के पौधों का प्रतिशत भी बढ़ गया। जो जीवितता प्रतिशत पहले 55 प्रतिशत था वह 60 प्रतिशत हो गया। इसी तरह राज्य सेक्टर योजना अंतर्गत निःशुल्क फल पौध वितरण में भी कागजों में बढ़ोतरी की गई। रोपित पौधों की संख्या 3000 पहले जैसी ही रही लेकिन इसके मुकाबले जीवितता जो 1800 थी उसे बढ़ाकर 2700 कर दिया गया है। जब संख्या बढ़ाई गई तो इसके प्रतिशत में बढ़ोतरी होना भी स्वाभाविक था। फलस्वरूप 85 प्रतिशत से बढ़कर 90 प्रतिशत हो गई।
गौरतलब है कि उत्तराखण्ड में उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग द्वारा कृषकों के पलायन रोकने और उन्हें आर्थिक रूप से सशक्त करने के लिए सरकार द्वारा अनेकों योजनाएं 50 से 90 प्रतिशत सब्सिडी आधारित चलाई जा रही हैं। केंद्र और राज्य सरकार की मंशा है कि उत्तराखण्ड में कृषकों की आजीविका बागवानी आधारित कई पर्वतीय राज्यों के अनुरूप हां। लेकिन विभाग में उच्च पदों पर बैठे अधिकारियों द्वारा योजनाओं का लाभ जमीन तक पहुंचने ही नहीं दिया जा रहा है। सरकार द्वारा किसानों के हित को ध्यान में रखते हुए बागवानी मिशन तथा जिला सेक्टर की योजनाओं में कीवी के क्षेत्रफल विस्तार की योजनाएं चलाई जा रही हैं। कीवी की पौध दो प्रकार से तैयार की जाती है पहला तो सीड की बुवाई कर उससे तैयार सिडलिंग पर कीवी की टहनियों को ग्राफ्ट कर तैयार किया जाता है तथा दूसरा कीवी की टहनियों को काटकर सीधे मिट्टी की क्यारी में लगाकर तैयार किया जाता है। कीवी एक अंगूर की तरह लता वाला पौधा है। कीवी की कटिंग से तैयार पौधे की अधिक प्रमाणिकता होती है। वर्तमान में डेंगू और कोविड आदि जैसी बीमारियों में खून में प्लेटलेट्स की कमी को बढ़ाने में मददगार होने के कारण कृषकों में इसकी खेती करने का रुझान बढ़ा है। अंगूर की खेती की तरह ही इसका भी ट्रेलिस सिस्टम से पौधे लगाना ही उत्तम तरीका माना गया है। भारत में कीवी की सामान्य प्रचलित प्रजातियां जैसे ब्रूनो, एलिसन, एबॉट, मोंटी, हेवार्ड इत्यादि हैं।
उजागर हो चुका है कीवी घोटाला
उद्यान विभाग उत्तराखण्ड द्वारा कीवी की टहनियों से तैयार पौधे कटिंग की दर वर्ष 2018 में 35 रुपए निर्धारित की गई थी और कीवी के सीड से उत्पादित सीडलिंग पर ग्राफ्टेड पौधे की दर रुपया 75 निर्धारित की गई थी। लेकिन वर्तमान उद्यान निदेशक डॉ ़हरमिंदर सिंह बवेजा द्वारा 15 मई 2021 को कीवी पौध की कीमतों को बेतहाशा बढ़ाकर कटिंग की दर रुपया 35 से 75 रुपए कर दी गई। जबकि ग्राफ्टेड की कीमत बढ़ाकर रुपए 75 से 175 कर दी गई है जो कि 2018 की दर के लगभग 3 गुना अधिक है। इस बढ़ी हुई दर के साथ भी निदेशक को जब संतुष्टि नहीं हुई तो उन्होंने पुनः 14 दिसंबर 2021 को दरों को बढ़ाते हुए एक नई सूची जारी कर दी। जिसमें कटिंग वाले पौधों की दर 75 रुपए से बढ़ाकर सीधे 225 रुपए और ग्राफ्टेड कीवी पौध की दर को 175 से 275 रुपए कर दिया गया। इस भ्रष्टाचार को अंजाम देते हुए 80 हजार से भी अधिक पौधों की खरीद बाहरी राज्यों की नर्सरियों से बिना निविदा आमंत्रित किए ही कराई गई। इस खरीद-फरोख्त में जमकर लूट की गई। यही नहीं बल्कि जब इन दरों को उद्यान विभाग हिमाचल की दरों से मिलाया गया तो पाया कि वहां पर मौजूदा दर इन दरों से 3 से 4 गुना कम है। उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण निदेशक डॉ. हरमिंदर सिंह बवेजा का इस बाबत कहना है कि मैं पूर्व में ही आपको अपना बयान दे चुका हूं।
पिथौरागढ़ के उद्यान विभाग द्वारा दोनो रिपोर्ट एक ही पत्रांक और दिनांक से दी गई थी। मैंने ये दोनों दस्तावेज उद्यान सचिव शैलेश बगोली जी को उपलब्ध करा दिए हैं। इसके बाद मैंने इस समस्त प्रकरण की जानकारी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के कार्यालय में उपस्थित होकर भी दी है। जिस पर मुझे जांच कराने का आश्वासन दिया गया है। उद्यान विभाग का यह घपला अकेले पिथौरागढ़ जिले में ही नहीं हुआ है बल्कि प्रदेश के प्रत्येक जिले में निदेशक डॉ ़हरमिंदर सिंह बवेजा के द्वारा किया जा रहा है। अपनी इच्छानुसार सूचना इनके द्वारा जिलों में दबाव बनवाकर ली जा रही है। उत्तराखण्ड के काश्तकारों की करुण वेदना मानते हुए तथा तथ्यों का संज्ञान लेते हुए भ्रष्टाचार में लिप्त वर्तमान निदेशक डॉ ़ हरमिंदर सिंह बवेजा पर कठोर कार्यवाही की जानी जरूरी है ताकि भविष्य में हमारे खेत-खलियान, उद्यान-बगीचे भ्रष्टाचार से बचे रह सकें।
दीपक करगेती, समाजसेवी