देशमुख प्रकरण में सत्ताधारी गठबंधन के बीच तालमेल का जो अभाव दिखाई दिया, वह सरकार के भविष्य के लिए बड़ा खतरा समझा जा रहा है
महाराष्ट्र में पूर्व गृहमंत्री अनिल देशमुख पर लगे आरोपों के बाद से राजनीति गरमाई हुई है। विपक्षी भारतीय जनता पार्टी राज्य सरकार पर हमलावर है, तो सत्ताधारी गठबंधन महाविकास अघाड़ी में देशमुख मामले को लेकर तालमेल का जो अभाव रहा, उसे गठबंधन में अंदरखाने आई दरार के रूप में देखा जा रहा है। हालांकि राज्य के पूर्व गृहमंत्री अनिल देशमुख के खिलाफ लगे अवैध वसूली के आरोपों की जांच का जिम्मा सीबीआई को हाईकोर्ट के निर्देश पर सौंपा गया है, लेकिन सूत्रों के मुताबिक सत्ता गठबंधन की अहम पार्टी एनसीपी इस बात से नाराज है कि मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने देशमुख के खिलाफ जांच के आदेश दिए। उधर कांग्रेस इस बात से खफा है कि इस पूरे प्रकरण में उससे कोई सलाह करने की जरूरत नहीं समझी गई। यह स्थिति बताती है कि सत्ताधारी गठबंधन में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है। सत्ता गठबंधन में शामिल तीनों पार्टियों में तालमेल का अभाव देखते हुए राजनीतिक विश्लेषक आशंका व्यक्त कर रहे हैं कि महाराष्ट्र विकास अघाड़ी सरकार अब शायद ही लंबी पारी खेल पाएगी।
देशमुख का इस्तीफा इस गठबंधन में फूट की शुरुआत के रूप में भी देखा जा रहा है। दरअसल, उद्धव सरकार ने देशमुख पर लगाए गए आरोपों की जांच रिटायर्ड जज से कराने की घोषणा की थी, तभी यह अटकलें लगाई जा रही थी कि अब देशमुख से इस्तीफा मांगा जाएगा, यह निष्प्क्ष जांच के लिए जरूरी था। साथ ही लोगों के बीच यह संदेश भी देना था कि राज्य सरकार भ्रष्टाचार के आरोपों को लेकर गंभीर है। लेकिन बताया जाता है कि एनसीपी का शीर्ष नेतृत्व देशमुख के खिलाफ तत्काल कोई कार्रवाई नहीं चाहता था। हालांकि इस बात को लेकर सहमति थी कि बाद में देशमुख को गृह मंत्रालय से किसी और विभाग में भेज दिया जाएगा, लेकिन इस बीच हाईकोर्ट के आदेश ने एनसीपी को मजबूर कर दिया कि वह देशमुख का इस्तीफा ले। ऐसे में इस्तीफा लेने में पार्टी की ओर से हुई देरी ने एनसीपी की भद्द पीट दी है।
बता दें कि 25 फरवरी को जब मुकेश अंबानी के घर के बाहर विस्फोटक से भरी गाड़ी मिली, तबसे ही एमवीए सरकार और एनसीपी अलग-अलग नजर आ रही हैं। इसकी शुरुआत हुई पुलिस अधिकारी सचिन वाजे को लेकर अलग-अलग रुख अपनाने से। महाराष्ट्र सरकार में एंटीलिया केस की जांच कर रहे मुंबई क्राइम ब्रांच के निलंबित पुलिस अधिकारी को हटाने में देरी किए जाने और वाजे की गिरफ्तारी पर अलग- अलग रुख देखने को मिला था।
उद्धव सरकार के अंदर एक राय की कमी उस वक्त भी दिखी, जब मुंबई पुलिस कमिश्नर और पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने अनिल देशमुख के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप लगाए। इसके पीछे की वजह भी मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और एनसीपी चीफ शरद पवार के बीच एकमत न होना ही था। एमवीए नेताओं की मानें, तो ठाकरे चाहते थे कि एनसीपी देशमुख को कैबिनेट से हटाए। हालांकि, दूसरी तरफ एनसीपी नहीं चाहती थी कि वह देशमुख पर लगे आरोपों पर तुरंत कार्रवाई करे।
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि देशमुख प्रकरण में सहयोगी पार्टियों के बीच आपसी तालमेल की कमी साफ दिखी। स्थिति को संभालने का रवैया ढुलमुल था। सरकार को बिना देरी किए मामले की जांच करवाने का आदेश देना चाहिए था और जब जांच की घोषणा की गई थी, तो देशमुख से उसी समय इस्तीफा लेना चाहिए था ताकि उन्हें गृह विभाग से दूर रखा जा सके। यह समझना मुश्किल है कि शरद पवार जैसे मंझे हुए राजनेता ने यह क्यों नहीं किया। जांच में सीबीआई की एंट्री के बाद चीजें एमवीए सरकार के कंट्रोल में नहीं रही, क्योंकि अब केंद्रीय जांच एजेंसी अपने तरीके से जांच करेगी। अब यह अलग बात है कि सीबीआई जांच में क्या निष्कर्ष निकलकर सामने आता है, लेकिन फिलहाल तो देशमुख प्रकरण से यह साफ हो गया है कि तीनों दलों में आपसी तालमेल का अभाव है। तालमेल की यह कमी गठबंधन में फूट का बड़ा कारण बन सकती है।