भारतीय राजनीति के इतिहास में देश को संभव है कि पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति मिल जाए,लेकिन धरताल पर आदिवासियों पर अत्याचार बढ़ते जा रहे हैं।मध्यप्रदेश इस मामले पर सबसे आगे है जहां वर्ष 2020 में इस तरह के मामले 30 प्रतिशत से ज्यादा देखा गया है।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड के मुताबिक,भारत में पिछले कुछ वर्षो में लगातार आदिवासियों पर अत्याचार के मामले बढे हैं । वर्ष 2020 में देश में अनुसूचित जनजाति के लोगों के साथ अत्याचार के 8,272 मामले दर्ज किए गए, जो 2019 के मुकाबले 9.3 प्रतिशत का उछाल है। इन मामलों में सबसे आगे मध्य प्रदेश है जहां कुल मामलों में से 29 प्रतिशत मामले यानी 2,401 दर्ज किए गए हैं । आदिवासी मध्य प्रदेश की आबादी का करीब 22 प्रतिशत हैं और सभी राजनीतिक पार्टियों के बीच आदिवासियों के वोट हासिल करने की होड़ लगी रहती है। इसके बावजूद आम आदिवासियों को शोषण और अत्याचार से निजात नहीं मिल पा रही है।
दो दिन पहले 2 जुलाई को ही मध्यप्रदेश में एक आदिवासी महिला के साथ हुई घटना सामने आई है जिसमें गुना जिले में रहने वाली रामप्यारी सहरिया पर जमीन के विवाद को लेकर कुछ लोगों ने उन पर हमला कर दिया और उनके शरीर पर डीजल छिड़क कर आग लगा दी। इसके बाद हमलावरों ने दर्द से कराहती रामप्यारी का वीडियो भी बनाया जो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, रामप्यारी 80 प्रतिशत जल चुकी हैं। उनका भोपाल के एक अस्पताल में इलाज चल रहा है और उनकी हालत गंभीर बताई जा रही है। मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह उन्हें देखने अस्पताल पहुंचे और सरकार से उनका इलाज मुफ्त कराने की मांग भी की है।
इस घटना को लेकर समाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि यह घटना प्रदेश में आदिवासियों की कहानी बयां करती है। ना सिर्फ आदिवासियों के खिलाफ अत्याचार बढ़ते जा रहे हैं, बल्कि प्रदेश में इस तरह के मामलों का अदालतों में लंबित रहना भी बढ़ता जा रहा है।
एनसीआरबी के मुताबिक अदालतों में आदिवासियों के खिलाफ अत्याचार के कम से कम 10,302 मामले लंबित हैं। जिन मामलों में सुनवाई पूरी हुई उन्हें कन्विक्शन या सजा होने की दर महज 36 प्रतिशत है। इसका मतलब है आदिवासियों के खिलाफ अत्याचार के मामलों में पुलिस की जांच में कमी रह जाती है जिसकी वजह से आरोपियों को सजा नहीं हो पाती है। मध्य प्रदेश के गुना वाले मामले में भी रामप्यारी के पति अर्जुन सहरिया ने आरोप लगाया है कि उन्होंने हमलवारों के खिलाफ पहले भी शिकायत की है लेकिन पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की । दलितों और आदिवासियों के खिलाफ पुलिस के भेदभाव कर रही है। एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक़ सबसे ज्यादा मध्य प्रदेश में अनुसूचित जनजाति समूह के कैदी जेल में बंद है।