ताकि सनद रहे…/भाग-2
उत्तराखण्ड इलेक्शन वाॅच और एडीआर की संयुक्त रिपोर्ट में प्रदेश के 65 विधायकों की बाबत 2017 के विधानसभा चुनाव में सामनेआए आंकड़े भी चैंकाने वाले थे। तब 31 प्रतिशत विधायकों पर आपराधिक मामले दर्ज थे। ऐसे विधायकों की संख्या 20 थी। 22 प्रतिशत यानी 14 विधायक ऐसे थे जिन पर गंभीर मुकदमें दर्ज थे। इनमें ज्यादातर भाजपा के थे। जिनमें 54 में से 16 (30 प्रतिशत) पर आपराधिक मामले दर्ज थे, जबकि कांग्रेस के 9 में से 3 (33 प्रतिशत) पर मामले दर्ज थे। गंभीर आपराधिक मामलों में भाजपा के 54 में से 10 यानी 19 प्रतिशत थे। एडीआर की सूची में आपराधिक मामलों में सबसे ऊपर गदरपुर के भाजपा विधायक अरविंद पांडेय का नाम है। पांडेय पर कुल 12 मामले दर्ज है। इसके चलते अरविंद पांडेय की छवि एक दबंग विधायक की बन चुकी है
पिछले साल सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई थी। याचिका में निर्वाचन आयोग को यह निर्देश देने का आग्रह किया गया था कि राजनीतिक दल अपनी वेबसाइट पर उम्मीदवारों के आपराधिक मामलों के संबंध में विवरण प्रकाशित करें। साथ ही उनके चयन करने का कारण भी बताएं। इस याचिका को स्वीकार करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने निर्वाचन आयोग को इसका पालन करने के निर्देश दिए हैं। इसके मद्देनजर ही निर्वाचन आयोग ने सभी प्रत्याशियों और पार्टियों को आदेश दिया है कि वह अपने प्रत्याशियों के आपराधिक रिकाॅर्ड को वेबसाइट पर अपलोड करें। यही नहीं बल्कि उन्हें यह भी बताना होगा कि इस प्रत्याशी को क्यों चुना है, ताकि लोगों को इसकी जानकारी हो सके।
हालांकि उत्तराखण्ड में किसी भी राजनीतिक दल ने अभी तक ऐसे प्रत्याशी का अपने बेवसाइट पर उल्लेख नहीं किया है, जिससे मतदाताओं को उनके प्रत्याशी के बारे में जानकारी मिल सकें। किसी भी प्रत्याशी को चुनने से पहले मतदाता के पास यह अधिकार है कि वह उसके बारे में पूरी डिटेल्स खासकर आपराधिक इतिहास से संबंधित जानकारी ले सकें। पिछले साल विधानसभा चुनावों के दौरान, सुप्रीम कोर्ट ने आठ राजनीतिक दलों को अपने प्रत्याशियों के आपराधिक इतिहास को सार्वजनिक नहीं करने के निर्देशों के उल्लंघन के लिए अदालत की अवमानना का दोषी ठहराया था।
देश के मुख्य सूचना आयुक्त सुशील चंद्रा इस संबंध में पहले ही एक प्रेस काॅन्फ्रेंस में यह स्पष्ट कर चुके हैं कि इस बार राजनीतिक दलों को आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों की जानकारी अखबार, टीवी चैनल्स के माध्यम से विज्ञापन देकर सार्वजनिक करनी होगी। साथ ही दागी कैंडिडेट को भी पर्चा वापस लेने की अंतिम तारीख से मतदान के दो दिन पहले तक आपराधिक रिकाॅर्ड का ब्योरा अखबारों और टीवी चैनलों के माध्यम से मतदाताओं के सामने रखना होगा।
पिछले साल 2021 में बंगाल, केरल, तमिलनाडु सहित पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों की स्थिति पर गौर करें तो यह चैंकाने वाली है। एडीआर (एसोसिएट डेमोक्रेटिक रिफाॅर्म) की रिपोर्ट के अनुसार केरल में जीतकर आए कुल प्रत्याशियों में से 71 प्रतिशत ने अपने ऊपर आपराधिक मामले घोषित किए थे। इन 71 प्रतिशत में से 27 प्रतिशत तो ऐसे थे जिनके ऊपर गंभीर आपराधिक मामले दर्ज थे। इसके अलावा बंगाल में जीतकर आए उम्मीदवारों में 49 के ऊपर आपराधिक मामले दर्ज पाए गए हैं। इन 49 प्रत्याशियों में 39 प्रतिशत ऐसे हैं, जिनके ऊपर गंभीर आपराधिक मामले हैं।
