नैनीताल जिले के बिन्दुखत्ता को राजस्व गांव बनाने की लड़ाई 1970 के दशक से चल रही है। शुरुआती दौर में बिन्दुखत्ता को राजस्व गांव बनाने की मांग केवल भाकपा (माले) ही करती रही है। इसके बाद धीरे-धीरे स्थानीय जनता के बीच इस मांग की लोकप्रियता देखते हुए सभी राजनीतिक पार्टियां चुनाव के समय बिन्दुखत्ता को राजस्व गांव बनाने का वादा एक नियम की तरह करती रहती हैं। लोगों की नाराजगी इस वजह से है कि उत्तराखण्ड की सत्ता पर बारी-बारी से विराजमान होने के बावजूद कांग्रेस-भाजपा ने कभी बिन्दुखत्ता को राजस्व गांव बनाने का प्रस्ताव तक विधानसभा में पेश करने की जहमत नहीं उठाई। बिन्दुखत्ता इलाके में जनप्रतिनिधियों के लिए सबसे सुलभ बात यह कि उन्हें यहां के मतदाताओं को लुभाने के लिए किसी बड़े मुद्दे की जरूरत नहीं होती। उनके लिए वोट बटोरने के लिए यहां सिर्फ राजस्व गांव का मुद्दा ही काफी है। गौरतलब है कि लालकुआं विधानसभा क्षेत्र में स्थित बिन्दुखत्ता प्रदेश का सबसे बड़ा गांव है। करीब 55 हजार मतदाता अकेले इस गांव में रहते हैं। ज्यादातर सेना से रिटायर होने के बाद पहाड़ों से पलायन करके यहां बसे हैं। सैन्य बाहुल्य इस गांव के हर परिवार में एक व्यक्ति सेना से जुड़ा हुआ है
‘डबल इंजन की यह कैसी सरकार, क्या नहीं मिलेगा मालिकाना अधिकार’ इस नारे के साथ आचार संहिता लागू होने से पहलें तक लालकुआं विधानसभा में बिन्दुखत्ता के लोग धरनारत थे। राजस्व गांव की मांग के साथ मालिकाना हक पाने के लिए यह पहला धरना नहीं था, बल्कि इससे पहले भी यहां की जनता समय-समय पर आवाज उठाती रही है। पिछले 40 सालों से यहां के लोग मालिकाना हक की लडाई लड़ते आ रहे हैं।
इस लड़ाई को लड़ते-लड़ते लोगों की कई पीढियां गुजर गई। मकान कच्चे से पक्के हो गए। लालटेन की जगह बिजली से घर रोशन होने लगे। इस तरह देखा जाए तो वक्त के साथ सब कुछ बदला, लेकिन कुछ नहीं बदला तो वह है, बिंदुखत्ता के लोगों की मालिकाना हक की लडाई। इस मुद्दे पर राजनेताओं ने हर चुनाव में यहां के लोगों की भावनाओं के साथ जमकर खेला। हर बार राजस्व गांव बनवाने का झांसा देकर वोट बटोरे जाते हैं लेकिन चुनाव के बाद तकनीकी पेंच का बहाना बना दिया जाता है। इस तरह चुनावों के बाद अपने वादे से मुकर जाना हर राजनीतिक दल के नेताओं का किस्सा बन गया है। इसके चलते यहां की लगभग 85 हजार की आबादी अपने ही प्रदेश में दोयम दर्जे का जीवन यापन करने को मजबूर हैं।
जिस जगह बिन्दुखत्ता बसा है आज से 40 साल पहले यहां घने जंगल थे। अपने अथक परिश्रम से ग्रामीणों ने इस क्षेत्र को रहने योग्य बनाया। समय बीतने के साथ-साथ ग्रामीणों के संघर्षों के बाद यहां धीरे-धीरे सड़क, स्कूल, अस्पताल जैसी सुविधाएं उपलब्ध हो पाई। लेकिन राजस्व गांव का मुद्दा जस का तस रहा। बिन्दुखत्ता इलाके में जनप्रतिनिधियों के लिए सबसे सुलभ बात यह कि उन्हें यहां के मतदाताओं को लुभाने के लिए