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विवादों में क्योंं हैं पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी?

भारत के पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी एक बार फिर विवादों में हैं। बीजेपी ने हमेशा की तरह उन पर निशाना साधा है। पार्टी ने आरोप लगाया है कि हामिद अंसारी ने अपने कार्यकाल के दौरान नुसरत मिर्जा नाम के एक ‘पाकिस्तानी पत्रकार’ को आमंत्रित किया था, जिसने पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई के लिए जानकारी जुटाई थी।

हालांकि हामिद अंसारी ने इन दावों का जोरदार खंडन किया है। उन्होंने कहा, ‘मेरे खिलाफ झूठ फैलाया जा रहा है। सरकार की सलाह पर विदेश मंत्रालय से मंजूरी मिलने के बाद ही उपराष्ट्रपति विदेशी मेहमानों को आमंत्रित कर सकते हैं। मैंने न तो उन्हें आमंत्रित किया था और न ही उनसे मुलाकात की थी।

हामिद अंसारी ने भाजपा के इस आरोप को भी खारिज कर दिया है कि जब वह ईरान में भारतीय राजदूत थे तो पार्टी ने राष्ट्रीय हितों से समझौता किया था। उन्होंने कहा कि भारत सरकार के पास उनके कार्यकाल की सारी जानकारी है और वह राष्ट्रीय सुरक्षा के दायित्वों से बंधे हैं।

हामिद अंसारी का भाजपा और उसके नेताओं से विवाद कोई नई बात नहीं है। 2014 में भाजपा के सत्ता में आने के बाद दोनों के बीच तनातनी और बढ़ गई। हामिद अंसारी ने उपाध्यक्ष के रूप में अपने 10 साल के कार्यकाल में से लगभग तीन साल भाजपा सरकार में बिताए हैं। उनका कार्यकाल वर्ष 2017 में समाप्त हो गया था।

चूंकि उपराष्ट्रपति राज्यसभा का सभापति होता है, इसलिए सदन की कार्यवाही में भाजपा और अंसारी के बीच खलबली हमेशा रही। बहरहाल, आइए एक नजर डालते हैं ऐसी ही कुछ घटनाओं पर।

इसी साल 26 जनवरी को 73वें गणतंत्र दिवस के मौके पर इंडियन अमेरिकन मुस्लिम काउंसिल (IAMC) की ओर से वर्चुअल प्रोग्राम का आयोजन किया गया, जिसमें हामिद अंसारी ने भी हिस्सा लिया। यहां उन्होंने परोक्ष रूप से हिंदू राष्ट्रवाद के बारे में कुछ ऐसी टिप्पणी की कि इसे लेकर विवाद खड़ा हो गया था।

अंसारी ने कहा कि हालिया कुछ वर्षों में हमने एक नई प्रवृत्ति देखी है, जहां नागरिक राष्ट्रवाद के स्थापित सिद्धांतों को दरकिनार किया जा रहा है और काल्पनिक सांस्कृतिक राष्ट्रवाद को लगाया जा रहा है।  इसका उद्देश्य धार्मिक बहुमत की आड़ में चुनावी बहुमत और राजनीतिक सत्ता पर एकाधिकार प्राप्त करना है। यह नागरिकों के बीच धर्म के आधार पर भेदभाव करता है और देश में असहिष्णुता, अलगाव, बेचैनी और असुरक्षा को बढ़ावा देता है।

हालांकि, भारत के विदेश मंत्रालय ने टिप्पणियों पर आपत्ति जताई और आयोजकों और वक्ताओं की विश्वसनीयता पर सवाल उठाया। मंत्रालय ने कहा था कि इस कार्यक्रम को आयोजित करने वाले संगठन का ट्रैक रिकॉर्ड लोगों को पहले से ही पता है। साथ ही इस कार्यक्रम में भाग लेने वालों का पक्ष और राजनीतिक हित भी किसी से छिपा नहीं है।


हामिद अंसारी अपनी आत्मकथा ‘बाय मैनी ए हैप्पी एक्सीडेंट: रिकॉलेक्शन्स ऑफ ए लाइफ’ के कुछ एपिसोड के लिए भी चर्चा में थे। उन्होंने लिखा कि कैसे मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद दोनों के बीच मतभेद काफी बढ़ गए थे। एक घटना के बारे में बताते हुए अंसारी ने बताया था कि एक बार सरकार ने उनके सामने यह मांग रखी थी कि राज्यसभा में एक बिल को ध्वनिमत से पारित होने दिया जाए।