उत्तराखण्ड इलेक्शन वाॅच और एडीआर की संयुक्त रिपोर्ट में प्रदेश के 65 विधायकों की बाबत 2017 के विधानसभा चुनाव में सामने आए आंकड़े भी चैंकाने वाले थे। तब 31 प्रतिशत विधायकों पर आपराधिक मामले दर्ज थे। ऐसे विधायकों की संख्या 20 थी। इनमें 22 प्रतिशत यानी 14 विधायक ऐसे थे जिन पर गंभीर मुकदमें दर्ज थे। सबसे ज्यादा भाजपा के थे। जिनमें 54 में से 16 (30 प्रतिशत) पर आपराधिक मामले दर्ज थे, जबकि कांग्रेस के 9 में से 3 (33 प्रतिशत) पर आपराधिक मामले दर्ज थे। गंभीर आपराधिक मामलों में भाजपा के 54 में से 10 यानी 19 प्रतिशत थे। कांग्रेस के 9 में से 3 पर गंभीर मामले दर्ज पाए गए थे। इनमें से अधिकतर विधायक एक बार फिर उत्तराखण्ड के चुनावी मैदान में कांग्रेस-भाजपा से दावेदारी करते नजर आ रहे हैं।
एडीआर की सूची में आपराधिक मामलों में सबसे उपर गदरपुर के भाजपा विधायक अरविंद पांडेय का नाम है। पांडेय पर कुल 12 मामले दर्ज हैं। इसके चलते ही अरविंद पांडेय की छवि एक दबंग विधायक के रूप में चर्चित है। पूर्व में वह अपनी इस छवि को चरितार्थ करते हुए पुलिस और प्रशासन के अधिकारियों के साथ भी बदसलूकी करने से चर्चा में आए थे। उत्तराखण्ड राज्य बनने के बाद हुए चुनावों में पांडेय पहले दो बार बाजपुर से विधायक चुने गए थे। इसके बाद जब बाजपुर सीट आरक्षित हो गई तो वह गदरपुर से दो बार विधायक बन चुके हैं। भाजपा सरकार में वह शिक्षा मंत्री रहें। इस बार वह गदरपुर से भाजपा के टिकट पर तीसरी बार किस्मत आजमा रहे हैं। त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार के दौरान वह अपने राजनीतिक रसूखों के
बलबूते सत्ता पर दवाब बनाने में सफल रहे। इसके चलते ही वह अपने ऊपर दर्ज एक दर्जन मामलों में से 4 मामले निरस्त कराने में सफल हो गए थे।
बताया जाता है कि त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार के दौरान प्रदेश के गृह विभाग के पास शिक्षा मंत्री द्वारा उनके दस मुकदमे वापस लेने का प्रस्ताव भिजवाया गया था। जिस पर न्याय विभाग का परामर्श भी लिया गया। इसके बाद 8 मुकदमों पर वापसी के निर्णय को प्रतीक्षा में डाल दिया गया है। शासन स्तर पर इन मुकदमों को वापस लिया जाना उचित नहीं माना गया है, जबकि गृह विभाग ने वर्ष 2019 में शिक्षा मंत्री के खिलाफ चार मुकदमे वापस लेने के आदेश दे दिए थे। इसमें बड़ा मामला 2015 में एक तहसीलदार से मारपीट का था।
इस मामले में पट्टे की भूमि पर हुए निर्णय से नाखुश एक पक्ष के लोगों ने 25 अगस्त 2015 को गदरपुर के नायब तहसीलदार शेर सिंह गयाल के साथ मारपीट कर दी थी। इस मामले में नायब तहसीलदार शेर सिंह गयाल ने तब विधायक और वर्तमान में शिक्षा मंत्री अरविंद पांडेय सहित कई लोगों के खिलाफ विभिन्न धाराओं में मुकदमा दर्ज कराया था। इससे नाराज अरविंद पांडेय ने समर्थकों के साथ जुलूस निकालकर पुतला दहन करने के साथ नेशनल हाईवे जाम कर दिया था। इस मामले को सरकार ने वापस ले लिया।
