[gtranslate]
Uttarakhand

अंग्रेजी अक्षर भैंस बराबर

तत्कालीन त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार के शिक्षा मंत्री अरविंद पाण्डेय को शिक्षा के क्षेत्र में नए प्रयोग करने के लिए जाना गया। हालांकि यह दूसरी बात है कि उनके ज्यादातर प्रयोग सफलता और असफलता के बीच ही रहे। उनका एक प्रयोग इंग्लिश मीडियम स्कूल बनाने का था। इसके तहत हिंदी पढ़ा रहे विद्यालयों में एनसीआरटी की बुक्स लगाई गईं। दावा किया गया कि उत्तराखण्ड के ज्यादातर स्कूल अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा देने लगे हैं। इसी परिपाटी में एक प्रयोग कक्षा छह से विज्ञान विषय को अंग्रेजी में पढ़ाने का भी हुआ। जिन छात्रों को अंग्रेजी सब्जेक्ट के अलावा अन्य किसी विषय में इंग्लिश की किताब नहीं पढ़ाई जाती थी उन्हें अचानक आधुनिकीकरण के नाम पर विज्ञान विषय को भी अंग्रेजी में ही पढ़ाया जाने लगा। यह अंग्रेजी ज्यादातर छात्रों के साथ शिक्षकों के लिए भी ‘काला अक्षर भैंस बराबर’ साबित हो रही है

कभी-कभी कुछ नया करने के चक्कर में पुराना भी छूट जाता है। ऐसा ही आजकल उत्तराखण्ड की शिक्षा नीति को लेकर हो रहा है। पांच साल पहले जब प्रदेश में त्रिवेंद्र सिंह रावत की सरकार थी तब शिक्षा विभाग में एक तुगलकी फरमान जारी किया गया था। इस फरमान में कक्षा 6 से विज्ञान विषय को अंग्रेजी में पढ़ाने का आदेश हुआ। यह आदेश तत्कालीन त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार के लिए तो सिर दर्द रहा ही वर्तमान धामी सरकार के लिए भी परेशानी का सबब बना हुआ है। परेशानी का सबब इसलिए कि सरकारी स्कूलों के जिन बच्चों को अंग्रेजी की वर्णमाला तक सही ढंग से नहीं आती हो उनके लिए एक ऐसा नियम बना दिया गया है जो उनके लिए ‘काला अक्षर भैंस बराबर’ साबित हो रहा है। यह है कक्षा 6 से विज्ञान विषय को अंग्रेजी में पढ़ाने का फरमान। इस फरमान के आगे कोई मुंह खोलने को तैयार नहीं है। अगर कोई इस मामले में विरोध करता है तो कहा जाता है कि सरकार नई नीति के तहत विद्यालयां का कायाकल्प करने में जुटी है और छात्रों को आधुनिक शिक्षा से जोड़ रही है लेकिन रूढ़ीवादी लोग इसका विरोध कर रहे हैं। इसी के साथ सरकारी स्कूलों में अध्यापन कार्य करा रहे शिक्षकों के लिए भी सरकार का यह आदेश असमंजस में डाल रहा है क्योंकि शिक्षक भी इस नीति का खुलकर विरोध नहीं कर पा रहे है।
गौरतलब है कि उत्तराखण्ड की शिक्षा व्यवस्था को बेहतर बनाने की जद्दोजहद के बीच पांच वर्ष पूर्व त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार के द्वारा एक आदेश जारी हुआ था, जो अब कई शिक्षकों के लिए गले की फांस बन गया है, तो वही छात्रों के लिए इस आदेश के तहत पढ़ाई करना भी किसी मुश्किल हालतों से सामना करने जैसा है। तब शिक्षा विभाग ने एक आदेश जारी किया था, जिसके तहत कक्षा 1 से लेकर 12वीं तक की पढाई एनसीईआरटी पुस्तकों के माध्यम से होने का निर्देश था। लेकिन इसी आदेश में एक महत्वपूर्ण बात यह थी कि कक्षा 6 से छात्रों को विज्ञान विषय अंग्रेजी में पढ़ाया जाएगा। कक्षा 6 से शुरू हुआ यह सिलेबस अब कक्षा 10 तक जा पंहुचा है जहां अंग्रेजी में विज्ञान विषय पढ़ाया जा रहा है। लेकिन इस सिलेबस के तहत न केवल छात्रों को बल्कि अध्यापकों को भी असहज होना पड़ रहा है। अंग्रेजी में विज्ञान विषय पढ़ाने के लिए शिक्षकों को कोई प्रशिक्षण नहीं दिया गया है। इससे शिक्षकों के सामने ऊहापोह की स्थिति है। वे सरकार से यह भी मना नहीं कर सकते हैं कि वे अंग्रेजी में विज्ञान नहीं पढ़ा सकते हैं तो दूसरी तरफ वे छात्रों को भी इस विषय में अंग्रेजी में निपुण करने में पूरी तरह सफल नहीं हो पा रहे हैं। राजकीय विद्यालयों में विगत वर्षों के विज्ञान को अंग्रेजी में पढ़ाने के अनुभव भी उत्साहवर्धक नहीं रहे। खास बात यह है कि इस विषय के छात्र ज्यादातर अनुत्तीर्ण हो रहे है जो सरकार के लिए चिंता का विषय है। अगले साल जब 10वीं की बोर्ड परीक्षा अंग्रेजी माध्यम से होगी तो स्वाभाविक है कि उनकी बोर्ड की परीक्षा का रिजल्ट पर भी इसका असर पड़ा सकता है जिससे शिक्षक और छात्र दोनों ही आशंकित हैं।


