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प्राकृतिक ही नहीं मानव निर्मित आपदाओं का साल भी रहा 2020 , बहुत पीड़ा दे गया कंबख्त 

इसमें कोई भी संदेह नहीं कि साल 2020 आपदाओं का  रहा है, फिर वो चाहे प्राकृतिक आपदा रही हों  या  मानव जनित। गैस रिसाव, बाढ़, आकाशीय बिजली, चक्रवात जैसी प्राकृतिक आपदाएं तबाही लेकर आई। इन सबके बीच कोराना महामारी ने पूरी दुनिया को हिला कर रख दिया। इस तरह प्राकृतिक और मानव निर्मित आपदाओं ने दुनिया की प्रगति रोक दी। महामारी से अपने  देश भर में गंभीर परिणाम देखने को मिले। लगभग हर वर्ग, विशेषकर गरीब वर्ग इसके गंभीर परिणामों का शिकार हुआ। दरअसल ,साल की शुरुआत ही बड़े खतरे की आशंका के साथ हुई। वर्ष 2019 के अंतिम माह में आई नई महामारी कोविड -19 का साया पूरे  2020 पर रहा।

चारों  तरफ रहा कोरोना का कहर 

कोरोना महामारी में ऐसे मर्म-स्पर्शी घटनाएं घटीं, जो कल्पना से परे थीं। ऐसी ही एक घटना श्रमिक मज़दूरों का पलायन था। महामारी के लॉकडाउन में जब हर छोटे-बड़े उद्योगों पर ताला लग गया तो श्रमिक मज़दूरों की घर-गृहस्थी पर इसका नकारात्मक असर पड़ा। दिहाड़ी मज़दूरों के लिए  तो दो वक्त  की रोटी जुटाना मुश्किल हो गया।

जब छत और खाना दोनों छिनने लगे तो मज़दूर पलायन करने लगे। राज्यों की बसों में भर-भर के मजदूर  अपने पैतृक गांव  जाने लगे। जब ट्रेनें और बसें बंद हो गई  तो मीलों पैदल चलकर मजदूर अपने घर-गांव  तक पहुंचे।  हर दिन सड़क हादसे में इन मज़दूरों की लाशें बिछते समय नहीं लगता था। ऐसी ख़बरों से किसकी रूह नहीं कांपी होगी। इन श्रमिक मज़दूरों की ज़िन्दगी महज़ एक तमाशा ही बनकर रह गई थी। गैर सरकारी संगठन, सवेल लाइफ फाउंडेशन  के द्वारा पूरे लॉकडाउन में 26.4% मौतों का आंकड़ा संकलित किया गया, जिसमें 198 श्रमिक मज़दूरों की मौत सड़क हादसे में हुई। केंद्रीय रेल मंत्रालय के अनुसार मई महीने में श्रमिक मज़दूरों की घर वापसी के लिए स्पेशल ट्रेनों का प्रबंध किया गया। जून महीने के शुरुआत में लगभग 56 लाख मजदूरों को उनको घर पहुंचाया गया। गुजरात के सूरत में, मज़दूरों ने हल्ला बोल दिया। लगभग 500 मज़दूरों ने सड़कों पर धरना दे दिया। घर वापसी के लिए ट्रांसपोर्ट की व्यवस्था कराने की उनकी इस मांग  के बदले में पुलिस द्वारा 30 आंसू गैस के गोले छोड़े गए और 90 श्रमिक मजदूरों को गिरफ़्तार कर लिया गया। मई में, महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले  में, एक रेल हादसा हुआ। मालगाड़ी ने देखते ही देखते 16 मजदूरों की लाशें पटरी पर बिछा दी और 5 को घायल कर दिया। ये मज़दूर जलना से भुसावल पैदल चल कर आये थे। अपने पैतृक भूमि मध्य प्रदेश तक पहुंचने के लिए उन्हें यहीं से ट्रेन पकड़नी थी। मीलों पैदल चलने के कारण वे इतनी बुरी तरह थक चुके थे कि उनकी सोचने-समझने की शक्ति खत्म  हो चुकी थी। वरना आराम करने के लिए रेल की पटरी को कौन चुनता है। उनकी आंख लग गई। नींद में बेखबर मज़दूरों को मालगाड़ी रौंदती हुई चली गई। इस वर्ष मजबूर और मजदूर में अंतर मिटता सा दिखा।

कोरोना को लेकर लगाया लॉकडाउन 

दुनिया के दूसरे हिस्सों से खबरें तो जनवरी में ही आने लगी थीं। चीन से कुछ संक्रमित भारतीय भी आ चुके थे। बाज़ार- कारोबार ठंडे पड़ने लगे थे, लेकिन असली हड़कंप मचा मार्च के अंत में, जब तय हुआ कि अब भारत में भी लॉकडाउन के बिना गुजारा नहीं होगा।