इसी तरह एक दूसरे मामले में भी सरकार की पांडेय पर मेहरबानी बरसी। 2013 में सरकार वर्सेस अरविंद पांडेय वाले मामले में भी त्रिवेद्र सिंह रावत सरकार द्वारा राहत दी गई। यह मामला 2 नवंबर 2013 को काशीपुर में हुई एक घटना से संबंधित था जिसमें महेशपुरा निवासी सचिन वाल्मीकि उर्फ मोनू भारती की हत्या कर दी गई थी। उसका शव आर्यनगर में एक खाली भूखंड में पड़ा मिला था। मृतक का एक हाथ काटकर नाले में डाल दिया गया था। इस हत्याकांड के खुलासे को लेकर भाजपा कार्यकर्ताओं ने तब लंबा आंदोलन चलाया था। इसके साथ ही भाजपा नेताओं ने 8 नवंबर 2019 को कोतवाली में धरना भी दिया। इस मामले में तत्कालीन एसएसआई धीरेंद्र कुमार ने 10 भाजपा नेताओं को नामजद करते हुए 110 अन्य के खिलाफ पुलिस के प्रति अपमानजनक शब्दों का प्रयोग करने और सरकारी कामकाज में बाधा पहुंचाने के आरोप में मुकदमा दर्ज कराया था।
इस मामले में पूर्व सांसद बलराज पासी, गदरपुर विधायक अरविंद पांडे, भाजपा के पूर्व जिलाध्यक्ष राम मेहरोत्रा, गुरविंदर सिंह चंडोक, अजय शर्मा, खिलेंद्र चैधरी, मनोज पाल, ईश्वर चंद्र गुप्ता, वासु शर्मा, गगन कांबोज आदि के खिलाफ धारा 147, 353, 341 एवं 500 के तहत मुकदमा दर्ज कराया था। वर्ष 2015 में पुलिस ने इस मामले में न्यायालय में चार्जशीट दायर की। तब से यह मुकदमा न्यायालय में लंबित चल रहा था। 30 जुलाई 2019 को उत्तराखण्ड शासन के अपर सचिव (गृह) अतर सिंह के आदेश पर काशीपुर कोतवाली में दर्ज यह मुकदमा अपराध संख्या 544ध्2013 सरकार बनाम अरविंद पांडेय और अन्य को वापस ले लिया गया।
इसके अलावा दो अन्य मुकदमे भी सरकार द्वारा वापस लिए गए। यह मुकदमे राजनीतिक प्रकृति के बताए जा रहे हैं। चार मामले सरकार ने वापस लेकर सत्ता पक्ष का मंत्री होने के नाते उन्हें तब बड़ी राहत दी गई। उस दौरान विपक्ष ने भी भाजपा सरकार पर सवाल उठाए थे। फिलहाल, पांडेय पर 4 मामले निरस्त होने के बाद भी 8 मामले अदालतों में विचाराधीन है।
अरविंद पांडेय का अपराधिक रिकाॅर्ड
1. वाद संख्या-3265/2014: 19 नवंबर 2014, धारा-147,353, 504 – विचाराधीन मजिस्टेªट काशीपुर
2. वाद संख्या-2225/2014: 5 अगस्त 2014, धारा-147, 341 – विचाराधीन मजिस्टेªट काशीपुर
3. वाद संख्या-907/2015: 30 मार्च 2015, धारा-147, 353, 341, 500 – विचाराधीन मजिस्टेªट काशीपुर
4. वाद संख्या-2798/2014: 8 अक्टूबर 2014, धारा-147, 332, 353, 153ए, 295ए-268 – विचाराधीन मजिस्टेªट काशीपुर
5. वाद संख्या-1353/2013: 28 मार्च 2012, धारा-171 एच, 127ए – सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने विचाराधीन एडिशनल जज रूद्रपुर
6. वाद संख्या-534(ए)/2013: 10 फरवरी 2009, धारा-147, 341, 504 – विचाराधीन एडिशनल जज रूद्रपुर
7. वाद संख्या-149/2006: 17 जनवरी 2009, धारा-149, 302, एससीएसटी एक्ट – विचाराधीन डिस्ट्रिक एडिशनल जज रूद्रपुर
8. एफआईआर संख्या-154/2015: 26 अगस्त 2014, धारा-147, 341,186 – विचाराधीन सीजेएम रूद्रपुर
9. एफआईआर संख्या-152/2015: 28 अगस्त 2015, धारा-147, 148, 395, 332, 353, 325 – एससी एसटी एक्ट विचाराधीन सीजेएम रूद्रपुर
10. एफआईआर संख्या-158/2014: 25 जून 2014, धारा-153, 153ए, 186,353, 341, 504, 506 – विचाराधीन ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट काशीपुर
11. एफआईआर संख्या-21/2015: 25 जून 2014, धारा-147, 323, 332,353, 504, 225ए – मजिस्टेªट काशीपुर
12. एफआईआर संख्या-294/2011: 23 मार्च 2012, धारा-147, 148, 149, 323, 427, 504 – एडिशनल जज रूद्रपुर