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Uttarakhand

उत्तराखण्ड का मान, हिमालय बचाओ अभियान

दिनेश गुरुरानी उस शख्स का नाम है जो सीमांत जनपद पिथौरागढ़ की पहचान बन पूरे प्रदेश में पर्यावरण प्रेमी की मिसाल बन उभरे हैं। कुमाऊं मंडल विकास निगम के स्थानीय प्रबंधक गुरुरानी ऐसे शख्स हैं जो यहां पहुंचने वाले हर पर्यटकों को दो दशकों से पर्यावरण संरक्षण के तहत हिमालय बचाओ अभियान से जोड़ रहे हैं। इस अभियान के तहत उच्च हिमालयी इलाकों में ट्रैकिंग के लिए जाने वाले यात्रियों के दलों को हिमालय में कचरा न फैलाने के साथ ही वहां फैले कूड़े को इकट्ठा कर वापस लाने की उनकी क्षेत्रीय भाषा में ही शपथ दिलाई जा रही है ताकि, प्रकृति की इस अनमोल धरोहर में मानव हस्तक्षेप के कारण कोई दखल न पहुंचे और पर्यावरण का संतुलन बना रहे। पिथौरागढ़ स्थित केएमवीएन में यात्रियों के सहयोग से बनी मानसरोवर वाटिका भी इसे सबसे अलग बनाती है, जहां 500 से ज्यादा प्रकार के फूल पर्यटकों को आकर्षित भी कर रहे हैं। यहां आने वाले यात्री दलों को उच्च हिमालयी क्षेत्रों में पेड़ लगाने के लिए पौधे भी दिए जाते हैं। अब तक 5000 से ज्यादा लोगों को इस अभियान से जोड़ा जा चुका है

नीयत साफ हो जिनकी, उनके कदमों में जमीं होती है। एक पौधा धरती के नाम रोपित व पोषित कर पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले दिनेश गुरूरानी पर यह नज्म सही बैठती है। उनके काम करने के तरीके में एक खास तरह की ईमानदारी होती है, अगर यूं कहंे कि वह अपने काम को जीते हैं, तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। जमीनी स्तर पर उनके काम को देखा व परखा जा सकता है। वह उन लोगों की जमात में शामिल हैं जो जमीन पर काम का परिणाम देना पसंद करते हैं। वह पर्यावरण से संबंधी कार्यक्रम वृहद स्तर पर चलाते हैं लेकिन सफलता पर भी उनकी नजर टिकी रहती है। शायद वह नई पीढ़ी के इस सवाल को बखूबी समझते हैं कि – ‘सौंपेंगे अपने बाद कौन सी विरासत मुझे’। वह वर्तमान ही नहीं भविष्य में होने वाले पर्यावरणीय बदलावों से भलीभांति परिचित हैं, इसीलिए हर काम को जमीनी स्तर पर करना पसंद करते हैं। वह पौधे खरीदते हैं, खुद भी रोपते हैं आम आदमी से लिए खास आदमी तक से उन्हें रोपित भी कराते हैं। कैलाश मानसरोवर जाने वाले यात्रियों को पौधे सौंपते हैं, ये यात्री इन पौधों को कालापानी, नाभिढांग, गुंजी, जौलिंगकोंग आदि उच्च हिमालयी क्षेत्रों में रोपित करते हैं, फिर यहां कार्यरत निगमकर्मी इन रोपित पौधों की देखभाल करते हैं। पिछले दो दशक से भी अधिक समय से वह हिमालय बचाओ अभियान चला रहे हैं। यहां आने वाला हर यात्री, पर्यटक हिमालय को बचाने की शपथ लेता है।