23 मार्च को पूरे देश में लॉकडाउन की ख़बर आते ही शेयर बाज़ार ने तगड़ा गोता लगाया। हालांकि मुंबई सेंसेक्स को देखें तो 19 फरवरी से ही बाज़ार झटके खाता हुआ धीरे-धीरे लुढ़क रहा था। 20 मार्च तक ही यह 41,323 से गिरकर 29,915 पर पहुँच चुका था।

शेयर बाजार एक ही दिन में चार हजार प्वाइंट की गिरावट 

साफ है कि घबराहट और अनिश्चितता चारों ओर दिख रही थी। लेकिन जनता कर्फ्यू और लॉकडाउन की ख़बर आते ही जब बाज़ार खुला तो पूरी तरह हड़कंप मचा हुआ था और एक ही दिन में करीब 4,000 प्वाइंट की गिरावट दर्ज हुई। घबराहट की वजह भी साफ थी। सब तरफ सब कुछ बंद। जब कारोबार ही नहीं होगा तो कमाई कैसे होगी और शेयर बाज़ार चलेगा कैसे?

लेकिन शायद यही आख़िरी दिन था जब तक यह पुरानी कहावत सही लग रही थी कि मुंबई शेयर बाज़ार का इंडेक्स भारतीय अर्थव्यवस्था की सेहत का बैरोमीटर होता है। क्योंकि उसके बाद से अर्थव्यवस्था और शेयर बाजा़र में छत्तीस का आँकड़ा ही दिख रहा है।

चरमराई अर्थव्यवस्था 

कोरोना के चलते देश की अर्थव्यवस्था बुरी तरह चरमराई । जीडीपी ने करीब 24% की डुबकी लगाई। 11 करोड़ लोग बेरोज़गार हो गए। कंपनियों की कमाई और खर्च में 27 प्रतिशत और मुनाफ़े में 49% तक की गिरावट नजर  आई।

बस कोई चीज़ चल रही थी तो वह था खाने- पीने के सामान का कारोबार। आपके पड़ोस की दुकान हो या ऑनलाइन डिलीवरी करने वाले ऐप। कुछ और कारोबार थे जो रातोंरात चल पड़े। ये थे सैनिटाइजर, मास्क और इम्युनिटी बढ़ाने वाली दवाओं को बनाने बेचने वाले।

वर्क फ्रॉम होम को मजबूर 

इनके अलावा इस आपदा में जिनके लिए अवसर पैदा हुआ वो ऐसे कारोबार थे जो किसी न किसी तरह से ‘वर्क फ्रॉम होम’ में मददगार थे या फिर विद्यार्थियों के लिए घर पर ही बैठ कर क्लास में शामिल होना संभव करते थे।

इसी चक्कर में लैपटॉप, टैब्लेट, वेबकैम, माइक, ब्लूटूथ हेडफोन और मोबाइल बनाने बेचने वालों के साथ साथ उन सब की भी चाँदी हो गई जो ब्रॉडबैंड इंटरनेट या हाई स्पीड डेटा का काम कर रहे हैं।

इनमें मोबाइल कंपनियों के साथ ही राउटर, मोडम और केबल के कारोबारी भी शामिल हैं और आपके पड़ोसी केबल ऑपरेटर भी।

सिनेमा का कारोबार बंद होने का सबसे तगड़ा फायदा नेटफ्लिक्स, एमेजॉन प्राइम और हॉटस्टार जैसे ओटीटी प्लेटफॉर्मों को और न्यूज चैनलों को भी हुआ है।

कोरोना का इलाज 

अब जब चीजें धीरे धीरे पटरी पर लौट रही हैं तब भी इतना तो तय है कि लॉकडाउन के पहले जिस दुनिया में हम थे, वह दुनिया अब वैसी ही शक्ल- सूरत में सामने नहीं आने वाली है।

खासकर यह देखते हुए कि कोरोना का इलाज या टीका आना अभी शुरू ही हुआ है और कोरोना की शक्ल बदलने की ख़बर उससे पहले ही आने लगी है।

 तेजी से भागता सेंसेक्स , 47 हजार के ऊपर 

ऐसे में यह देखकर हैरत तो होती है कि शेयर बाज़ार क्यों और कैसे तेजी से भागता जा रहा है। चारों ओर छाई बदहाली के बावजूद सेंसेक्स अब 47,000 के ऊपर पहुँच चुका है। इसकी एक बड़ी वजह तो विदेशी निवेशक हैं, जिन्होंने मार्च में एक बार भारतीय बाजार से करीब 1592 करोड़ डॉलर एक साथ निकाले थे।

