त्रिवेंद्र सरकार के गले की हड्डी बना विधानसभा सत्रदेहरादून। उत्तराखण्ड विधानसभा का सत्र राज्य की त्रिवेंद्र रावत सरकार के गले की हड्डी बन गया है। सरकार और विधानसभा अध्यक्ष सत्र के लिए तमाम संभावनाओं को टलोल रहे हैं, लेकिन अभी सरकार किसी निर्णय पर नहीं पहुंच पाई है। जिस तरह से प्रदेश में कोरोना संक्रमण के मामले लगातार तेजी से बढ़ रहे हैं उससे सरकार भी बुरी तरह हिल चुकी है। इसका असर 23 सितंबर से होने वाले विधानसभा सत्र के आयोजन पर पड़ना निश्चित है। माना जा रहा है कि सरकार केवल एक दिन का विधानसभा सत्र करवा सकती है जिसके लिए मार्ग खोजा जा रहा है। हालांकि सरकार के सामने कई विकल्प मौजूद हैं जिसमें वर्चुअल सत्र और सचिवालय के अलावा विधानसभा परिसर स्थित टेंंट चलाने की बात भी सामने आ रही है। लेकिन सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती तीन दिन के सत्र को लेकर बनी हुई है। जिसके लिए सरकार अब एक दिन का सत्र आहूत कर सकती है।
दरअसल, राज्य में विधानसभा सत्र की तारीख तय होने के बाद से ही प्रदेश में कोरोना महामारी का रौद्र रूप सामने आया है। प्रदेश में 1 से 17 सितंबर तक कोरोना संक्रमण का आंकड़ा 37 हजार को भी पार कर चुका है ओैर 11 हजार 714 कोरोना के एक्टिव मामले चल रहे हैं, जबकि कोरोना से मरने वालों की तादात 460 तक जा पहुंची है। कोरोना के यह आंकड़े सरकार के लिए बड़ी मुसीबत का कारण बन चुके हैं। इसके चलते सरकार और विधानसभा अध्यक्ष भी सत्र के आयोजन को लेकर खासे परेशान हैं।
कोरोना किस तरह से प्रदेश में अपना भयावह रूप दिखा चुका है, यह इस बात से समझा जा सकता है कि अभी तक प्रदेश के 6 विधायक कोरोना संक्रमित हो चुके हैं और दो कैबिनेट मंत्री भी इसकी चपेट में हैं। यही नहीं भाजपा सरकार में दायित्वधारी राज्यमंत्री ज्ञानसिंह नेगी और सचिवालय के एक अनुसचिव हरी सिंह की मौत कोराना से हो चुकी है। इसके अलावा मुख्यमंत्री कार्यालय के स्टाफ और ओएसडी उर्वादत्त भट्ट तो स्वयं कोरोना से जूझ रहे हैं, जबकि उनकी पत्नी की मौत भी इसी के चलते हो चुकी है। सचिवालय के कई अनुभागां और विभागों में अधिकारियों के साथ-साथ कर्मचारियों को भी कोरोना का डंक लग चुका है। पुलिस के बड़े-बड़े उच्चधिकारियों के अलावा 600 पुलिसकर्मी भी इसकी चपेट में आ चुके हैं।
अब विधानसभा सत्र के आयोजन की बात करें तो राज्य सरकार के लिए विधानसभा का सत्र आयोजन करना संवैधानिक मजबूरी बनी हुई है। 20 मार्च को विधानसभा सत्र का आयोजन किया गया था जिसके चलते छह माह के भीतर ही सरकार को विधानसभा का सत्र करवाना जरूरी है। हार हाल में सरकार को 27 सितंबर तक सत्र करवाना एक तरह से संवैधानिक मजबूरी है। यही मजबूरी सरकार के लिए गले की हड्डी बन चुकी है। अगर सरकार तय समय पर सत्र का आयोजन नहीं करवाती है, तो सरकार पर ही संवेधानिक संकट खड़ा हो सकता है।
दरअसल, सरकार के सामने विधानसभा भवन में सत्र के आयोजन को लेकर ही सबसे बड़ी समस्या बनी हुई है। कोरोना के चलते सामाजिक दूरी का पालन के नियम सभी 71 विधायकों को सदन में बैठने की व्यवस्था नहीं हो सकती। एक मीटर से ज्यादा दूरी का नियम का पालन करने से आधे ही विधायक सदन में बैठ सकते हैं। यही सरकार को सबसे ज्यादा परेशान कर रहा है। इसके लिए सरकार और विधानसभा प्रशासन कई विकल्पों की खोज में जुटा है। जिसमें दर्शक दीर्घा में भी कुछ विधायकों के बैठने की व्यवस्था की जानी है और विधानसभा परिसर में ही टेंट लगाकर कुछ विधायकों को बैठाया जा सकता है। इसके अलावा 60 वर्ष से ज्यादा आयु के विधायकों को वर्चुअल तरीके से सत्र की कार्यवाही में हिस्सा लेने का विकल्प सरकार के पास है। सरकार ने यह भी विकल्प दिया है कि सचिवालय के विश्वकर्मा हॉल में बने मीटिंग हॉल में सत्र का आयोजन किया जा सकता है। यह भी सरकार के पास एक विकल्प है जिस पर सरकार सोच रही है।
कांग्रेस नेता और नेता प्रतिपक्ष इंदिरा हृदेश ने साफ कर दिया है कि वे वर्चुअल तरीके से विधानसभा की कार्यवाही में हिस्सा नहीं लेगी। साथ ही विधानसभा भवन के अतिरिक्त किसी अन्य भवन में भी सत्र के आयोजन पर सख्त एतराज जता चुकी हैं। नेता प्रतिपक्ष का साफ कहना है कि सरकार विधानसभा परिसर में टेंट लगाकर सत्र का आयोजन करवाए जिसका कांग्रेस पूरा समर्थन करेगी और सहयोग भी करेगी।
अब सरकार के सामने बड़ी चुनौती खड़ी हो चुकी है। 20 सितंबर को विधानसभा कार्य समिति की बैठक में सरकार और विधानसभा अध्यक्ष सभी विकल्पों पर विचार करने वाले हैं। इस बैठक के बाद ही तय होगा कि सत्र किस तरह से और किस स्वरूप में आहूत किया जाएगा। लेकिन इतना तय माना जा रहा है कि सभी विकल्पों को देखने और समझने के बावजूद भी सत्र को महज एक दिन के लिए ही आयोजित किया जाए और प्रश्नकाल भी सत्र में नहीं रखा जाए।
विधानसभा कार्य समिति की बैठक के बाद सभी कयासों औेर अनिश्चयों के माहौल पर लगाम लग पाएगी। लेकिन यह तो तय है कि कोरोना ने जहां प्रदेश को हर मोर्चे पर बुरी तरह से हिला दिया है तो वहीं राजनीतिक मोर्चे पर भी सरकार को बुरी तरह से परेशान कर दिया है।