कार्यस्थल पर यौन शोषण को गंभीर अपराध माना जाता है। सुप्रीम कोर्ट ऐसे मामलों में कई बार सख्त फैसले दे चुका है। इसके बावजूद देवभूमि कहलाए जाने वाले उत्तराखण्ड में धामी सरकार के मंत्री गणेश जोशी यौन उत्पीड़न को मामूली मानते हैं। उनके अधीन राजकीय मुद्रणालय रुड़की के अपर निदेशक सर्वेश कुमार गुप्ता पर यौन उत्पीड़न का गंभीर आरोप लगा तो विभाग ने गुप्ता को निलंबित करते हुए नियमानुसार जांच कराई। जांच में गुप्ता को दोषी पाया गया। कार्यस्थल पर यौन शोषण कानून के अनुसार गुप्ता की सेवाएं समाप्त की जानी चाहिए थी लेकिन गणेश जोशी ने तमाम संवैधानिक और नैतिक मर्यादाओं को दरकिनार कर गुप्ता की बहाली और ‘लघु दण्ड’ दिए जाने का हुक्म दे डाला है
Does an action of the superior against a female employee which is against moral sanctions and does not withstand best of decency and modesty not amount to sexual harassement? Is physical contact with the female employee an essential ingredient of such a charge? Does the allegation that the superior tried to molest a female employee at the place, not constitute an act, unbecoming of good conduct and behaviour expected from the superior? (क्या एक वरिष्ठ का अपनी जूनियर महिला कर्मचारी संग अशोभनीय एवं अमर्यादित आचरण यौन शोषण की परिधि में नहीं आता? क्या शारीरिक संबंध बनाना ही यौन शोषण है? क्या यह आरोप कि वरिष्ठ अधिकारी ने अपनी कनिष्ठ महिला का कार्यस्थल में यौन शोषण का प्रयास किया गलत नहीं है?)
उक्त प्रश्न यौन उत्पीड़न के एक मामले में अपैरल एक्सपोर्ट प्रोमोशन काउंसिल बनाम ए.के. चोपड़ा की सुनवाई करते समय 20 जनवरी, 1999 को सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति आदर्श सेन आनंद ने पूछे थे। उन्होंने इस मामले में अपना निर्णय सुनाते हुए कहा था कि इस प्रकार का आचरण हर दृष्टि से यौन शोषण के दायरे में आता है। न्यायमूर्ति आनंद के शब्दों में “Any action or gesture whether directly of by implication, aims at or has the tendency to outrage the modesty of a female employee, must fall under the general concept of the definition of sexual harassment” (कोई भी ऐसा कृत्य या संकेत, चाहे प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष तौर पर किए गए हों जो किसी महिला की अस्मिता संग खिलवाड़ करते हों, यौन दुराचार की श्रेणी में आते हैं।)
न्यायमूर्ति आनंद ने अपने निर्णय के जरिए दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा इस प्रकरण में आरोपी अधिकारी की नौकरी से बर्खास्तगी के विभागीय निर्णय पर रोक लगाने संबंधी आदेश को रद्द कर दिया था। उत्तराखण्ड की वर्तमान पुष्कर सिंह धामी सरकार में सैनिक कल्याण, औद्योगिक विकास, लघु एवं मध्यम उद्योग मंत्री गणेश जोशी शायद देश की सर्वोच्च अदालत के इस निर्णय से अवगत नहीं रहे होंगे। पूरी संभावना है कि वे कार्यस्थल पर यौन शोषण एक गंभीर अपराध नहीं मानते