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Uttarakhand

अंकिता भंडारी हत्याकांड: आधा अधूरा-सा न्याय

अंकिता भंडारी

उत्तराखण्ड की एक 19 वर्षीय बेटी अंकिता भंडारी ने जब ‘वीआईपी’ मेहमानों को ‘स्पेशल सर्विस’ देने से इनकार किया तो सत्ता और पूंजी के गठजोड़ ने उसकी हत्या कर दी। स्थानीय भाजपा विधायक की संदिग्ध भूमिका, पुलिस की प्रारम्भिक निष्क्रियता और मुख्यमंत्री की ओर से गठित एसआईटी की कार्रवाई, यह मामला सिर्फ एक हत्या नहीं, बल्कि राजनीतिक और नैतिक परिक्षण था। गौरतलब है कि जब कांग्रेस सत्ता में थी, तब इस तरह की वीआईपी संस्कृति पर भाजपा ने उसे घेरा था। पर आज खुद भाजपा सत्ता में है और वही चाल, वही चरित्र, वही चेहरा धीरे-धीरे धुंध में खो चुका है। जिस नैतिक ऊंचाई से पार्टी ने अपनी यात्रा शुरू की थी, वह अब सत्ता की चुप्पी और संरक्षण की गूंज में कहीं दब चुकी है

यह कहानी उत्तराखण्ड के पहाड़ों से आती है। पौड़ी गढ़वाल के डोभ श्रीकोट गांव की एक होनहार बेटी, अंकिता भंडारी, जिसने अपने स्कूल में टाॅप किया, होटल मैनेजमेंट की पढ़ाई कर रही थी। लेकिन कोविड-19 के दौरान आर्थिक संकट आया और उसे पढ़ाई छोड़नी पड़ी। घर की हालत खराब थी, पिता सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी करते थे।

न्याय से असंतुïष्टï अंकिता भंडारी के माता-पिता

अंकिता ने अपने दोस्त पुष्प राज के माध्यम से ऋषिकेश के पास यमकेश्वर ब्लाॅक में स्थित ‘वनंतरा रिसाॅर्ट’ में रिसेप्शनिस्ट की नौकरी पकड़ ली। यह रिसाॅर्ट भाजपा नेता और पूर्व मंत्री विनोद आर्य के बेटे पुलकित आर्य का था। अंकिता ने 28 अगस्त 2022 को यह नौकरी शुरू की थी। सिर्फ 17 दिनों में उसे इस जगह की असलियत समझ आने लगी। रिसाॅर्ट में काम करने वाले कई लोग वीआईपी मेहमानों के नाम पर संदिग्ध गतिविधियों में शामिल थे। अंकिता पर भी लगातार ‘स्पेशल सर्विस’ देने का दबाव बनाया जा रहा था, जिसे उसने सिरे से ठुकरा दिया।

व्हाट्सएप चैट से खुला राज

17 सितम्बर की रात को करीब 10 बजे अंकिता ने अपने दोस्त पुष्प को एक भयावह मैसेज भेजा: ‘ये होटल इतना गंदा है… मुझे’ बनाने पर तुले हैं। मैं गरीब हूं तो क्या 10 हजार में बिक जाऊं? ‘पुष्प, जो जम्मू में रह रहा था, स्तब्ध रह गया। उसने तुरंत अंकिता को समझाया कि वो नौकरी छोड़ दे, वापस घर चली जाए। लेकिन अंकिता को डर था। उसने बताया कि रिसाॅर्ट मालिक पुलकित और उसके सहयोगी सौरभ और अंकित उसे धमका रहे हैं। 18 सितम्बर को अंकिता गायब हो गई। 19 की सुबह जब वह अपने कमरे से नहीं मिली, तब उसके पिता ने खोज शुरू की। रिसाॅर्ट में कोई जानकारी नहीं दी गई। स्थानीय पुलिस चैकी से लेकर थानों तक दौड़ लगाई, लेकिन कहीं कोई सुनवाई नहीं हुई। सोशल मीडिया पर जब अंकिता की तस्वीर और उसके पिता की गुहार वायरल हुई, तब जाकर प्रशासन ने हरकत दिखाई। चार्जशीट और अभियोजन की रिपोर्ट के अनुसार, अंकिता को 18 सितम्बर की शाम पुलकित और उसके सहयोगियों ने गाड़ी में बिठाकर रिसाॅर्ट से ऋषिकेश के रास्ते ले गए। सीसीटीवी फुटेज और मोबाइल लोकेशन से पुष्टि हुई कि सभी चार लोग साथ गए लेकिन वापस केवल तीन लौटे। चीला नहर के पास एक सुनसान स्थान पर अंकिता को मारपीट के बाद नहर में धक्का दे दिया गया। पोस्टमार्टम रिपोर्ट ने पुष्टि की कि वह डूबने से मरी थी और उसके शरीर पर गंभीर चोटें थीं। यह हत्या योजनाबद्ध और संगठित थी।

