भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत में योग का स्थान सर्वोच्च है। यह केवल एक शारीरिक अभ्यास नहीं, बल्कि मन, आत्मा और शरीर के समन्वय की एक दिव्य साधना है। योग हजारों वर्षों से भारत की चेतना में रचा-बसा है, जिसे अब वैश्विक स्तर पर भी व्यापक मान्यता प्राप्त हो रही है। इसका श्रेय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जाता है, जिन्होंने इसे केवल राष्ट्रीय गर्व का विषय नहीं, बल्कि वैश्विक मानवता की सेवा का माध्यम बना दिया। अब उत्तराखण्ड, जिसे देवभूमि कहा जाता है, एक नई ऐतिहासिक पहल के तहत योगभूमि बनने की दिशा में अग्रसर है। 29 मई 2025 को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व में उत्तराखण्ड मंत्रिमंडल ने देश की पहली समर्पित ‘योग नीति’ को मंजूरी दी। यह नीति योग को राज्य की संस्कृति, शिक्षा, स्वास्थ्य और पर्यटन से जोड़ने का अभिनव प्रयास है। नीति के अंतर्गत उत्तराखण्ड सरकार जागेश्वर (अल्मोड़ा), मुक्तेश्वर (नैनीताल), व्यास घाटी (चमोली), कोलीधोक झील (पौड़ी) और नई टिहरी झील (टिहरी) में पांच अंतरराष्ट्रीय योग एवं वेलनेस केंद्र स्थापित करने जा रही है। इन केंद्रों में योगाभ्यास, नैचुरोपैथी, आयुर्वेदिक क चिकित्सा, अनुसंधान और अंतरराष्ट्रीय सहयोग के तहत योग-टूरिज्म को बढ़ावा दिया जाएगा। इसके लिए एक स्वतंत्र ‘योग एवं प्राकृतिक चिकित्सा निदेशालय’ की स्थापना की जा रही है। आने वाले पांच वर्षों में 13,000 से अधिक युवाओं को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार देने का लक्ष्य तय किया गया है
- कंचन आर्य

प्रधानमंत्री की इस अपील पर अभूतपूर्व प्रतिक्रिया मिली। महज 75 दिनों के भीतर, संयुक्त राष्ट्र ने 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस घोषित कर दिया। इतिहास में यह किसी भी प्रस्ताव के पारित होने की सबसे तेज गति थी। तब से हर वर्ष, पूरी दुनिया में लाखों लोग 21 जून को योगाभ्यास के माध्यम से भारत की इस परम्परा को सम्मान देते हैं।
भारत में योग का इतिहास वेदों तक जाता है। ऋग्वेद और उपनिषदों में इसके बीज मिलते हैं, लेकिन इसे व्यवस्थित और दर्शन के रूप में स्थापित करने का श्रेय ऋषि पतंजलि को जाता है। दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व में उन्होंने योग सूर्य की रचना की, जो आज भी योग-दर्शन की मूल आधारशिला है। बाद के वर्षों में स्वामी कुवलयानंद ने आधुनिक भारत में योग को विज्ञान से जोड़ा। उन्होंने 1924 में लोणावला, महाराष्ट्र में ‘कैवल्यधाम की स्थापना की और योग के वैज्ञानिक आधार पर चिकित्सा, अनुसंधान और वैश्विक संवाद को जन्म दिया।
अब उत्तराखण्ड, जिसे देवभूमि कहा जाता है, एक नई ऐतिहासिक पहल के तहत योगभूमि बनने की दिशा में अग्रसर है। 29 मई 2025 को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व में उत्तराखण्ड मंत्रिमंडल ने देश की पहली समर्पित ‘योग नीति’ को मंजूरी दी। यह नीति योग को राज्य की संस्कृति, शिक्षा, स्वास्थ्य और पर्यटन से जोड़ने का अभिनव प्रयास है। नीति के अंतर्गत उत्तराखण्ड सरकार जागेश्वर (अल्मोड़ा), मुक्तेश्वर (नैनीताल), व्यास घाटी (चमोली), कोलीधोक झील (पौड़ी) और नई टिहरी झील (टिहरी) में पांच अंतरराष्ट्रीय योग एवं वेलनेस केंद्र स्थापित करने जा रही है। इन केंद्रों में योगाभ्यास, नैचुरोपैथी, आयुर्वेदिक चिकित्सा, अनुसंधान और अंतरराष्ट्रीय सहयोग के तहत योग-टूरिज्म को बढ़ावा दिया जाएगा। इसके लिए एक स्वतंत्र ‘योग एवं प्राकृतिक चिकित्सा निदेशालय’ की स्थापना की जा रही है। आने वाले पांच वर्षों में 13,000 से अधिक युवाओं को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार देने का लक्ष्य तय किया गया है। उत्तराखण्ड पहले भी अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के आयोजनों में अग्रणी रहा है। विशेषकर जागेश्वर, ऋषिकेश और नैनीताल जैसे स्थलों पर प्रतिवर्ष हजारों योग साधक एकत्र होकर सूर्य नमस्कार, प्राणायाम और ध्यान का अभ्यास करते हैं। इन आयोजनों ने ही सरकार को स्थायी योग संरचना की दिशा में नीति निर्माण के लिए प्रेरित किया।

