महाराष्ट्र की राजनीति में इस समय भूचाल आया हुआ है, शिंदे और उनके सहयोगी बागी विधायकों ने ठाकरे परिवार के पैरों के नीचे से जमीन खिसका दी है। हालत यह है कि उद्धव ठाकरे के हाथ से पूरी शिव सेना एकनाथ शिंदे के हाथ में पहुंच गई है। इस सियासी उलट फेर में एक चेहरा ऐसा है जो महाराष्ट्र की राजनीति में नए क्षत्रप के रूप में उभर रहा है।
राजनीतिक गलियारों में चर्चा गर्म है कि एकनाथ शिंदे की बगावत को हवा देने और उद्धव की सियासी जमीन हिला देने के सूत्रधार भाजपा नेता और महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस हैं। जिनकी टीम ने बेहद शांति से शिव सेना के असंतुष्ट नेताओं को हवा दी और बागियों को एकजुट बनाए रखने में अहम भूमिका निभाई है। फडणवीस की इस अहम भूमिका को लेकर कहा जाने लगा है कि अब महाराष्ट्र के नए क्षत्रप फडणवीस बन सकते हैं।
दरअसल, देवेंद्र फडणवीस का यह दांव महाराष्ट्र की राजनीति के चाणक्य शरद पवार पर भारी पड़ता दिख रहा है। महाविकास अघाड़ी सरकार का रिमोट कंट्रोल पवार के पास ही रहा है, और वह राज्य की राजनीति में ऐसे क्षत्रप के रूप में जाने जाते रहे हैं, जिन्होंने बड़ा उलट-फेर करते हुए 37 साल की उम्र में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री का पद हासिल कर लिया था। पिछले 50 साल से राज्य की राजनीति उनके इर्द-गिर्द ही घूमती रही है।
गौरतलब है कि महाराष्ट्र की राजनीति में शुरू से ही मराठों का वर्चस्व रहा है। लेकिन 2014 में जब भाजपा और शिव सेना गठबंधन की सरकार बनी तो पार्टी ने देवेंद्र फडणवीस को मुख्यमंत्री बनाया, तो उनका चयन इस बात का संकेत था, कि महाराष्ट्र की राजनीति बदलने वाली है। पहले तो वह ब्राह्मण समाज से मुख्यमंत्री बने दूसरी अहम बात यह थी कि वह विदर्भ क्षेत्र से आते थे। और अगले 5 साल बाद जब 2019 में चुनाव हुए तो उस वक्त महाराष्ट्र के ऐसे पहले मुख्यमंत्री बने, जिसने पिछले 40 साल में अपना 5 साल का कार्यकाल पूरा किया था। लेकिन 2019 में जब भाजपा-शिव सेना गठबंधन की सरकार बनीं तो मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर दोनों दलों में खींचतान शुरू हुई। और उसके बाद उद्धव ठाकरे ने भाजपा से गठबंधन तोड़ लिया। इस बीच रातों-रात एनसीपी नेता और शरद पवार के भतीजे अजीत पवार के साथ मिलकर देवेंद्र फडणवीस ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली। हालांकि फडणवीस का यह दांव, शरद पवार ने फेल कर दिया और महज तीन दिनों बाद ही फडणवीस को इस्तीफा देना पड़ा।
इस घटनाक्रम के बाद से देवेंद्र फडणवीस ने अपनी रणनीति बदल दी, अब वह अपनी उस छवि को मजबूत नहीं होने देना चाहते हैं जो अजीत पवार के साथ आनन-फानन में शपथ लेने की बनी थी। फडणवीस नहीं चाहते हैं कि जनता के बीच ऐसा संदेश जाए कि वे सत्ता के लिए भाग रहे हैं। इसलिए उन्होंने एकनाथ शिंदे से अपने मजबूत रिश्तों और उद्धव ठाकरे से शिंदे की नाराजगी को हवा देनी शुरू की। इस बीच ठाकरे की बीमारी और पार्टी के नेताओं से कम मिलने का फायदा शिंदे ने उठाया। शिंदे ने नाराज विधायकों का भरोसा जीत लिया। इसके अलावा पिछले ढाई साल में फडणवीस और एनसीपी नेता नवाब मलिक की खींचतान की काफी चर्चा भी रही है।
इसके बाद राज्य सभा और एमएलसी चुनाव में जिस तरह फडणवीस ने शिव सेना में फूट डालवाई, उससे भी साफ हो गया है कि इस बार वह अजीत पवार के समय हुई गलती से सबक सीख चुके हैं। और इसके बाद सूरत और गुवाहाटी में शिंदे और उनके गुट के नेताओं को मैनेज करने में भी देवेंद्र फडणवीस के करीबी डॉ ़ संजय कुटे, मोहित कंबोज, गिरीश महाजन जैसे नेताओं का अहम हाथ माना जा रहा है और अब उद्धव ठाकरे सरकार गिरने के बाद भाजपा और उनके समर्थक दलों के नेताओं की तरफ से एक बार फिर फडणवीस के जल्द मुख्यमंत्री बनने के बयान आने लगे हैं।
राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि अगर देवेंद्र फडणवीस दोबारा मुख्यमंत्री बन जाते हैं, तो यह शरद पवार के लिए बड़ा झटका साबित होगा। क्योंकि पिछले 50 साल का रिकॉर्ड देखा जाय तो शरद पवार राज्य की राजनीति की धुरी रहे हैं। चाहे 1978 में कांग्रेस के एक धड़े को तोड़कर सबसे कम उम्र 37 साल में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बनने का सफल दांव रहा हो या फिर सोनिया गांधी के विदेशी मूल के मुद्धे पर एनसीपी पार्टी बनाने का मामला हो। पवार के अधिकतम दांव राजनीति में सफल रहे हैं। यही नहीं महाविकास अघाड़ी सरकार को मूर्त रूप देने और शिव सेना-कांग्रेस को एक साथ लाने में भी पवार ने ही अहम भूमिका निभाई थी। लेकिन एकनाथ शिंदे की मजबूत बगावत से अब उनकी महाराष्ट्र की राजनीति में पकड़ पर भी सवाल उठने लगे हैं। वहीं दूसरी तरह देवेंद्र फडणवीस का उभार नए सियासी संकेत भी दे रहे हैं।