मुंबई पुलिस की क्राइम ब्रांच ने रिपब्लिक टीवी पर टीआरपी की खरीद फरोख्त करने का बड़ा खुलासा किया था । इसके साथ ही अब फिल्म अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मौत मामले की सुनवाई कर रहे बॉम्बे हाईकोर्ट ने रिपब्लिक टीवी की रिपोर्टिंग के तरीके पर सवाल उठाए हैं। कोर्ट ने पूछा, ऐसे समय में जबकि जांच जारी हो क्या चैनल का जनता से यह सवाल करना कि इस मामले में किसकी गिरफ्तारी होनी चाहिए, खोजी पत्रकारिता है? कोर्ट ने कहा, यह तो खोजी पत्रकारिता के नाम पर व्यक्ति के अधिकारों का उल्लंघन है।
चीफ जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस जीएस कुलकर्णी की पीठ ने सुनवाई के दौरान रिपब्लिक टीवी के सुशांत मामले में #अरेस्टरिया कैंपेन समेत कई अन्य खबरों का जिक्र किया।
पीठ ने चैनल की वकील मालविका त्रिवेदी से पूछा, आखिर रिपब्लिक टीवी ने शव की तस्वीरें क्यों दिखाई और यह अनुमान किस आधार पर लगाया कि सुशांत की मौत आत्महत्या है या हत्या? पीठ ने कहा, शिकायत #अरेस्टरिया से है। आखिर यह समाचार का हिस्सा कैसे है?पीठ ने पूछा, जब इस बात की जांच हो रही है कि मौत हत्या या आत्महत्या, इसके बीच चैनल उसे हत्या साबित करने में कैसे जुटा है, क्या यही खोजी पत्रकारिता है? पीठ ने यह टिप्पणी एक जनहित याचिका पर अंतिम सुनवाई के दौरान की। याचिका में सुशांत मौत मामले में मीडिया रिपोर्टिंग और मीडिया ट्रायल रोकने की मांग की गई है।
रिपब्लिक टीवी चैनल की ओर से पेश वकील ने कहा, हमारी रिपोर्टिंग से कई महत्वपूर्ण पहलुआें का सच सामने आया जिससे जांच में मदद मिली। पत्रकार होने के नाते हमारा कर्तव्य है कि हम जनता की राय सामने लाएं और सरकार की आलोचना करें। ऐसा जरूरी नहीं कि चैनल पर दिखाई हर बात की सभी लोग सराहना करें। हालांकि अगर कोई खबर समाज के किसी वर्ग को असहज महसूस कराती है तो यही लोकतंत्र का मूल तत्व है।
इस पर पीठ ने कहा, हम यह नहीं कर रहे कि मीडिया का गला दबा दिया जाए लेकिन यह जरूरी है कि मीडिया अपनी सीमा समझे। हम सिर्फ पत्रकारिता के मूल नियमों की बात कर रहे हैं जिनका आत्महत्या की रिपोर्टिंग करते वक्त ध्यान रखना जरूरी है।
इसमें सनसनीखेज सुर्खियों और बार-बार एक ही बात का दोहराव नहीं होना चाहिए। आप ने तो मृतक को भी नहीं छोड़ा, गवाह की क्या बात करें। प्रथमदृष्टया हमें लगता है कि आपने अपने आरोपों से एक महिला के अधिकारों का घोर उल्लंघन किया। पीठ इस मामले में अब कल 23 अक्टूबर को सुनवाई करेगी।