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भाजपा के खिलाफ गैर कांग्रेसी दलों का फ्रंट बनाने की कोशिशें शुरु 

 देश में  मोदी सरकार जीत के रथ पर सवार है। इस सरकार को हराने के लिए विपक्ष आख़िर कब एकजुट होगा, यह सवाल पिछले लोकसभा चुनाव से पहले भी जोर-शोर से पूछा गया था। तब विपक्षी एकता की हज़ार कोशिशें की गईं थी। जिसमें  तेलंगना के मुख्यमंत्री केसीआर और आंध्र प्रदेश के पूर्व सीएम चंद्रबाबू नायडू  तमाम विपक्षी नेताओं से मिले, लेकिन एनडीए के ख़िलाफ़ क्षेत्रीय दलों का कोई ऐसा राष्ट्रीय गठबंधन नहीं बन पाया, जिसमें सभी दलों की भागीदारी हो।

इस बीच देश में कृषि कानूनों को लेकर सियासत चरम पर है। खुद को किसानों का हितैषी बताने वाली केंद्र की वर्तमान सरकार ने इन कानूनों को बनाने से पहले किसानों के किसी संगठन या किसी प्रतिनिधिमंडल से बात नहीं की। इस बीच इन कानूनों को लेकर किसान सरकार को चेताते  भी रहे कि  सरकार इन्हें वापस ले ले , लेकिन सत्ता  के नशे में चूर  सरकार ने किसी की नहीं सुनी।

मोदी सरकार और बीजेपी पर आरोप लगता आया है कि तानाशाही के साथ ही वे हिंदू मतों के ध्रुवीकरण के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। इसका उदाहरण हाल ही में फिर दिखा जब तेलंगाना बीजेपी के अध्यक्ष बंडी संजय कुमार ने कहा कि हैदराबाद में अगर बीजेपी जीती तो पुराने हैदराबाद में सर्जिकल स्ट्राइक की जाएगी।

इस सबके बीच अब  2019 के आम चुनाव से पहले शुरू हुई कोशिश एक बार फिर परवान चढ़ने जा रही है। कई राज्यों में सरकार चला रहे या चला चुके क्षेत्रीय दलों को साथ लेकर बीजेपी के ख़िलाफ़ एक नेशनल फ्रंट या बड़ा मोर्चा बनाने पर विचार चल रहा है। इसमें टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी, टीआरएस प्रमुख केसीआर, शिव सेना प्रमुख उद्धव ठाकरे, एनसीपी प्रमुख शरद पवार, बीजेडी मुखिया नवीन पटनायक, एसपी अध्यक्ष अखिलेश यादव, शिरोमणि अकाली दल प्रमुख सुखबीर सिंह बादल और जेडीएस के नेता और पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा को शामिल करने का विचार है। इसके अलावा इसमें नेशनल कॉन्फ्रेन्स के मुखिया फ़ारूक़ अब्दुल्ला, वाईएसआर कांग्रेस प्रमुख जगनमोहन रेड्डी सहित कुछ और नेताओं को शामिल किया जा सकता है।

यह कुछ उसी तरह का विचार है जैसा देश में नेशनल फ्रंट और यूनाइटेड फ्रंट की सरकारों के दौरान सामने आया था।

कांग्रेस को नहीं मिलेगा नेतृत्व 

राष्ट्रीय नेशनल कांग्रेस पार्टी अपने घर के झगड़ों से ही बेहद परेशान है और ऐसे में उससे ये उम्मीद करना बेईमानी ही होगी कि वह राष्ट्रीय स्तर पर बनने वाले किसी मोर्चे की क़यादद  कर पाएगी।

इसके अलावा कांग्रेस के  इस फ्रंट में आने से कई राज्यों में मुश्किल खड़ी होगी। जैसे- पंजाब में अकाली दल उसकी विरोधी पार्टी है तो उत्तर प्रदेश में एसपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ने पर सीटों को लेकर लड़ाई होगी जबकि उसके इस फ्रंट में न रहने पर यह मुश्किल नहीं होगी।

खबरों  के मुताबिक़, बीजेपी के ख़िलाफ़ नेशनल फ्रंट बनाने की इस क़वायद में कई क्षेत्रीय दलों के नेता राहुल गांधी को अपना नेता स्वीकार करने को तैयार नहीं दिख रहे हैं । ये क्षेत्रीय दल इस बात को जानते हैं कि आगामी 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी उनके राज्यों में मुख्य मुक़ाबले में होगी। इसके अलावा कांग्रेस अब बहुत से राज्यों में लड़ाई में नहीं दिखती, इसलिए भी इन दलों को ख़ुद का फ्रंट तैयार करने की ज़रूरत है।

मोदी सरकार विपक्षी दलों के नेताओं के ख़िलाफ़ सीबीआई,ईडी  और इनकम  टैक्स जैसी नामी एजेंसियों के इस्तेमाल को लेकर सवालों के घेरे में है और बदनाम भी हो चुकी है। हालात ये हैं कि सरकार के साथ खड़े पत्रकार अर्णब गोस्वामी  के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने वाले विपक्षी विधायकों के घर और दफ़्तरों पर ईडी  रेड मार रही है।

क्षेत्रीय दलों की इस क़वायद पर बीजेपी की नज़र बनी हुई है। बीजेपी विपक्षी एकता को तोड़ना जानती है। बीते कुछ महीनों में बीजेपी ने जगन  मोहन रेड्डी और नवीन पटनायक से नजदीकियां  बढ़ाने की कोशिश की है। बीजेपी की कोशिश है कि राज्यों में सरकार चला रहे ये दल उसके ख़िलाफ़ बनने वाले किसी फ्रंट  में शामिल न हों, भले ही वे उसके ख़िलाफ़ चुनाव लड़ लें। ये कवायद 2019 से पहले विपक्षी एकता को लेकर हुई ताबड़तोड़ मुलाकातों   के दौर को याद दिलाती है। एक बात साफ है कि बीजेपी को अगर सत्ता से हटाना है तो मजबूत क्षेत्रीय दलों का नेशनल फ्रंट  बनाना ही होगा, वरना 2024 के बाद इन क्षेत्रीय दलों को उनके राज्यों में बीजेपी से जबरदस्त  चुनौती मिलेगी जो इनके सियासी वजूद के लिए ख़तरनाक साबित होगी।

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