उत्तराखण्ड राज्य गठन के बाद उम्मीदें जगी थीं कि यहां पर भी उद्योग लगेंगे और युवाओं के लिए रोजगार की नई संभावनाएं बनेंगी। नारायण दत्त तिवारी के मुख्यमंत्री रहते वर्ष 2003 में औद्योगिक नीतियां बनीं। कुछ उद्योग लगे भी लेकिन औद्योगिक वातावरण फिर भी तैयार नहीं हो सका। जो उद्योग रोजगार का बेहतर जरिया बन सकते थे वे एक-एक कर बंद हो रहे हैं। हजारों लोग बेरोजगार हो गए हैं और सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी है। उद्योगों के उजड़ने का नया मामला सितारगंज स्थित जयडस वैलनेस प्रोडक्ट लिमिटेड का है। यह कंपनी रातों-रात अपना बोरिया-बिस्तर समेट कर एक झटके में 1200 मजदूरों को बेरोजगारी का दंश दे गई
उत्तराखण्ड राज्य बनने के बाद औद्योगिक क्षेत्र सिडकुल की स्थापना हुई और उसके बाद से भारी सब्सिडी, सस्ते दरों पर खेती वाली जमीनें और विभिन्न तरीके के राज्य और केंद्र सरकार द्वारा टैक्स में बेइंतहा छूटें व रियायत दी गई। 10 से 15 साल तक इन कंपनियों ने उन रियायतों का जबरदस्त फायदा उठाया, मजदूरों के खून-पसीनां से भारी मुनाफा कमाया और अब मुनाफा बटोरकर तमाम कंपनियां मजदूरों को बेरोजगार बनाकर एक राज्य से दूसरे राज्य में पलायन कर रही हैं।
राज्य गठन के बाद तत्कालीन पूर्व मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी ने साल 2005 में सितारगंज में सिडकुल की स्थापना की थी। जिसके लिए संपूर्णानंद जेल की 1093 हेक्टेयर जमीन सिडकुल को दी गई। इसमें से 670 हेक्टेयर जमीन पर फैक्ट्री लगाई गई बाकी जमीन आवास योजना के लिए रखी गई। उस समय उद्यमियों ने 450 हेक्टेयर जमीन खरीदी। सिडकुल में करीब 145 उद्योग लगे। लेकिन इसके बाद धीरे-धीरे सिडकुल वीरान होने लगा। अब सिडकुल में करीब 82 कंपनी काम कर रही है। पिछले कई साल के भीतर दर्जनों कंपनियों में ताला जड़ गया। सिडकुल में कई नामी-गिरामी कंपनी बंद हो गई। जिसके चलते हजारों लोगों का रोजगार चला गया। सिडकुल के फेस टू में उद्योग नहीं आ रहे हैं। यहां पर केवल एक चाइनीज कंपनी ने अपने प्लांट लगाने का काम शुरू किया है। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि पहाड़ी और मैदानी क्षेत्र के लोगों को रोजगार देने वाली कंपनियों पर श्रम विभाग कार्रवाई क्यों नहीं कर रहा है।

कई प्रतिष्ठित संस्थान या तो बंद हो चुके हैं या बंदी की कगार पर है। सितारगंज सिडकुल से ऐसे ही पलायन कर रही कंपनियां की तादात दिनों-दिन बढ़ती जा रही है। अब तक दर्जनों कंपनियां इस फेहरिस्त में शामिल हो चुकी है। ताजा मामला जयडस वैलनेस प्रोडक्ट लिमिटेड का है जिसने एक ही झटके में हजारों हाथों को बेरोजगार कर दिया है। कंपनी द्वारा तर्क दिया है गया है कि लगातार हो रहे नुकसान के कारण कंपनी को यह यूनिट बंद करनी पड़ रही है। जयडस प्रबंधन द्वारा लगाए गए
नोटिस में लिखा है कि सितारगंज यूनिट में बनाए जाने वाले कॉम्प्लान, ग्लूकॉन-डी, कुकीज जैसे उत्पाद संपूर्ण भारत से कच्चा माल मंगाकर बनाया जाता रहा है और उत्तराखण्ड एवं देश के अन्य हिस्सों में इसे बेचा जाता रहा है। नोटिस में कहा गया है कि कोविड-19 के प्रभाव के कारण कच्चे माल की कीमत बढ़ने से सितारगंज यूनिट में उत्पादन की कीमत में लगातार बढ़ोतरी होने लगी जिसे कम नहीं किया जा सका। कंपनी को बाजार में अपनी प्रतिस्पर्धा भी बनाए रखने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। अब ऐसे में 1200 कर्मचारी सड़क पर आ गए हैं। सवाल यह है कि क्या उत्तराखण्ड सरकार इस संबंध में संज्ञान लेकर कंपनी संचालकों से वार्ता कर कर्मचारियों को बेरोजगार होने से बचा पाएगी?