इस संबंध में पूर्व उपराष्ट्रपति ने लिखा कि अतीत में कई बार ऐसा हुआ है जहां विधेयक को ध्वनि मत से पारित किया गया है। लेकिन तब सरकार के पास राज्यसभा में बहुमत था। हालांकि, वर्तमान मामले में सत्तारूढ़ एनडीए सरकार के पास राज्यसभा में बहुमत नहीं था।

उन्होंने यह भी लिखा कि मनमोहन सिंह सरकार में भी उनका स्टैंड कुछ ऐसा ही था। पुस्तक  में पूर्व उपराष्ट्रपति ने कहा, “लेकिन एनडीए (मोदी सरकार) को लगा कि चूंकि उनके पास लोकसभा में बहुमत है, इसलिए वे राज्यसभा की प्रक्रियाओं को दरकिनार कर देंगे।” 


हामिद अंसारी ने अपनी किताब में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ अपने संबंधों के बारे में विस्तार से लिखा है। उन्होंने बताया कि एक बार मोदी उनके राज्यसभा कार्यालय आए थे और कहा था कि ‘आपसे बड़ी जिम्मेदारी की उम्मीद है लेकिन आप मेरी मदद नहीं कर रहे हैं। अंसारी ने यह भी कहा है कि मोदी अपने कार्यकाल के दौरान राज्यसभा टीवी के कवरेज से खुश नहीं थे।

हालात तब और खराब हो गए जब दिसंबर 2017 में गुजरात विधानसभा चुनाव के दौरान पीएम मोदी ने आरोप लगाया कि पाकिस्तान दखल दे रहा है। उन्होंने आरोप लगाया था कि पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और हामिद अंसारी की एक ‘गुप्त मुलाकात’ कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर के आवास पर हुई थी, जिसमें कुछ पाकिस्तानी अधिकारी भी मौजूद थे।

इस बयान ने संसद से लेकर सड़क तक हंगामा किया था। सरकार ने राज्यसभा में इस पर सफाई देते हुए कहा था, ‘हम स्पष्ट रूप से बता दें कि प्रधानमंत्री ने न तो डॉ. मनमोहन सिंह या हामिद अंसारी की इस देश के प्रति प्रतिबद्धता पर सवाल उठाया था और न ही वह ऐसा कोई सवाल उठाना चाहते थे।’

धर्मनिरपेक्षता और अल्पसंख्यकों की असुरक्षा पर हामिद अंसारी की टिप्पणियों ने हमेशा मोदी सरकार को असहज किया है। अपनी सेवानिवृत्ति से कुछ दिन पहले अंसारी ने बैंगलोर में नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी में व्याख्यान दिया। उन्होंने चिंता व्यक्त करते हुए कहा था कि “देश के एक वर्ग, विशेषकर दलितों, मुसलमानों और ईसाइयों में असुरक्षा का भाव बढ़ गया है और वे डरे हुए हैं।”

रॉ के साथ विवाद

भारत की विदेशी खुफिया एजेंसी रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) के पूर्व अधिकारी और ‘माई प्राइम मिनिस्टर नरेंद्र मोदी’ किताब के लेखक एनके सूद ने जून 2019 में आरोप लगाया था कि हामिद अंसारी 1990 से 1992 तक ईरान के राजदूत थे। उसने एक रॉ अभियान का पर्दाफाश किया, जिससे खुफिया अधिकारियों को खतरा था।

द संडे गार्डियन की एक रिपोर्ट के अनुसार, रॉ के अधिकारियों ने अंसारी के खिलाफ जांच की मांग करते हुए प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को एक शिकायत भेजी थी।

अधिकारियों ने कहा, “तेहरान में अपने कार्यकाल के दौरान, वह (अंसारी) न केवल भारत के राष्ट्रीय हितों की रक्षा करने में विफल रहे, बल्कि ईरानी सरकार और इसकी खुफिया एजेंसी SAVAK की मिलीभगत से रॉ और इसके संचालन को नुकसान पहुंचाने की भी कोशिश की।”

हालांकि हामिद अंसारी ने भी इन दावों को खारिज करते हुए कहा कि भारत सरकार के पास उसकी सारी जानकारी है, वह सब कुछ जानता है।

और अब बीजेपी ने हामिद अंसारी पर आईएसआई के लिए जासूसी करने वाली पाकिस्तानी पत्रकार नुसरत मिर्जा को भारत आने का न्यौता देने का आरोप लगाया है। हामिद ने इस पर भी अपनी स्थिति स्पष्ट कर दी है। देखना होगा कि यह मामला कब तक खिंचता है।

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