नए कृषि कानूनों के खिलाफ देश भर में विरोध-प्रदर्शन चल रहा है। सरकार इन कानूनों को किसानों के भविष्य के लिए बढ़िया बता रही है तो किसान इन्हें काला करार दे रहे हैं। दोनों पक्षों के बीच अब तक ग्यारह दौर की वार्ताएं हो चुकी हैं। लेकिन परिणाम की बात करें तो कोई भी अपनी मांगों और फैसले से पीछे हटने को तैयार नहीं हो रहा है। ‘दि संडे पोस्ट’ ने नए कृषि कानूनों को लेकर आंदोलन का जायजा लिया और इसी क्रम में शोभा अक्षर और संदीप सिंह ने किसान नेता राकेश टिकैत से
विशेष बातचीत की
तीनों कृषि कानून को लेकर हम एक-एक करके आपसे यहजानना चाहेंगे कि इन कानूनों में वे कौन से बिंदु हैं जिन पर आप और आंदोलनरत किसान इन्हें काला कानून कह रहे हैं, पहला कानून है ‘कृषि उपज व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सरलीकरण) कानून 2020’, मोटे तौर पर बात करें तो इसमें सरकार ने प्रावधान दिया है कि किसान एपीएमसी (एग्रीकल्चर प्रोडक्ट मार्केट कमेटी) के बाहर भी अपनी फसल बेच सकता है। इससे किसानों को किन दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा?
जब एपीएमसी यानी पर सरकारी मंडी कह लो आप, जब इसके बाहर फसलें बिकेंगी तो अपने आप एपीएमसी धीरे-धीरे खत्म हो जाएगी। आप बताओ 2006 से बिहार में सरकारी मंडियां खत्म हैं। वहां के किसानों की क्या दुर्गति हुई है हम सब देख रहे हैं, बल्कि कई सरकारी मंडियां तो ऐसी हैं जहां पांच-पांच फुट घास उग गई है। हम तो फोटू देखे हैं न। वहां के किसान भाइयों ने भेजे हैं। आप लोग भी देखिए।
पर इस कानून में कहीं नहीं लिखा गया है कि एपीएमसी खत्म कर दी जाएगी? तो आप स्वयं से क्यों मान रहे हैं कि खत्म हो जाएगी?
लिखा नहीं है, पर खत्म हो रही है न! अपने आप खत्म हो रही है। सरकार ने लिखा नहीं है और एपीएमसी खत्म हो रही है। इसीलिए हम कह रहे हैं कि ये तीनों काले कानून हटाओ और एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) पर नया कानून बनाओ।
लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तो संसद में कहा कि’एमएसपी थी, एमएसपी है और एमएसपी रहेगी।’ और इन कानूनों में भी किसी भी धारा में नहीं कहा गया है कि एमएसपी (मिनिमम सपोर्ट प्राइस) खत्म कर दी जाएगी। तो आपकी यह मांग कितनी तार्किक है?
देखिए, हमारी यह मांग इसलिए सही है, क्योंकि किसानों को एमएसपी का लाभ नहीं मिल रहा है। तब लाभ मिलेगा जब अलग से एमएसपी पर नया कानून बनेगा। हम वही तो कह रहे हैं कि सरकार हमें लिखित में सुनिश्चित क्यों नहीं कर रही है इस कानून में कि एमएसपी मिलेगा। असम के किसानों को, बिहार के किसानों को तब लाभ मिलेगा जब इस पर कानून बनेगा। अभी क्या हो रहा है कि उनकी फसलों को आधे दाम में खरीद कर किसानों को लूटा जा रहा है। एमएसपी पर कानून बन जायेगा तो व्यापारी अच्छे दाम में फसल खरीदेगा। मुझे बताइए कि दिल्ली में तो सरकार कह दे रही है कि किसानों को एमएसपी मिल रही है पर क्या गांवों में सरकार ने जाकर देखा।
ठीक! दूसरे कानून पर आते हैं, ‘कृषि (सशक्तीकरण एवं संरक्षण) कीमत आश्वासन एवं कृषि सेवा करार विधेयक 2020’, इसमें काॅन्ट्रैक्ट फार्मिंग की बात कही गई है। यदि किसान व्यापारी से एक करार के तहत फसल उगाता और बेचता है, तो इसमें विरोध किस बात का?
पहले म्हारे सवाल का जवाब दो आप, क्या इस कानून में एमएसपी मिलेगी इसकी गारंटी की बात कही गयी है? बताओ आप? नहीं न! यही तो असल बीमारी है इस कानून में। मैं कहता हूं कि ये काॅन्ट्रैक्ट करेंगे किसान से और एमएसपी से कम कीमत पर फसल खरीदेंगे।
ये तो कहीं नहीं लिखा है कि एमएसपी से कम कीमत पर करार होगा?
यह भी तो न लिखा है कि एमएसपी से ज्यादा की खरीद पर करार होगा। इस कानून में रोड़ा यही है कि जो चीज नहीं लिखी गई है, वही होगा। ये बताइए कि किसान जब फसल बीमा का या काॅन्ट्रैक्ट का या कोई भी करार करेगा वो कोई चेक करेगा क्या, कौन देख रहा है, क्या गारंटी है कि जो फसल किसान उगाएगा वह पूरा का पूरा करार करने वाला उचित दाम पर खरीद ही लेगा। मैं उदाहरण देता हूं, जब कोई स्कूटर लेने जाता है तो इतने कागज़ होते, ऊपर से उस पर इतने बारीक अक्षरों में सब बातें लिखी रहती हैं, वो पूरा कौन पढ़ लेता है, आप पढ़ती हो? आप बताओ? उसको कोई नहीं पढ़ सकता। किसानों को बरगलाया का रहा है।
दूसरे कृषि कानून में एक धारा है, धारा -19। उसमें कहा गया कि इस करार में कोई विवाद होता है तो अंतिम पड़ाव में एसडीएम के समक्ष ही समस्या का निपटारा किया जाएगा। कोर्ट में मामला नहीं ले जाया जा सकता है। इस पर भी आप लोग विरोध कर रहे हैं, क्यों?