मई तक बिकवाली के बाद जून से वो ख़रीदारी कर रहे हैं और सितंबर में मामूली बिकवाली के बावजूद 29 दिसंबर तक तीन हज़ार करोड़ डॉलर से ऊपर की रकम वापस बाजार में लगा चुके हैं।

म्यूचुअल फंड या शेयरों में पैसा लगाने वाले मध्य वर्ग के लोग इस तेजी को देखकर मगन हैं और बड़ी संख्या में लोग नए डीमैट अकाउंट खोल रहे हैं। दिसंबर की शुरुआत में ही ख़बर आई थी कि इस साल पिछले नौ महीनों में करीब 65 लाख नए डीमैट अकाउंट्स खुले हैं। ये वो लोग हैं जो शेयर बाज़ार की तेज़ी देखकर बहती गंगा में हाथ धोने निकल आए हैं। यह भी बाजार को चढ़ाने में अपनी सीमित भूमिका निभा रहे हैं।

दर्दनाक पहलू 

लेकिन इस किस्से का एक दर्दनाक पहलू भी है। जो खुलते ही सबको अपने फायदे में अपना नुकसान साफ समझ में आ जाएगा। पिछली दो तिमाहियों के नतीजे देखने से पता चलता है कि कंपनियों की बिक्री या आमदनी भी तेजी से गिरी और ख़र्च भी, यानी कामकाज में भारी कमी है। लेकिन ज्यादातर कंपनियों के मुनाफ़े या मुनाफ़े की दर में उछाल दिख रहा है। इसका रहस्य समझना जरूरी है क्योंकि उसी से आगे की दिशा दिखती है।

कॉस्ट कटिंग का एक रास्ता तो है कि कच्चा माल कम खरीदें, बिजली कम खर्च करें या जहाँ भी जितने कम से कम से गुजारा हो सके करें।

बड़ी कंपनियां महीनों का कच्चा माल जमा कर के रखती हैं, ऐसे में उन्होंने उसी स्टॉक से काम चलाया और नई ख़रीद काफी सोच समझ कर की। इसकी वजह यह भी थी कि लॉकडाउन में कच्चा माल लाना और भी महंगा हो रहा था। सो कुछ समय के लिए यह नुस्खा कारगर है। और इससे मैनेजमेंट में यह हौसला भी जाग रहा है कि शायद जितना माल वो स्टोर में भरकर रखते थे उससे कम में भी फैक्टरी अच्छे से चल सकती है। लेकिन खर्च का एक दूसरा बड़ा हिस्सा है इंप्लाई कॉस्ट या कर्मचारियों पर होने वाला खर्च। और अब तक का रिकॉर्ड दिखाता है कि जब खर्च घटाने की बात आती है तो सबसे पहली मार यहीं पड़ती है। कुछ की नौकरी जाती है और कुछ के वेतन में कटौती हो जाती है।

और कंपनियों के मैनेजमेंट को एक बार यह अहसास हो गया है कि कम लोगों में काम चलाया जा सकता है तो अगले साल यह सिलसिला और तेज़ हो सकता है।

कच्चे माल की जरूरत 

कोई भी कारोबार चलाने वाला किसी भी कीमत पर अपने मुनाफ़े को कम नहीं करना चाहता। अब लॉकडाउन के बाद जैसे जैसे कच्चे माल की ज़रूरत बढ़ रही है वैसे ही उसके दाम भी बढ़ते दिख रहे हैं। सबसे तगड़ा उछाल दिख रहा है इस्पात के दाम में जहां लगभग 30% की तेजी आ चुकी है साल भर में।

इसका दबाव कंपनियों पर और पूरे कारोबार पर पड़ना तय है, क्योंकि उन्हें दाम बढ़ाने पड़ेंगे जिसका असर बिक्री पर पड़ सकता है। दूसरी तरफ शेयर होल्डरों को आदत पड़ चुकी है कि कंपनी लॉकडाउन में भी मुनाफ़ा बढ़ा सकती है तो उनकी इच्छायें बढ़ चुकी हैं।

मदद की गुहार 

ऐसे में व्यापार और उद्योग संगठन फिर सरकार से मदद की गुहार लगाएंगे। सरकार पहले ही जो मदद दे चुकी है वो  ऊँट के मुँह में जीरा साबित हुई है और जहां उद्योगों को उससे राहत की उम्मीद है।