शिक्षकों का कहना है कि दसवीं में जब अंग्रेजी अनिवार्य विषय नहीं है, ऐसे में विज्ञान को अंग्रेजी में पढ़ाए जाने की व्यवस्था ठीक नहीं है। इससे खासकर संस्कृत से हाईस्कूल करने वाले छात्र-छात्राओं को दिक्कतें होंगी। भले ही विभाग ने स्कूलों को विज्ञान विषय को अंग्रेजी माध्यम में पढ़ाने के निर्देश दिए हों, लेकिन शुरुआत में ही इस विषय की सभी मासिक परीक्षाएं हिंदी माध्यम से कराई गईं। यहां तक कि विभाग ने स्कूलों को पेपर भी हिंदी माध्यम वाले भेजे। जिसका शिक्षक संगठनों ने भी विरोध किया। विभागीय अधिकारियों की अनदेखी के चलते शिक्षक और छात्र यह नहीं समझ पा रहे थे कि उन्हें अंग्रेजी माध्यम से पढ़ना है या पहले की तरह हिंदी माध्यम से। चौंकाने वाली बात यह है कि यह नीति 2017 से शुरू हुई और 2019 तक उत्तराखण्ड के सरकारी एवं अशासकीय स्कूलों में विज्ञान की पढ़ाई कहीं अंग्रेजी और कहीं हिंदी माध्यम से कराई जाती रही। पहले विभाग ने स्कूलों को विज्ञान विषय अंग्रेजी में पढ़ाने के निर्देश दिए थे, लेकिन बाद में मासिक सिलेबस हिंदी में बनाकर भेज दिया गया। ऐसे में शिक्षक परेशान होते रहे कि वे विज्ञान विषय को हिंदी में पढ़ाएं या फिर अंग्रेजी में। एससीईआरटी ने स्कूलों को मासिक सिलेबस में विज्ञान विषय भी हिंदी में भेजा था जबकि इसे अंग्रेजी में भेजना था। एक तरफ अफसरों के निर्देश, दूसरी तरफ विभाग की ओर से हिंदी माध्यम में जारी सिलेबस ने शिक्षकों को असमंजस में डाल दिया है।