किसी बड़े मुद्दे की जरूरत नहीं होती। उनके लिए वोट बटोरने के लिए यहां सिर्फ राजस्व गांव का मुद्दा ही काफी है। गौरतलब है कि लालकुआं विधानसभा क्षेत्र में स्थित बिन्दुखत्ता प्रदेश का सबसे बड़ा गांव है। करीब 55,000 मतदाता अकेले इस गांव में रहते हैं। ज्यादातर सेना से रिटायर होने के बाद पहाडों से पलायन करके लोग बसें हैं। सैन्य बाहुल्य इस गांव के हर परिवार में एक व्यक्ति सेना से जुड़ा हुआ है।
नैनीताल जिले के बिन्दुखत्ता को राजस्व गांव बनाने की लड़ाई 1970 के दशक से चल रही है। शुरुआती दौर में बिन्दुखत्ता को राजस्व गांव बनाने की मांग केवल भाकपा (माले) ही करती रही है। इसके बाद धीरे-धीरे स्थानीय जनता के बीच इस मांग की लोकप्रियता देखते हुए सभी राजनीतिक पार्टियां चुनाव के समय बिन्दुखत्ता को राजस्व गांव बनाने का वादा एक नियम की तरह करती रहती हैं। लोगों की नाराजगी इस वजह से है कि उत्तराखण्ड की सत्ता पर बारी-बारी से विराजमान होने के बावजूद कांग्रेस- भाजपा ने कभी बिन्दुखत्ता को राजस्व गांव बनाने का प्रस्ताव तक विधानसभा में पेश करने की जहमत तक नहीं उठाई। यहां तक कि कांग्रेस की हरीश रावत सरकार ने तो 19 दिसम्बर 2014 को बिन्दुखत्ता को नगरपालिका बनाने की अंतरिम अधिसूचना भी जारी कर दी। राजस्व गांव की मांग के विपरीत नगरपालिका की घोषणा किए जाने से स्थानीय लोग पहले से ज्यादा आक्रोशित हो गए थे। तब फिर से आंदोलन शुरू हो गया था। 28 जनवरी 2015 को बिन्दुखत्ता के तहसील मुख्यालय लालकुंआ में बडी महापंचायत हुई। जिसमें हजारों की तादाद में लोगों की भागीदारी रही। तब सभी ने एक सुर में कहा कि तत्कालीन विधायक एवं उत्तराखण्ड सरकार में मंत्री हरीश चन्द्र दुर्गापाल का यह दांव उन्हें बहुत भारी पड़ेगा।
तब महापंचायत में ही यह ऐलान हुआ था कि यदि राज्य सरकार नगरपालिका की अंतरिम अधिसूचना वापस नहीं लेती तो बजट सत्र में विधानसभा का घेराव किया जाएगा। इसी बीच कांग्रेस सरकार ने गुपचुप तरीके से बिन्दुखत्ता को नगरपालिका बनाने की पूर्ण अधिसूचना जारी कर दी। जनता के गुस्से और आन्दोलन के प्रभाव को भांपते हुए 24 फरवरी 2015 को जारी अधिसूचना के कई दिनों बाद, 11 मार्च के समाचार पत्रों में इसे
प्रकाशित किया था। इस मामले में जनता द्वारा दाखिल आपत्तियों की कोई सुनवाई तक नहीं की गई। उत्तराखण्ड सरकार द्वारा चोरी-छुपे तरीके से बिन्दुखत्ता को नगरपालिका बनाने के सैकड़ों की तादाद में लोग उत्तराखण्ड की विधानसभा तक जा पहुंचे थे। 17 मार्च 2015 को देहरादून की सड़कों पर सैकड़ों लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा था। बाद में लोगों का भारी विरोध देखते हुए नगर पालिका के प्रस्ताव को निरस्त कर दिया गया।