विधायक रेणु बिष्ट की भूमिका

इस मामले को और अधिक विवादास्पद बनाने वाला तत्व था भाजपा की विधायक रेणु बिष्ट की भूमिका। वे घटनास्थल से लेकर मोर्चरी तक हर जगह दिखीं। मीडिया रिपोर्ट्स और स्थानीय जनता के अनुसार उन्होंने प्रशासन पर दबाव बनाने की कोशिश की। लोगों ने उनके वाहन में तोड़-फोड़ की। यह संदेह गहरा हुआ कि वह पुलकित आर्य को बचाने के लिए सक्रिय थीं। भाजपा की महिला प्रतिनिधि का इस तरह की संदिग्ध भूमिका में होना, पार्टी के लिए गहरे नैतिक संकट जैसा था।

बुलडोजर न्याय या बुलडोजर संरक्षण?

जब आमजन का गुस्सा फूटा तो सरकार ने आनन-फानन में रिसाॅर्ट पर बुलडोजर चला दिया। अंकिता के पिता और स्थानीय पत्रकारों ने आरोप लगाया कि यह सबूत मिटाने की कवायद थी। सरकारी अधिकारियों ने स्पष्ट इनकार किया कि उन्होंने ऐसा कोई आदेश नहीं दिया है। जेसीबी मशीन चालक और कर्मचारियों ने बाद में गवाही दी कि बुलडोजर का इस्तेमाल किया गया और रिसाॅर्ट को जान-बूझकर तहस-नहस किया गया। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इस हत्याकांड को गम्भीरता से लिया और भाजपा नेताओं की संयोजकता होने के बावजूद तुरंत एक विशेष जांच दल का गठन किया। उन्होंने इस जांच दल की निगरानी एक ईमानदार आईपीएस अधिकारी रेणुका देवी को सौंपी और अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक  मुरुगेसन को इस जांच दल और निगरानी का काम सौंपा। इस टीम ने 500 पन्नों की चार्जशीट तैयार की। 97 गवाहों में से 47 गवाही के लिए कोर्ट पहुंचे। अंकिता के दोस्त पुष्प, रिसाॅर्ट के कर्मचारी विवेक आर्य और जेसीबी चालक दीपक की गवाही निर्णायक रही। अदालत में अभियोजन का पक्ष मजबूती से रखा गया।

क्या यह पूरा न्याय है?

30 मई 2025 को कोटद्वार की अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश रीना नेगी ने तीनों अभियुक्तों को उम्रकैद की सजा सुनाई और 50-50 हजार रुपए जुर्माना लगाया। यह सजा निश्चित रूप से एक प्रतीकात्मक न्याय था, लेकिन क्या यह पर्याप्त था? अंकिता के पिता ने अदालत से फांसी की मांग की थी। उन्होंने कहा- ‘मेरी बेटी बिकने को नहीं तैयार थी, इसलिए उसे मार दिया गया। क्या उसकी आत्मा को चैन मिलेगा इस फैसले से?’ यह घटना हमें 2012 के निर्भया कांड की याद दिलाती है, जिसने देश की आत्मा को झकझोर दिया था। कानून बदले, दुष्कर्म के मामलों में कठोरता लाई गई, लेकिन क्या समाज बदला? राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो रिकाॅर्ड के अनुसार 2022 में भारत में 31,000 से अधिक बलात्कार के मामले दर्ज हुए। इनमें सैकड़ों मामलों में न्याय आज भी लम्बित है। अधिकतर मामलों में पीड़िताएं आर्थिक रूप से कमजोर या समाज के हाशिए पर हैं।