गौरतलब है कि जयडस वैलनेस कंपनी द्वारा गत 17 जून को एक नोटिस दिया गया। जिसमें कहा गया है कि सितारगंज यूनिट में बनाए जाने वाले उत्पाद को संपूर्ण भारत से कच्चा माल मंगाकर बनाया जाता है और उससे तैयार उत्पाद का कुछ भाग उत्तराखण्ड एवं आस-पास की मार्केट में बेचा जाता है। परंतु अधिकांश उत्पाद को पूर्व एवं दक्षिण भारत के राज्यों में भेजा जाता है। कोविड-19 के प्रभाव के कारण सितारगंज में उत्पादों के उत्पादन की कीमत में लगातार बढ़ोतरी होने लगी है जो प्रबंधन के अथक प्रयासों के बाद भी किसी प्रकार से कम नहीं की जा सकती है। इसलिए उत्पादकों में प्रयोग होने वाले कच्चे माल की कीमत बढ़ने एवं बाजार में कम्पटीशन के चलते कंपनी को नुकसान होने के कारण इस यूनिट को बंद किया जाता है। ऐसी दशा में प्रबंधन के पास काम कर रहे सभी कर्मचारियों और उनके सभी विधिक देय जिसमें बंदी मुआवजा भी सम्मिलित है उनके बैंक में खाते में ट्रांसफर किए जा रहे हैं।
जयडस वैलनेस प्रोडक्ट लिमिटेड एम्प्लाइज यूनियन के मीडिया प्रभारी धर्मेंद्र सिंह ने बताया कि कंपनी बंद होने के अगले ही दिन वे स्थानीय विधायक और मंत्री सौरभ बहुगुणा से मिले। वह हमारे धरनास्थल पर भी आए। उन्होंने एसडीएम और डीएलसी से बातचीत करके कार्रवाई करवाने का आश्वासन दिया था। अब तक तीन मीटिंग कंपनी प्रबंधन के साथ हो चुकी है लेकिन कोई समाधान नहीं निकला। तीसरी मीटिंग में कंपनी की अलीगढ़ यूनिट के प्रबंधक आए थे जो अपने साथ आधे-अधूरे दस्तावेज लाए थे। अब उन्हें चौथी मीटिंग में 12 जुलाई को आना है। जिसमें कुछ समाधान निकलने की उम्मीद है।
वर्ष 2012 से अब तक करीब 40 फैक्ट्रियां बंद हो चुकी हैं। इनमें कई कंपनियों ने उत्पादन बंद होने से श्रमिकों को काम से हटा दिया। इन फैक्ट्रियों में काम करने वाले सैकड़ों युवा बेरोजगारी का दंश झेल रहे हैं। कुछ ही ऐसे श्रमिक रहे जिन्हें दूसरी फैक्ट्री में काम मिल पाया। कमोवेश हर जगह श्रमिकों की स्थिति ऐसी है कि उन्हें यह तक नहीं पता कि कब उनसे रोजगार छीन लिया जाएगा। भगवती-माइक्रोमैक्स, वोल्टास, सत्यम ऑटो, एलजीबी, गुजरात अम्बूजा, अमूल ऑटो के मजदूरों के हालात वही बने हुए हैं। ये कंपनियां कब बंद हो जाए कहा नहीं जा सकता।
श्रम विभाग कार्यालय से मिले आंकडों पर नजर डाले, तो सिडकुल सितारगंज की कई कम्पनियां बंद हो चुकी है। इनमें एमकॉर फलैक्सीबल प्राइवेट लिमिटेड, वैडर पराज एग्जिम गोल्ड काशीपुर रोड रुद्रपुर, बोल्टास लिमिटेड सिडकुल पंतनगर, एसोसिएट एप्लाईसेंस, ऐरा बिल्डसिस लिमिटेड, एचसीएल इम्फोसिस लिमिटेड, समृद्धि इंडस्ट्रीज लिमिटेड, डेल्फी टीवीएस डीजल सिस्टम लिमिटेड, कोरस प्रिंटर टेक्नोलॉजी पंतनगर सिडकुल और ऑटोडेकोर प्राइवेट लिमिटेड किशनपुर किच्छा और जायडस प्रोडक्टस लिमिटेड सितारगंज की कंपनी पूर्णतया बंद हो गई है। जबकि इससे पहले वर्ष 2012 में आरावली इन्फ्रा, जेक्सन इंडिया और रियल टाइम सिस्टम 2013 में गेमजन प्लास्ट तथा वर्शवाल कोटिंग और नरेंद्र प्लास्टिक 2015 में महारानी पेंट्स 2017 में एएनजी और चेचिस ब्रिक्स इंडिया इसके अलावा 2018 में बॉस कंपनी बंद हो चुकी है।