2017 में भाजपा के टिकट पर चुनाव लडने वाले नवीन दुमका ने भी जनता के बीच इस मुद्दे को जमकर कैसे। तब दुमका ने न केवल बिन्दुखत्ता को राजस्व गांव बनाने के वादे को अपने चुनावी घोषणा पत्र में शामिल किया था बल्कि दावा कर डाला था कि उनकी सरकार बनते ही बिन्दुखत्ता को राजस्व गांव का दर्जा दिला दिया जाएगा। इस वादे के बलबूते ही नवीन दुमका 44,293 मत पाते हुए अपने प्रतिद्वंदी तत्कालीन मंत्री हरीश चंद्र दुर्गापाल को करीब 28, 000 मतों से हराकर विधानसभा पहुंचे। यहां यह बताना भी जरूरी है कि 2017 में दुर्गापाल की हार का कारण भी राजस्व गांव का मुद्दा ही बना था, जबकि 2012 के विधानसभा चुनाव में वह इसी मुद्दे पर चुनाव जीते थे।
जिस तरह से कांग्रेस की हरीश रावत सरकार ने लोगों की भावनाओं के विपरीत नगर पालिका बनाने की घोषणा की ठीक उसी तरह गत् वर्ष त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार इस वनभूमि पर हाथी कॉरीडोर बनाने का प्रस्ताव ले आई थी। इसके चलते प्रमुख वन संरक्षक ने कॉरीडोर के लिए भूमि का निरीक्षण भी शुरु कर दिया था। इसके बाद से ही बिंदुखत्ता गांव के लोगों ने धरना- प्रदर्शन के जरिये आंदोलन तेज कर दिया। लोगों की मांग थी कि सरकार हाथी कॉरीडोर के प्रोजेक्ट को निरस्त कर, इसे राजस्व ग्राम घोषित करे। हालांकि लोगों के विरोध को देखते हुए यह प्रोजेक्ट भी ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। गत 7 जनवरी 2022 को लालकुआं क्षेत्र के मोटाहल्दू स्थित भवान सिंह नवाड़ गांव में कांग्रेस की इस मुद्दे पर एक जनसभा आयोजित की गई। जिसमें पूर्व मुख्यमंत्री और उत्तराखण्ड चुनाव संचालन समिति के चेयरमैन हरीश रावत ने लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि कांग्रेस की सरकार आते ही जनता की आशा-विश्वास और सोच का उत्तराखण्ड बनाया जाएगा। खास बात यह कही कि कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री ने इस पर लोगों की आम राय लेने की बात कही। पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने कहा कि उनकी सरकार आते ही बिंदुखत्ता वालों से पूछेंगे कि क्या चाहिए नगरपालिका या राजस्व गांव। इस जन सभा में रावत ने लोगों को आश्वस्त किया कि जनता जिस पर मुहर लगा देगी वह सौगात उन्हें सौंप दी जाएगी।
बात अपनी-अपनी
चुनावी बेला आते ही सभी नेताओं को राजस्व गांव के मुद्दे की याद आती है, मगर चुनाव बीतने के बाद ही इस मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया जाता है। लोगों को उम्मीद थी कि केंद्र और राज्य में भाजपा की सरकार होने के बाद इस बार बिन्दुखत्ता वासियों को उनकी भूमि का मालिकाना हक मिल सकेगा और राजस्व गांव बनाया जाएगा। मगर इस बार भी जनता की उम्मीदों पर पानी फिर गया, क्योंकि जिस उम्मीद के साथ लोगों ने डबल इंजन की सरकार से आस लगाई थी वह सरकार भी लोगों की उम्मीदों पर खरा नहीं उतर पाई। बिन्दुखत्ता वासी आज भी अपने को ठगा महसूस कर रहे हैं। लंबे अरसे से क्षेत्रवासी राजस्व गांव की लड़ाई लड़ रहे हैं, मगर डबल इंजन की सरकार ने न सिर्फ अनदेखी करने