इधर पर्यटक आवास गृह पिथौरागढ़ का माहौल कुछ इस तरह से है कि यहां कर्मचारी सुबह उठते हैं, योगाभ्यास, प्राणायम करते हैं। मानसखंड की परिकल्पना को साकार करते हुए परिसर में स्थापित किए शिव मंदिर में पूजा अर्चना करते हैं। पौधों को पानी देते हैं। उन्हें सहेजते हैं फिर पर्यटक आवास गृह की अपनी जिम्मेदारियों को निभाने में मशगूल हो जाते हैं। इधर गुरूरानी किसी भी कर्मचारी की विदाई हो, जन्मोत्सव हो, वैवाहिक वर्षगांठ हों, बेटा-बेटी की शादी हो, वह उनसे एक पौधा धरती के नाम अवश्य रोपित करवाते हैं। पौधों की खरीद वे खुद करते हैं, यह उनका शगल है। उन्होंने खेलों, आंदोलनों को भी पौधारोपण कार्यक्रम से जोड़ा है। उनका दावा है कि वह अब तक एक लाख से अधिक पौधे पूरे उत्तराखण्ड में रोपित कर चुके हैं। तकरीबन इतने ही लोगों को वह हिमालय बचाओ की शपथ भी दिलवा चुके हैं। उन्होंने मुख्यमंत्री, मंत्री, राज्यपाल, मुख्य सचिव, सचिव, नौकरशाह, सिने कलाकार के साथ पर्यटक, सामाजिक कार्यकर्ताओं, छात्र-छात्राओं को एक पौधा धरती के नाम मुहिम में शामिल कर उनसे पौधे रोपित करवाए हैं। उनका यह अभियान लगातार जारी है। वह कैलाश मानसरोवर यात्रा मार्ग में स्थित 12 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित कालापानी मंदिर परिसर में यात्रियों के माध्यम से भोजपत्र, सुरई, गोकुल धूप सहित कई प्रजातियों के पौधे रोपित करवा चुके हैं। आज भले ही एक पौधा धरती मां के नाम का शासकीय शोरगुल हो लेकिन दिनेश गुरूरानी दशकों पूर्व ‘एक पौधा धरती के नाम’ की मुहिम शुरू कर सार्थक परिणाम भी दे चुके हैं। उन्होंने आंदोलनों की कार्यशैली तथा इसकी पूरी रूपरेखा को ही बदल दिया। यानी आंदोलन भी होगा, साथ में काम भी होगा, स्वच्छता अभियान भी चलेगा और स्वस्थ धरती के हित में पौधारोपण भी होगा। अब वह अपनी मांगों को मनवाने के लिए पूरी तरह से गांधीवादी तरीके को अपना चुके हैं। इस बीच उन्होंने आंदोलन के दौरान 10 हजार पौधों को रोपित करने का संकल्प लिया है। जिसमें वह 5000 से अधिक पौधे रोपित कर चुके हैं, जो कि शायद ही किसी भी आंदोलन के दौरान पहली बार हुआ है। इस दौरान 12 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित काला मंदिर परिसर में भी पौधे रोपित किए गए। नेशनल हाइवे के किनारे पर्यटक आवास गृहों में निरंतर पौधे रोपित होते रहते हैं। पिछले दो महीने से भी अधिक समय से कुमाऊं गढ़वाल मंडल निगम के कर्मचारी संविदा, दैनिक आउटसोर्स कर्मचारियों के नियमितीकरण की मांग को लेकर आंदोलित हैं लेकिन इस दौरान कर्मचारियों ने अपने काम का बहिष्कार नहीं किया। साथ ही गांधीवादी तरीका अपनाते हुए पौधारोपण किया।