प्रधानमंत्री मोदी के आह्वान के बाद, भारत सरकार ने आयुष मंत्रालय को सक्रिय भूमिका में लाकर योग को नीति स्तर पर प्राथमिकता दी है। देशभर में योग प्रमाणन बोर्ड, रिसर्च इंस्टीट्यूट और योग से जुड़े चिकित्सा केंद्रों की स्थापना की गई। इसी कड़ी में, उत्तराखण्ड सरकार की यह नीति एक राज्य स्तरीय रोल मॉडल के रूप में सामने आई है। नीति के क्रियान्वयन के लिए सरकार ने लगभग 300 करोड़ रुपए के प्रारम्भिक निवेश की योजना बनाई है। इस धनराशि का उपयोग योग केंद्रों के निर्माण, प्रशिक्षकों के प्रशिक्षण, प्रचार-प्रसार और तकनीकी अधोसंरचना में किया जाएगा। नीति के तहत प्रत्येक केंद्र में अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप साधना कक्ष, वेलनेस कंसल्टेशन रूम, आयुर्वेद पंचकर्म सुविधा और डिजिटल योग पुस्तकालय भी विकसित किए जाएंगे।
”भारत योग के रूप में दुनिया को स्वास्थ्य मंत्र देता है। इस बार 21 जून को आयोजित होने वाले अंतरराष्ट्रीय योग दिवस का राज्य स्तरीय कार्यक्रम भराड़ीसैंण विधानसभा परिसर में आयोजित किया जिसमें 10 देश के राजदूत हिस्सा लेंगे। इस दिन मैं भी भराड़ीसैंण में मौजूद रहूंगा। प्रदेश की नई योग नीति स्वस्थ और समृद्ध उत्तराखण्ड की दिशा में उठाया गया कदम है।”
पुष्कर सिह धामी, मुख्यमंत्री, उत्तराखण्ड सरकार
विशेषज्ञों का मानना है कि यह नीति उत्तराखण्ड की पारम्परिक संस्कृति और आधुनिक स्वास्थ्य दृष्टिकोण के बीच सेतु का कार्य करेगी। प्रसिद्ध योगाचार्य स्वामी रामदेव ने इसे राष्ट्र निर्माण में योग की भूमिका को मूतज् रूप देने वाली ऐतिहासिक नीति कहा है। वहीं आयुर्वेदिक चिकित्सक डॉ. भारती पंत का कहना है कि ‘यदि इस नीति को सही ढंग से लागू किया गया तो उत्तराखण्ड भारत की ‘आध्यात्मिक राजधानी’ बन सकता है।’
उत्तराखण्ड की विशिष्ट भौगोलिक और सांस्कृतिक स्थिति इसे योग के लिए सबसे उपयुक्त बनाती है। हिमालय की गोद में बसे गांवों की शुद्ध वायु, प्राकृतिक जलस्रोत और शांत वातावरण योग साधना को सहज और प्रभावशाली बनाते हैं। यही कारण है कि ऋषिकेश, हरिद्वार और अब जागेश्वर जैसे स्थान वैश्विक योग यात्रियों की पहली पसंद बनते जा रहे हैं।
अन्य राज्यों की बात करें तो केरल ने वेलनेस टूरिज्म को बढ़ावा देने के लिए आयुर्वेद और योग पर आधारित रिसोर्ट मॉडल अपनाया है, जबकि कर्नाटक और महाराष्ट्र में योग प्रशिक्षण केंद्रों का विस्तार हुआ है। परंतु उत्तराखण्ड की यह समग्र नीति – जो पर्यटन, रोजगार, शिक्षा और स्वास्थ्य सभी को साथ लेकर चलती है – एक दूरदर्शी सोच को परिलक्षित करती है। भारत में योग आज 12,000 करोड़ रुपए की इंडस्ट्री बन चुकी है, जिसमें योग स्टूडियो, वचुज्अल क्लासेज, योग मैट/कपड़ों का निमाज्ण और वेलनेस टूरिज्म शामिल हैं। उत्तराखण्ड सरकार की यह पहल इस इंडस्ट्री में राज्य की हिस्सेदारी को बढ़ा सकती है। खासतौर पर विदेशी मुद्रा अर्जन और ग्रामीण अर्थव्यवस्था के सशक्तिकरण में यह नीति निर्णायक भूमिका निभा सकती है।
इस समग्र दृष्टिकोण के तहत, नीति में यह भी प्रावधान है कि प्रत्येक ब्लॉक स्तर पर योगोत्सव आयोजित किए जाएंगे, जिनमें स्थानीय कलाकारों, छात्रों और बुजुर्गों को शामिल किया जाएगा। इसके लिए राज्य सरकार श्योग रथ्य की परिकल्पना कर रही है, जो गांव-गांव जाकर योग सिखाएगा और लोगों को जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों से बचने के उपाय बताएगा। इस प्रकार उत्तराखण्ड की योग नीति न केवल भारत की आध्यात्मिक धरोहर को सहेजने की दिशा में एक ठोस कदम है, बल्कि यह राज्य के सतत विकास, सार्वजनिक स्वास्थ्य और वैश्विक पहचान की दिशा में भी एक युगांतरकारी पहल है। यह नीति भारत को वसुधैव कुटुम्बकम् के आदर्श की ओर एक कदम और आगे ले जाती है।
27 सितम्बर 2014 को संयुक्त राष्ट्र महासभा में योग दिवस मनाए जाने का प्रस्ताव रखते प्रधानमंत्री मोदी