हैं। लेकिन यह भी पूरी संभावना है कि गणेश जोशी ने ‘अन्य कारणों’ के चलते अपने मंत्रालय से संबंधित एक अधिकारी के गंभीर अपराध को जान-बूझकर अनदेखा कर दिया हो। ‘दि संडे पोस्ट’ ने 20 नवंबर 2021 के अपने अंक में एक समाचार प्रकाशित किया था जिसमें राजकीय मुद्रणालय रुड़की के वरिष्ठ अधिकारी सर्वेश कुमार गुप्ता द्वारा अपने कार्यालय में तैनात एक युवती संग यौन शोषण के मामले को उजागर किया गया था। उक्त युवती संग सर्वेश गुप्ता का आचरण गंभीर अपराध की श्रेणी में आता है। युवती ने साहस दिखाते हुए इस अधिकारी के इस दुराचरण को स्पाई कैमरे की मदद से रिकाॅर्ड कर सारे प्रकरण की शिकायत भय सबूत कर डाली थी। कार्यस्थल पर यौन शोषण के कानून अनुसार इस प्रकरण की जांच एक नौ सदस्यीय कमिटी द्वारा की गई। समिति में यौन शोषण के मामलों की जांच के लिए समाज के विभिन्न वर्गों से एक्सपर्ट एवं सरकारी अधिकारी शामिल थे। इस समिति ने मई, 2021 में अपनी रिपोर्ट डीएम, हरिद्वार को सौंपी। इस रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से सर्वेश गुप्ता को दुराचरण का दोषी करार दिया गया। पुलिस अधीक्षक, हरिद्वार ने अपनी संस्तुति में लिखा ‘‘जांच दौरान प्रकरण के संबंध में राजकीय मुद्रणालय, रुड़की जिला-हरिद्वार के कतिपय अधिकारियों/कर्मचारियों के कथन अंकित किए गए हैं, जिनके साक्ष्य अवलोकन से पाया कि कार्यालय विभागाध्यक्ष श्री सर्वेश कुमार गुप्ता द्वारा अकारण ही उक्त महिला कर्मी को अपने कार्यालय में बुलाना एवं देर तक बैठाया जाता था एवं उनके कार्यालय में अधीनस्थों के साथ आचरण एवं व्यवहार प्रथम दृष्ट्या उचित प्रतीत नहीं होती है। जिसकी पुष्टि उक्त संबंधित कतिपय कर्मियों के कथनों से हुई है।’’

इसी प्रकार पल्लवी गुप्ता, महाप्रबंधक, जिला उद्योग केंद्र, हरिद्वार ने अपनी रिपोर्ट में लिखा ‘‘सुश्री कश्यप द्वारा स्पाई कैम से विभिन्न कारणों से अपने एवं श्री गुप्ता के मध्य हुए संवाद को रिकाॅर्ड किया गया तथा समिति के समक्ष प्रस्तुत किया गया। हालांकि इसकी सत्यता पर श्री गुप्ता ने अपने बयान में संदेह व्यक्त किया है, जो कि तकनीकी जांच का विषय है। परंतु प्रथम दृष्ट्या यह वीडियो/आॅडियो सत्य प्रतीत होते हैं। वीडियो एवं आॅडियो में श्री सर्वेश गुप्ता की पहचान की जा सकती है। ऐसा ही एक वीडियो समिति के द्वारा श्री सर्वेश गुप्ता को भी दिखाया गया जिसमें ‘तुम्हें मेरे साथ चलना ही पड़ेगा आज नहीं, छह महीने बाद सही, जब सब मामला सेट ही हो जाएगा तब तुम्हें आज नहीं तो कल मेरी बात माननी ही पड़ेगी’, ‘बटर फ्लाई तरह से करेंगे’। ‘उपर- उपर से करेंगे’ ऐसी बातें करते समय साफ- साफ सुना जा सकता है। वीडियो देखने के पश्चात श्री गुप्ता के द्वारा स्पष्ट किया गया कि वीडियो में जो व्यक्ति है वह स्वयं है। गौरतलब है कि श्री गुप्ता ने अपने लिखित बयान में कहा है कि सुश्री शिवानी कश्यप उनकी बड़ी पुत्री की आयु की है परंतु वीडियो में जिस भाषा का प्रयोग किया गया है उससे यही प्रतीत होता है कि कोई भी सभ्य व्यक्ति किसी