फांसी से कम सजा मंजूर नहीं

कांग्रेस, भाजपा और नैतिकता की हार

जब कांग्रेस सत्ता में हुआ करती थी और भाजपा राजनीतिक जमीन तैयार कर रही थी, तब वह ‘वीआईपी संस्कृति’ और ‘कांग्रेसी नेताओं के परिजनों’ द्वारा सत्ता के दुरुपयोग का मुद्दा उठाती थी लेकिन अब जब भाजपा सत्ता में है, वह उन्हीं गलियों में खड़ी दिख रही है। भाजपा ने कभी ‘चाल, चरित्र और चेहरा’ का नारा देकर नैतिक राजनीति की बात की थी। लेकिन आज जब उसी पार्टी के एक नेता का बेटा, एक गरीब लड़की की हत्या का दोषी करार दिया गया है तो पार्टी के नैतिक अधिष्ठान पर प्रश्नचिन्ह लगना स्वाभाविक है। यह केवल अंकिता की हत्या नहीं थी, यह एक पूरी पीढ़ी की उम्मीद की हत्या थी। एक लड़की जिसने अपने स्वाभिमान की कीमत जान देकर चुकाई। इस मामले ने हमें याद दिलाया है कि जब न्याय प्रणाली सुस्त हो और सत्ता भ्रष्ट, तब जनता की आवाज ही असली अदालत होती है। अंकिता आज नहीं है, लेकिन उसकी सिसकती आवाज हर उस लड़की में जीवित है, जो रोजाना इस पितृसत्तात्मक समाज में ‘न बिकने’ की जिद के साथ खड़ी होती है।

बात अपनी-अपनी 

मैं बिल्कुल खुश नहीं हूं, जिन दरिंदों ने मेरी बेटी को मारा उनको फांसी की सजा मिलनी चाहिए थी। हम आज हैं कल नहीं रहेंगे, लेकिन हम चाहते हैं कि अपने जीते जी तीनों दरिंदों को फांसी पर लटकता हुआ देखें। हम फांसी की सजा के लिए हाईकोर्ट जाएंगे, जब तक फांसी नहीं होगी तब तक मेरी बेटी को न्याय नहीं मिलेगा। सरकार ने भी हमें कोई सहयोग नहीं दिया। कोटद्वार कोर्ट में आने-जाने के लिए हमें बहुत परेशानी होती रहीं लेकिन डीएम पौड़ी ने हमारे लिए कभी कोई गाड़ी की सुविधा उपलब्ध नहीं करवाई, जबकि पौड़ी में कई विभागों की सैकड़ों सरकारी गाड़ियां हैं। मुख्यमंत्री धामी जी ने 2023 में अपने जन्मदिन पर घोषणा की थी कि श्री कोट डोभ नर्सिंग काॅलेज का नाम अंकिता भंडारी के नाम पर रखा जाएगा, लेकिन तब से 18 महीने हो गए अभी तक कोई काम नहीं हुआ। एक बात से मैं बहुत दुखी हूं कि मीडिया में कुछ लोग यह कह रहे हैं कि सरकार ने अंकिता भंडारी के पिता और भाई को सरकारी नौकरी दी है, यह बिल्कुल झूठ है। न तो मुझे और न ही मेरे बेटे को सरकार ने नौकरी दी है। ऐसे मीडिया और न्यूज चैनल के खिलाफ मैं कानूनी कार्रवाई करूंगा।