का काम किया है जबकि इस मामले पर कोई कार्यवाही नहीं की है। राजस्व गांव नहीं बन पाने की वजह से केंद्र एवं राज्य सरकार द्वारा मिलने वाली कई महत्वपूर्ण सुविधाओं से बिन्दुखत्ता वासी वंचित रह जाते हैं। मगर सरकार के कानों में जूं तक नहीं रेंग रही है और नुकसान आम जनमानस को झेलना पड़ रहा है। आपदा के दौरान कई लोगों के घर गौला नदी में समा गए मगर राजस्व गांव नहीं होने की वजह से उन्हें सरकारी मदद भी नहीं मिल पाई।
दीपक जोशी, कुमाऊं मंडल अध्यक्ष, उत्तराखण्ड बेरोजगार संगठन
कांग्रेस-बीजेपी दोनों ही ये मानते हैं कि बिन्दुखत्ता को राजस्व ग्राम बनना चाहिए। इसके बावजूद किसी सरकार ने इसे राजस्व ग्राम बनाने की पहल नहीं की। बिन्दुखत्ता पूरी तरह आबाद गांव है। एक लाख की आबादी वाले इस गांव में सड़क, अस्पताल, स्कूल, बिजली सब है। लेकिन न यह राजस्व ग्राम बना, न वनग्राम। सरकार हाथी कॉरीडोर के नाम पर दरअसल इस वनभूमि को खाली करा, इसे पूंजीपतियों को सौंपना चाहती है।
राजा बहुगुणा, राज्य सचिव, सीपीआई-एमएल
बिन्दुखत्ता की जनता का इतिहास संघर्षों का इतिहास रहा है। यहां लोगों ने सड़क, बिजली, पानी, स्वास्थ्य सुविधाएं, राशन कार्ड-सब कुछ लड़कर ही पाया है, और जमीन पर मालिकाना हक भी लोग क्रांतिकारी लाल झंडा थाम कर संघर्ष के बूते हासिल कर ही लेंगे।
कैलाश पांडेय, जिला सचिव, भाकपा नैनीताल
विधानसभा चुनाव 2017 में भाजपा और लालकुआं से उनके विधायक उम्मीदवार नवीन दुमका ने भाजपा की डबल इंजन सरकार बनने पर बिन्दुखत्ता को राजस्व गांव बनाने का वादा यहां की जनता से किया था। इसी मुद्दे पर मिले प्रचंड बहुमत से विधायक बनने के बाद उन्होंने और उनकी भाजपा सरकार ने न सिर्फ राजस्व गांव पर वादाखिलाफी की बल्कि इस सवाल को ही दरकिनार कर दिया है। भाजपा ने ऐसा क्यों किया और बिन्दुखत्ता को राजस्व गांव बनाने के वादे का क्या हुआ? डबल इंजन की सरकार को इस बात का जवाब जनता को देना चाहिए।
कॉमरेड बहादुर सिंह जंगी, प्रत्याशी लालकुआं, भाकपा
मुख्यमंत्री एवं उनकी पार्टी द्वारा केंद्र के साथ ही उत्तराखण्ड राज्य में भी डबल इंजन की सरकार बनाने की अपील की गई थी ताकि बड़ी-बड़ी जनसमस्याओं पर केन्द्र एवं राज्य के बीच होने वाले अंतर्विरोधों को आसानी से हल किया जा सके। लेकिन बहुत-सी समस्याओं के सम्बंध में ऐसा होता नहीं दिखा। बिन्दुखत्ता की भूमि को वन विभाग के दायरे से बाहर लाकर राजस्व गांव की श्रेणी में लाने का यह एक सुनहरा अवसर था जिसे भाजपा ने गंवा दिया है। पिछले पांच वर्षों में भाजपा सरकार द्वारा बिन्दुखत्ता को राजस्व गांव बनाने का एक भी प्रस्ताव विधानसभा में लाने की खबर नहीं है। कभी-कभी तो ऐसा लगता है कि मुख्यमंत्री एवं उनकी पार्टी की सरकार की यह नीति ही नहीं है कि बिन्दुखत्ता जैसे विशाल भू-भाग को राजस्व गांव बनाकर यहां के नागरिकों को उनका मूल अधिकार दिया जाए।
ललित मटियानी, समाजसेवी