भी स्थिति में अपने पुत्री तुल्य लड़की अथवा किसी महिला से इस भाषा का प्रयोग नहीं करेगा। यह कृत्य सभी प्रकार से अभद्र है और महिला कार्मिक को प्रताड़ित करने की श्रेणी में रखा जाना सर्वथा उचित है। अपने लिखित बयान में अधिकांश कर्मचारियों ने एक स्वर में विभागाध्यक्ष द्वारा उनके मानसिक शोषण करने तथा जायज पदोन्नति न दिए जाने का उल्लेख किया है। उपरोक्त कारणों से अधिकांश कर्मचारियों में श्री गुप्ता के प्रति रोष है तथा कार्यालय में सौहार्दपूर्ण वातावरण का अभाव है। अतः उपरोक्त समस्त बिन्दुओं, गवाहों के बयान एवं लिखित बयानों तथा मौखिक पूछताछ के प्रकाश में यह तथ्य उज्जवल है कि-‘‘श्री सर्वेश गुप्ता द्वारा प्रथम दृष्ट्या सुश्री शिवानी कश्यप से अभद्र एवं अनर्गल भाषा का प्रयोग किया है एवं उनके द्वारा एक महिला कर्मचारी के मान-सम्मान को आहत किया गया है। श्री सर्वेश गुप्ता के विभागाध्यक्ष रहते हुए कर्मचारियों में रोष व्याप्त है तथा महिला कर्मचारियों के लिए कार्य का वातावरण बेचैन करने वाला है।’’
इस समिति के सभी नौ सदस्यों ने युवती द्वारा सर्वेश गुप्ता पर लगाए गए आरोपों को सत्य माना है। समिति के अध्यक्ष नमामी बंसल, ज्वाइंट मजिस्ट्रेट, लड़की ने अपनी संस्तुति में लिखा है कि ‘‘सुश्री शिवानी कश्यप के शिकायती पत्र व श्री सर्वेश कुमार गुप्ता के प्रत्यावेदनों व राजकीय मुद्रणालय रुड़की के कर्मचारियों के बयानों व समिति के सदस्यों की आख्या/राय के अवलोकन से स्पष्ट होता है कि सुश्री शिवानी कश्यप व श्री सर्वेश कुमार गुप्ता के मध्य कार्यालय विषयों से इतर भी बातचीत होती थी तथा श्री सर्वेश कुमार गुप्ता द्वारा सुश्री शिवानी कश्यप जो उनके द्वारा उनकी पुत्री की आयु की होना बताया गया से बातचीत व वार्तालाप करने में जिस प्रकार की भाषा व व्यवहार का प्रयोग किया गया वह कार्यालय में कार्यरत अधीनस्थ महिला कर्मचारी से व्यवहार की मर्यादा के अनुरूप नहीं है तथा उनके द्वारा एक उच्च अधिकारी होकर अपनी सीमाओं/मर्यादा का उल्लंघन किया गया। श्री सर्वेश कुमार गुप्ता द्वारा सुश्री शिवानी को सलाह व पैसे देना उनका व्यक्तिगत मामला है। राजकीय मुद्रणालय के कर्मचारियों से बयानों से यह भी स्पष्ट होता है कि श्री सर्वेश कुमार गुप्ता के द्वारा कार्यालय में अभद्र व द्विअर्थी भाषा का प्रयोग किया जाता है तथा पदोन्नति आदि प्रकरणों को लेकर भी कर्मचारियों में रोष व्याप्त है।’’
यहां यह उल्लेखनीय है कि युवती द्वारा स्पाई कैमरे की मदद से रिकाॅर्ड किए गए वीडियो के जरिए आरोपी की पहचान होने की बात भी जांच समिति ने अपनी रिपोर्ट में की है। इस वीडियो में सर्वेश कुमार गुप्ता बेहद आपत्तिजनक बातें कहते स्पष्ट सुने और देखे गए हैं। समिति की रिपोर्ट मिलने के बाद 11 जून, 2021 को सचिव औद्योगिक विकास सचिन कुर्वे ने सर्वेश गुप्ता को सस्पेंड कर दिया। साथ ही युवती द्वारा प्रमाण के बतौर समिति को दिए गए वीडियो क्लिपिंग और पेन ड्राइव को फाॅरेंसिक जांच के लिए भेज दिया गया। सस्पेंड होने के तुरंत बाद सर्वेश