खड़ी हुई नई चुनौतियां 

सरकार के सामने भविष्य की चुनौती है कि टैक्स वसूली कैसे बढ़े और इस वक्त जो सबसे बड़ी चुनौती है उसके लिए पैसे का इंतज़ाम कहाँ से हो। यह चुनौती है कोरोना के टीके ख़रीदना और उन्हें हर आदमी तक पहुंचाना । ऐसे में नए रोज़गार पैदा करना, ग़रीबों को मदद पहुंचाना और देश की तरक्की की रफ्तार को वापस 8 प्रतिशत  के ऊपर पहुंचाना न सिर्फ इस सरकार के लिए बल्कि पूरे देश के लिए बड़ी चुनौती है। और 2021 बहुत से लोगों को यह भी सिखाएगा कि शेयर बाज़ार में बचे रहने वालों को ख़तरों का खिलाड़ी यूं ही नहीं कहा जाता है।

बाढ़ ने दिखाया विकराल रूप 

2020 को त्रासदी का युग मानना बिल्कुल सही होगा। असम, बिहार, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, केरल, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना जैसे राज्यों ने बाढ़ का विकराल  रूप देखा। असम में मई के शुरुआत से ही बाढ़ ने तांडव शुरू कर दिया था।

लाखों लोगों के घर-बार, रोजी-रोटी छिन्न गई। जरूरतमंदों के लिए राहत शिविर लगाए गए। विस्थापितों के लिए शरण की व्यवस्था की गई। ग्रामीण इलाके जैसे गगोलमारी गाँव में, परिवारों के लिए बचाव नौका को घरों में तब्दील कर दिया गया। खेती की उपजाऊ ज़मीन बंज़र हो गई। फसल और अनाज बर्बाद हो गए। महामारी के बीच, अधिकांश स्वास्थ्यकर्मियों को बाढ़ से डूबे हुए गाँवों में दवा वितरण के लिए जाना पड़ा। जलजनित बीमारियों के वे भी शिकार हुए। राज्य और केंद्र सरकार ने बाढ़ पीड़ितों की मदद के लिए राहत कोष के साथ-साथ क्राउडफंड्स की व्यवस्था की।

बिजली गिरने जैसी प्राकृतिक आपदा का कहर इस साल मौतें होती गईं और इसके कई कारणों में बिजली का गिरना भी एक प्रमुख कारण बना। राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की रिपोर्ट में दर्ज आंकड़ों के अनुसार अत्यधिक वर्षा की वजह से बहुत ज़्यादा मई से जुलाई के बीच, बिजली चमकने और फिर बिजली के गिरने के कारण 315 लोगों मरे, जिसमें 90% उत्तर प्रदेश और बिहार के थे। बिजली ने सबसे अधिक कहर किसानों पर बरपाया। खेती करते वक़्त बिजली के गिरने से किसानों की मौत का आँकड़ा सबसे अधिक है। बिहार के मुख्यमंत्री ने नुकसान की भरपाई के लिए हर मृतक के परिवार के लिए 4 लाख रुपये का मुआवज़ा देने का और घायलों के लिए निःशुल्क इलाज की व्यवस्था का ऐलान किया। इस साल, बिहार में, अत्यधिक बारिश और बिजली चमकने की वजह से बादलों का गर्जन भी अपने चरम पर था।

बागजान गैस रिसाव और आगजनी की घटना ने भी अपना वीभत्स रूप दिखाया 27 मई को असम के तिनसुकिया ज़िले में स्थित ऑयल इंडिया की बागजान गैस व तेल के कुएं में भीषण आग लग गई। कुएं से बेतहाशा गैस का रिसाव हो रहा था। जिससे आग और भड़क रही थी। लगातार पाँच महीनों तक आग लपटें उठती रहीं। इस आग ने दो लोगों की जान ली, घरों को तबाह किया, और आस-पास के गांवों  से लगभग 9000 लोगों को बेघर कर दिया।

बहुत बुरा था 2020! लेकिन क्या इतना कहना काफी है? कतई नहीं। मौत के मुँह से वापस निकलने का साल था 2020। यूं नहीं समझ आता तो उन लोगों की सोचिये जो 2020 में कोरोना के शिकार हो गए। या वे जो कोरोना का शिकार होने के बाद फिर ठीक हो गए। और बाकी दुनिया में भी ऐसा कौन था जिसे एक वक़्त यह न लगा हो कि अब मौत सामने खड़ी है? यही तो होता है मौत से सामना।

यूं तो कोरोना वायरस एक दिन पहले यानी 31 दिसंबर, 2019 को ही पहचान लिया गया था और इसीलिए उसका नाम भी कोविड 2019 है, लेकिन दुनिया ने इसका सामना 2020 में ही किया। इसीलिए कोरोना काल की असली शुरूआत 2020 के नाम ही रहेगी।

 

 

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