राजकीय शिक्षक संघ में कुमाऊं के जनरल सेक्रेटरी डॉ कैलाश सिंह डोलिया का कहना है कि छात्रों को विज्ञान विषय अंग्रेजी में पढ़ना है कि नहीं यह छात्रों पर छोड़ा जाना चाहिए। इससे उन छात्रों को फायदा होगा जिनकी अंग्रेजी पर पकड़ मजबूत नहीं है, साथ ही वह सरकार से मांग करते हैं कि सभी स्कूलों में अंग्रेजी स्पीकिंग को लेकर छात्रों को प्रशिक्षित किया जाना चाहिए। जिससे छात्रों की पकड अंग्रेजी भाषा में बोलचाल पर मजबूत हो सकें। जहां तक शिक्षकों का विषय है तो ज्यादा शिक्षकों को विज्ञान विषय में अंग्रेजी में पढ़ाने में दिक्कत नहीं होनी चाहिए, क्योंकि विज्ञान विषय अंग्रेजी शब्दों पर ज्यादा आधारित है लेकिन छात्रों को उनकी पंसद के हिसाब से हिंदी या अंग्रेजी में पढाया जाना चाहिए था। कई शिक्षकों का मानना है कि न तो उन्हें और न ही बच्चों को विज्ञान विषय अंग्रेजी में समझ आता है तो माध्यमिक स्तर पर शिक्षकों के बिना प्रशिक्षण के विज्ञान विषय को सभी के लिए अंग्रेजी माध्यम में पढ़ाना तर्कसंगत नहीं है। ऐसे में उत्तराखंड में शिक्षा के तीन निदेशालय विशेष रूप से प्रशिक्षण के लिए अलग निदेशालय केवल सरकारी खजाने पर बोझ बढ़ाने के लिए ही बनाया गया प्रतीत होता है। डॉ ़ डोलिया के अनुसार अकादमिक शोध एवं प्रशिक्षण निदेशालय विज्ञान को अंग्रेजी में संचालित करने के शासन के निर्णय को धरातल पर पहुंचाने के लिए किसी भी प्रकार की तैयारी नहीं कर सका है और इस वर्ष तो शिक्षकों के प्रशिक्षणों हेतु केंद्र सरकार द्वारा कोई धनराशि भी नहीं दी जा रही है। ऐसे में विद्यार्थियों का भविष्य विज्ञान जैसे विषय में अंधकार में ही डूबता नजर आ रहा है। सवाल यह है कि एक तरफ तो सरकार अटल आदर्श विद्यालयों के लिए विशेष रूप से अंग्रेजी माध्यम में पठन-पाठन कराने वाले शिक्षकों की ही नियुक्ति की बात कर रही है तो फिर अन्य विद्यालयों में विज्ञान को बिना किसी तैयारी के अंग्रेजी माध्यम से कैसे पढ़ाया जा सकता है?


यहां यह भी बताना जरूरी है कि पुष्कर सिंह धामी सरकार शिक्षा के सरलीकरण की तैयारी कर रही है। जिसके तहत नई शिक्षा नीति को लागू करने की तैयारी की जा रही है। उत्तराखण्ड की नई शिक्षा नीति के अनुसार गढ़वाल मंडल में गढ़वाली जबकि कुमाऊं मंडल में कुमाऊंनी भाषा का अध्ययन करने के लिए पाठ्यक्रम बनाए जा रहे हैं। माना जा रहा है कि अगले सत्र से छात्र-छात्राओं को अपनी लोक भाषाओं का अध्ययन करने का मौका मिलेगा। इसके साथ ही उन्हें लुप्त होती है ऐपण कला सीखने को भी मिलेगी। जिससे लोक भाषाओं और लोक कला को काफी बढ़ावा मिलेगा। इसे संरक्षित करने एवं एक शब्दकोश तैयार करने के लिए गांव-गांव में सर्वे कर शोध प्रोजेक्ट भी चलाया जाएगा। लेकिन इसके विपरीत आज से पांच साल पहले विज्ञान विषय को अंग्रेजी में पढ़ाए जाने के आदेश भी हुए जिसमें बहुत जल्दबाजी का निर्णय कहा गया। लोगां की मानें तो उस समय इस विषय पर लोगों की राय- मशविरा लेने के बाद और एक स्पष्ट नीति बनाने के बाद ही फैसला लिया जाना था, लेकिन ऐसा नहीं किया गया।