कुमार गुप्ता ने ‘सेटिंग-गेटिंग’ का खेला शुरू कर डाला। पीड़ित युवती पर अपनी शिकायत वापस लेने के लिए भारी दबाव बनाया गया। युवती और उसके परिजनों ने जब दबाव के आगे घुटने टेकने से इन्कार कर दिया तो सर्वेश गुप्ता ने पहले तो सर्विस से वीआरएस यानी रिटायरमेंट लेने का प्रयास किया ताकि किसी भी प्रकार की सजा से बचा जा सके। विभाग द्वारा उसके प्रार्थना-पत्र को अस्वीकृत कर दिया गया। इस बीच तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को हटा दिया गया। उनके स्थान पर पहले तीरथ सिंह रावत और कुछ अर्से बाद पुष्कर सिंह धामी को मुख्यमंत्री बना दिए गए। इस सत्ता परिवर्तन के दौर में मंत्रिमंडल का विस्तार भी हुआ और मसूरी से विधायक गणेश जोशी मंत्री पद पा गए। जोशी के मंत्री बनने के साथ ही सर्वेश गुप्ता प्रकरण में नया मोड़ आ गया। 30 जून, 2021 को उद्योग विभाग ने कानून मंत्रालय से इस प्रकरण पर विधिक राय मांगी गई। कानून विभाग की राय पश्चात दिनांक 13 जुलाई, 2021 को एक विस्तृत रिपोर्ट औद्योगिक विकास विभाग के द्वारा मंत्री गणेश जोशी के सामने रखी गई। इस रिपोर्ट में विभाग ने सर्वेश गुप्ता को दोषी मानते हुए संस्तुति की कि ‘श्री गुप्ता महिलाओं का कार्यस्थल पर लैंगिक उत्पीड़न (निवारण प्रतिषेद और प्रतितोष) अधिनियम, 2013 की धारा (1) (6) एवं राज्य कर्मचारी आचरण नियमावली, 2002 के नियम 3 (3) के उल्लेखित प्रावधान के दोषी प्रतीत होते हैं। तद्नुसार आरोप पत्र का आलेख तैयार कर श्री सर्वेश कुमार गुप्ता, अपर निदेशक, राजकीय मुद्रणालय, रुड़की के विरुद्ध आरोप पत्र दिए जाने के संबंध में सचिव महोदय के माध्यम से माननीय मंत्री जी का अनुमोदन प्राप्त करना चाहेंगे।’’
मंत्री गणेश जोशी का कमाल
विभाग की विस्तृत रिपोर्ट मिलने के बाद मंत्री गणेश जोशी ने कमाल का आदेश जारी कर दिया। यह बेहद गंभीर मामले को मामूली बताते हुए मंत्री ने एक दागी अधिकारी को बचाने का ‘खेला’ कर डाला। मंत्री ने अपनी टिप्पणी में लिखा है ‘‘पत्रावली का अवलोकन किया गया। पत्रावली के अवलोकनोपरांत उपरोक्त अपचारी अधिकारी की जांच में जिलाधिकारी/ जांच अधिकारी के स्तर पर गठित समिति द्वारा मात्र अभिकथन सिद्ध किए गए हैं, स्पष्ट संस्तुति/सिफारिश नहीं की गई है। ऐसी स्थिति में अपचारी अधिकारी के निलंबन पर पुनः परीक्षण कर बहाल करते हुए लघु दंड दिया जाना न्यायोचित होगा।’’

‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ की बात करने वाली भाजपा के एक मंत्री का पूरे प्रकरण को मामूली करार देना गंभीर सवाल खड़े करता है। पीड़ित युवती का कहना है कि वह अब अपने आपको बेहद असुरक्षित महसूस कर रही है। इतना ही नहीं पीड़िता भयभीत है कि सर्वेश कुमार गुप्ता उसके और उसके परिवार के खिलाफ कोई बड़ी घटना को अंजाम न दे डाले।
इस मामले में मैं अपने पीएस से बात करूंगा। कभी-कभी हम जल्दी में ही किसी फाइल पर साइन कर देते हैं। फाइल का पुनः निरीक्षण करेंगे। लघु दंड नहीं ऐसे लोगों को बड़ा दंड मिलना चाहिए।
गणेश जोशी, कैबिनेट मंत्री