यही नहीं बल्कि भारत की एकमात्र कम्प्यूटर बनाने वाली कंपनी एचपी इंडिया भी यहां से चेन्नई पलायन कर गई थी और मजदूर सड़क पर आ गए थे जो अभी भी संघर्षरत हैं। पंतनगर स्थित भगवती-माइक्रोमैक्स के 303 मजदूर भी इसी तरीके से गैरकानूनी छंटनी के शिकार हुए थे और 27 दिसंबर, 2018 से संघर्ष कर रहे हैं। भगवती प्रोडक्ट्स माइक्रोमैक्स के मजदूर गैर कानूनी छंटनी के खिलाफ पिछले चार वर्षो से संघर्षरत हैं। यहां 47 मजदूर गैरकानूनी लेऑफ का शिकार हैं। जबकि यूनियन अध्यक्ष अवैध निलंबन और फिर बर्खास्तगी झेल रहे हैं। कुल 351 मजदूर न्याय के लिए लगातार संगठित रूप से जमीनी लड़ाई से लेकर कानूनी लड़ाई तक वे लड़ते रहे हैं। औद्योगिक न्यायाधिकरण हल्द्वानी से लेकर उच्च न्यायालय नैनीताल तक से मजदूरों ने जीत हासिल की है।
बात अपनी-अपनी
उद्योग-धंधों में आंदोलित श्रमिकों और कंपनी प्रबंधन के बीच वार्ता करवाकर समझौते का प्रयास किया जा रहा है। कई मामलों में दोनों पक्षों के बीच सहमति नहीं बन पाती है। कई मामलों में कंपनी प्रबंधन आंदोलन का हवाला देकर कंपनियों में तालाबंदी कर श्रम विभाग को सूचित कर देते हैं तो कई अन्य कारणों से बंद होती है। फिलहाल जयडस वैलनेस प्रोडक्ट लिमिटेड के मामले में मजदूरों की संख्या बल की जांच कराई जा रही है। उसके आधार पर ही श्रम कानूनों के तहत मजदूरों को न्याय दिया जाएगा।
विपिन कुमार, उप श्रमायुक्त
कंपनी लेवर एक्ट के तहत प्रावधान है कि कोई भी कंपनी अगर बंद होती है तो उसे 60 दिन पहले ही कंपनी बंद करने की सूचना देनी होगी। यही नहीं बल्कि कंपनी बंद होने से पहले ही इस नोटिस पीरियड के अंतर्गत कर्मचारियों के सभी देय वेतन भत्ते आदि का भुगतान किया जाना जरूरी है। इसी के साथ यह भी नियम है कि अगर किसी कंपनी में 300 से कम कर्मचारी हैं तो उसे नोटिस पीरियड में छूट है। लेकिन जयडस वैलनेस प्रोडक्ट लिमिटेड के मामले में कंपनी प्रबंधन अपने कर्मचारियों की संख्या 150 बताकर भर्मित कर रहा है। जबकि सच्चाई यह है कि इस कंपनी में 1200 कर्मचारी हैं। 150 कर्मचारी स्थाई हैं तो बाकि अस्थाई है।
विकास सती, अध्यक्ष एम्प्लाइज यूनियन जयडस वैलनेस प्रोडक्ट लि.
सितारगंज सिडकुल की जमीन पर स्थापित उद्योग कई वजह से बंद हो गए हैं, जिनमें कई के बंद होने का कारण आर्थिक स्थिति के साथ ही कच्चा माल नहीं मिलना है। जयडस वैलनेस प्रोडक्ट लिमिटेड के बंद होने का यही कारण बताया जा रहा है। सिडकुल में मजदूरों के हितो का ध्यान रखा जाएगा। अगर कोई उद्योग बंद होता है तो उसके स्थान पर नए उद्योग लगवाए जाएंगे। यदि कोई उद्यमी उन्हीं उद्योगों को संचालित करना चाहता है तो ऐसे उद्यमियों को भी यह कंपनियां दिलाई जा सकती हैं।
संदीप चावला, डीजीएम, सिडकुल सितारगंज