देश में भूख मिटाने के लिए गरम-गरम खाने से लेकर ठंडे पानी तक प्लास्टिक की वस्तुओं के उपयोग से दिन -दिन बीमारियों का खतरा बढ़ता ही जा रहा है। इसी प्लास्टिक के बड़े टुकड़े जब टूटकर छोटे-छोटे कणों में बदल जाते हैं, तो उन्हें माइक्रोप्लास्टिक कहा जाता है। प्लास्टिक के 1 माइक्रोमीटर से 5 मिलीमीटर आकार के टुकड़े माइक्रोप्लास्टिक है।
माइक्रोप्लास्टिक आज सागरों से लेकर पानी के हर स्रोत तक, मिट्टी और हवा तक और हमारे खाने की चीजों में घुल चुका है। इसी से बचाव के लिए वैज्ञानिक रजनी श्रीनिवासन द्वारा भिंडी कहलाने वाली सब्जी के लिसलिसे द्रव्य के द्वारा गंदे पानी से माइक्रोप्लास्टिक निकालने का एक नया आईडिया खोजा है।
दरअसल, ओकरा की तरह और भी जो लिसलिसे पदार्थ वाली सब्जियों है उनका इस्तेमाल कर गंदे पानी से माइक्रोप्लास्टिक को साफ करने का विचार सामने रखा है। उन्होंने अपनी इस रिसर्च को नई रिसर्च अमेरिकन केमिकल सोसायटी की बैठक में प्रस्तुत किया है। हालांकि पानी से माइक्रो प्लास्टिक को अलग करने के लिए केमिकल प्रोसेस मौजूद है लेकिन उसकी बजाए प्राकृतिक प्रक्रिया अपनाने का ये विकल्प बहुत ही अच्छा कदम बताया जा रहा है। कोई जिन केमिकल्स का यूज़ होता है वो सेहत पर भी बुरा असर डालते हैं।
इस रिसर्च की लीड इन्वेस्टीगेटर रजनी श्रीनिवासन की ओर से इस रिसर्च पर कहा गया कि माइक्रोप्लास्टिक या किसी भी और तरह के मैटीरियल को साफ करने से पहले, इसके लिए कोई प्राकृतिक पदार्थ को तलाश करने का प्रयास होना चाहिए कि वो जहरीला तो नहीं है। ” अमेरिका के टार्लटन स्टेट यूनिवर्सिटी से श्रीनिवासन रिसर्चर हैं।
शरीर में गया तो क्या होगा
रिसर्चरों ने अपने इस शोध में पाया कि मछलियों के शरीर में इसके जाने से कई तरह के खतरे हैं। ठीक उसी तरह इंसान के शरीर पर भी इसके दुष्प्रभाव हैं फ़िलहाल अभी और रिसर्च होने पर ही स्पष्ट होगा। अब तक की रिसर्च में ये पता चला है कि माइक्रोप्लास्टिक में कैंसर पैदा करने और म्यूटेशन करवाने की सक्षमता है।
श्रीनिवासन और उनके साथी रिसर्चरों द्वारा इस तकनीक से ओकरा, एलोए, कैक्टस, मेथी और इमली जैसी प्राकृतिक चीजें पानी साफ करने में सहायक सिद्ध हो सकती हैं।
श्रीनिवासन को अपनी इस रिसर्च से उम्मीद है कि जल्द ही इस तरीके को बड़े स्तर पर लागू करने की पहल हो। जिससे कि केमिकल द्वारा हो रही सफाई की जगह प्राकृतिक तरीके अपनाकर हर नुकसान से बचा जा सके। क्योंकि आज हालात ये हैं कि माइक्रोप्लास्टिक की समस्या का स्रोत प्लास्टिक है जो समय के साथ टूटते टूटते छोटा होकर धरती के लगभग सारे कोनों तक फ़ैल चुका है।