स्वच्छता अभियान चलाया। इससे न तो पर्यटकों, न आम जनता को किसी तरह की परेशानी हुई। पिथौरागढ़ जनपद में साहसिक पर्यटन को बढ़ावा देने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है। रिवर राफ्टिंग, रिवर क्रांसिग, शिलारोहरण, पैराग्लाडिंग, स्नोस्कींइग को बढ़ावा दिया। इनके निर्देशन में अब तक हजारों युवक-युवतियां प्रशिक्षण प्राप्त कर चुकी हैं। वर्ष 1993 में मिलम व वर्ष 2002 में पंचाचूली ग्लैशियर ट्रैक को खुलवाने में भी इनका योगदान सराहनीय रहा। आपदा प्रबंधन हो या फिर योग, प्राणायम के जरिए भी एक स्वस्थ समाज की परिकल्पना को भी वे लगातार आगे बढ़ा रहे हैं। वर्ष 1990 से अब तक वह कैलाश मानसरोवर, पिडारी, मिलम, छोटा कैलाश में गाइड से लेकर कैंप प्रबंधक, व प्रबंधक, आवास गृह और साहसिक पर्यटन अधिकारी के तौर पर अपनी उल्लेखनीय सेवाओं के लिए जाने जाते रहे हैं। नवरात्रि, शिवरात्रि यानी हर पर्व पर पौधारोपण की कार्य संस्कृति को विकसित कर लिया गया है। हर घर पौधा, मेरा पौधा, मेरा परिवार जैसे अभियान इनके नेतृत्व में निरंतर जारी हैं। दिनेश राज्य आंदोलनकारी रहे हैं। राज्य निर्माण आंदोलन के दौरान कई बार जेल भी गए। उत्तराखण्ड वन अधिनियम को हटाने का मामला हो या फिर कर्मचारियों के हितों के लिए होने वाले आंदोलन हों, इनकी भूमिका उल्लेखनीय रही है। वे कर्मचारियों के हितेषी रहे हैं। बतौर कर्मचारी नेता इन्होंने कर्मचारियों के नियमितीकरण, पदोन्नति, संविदा कर्मचारियों का वेतन बढ़ाने, कैलाश मानसरोवर मार्ग में जाने वाले कर्मचारियों के लिए ट्रैकसूट, मानदेय, घोड़े की सुविधा, हाई एल्टीट्यूट भत्ते के लिए संघर्ष भी किया और सफलता भी पाई। पिथौरागढ़ आने वाला हर कैलाश मानसरोवर यात्री व पर्यटक इनकी सेवाओं के मुरीद रहे हैं। कुमाऊं मंडल के कर्मचारियों के बीच इनकी इतनी बड़ी लोकप्रियता रही है कि वह संयुक्त कर्मचारी महासंघ, कुमाऊं मंडल विकास निगम के लगातार 27 बार अध्यक्ष रहे हैं। वर्ष 1998 में जब कैलाश मानसरोवर यात्रा मार्ग में मालपा त्रासदी हुई तो उस समय इन्होंने राहत व बचाव कार्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इन्होंने वर्ष 2000 में गाला शिविर में शिवजी का मंदिर बनवाया। इन्होंने चंपावत, बागेश्वर, पिथौरागढ़ के 10 हजार से अधिक छात्र-छात्राओं को जिन्होंने साहसिक खेलों का प्रशिक्षण लिया उन्हें नदी स्वच्छता कार्यक्रम से जोड़ा। पिथौरागढ़ में मानसरोवर यात्री वाटिका बनाई। अब वह यात्रियों को यह शपथ दिला रहे हैं कि मानसरोवर यात्रा पूरी करने के उपरान्त अपनी कर्मभूमि/जन्मभूमि में एक पौधा अवश्य लगाऊंगा, तभी आपकी यात्रा सफल मानी जाएगी। उनका मूल मंत्र है कि प्रकृति की सेवा करो, प्रकृति का श्रंृगार करो, प्रकृति तुमको मेवा देगी। अगर आप पौधारोपण करते हैं, पौधों को बचाते हैं तो एक तरह से आप ऑक्सीजन देने का काम करते हैं। यूं तो वह हिमालय मित्र सम्मान के साथ कई छोटे-बड़े पुरस्कारों से सम्मानित हो चुके हैं लेकिन धरातल पर पर्यावरण संरक्षण, हिमालय बचाने को लेकर जागरूकता को लेकर जो काम उन्होंने किया उसका बड़ा इनाम अभी भी उनके इंतजार में है।

मुख्यमंत्री से मिला तीन बार सम्मान
मुख्यंत्री पुष्कर सिंह धामी द्वारा दिनेश गुरुरानी को तीन बार सम्मानित किया जा चुका है। 17 सितम्बर को देहरादून में हुए शिखर समागम में मुख्यमंत्री धामी द्वारा गुरुरानी को ‘जल दूत’ का अवार्ड देकर सम्मानित किया गया है। इससे पहले गुरुरानी को 2021 में गोलकीपर अवार्ड तथा 2022 में ‘हिमालय मित्र’ का अवॉर्ड मुख्यमंत्री के हाथों दिया गया। मजेदार बात यह है कि दिनेश गुरुरानी जब भी मुख्यमंत्री धामी से मिलते हैं तभी उन्हें एक पौधा भेंट करते हैं। अब तक वे मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को आठ बार पौधे उपहार स्वरूप दे चुके हैं। यह पौधे वे बकायदा मुख्यमंत्री धामी के गांव की जमीन से लाकर उन्हें देते हैं।

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