साल 2020 हमसे विदा हो रहा है और नया साल 2021 आगमन की दहलीज पर है। हम सब बेसब्री और उत्साह के साथ नई संभावनाओं एवं उम्मीदों को लिए नववर्ष का स्वागत करने के लिए तैयार हैं। 2020 कई बड़ी राजनीतिक घटनाओं का भी साक्षी रहा है। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में अरविंद केजरीवाल ने सत्ता में हैट्रिक लगाई तो मध्यप्रदेश में कांग्रेस के भीतर बगावत का लाभ उठाते हुए भाजपा ने सत्ता में वापसी की।बिहार विधानसभा चुनाव में सत्ता विरोध लहर के बावजूद भाजपा और जेडीयू ने सरकार बनाई तो वहीं 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद इस साल कांग्रेस का निराशाजनक प्रदर्शन जारी रहा और वह अंदरूनी गुटबाजी से जूझती रही। यह साल गठबंधनों में उतार-चढ़ाव के नाम भी रहा। महाराष्ट्र में भाजपा से अलग शिवसेना की गठबंधन सरकार ने सत्ता में एक साल पूरा कर राजनीति में नई पहल के संकेत दिए तो कृषि कानूनों के विरोध में अकाली दल ने एनडीए छोड़ दिया। एलजेपी का बिहार में NDA छोड़ चुनाव लड़ने का दांव कई मायनों में सफल रहा।
केजरीवाल की दिल्ली में हैट्रिक :
संशोधित नागरिकता कानून ( CAA Movement) के विरोध में दिल्ली समेत देश भर में जनवरी में प्रदर्शन हुए। शाहीनबाग आंदोलन का सबसे बड़ा केंद्र उभरा।
इसी मुद्दे पर सियासी उफान के बीच दिल्ली में फरवरी 2020 में विधानसभा चुनाव हुए। मगर दिल्ली में ध्रुवीकरण नहीं चला और अरविंद केजरीवाल की अगुवाई वाली आम आदमी पार्टी ने 70 में से 62 सीटें जीतकर तीन चौथाई बहुमत हासिल किया। BJP को आठ सीटें और कांग्रेस शून्य पर रही।
मध्य प्रदेश में फिर शिवराज का राज :
मध्य प्रदेश में मामूली बहुमत के सहारे चल रही कमलनाथ की सरकार मार्च 2020 में गिर गई। कांग्रेस के कद्दावर नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया की अगुवाई में कांग्रेस के 25 विधायकों ने बगावत कर इस्तीफा दे दिया।
करीब एक माह विधायक कर्नाटक के होटल में रहे। 23 मार्च 2020 को शिवराज सिंह चौहान फिर मुख्यमंत्री बने। कोविड-19 की चुनौती के बीच 25 विधायकों की खाली हुई सीटों पर उपचुनाव में भाजपा 19 सीटें जीत गई। इससे सरकार पर उसकी पकड़ और मजबूत हुई।
राजस्थान में एमपी को दोहराने की नाकाम कोशिश
राजस्थान में अशोक गहलोत की सरकार को भी जुलाई 2020 में उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट की अगुवाई में बगावत का सामना करना पड़ा। सचिन पायलट समेत 19 विधायकों ने हरियाणा में डेरा डाल दिया। गहलोत और पायलट खेमे के बीच सियासी जोर आजमाइश एक माह चलती रही। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के दखल के बाद पायलट माने। पायलट ने 10 अगस्त 2020 को सुलह समझौते की बात मान ली।
अकाली दल ने एनडीए छोड़ा
शिवसेना के बाद बीजेपी के सबसे पुरानी सहयोगी पार्टी अकाली दल ने भी साथ छोड़ दिया। कृषि बिलों को संसद में पारित कराने के मुद्दे पर अकाली दल ने 26 सितंबर 2020 को एनडीए से 22 साल पुराना गठबंधन तोडा ।
अकाली नेता हरसिमरत कौर ने केंद्रीय मंत्रिपद से इस्तीफा दे दिया। एनडीए में अब आरपीआई समेत कुछ छोटे दल ही रह गए हैं। एलजेपी भी बिहार में NDA से अलग हो गई। हालांकि राम विलास पासवान के निधन के बाद केंद्र सरकार में एलजेपी (LJP) का कोई प्रतिनिधित्व नहीं रहा. पासवान की राज्यसभा की खाली सीट पर भी सुशील मोदी को चुना गया।
बिहार चुनाव में तेजस्वी का उदय
लोकसभा चुनाव 2019 में करारी हार के बाद राजद नेता तेजस्वी यादव के नेतृत्व पर सवालिया निशान थे।