वीरेंद्र सिंह भंडारी, अंकिता भंडारी के पिता 

अंकिता भंडारी हत्याकांड में आरोपियों को सजा मिल गई है। लेकिन लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई, बल्कि शुरू हुई है। कोर्ट ने इन्हें दोषी ठहराया है, लेकिन क्या ये काफी है? सवाल उठता है कि जब सत्ता, पैसे और रसूख का गठजोड़ होता है, तब आम जनता की बेटियां कितनी सुरक्षित है? चूंकि हत्यारे सीधे तौर पर भाजपा व सरकार के ताकतवर लोगों से जुड़े थे इसलिए कांग्रेस और जनता की पुरजोर मांग पर भी सीबीआई जांच नहीं हुई। सवाल अब भी जिंदा है कि वो वीआईपी गेस्ट कौन था? क्यों छुपाए गए रिजाॅर्ट के रिकाॅर्ड्स? किसे बचाया जा रहा है? न्याय की राह लम्बी थी, लेकिन अधूरी नहीं होनी चाहिए। हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट से आशा है कि दोषियों को सख्त से सख्त सजा मिले।

यशपाल आर्य, नेता प्रतिपक्ष 

मेरा मानना है कि यह न्याय अभी अधूरा है, जिस यातना से अंकिता भंडारी का परिवार, उसके माता-पिता गुजरे हैं और जिस तरह की हैवानियत अंकिता भंडारी के साथ की गई उसके बदले में आजीवन कारावास नहीं इन तीनों मुख्य आरोपियों को फांसी की सजा होनी चाहिए थी, तभी अंकिता की आत्मा को शांति मिलती। यह न्याय अधूरा है हम इसलिए भी कह रहे हैं क्योंकि क्राइम स्पाॅट पर बुलडोजर चलाने और साक्ष्य, सबूत को नष्ट करने पर यमकेश्वर से भाजपा विधायक रेणु बिष्ट पर कार्यवाही तो दूर कोई टिप्पणी तक न्यायालय ने नहीं की। वहीं
पुलिसकर्मियों की मौजूदगी में दो बार रिसोर्ट में आग कैसे लगी इसका खुलासा नहीं हुआ। उस वीआईपी का नाम भी उत्तराखण्ड वासियों को पता नहीं चल पाया जिसको एक्स्ट्रा सर्विस देने के नाम पर अंकिता भंडारी पर दबाव बनाया गया और उसका यह हश्र हुआ।

गरिमा दसौनी, प्रवक्ता उत्तराखण्ड प्रदेश कांग्रेस कमेटी

अंकिता के पिता सबसे पहले मुझसे मिलने ऋषिकेश आवास पर आए। उनके कुछ रिश्तेदार भी साथ में थे। मैंने तुरंत डीएम पौड़ी को टेलीफोन के माध्यम से कहा इस मामले को राजस्व से रेगुलर पुलिस को ट्रांसफर किया जाए। उसके बाद मैं मुख्यमंत्री जी से मिली। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी जी का आभार कि उन्होंने इसमें कड़ा रुख अपनाया और अपराधियों को जेल भेजा साथ ही उनके माता-पिता को आर्थिक सहयोग प्रदान किया। न्यायालय ने जो डिसीजन दिया उसका हम सम्मान करते हैं। अपराधी कोई भी हो कानून से नहीं बच सकता।

कुसुम कंडवाल, अध्यक्ष, राज्य महिला आयोग उत्तराखण्ड

मुझे इस मामले में सरकार ने लोक अभियोजक नियुक्त किया था, पुलिस और जांच टीम ने सभी सबूत और गवाहों के साथ बेहतर तालमेल किया और कोर्ट में मजबूत चार्जशीट पेश की, उसी का परिणाम है कि अंकिता भंडारी को न्याय मिला। मैं इस फैसले से पूरी तरह से संतुष्ट हूं। न्यायालय का यह फैसला उत्तराखण्ड ही नहीं देश के लिए भी एक नजीर है। इतने कम समय में अपराधियों को आजीवन कारावास की सजा दी गई है। यह ऐतिहासिक फैसला है।

अवनीश नेगी, अधिवक्ता

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