रिटायर्ड अध्यापक गणेश जोशी कहते हैं कि प्रदेश के कई स्कूलों की आज भी खस्ता हालत है। आज भी बच्चे पांचवी पास होने के बाद भी सही से हिंदी तक नहीं बोल पाते हैं। कुछ विद्यालयों में सिर्फ हिंदी मीडियम के टीचर्स हैं। जिनको अंग्रेजी पढ़ाने में कठिनाई आती है। जरूरी होगा कि इसके लिए कुछ बदलाव करने होंगे। सरकार की कोशिश है कि स्कूलों में अंग्रेजी को माध्यम बनाया जाए।


बावजूद इसके कि अंग्रेजी में सरकारी स्कूलों के छात्र असहज होते हैं। अक्सर देखा गया है कि सरकारी स्कूलों के छात्र अंग्रेजी में हाथ तंग होने के कारण कई अवसरों पर अपेक्षाकृत बेहतर प्रदर्शन करने से चूक जाते हैं। बौद्धिक लोगों की यह दलील है कि मातृभाषा को शिक्षा का माध्यम होना चाहिए, सरकारी स्कूलों में अंग्रेजी माध्यम रास्ते में रोड़ा बनता रहा है। अंग्रेजी स्थानीय भाषा को निगल लेगी। अगर कर्नाटक की ही बात करें तो वहां एक हजार अंग्रेजी माध्यम स्कूल शुरू करने के निर्णय का भारी विरोध हो रहा है। सरकार निजी स्कूलों से छात्रों को सरकारी स्कूलों में लाने के लिए यह प्रयास कर रही है। यह विरोध इस आधार पर हो रहा है कि अंग्रेजी स्थानीय भाषा को निगल लेगी। वे कहते हैं कि कई राज्यों में अंग्रेजी को स्कूली शिक्षा का माध्यम बनाए जाने के प्रयास किए गए हैं। पंजाब की बात करे तो वहां वर्तमान सत्र से ही 1886 सरकारी स्कूलों में अंग्रेजी माध्यम शुरू करने की योजना थी। ये स्कूल मध्य, उच्च और उच्च माध्यमिक स्तर पर खोले जाने थे। पर सिर्फ 1424 स्कूलों ने ही इसकी सहमति दी। शेष के बारे में संसाधनों और शिक्षकों की कमी का तर्क दिया गया है। उत्तराखण्ड के बारे में एक सच यह है कि यहां सरकार के आगे कोई सच बोलने को तैयार नहीं होता है।

यह मामला हमारे संज्ञान में आया है। इसपर विचार कर रहे है कि किस तरह से छात्रों की इस समस्या का समाधान किया जाए। बहुत जल्द ही इसका समाधान सामने आएगा।
डॉ. धन सिंह रावत, शिक्षा मंत्री

एक तरफ तो प्रदेश सरकार लोकल भाषा को प्रोजेक्ट करने का दावा करने के साथ ही गढ़वाली और कुमाऊंनी भाषा को पढ़ाने की बात कह रही है वहीं दूसरी तरफ एक विदेशी भाषा को छात्रों पर जबरन थोप रही है। माना की यह भाषा हमें
आधुनिकता की ओर ले जा रही है लेकिन इससे पहले इस भाषा की अच्छी तरह से छात्रों को तैयारी करानी चाहिए थी। सीधे ही कक्षा 6 में विज्ञान को अंग्रेजी में पढ़ाना तर्कसंगत नहीं है। सरकार को चाहिए था कि विज्ञान विषय को अंग्रेजी में पढ़ाने के साथ-साथ इंग्लिश की एक्स्ट्रा क्लास भी देनी चाहिए थी जिससे छात्रों को परेशानी नहीं होती। देखने में आ रहा है कि इस विषय में ज्यादातर छात्र फेल हो रहे हैं।
मंत्री प्रसाद नैथानी, पूर्व शिक्षा मंत्री

You may also like

MERA DDDD DDD DD