अक्तूबर 2020 के पहले तक बिहार विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार के नेतृत्व में भाजपा -जेडीयू गठबंधन की एकतरफा जीत के कयास लग रहे थे , लेकिन तेजस्वी के तीखे चुनाव प्रचार, पिता लालू प्रसाद यादव की तरह जनता से जुड़ने की शैली ने माहौल बदला। राजद 75 सीटों के साथ बिहार में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी. बिहार विधानसभा चुनाव की 243 सीटों में NDA को बहुमत से सिर्फ दो ज्यादा 125 सीटें मिलीं. राजद की अगुवाई वाले महागठबंधन को 110 सीटें मिली।
नड्डा ने संभाली बीजेपी की कमान
बीजेपी में अमित शाह के ऐतिहासिक कार्यकाल के बाद वरिष्ठ नेता जगत प्रकाश नड्डा को जनवरी 2020 में पार्टी का अध्यक्ष चुना गया। 6 अप्रैल 2020 को बीजेपी के स्थापना दिवस पर उन्होंने पद संभाला।
शाह के NDA गृह मंत्रालय संभालने के बाद जुलाई 2019 में उन्हें बीजेपी का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया था। नड्डा के नेतृत्व में भाजपा ने बिहार चुनाव में शानदार प्रदर्शन किया। गुजरात, कर्नाटक, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के उपचुनाव में भी भाजपाशासित सरकारों को कामयाबी मिली। बंगाल में 2021 का विधानसभा चुनाव नड्डा के लिए बड़ा इम्तेहान होगा
कांग्रेस के 23 असंतुष्ट नेताओं ने उठाए सवाल
चुनावों में लगातार निराशाजनक प्रदर्शन के बीच कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व को भी असंतोष का सामना करना पड़ा। अगस्त 2020 में गुलाम नबी आजाद समेत कांग्रेस के 23 नेताओं का एक पत्र सामने आया।
इन नेताओं में आनंद शर्मा, कपिल सिब्बल, शशि थरूर, मनीष तिवारी, भूपेंदर सिंह हुड्डा आदि शामिल थे। पत्र में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के सामने संगठन चुनाव समेत तमाम मांगें उठाई गई। कांग्रेस कार्यसमिति (CWC) की बैठक में भी इस पर तीखी जुबानी जंग देखने को मिली। बिहार (Bihar Results) और उपचुनाव के नतीजों के बाद फिर असंतुष्ट नेताओं ने अपने तेवर जाहिर किए।
किसान आंदोलन की आंच दिल्ली पहुंची
कृषि कानूनों के खिलाफ अक्टूबर के अंत में पंजाब में शुरू हुआ किसान आंदोलन 25-26 नवंबर 2020 को दिल्ली की चौखट पर आ पहुंचा।
ट्रैक्टर-ट्रालियों में सवार हजारों किसानों का काफिला पानी की बौछारों, लाठीचार्ज और आंसू गैस के गोलों को झेलते हुए दिल्ली में डेरा डाल दिया। किसानों ने दिल्ली-हरियाणा के सिंध और टिकरी बॉर्डर को कब्जे में ले लिया है। दिल्ली-जयपुर हाईवे पर नया मोर्चा खोल दिया गया। किसानों और केंद्र के बीच छह दौर की वार्ता के बावजूद कृषि कानूनों पर गतिरोध कायम है।
महाराष्ट्र में शिवसेना गठबंधन का एक साल
महाराष्ट्र में BJP से अलग होकर नवंबर 2019 में कांग्रेस और एनसीपी (NCP) के साथ शिवसेना सरकार ने एक साल पूरा किया।
इसे देश में गठबंधन राजनीति में नया बदलाव माना जा रहा है। कांग्रेस और एनसीपी से वैचारिक अंतर्विरोधों के कारण माना जा रहा था कि महाराष्ट्र विकास अघाडी की सरकार ज्यादा दिन नहीं टिकेगी। चुनावी राजनीति से दूर रहे उद्धव ठाकरे एक मंझे राजनेता के तौर पर उभरे। विधानपरिषद चुनाव में गठबंधन ने बीजेपी को पटखनी दी।
कंगना-उद्धव सरकार में तनातनी
अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की 14 जून 2020 को मौत के बाद उठ् सियासी बवंडर महाराष्ट्र से लेकर बिहार की राजनीति को हिला दिया. अभिनेत्री कंगना रनौत ने सीधे मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे पर हमला बोला।
उनके बंगले को BMC ने तोड़ा, जिसे हाईकोर्ट ने बाद में गलत ठहराया, मगर कंगना के तीखे तेवर कायम रहे। भाजपा और कुछ अन्य दल कंगना के पाले में खड़े दिखे तो अघाडी गठबंधन विरोध में केंद्र से कंगना को वाई श्रेणी की सुरक्षा मिलने के मुद्दे पर भी खूब विवाद हुआ।