देखिए, यह पूरा कøषि कानून, किसानों के लिए नहीं है, बल्कि बड़े-बड़े काॅरपोरेट के लोगों के लिए है, व्यापारियों के लिए है। करार में कोई विवाद की स्थिति में किसान ही कमजोर पक्ष शामिल होगा, वो लड़ाई लड़ेगा कि अपनी फसल उगाएगा। और तो और किसान कोर्ट नहीं जा सकता, तो क्या ये कानून कोई महात्मा बताए हैं कि लागू ही होगा! संसद में ही सब कुछ हो रहा है किसानों का, वहीं से बिल पारित हो रहा है तो वहीं से गन्ना किसानों का बकाया भुगतान भी हो जाये, संसद से तो बहुत कुछ हो रहा है। दो साल से ज्यादा समय से कई गन्ना किसानों के पैसे बकाया हैं सरकार। कौन सुनेगा इनकी? कौन करेगा फैसला। सबसे पहले जिन 23 फसलों पर एमएसपी है वही ठीक से मिल जाए। मैं ये कहता हूं सरकार से कि एमएसपी को किसान कार्ड से क्यों नहीं जोड़ती सरकार। सरकार जोड़ दे हमें, बैंकिंग सिस्टम से, क्यों नहीं जोड़ रही? जैसे मेट्रो में, पेट्रोल पम्प पर तुरन्त कार्ड डालते ही भुगतान हो जाता है, वैसे हमारी फसलों को जोड़ दे सरकार। कुलमिलाकर यह नया कानून बीमारी है, इस बीमारी को खत्म करके ही हम यहां से जाएंगे। इस आंदोलन को पूरा करके छोड़ेंगे, अधूरा नहीं छोड़ेंगे। हम अपनी लड़ाईके लिए मैदान में टिके रहेंगे।
तीसरा कानून है ‘आवश्यक वस्तु (संशोधन) कानून: 2020’। इस कानून में तिलहन, दाल, आलू,प्याज आदि के भंडारण का प्रावधान है, कई अन्य बिंदुओं को भी शामिल किया गया है। इसमें क्या कमी है आपके हिसाब से?
देखिए, जब इन चीजों का भंडारण होगा, तो भूख देश में लोगों को कितनी लगी है, उस आधार पर रोटी की कीमत को तय किया जाएगा। जब अनाज व्यपारियों के गोदामों में होंगे तो वही तय करेंगे कि कब किस अनाज की कितनी जरूरत है और उसकी कीमत क्या होनी चाहिए। इसीलिए हम मांग कर रहे हैं कि इस कानून को सिरे से खारिज किया जाए, खत्म किया जाए।
आपने पिछले दिनों एक बयान दिया, आपने बयान में कहा कि ‘हम इस आंदोलन को पूरे देश में ले जाएंगे और गुजरात को भी आजाद कराएंगे’। उधर गुजरात में 21 और 28 फरवरी को स्थानीय निकाय चुनाव हैं। इस बयान के कई मायने निकल रहे हैं, क्योंकि पूरा देश तो वर्ष 1947 में आजाद हो गया था, तो अब किससे आजाद कराएंगे?
देखिए, मीडिया ने मेरे कई बयानों को तोड़कर मरोड़कर अपने-अपने सुविधा अनुसार इस्तेमाल किया। इस बयान में मेरा कहना था कि गुजरात के किसान भी बंधन में हैं, वहां भी उनके फसलों को सही रेट पर नहीं खरीदा जा रहा है। उनके खेतों को उचित भाव नहीं मिल रहा है। तो मेरा मतलब है कि गुजरात के किसानों को इस समस्या से आजाद कराया जाएगा।
सिर्फ गुजरात ही नहीं पूरे देश के किसान इस समस्या से आजाद होंगे। महाराष्ट्र के भी, असम के भी हर जगह के। ये तो हद है, अगर मैं बंगाल के किसानों की बात करूंगा तो आप कहोगे कि बंगाल में तो चुनाव होने वाले हैं। तो क्या हम देश के विभिन्न राज्यों में नहीं जा सकते, हर राज्य के किसानों की समस्याओं को नहीं उठा सकते? क्या मुझ पर बैन है कि मैं वेस्ट बंगाल नहीं जा सकता!
मैंने आपसे इसलिए यह सवाल पूछा क्योंकि आपने अपने बयान में किसान का नाम नहीं लिया था, आपने कहा था कि गुजरात अभी आजाद नहीं हुआ है। आप महाराष्ट्र के बारे में ऐसा बोलते तब भी हम सवाल करते।
हम तो महाराष्ट्र में भी जा रहे हैं, 20 फरवरी को मैं आंदोलन को और तेज करने के लिये महाराष्ट्र के किसानों से भी मिलने जा रहा हूं। तो आप लोग कहेंगे कि वहां चुनाव को प्रभावित करने जा रहे हैं, तो यह तो गलत है न!
लगभग 23 वर्षीय सामाजिक कार्यकर्ता नवदीप कौर को 12 जनवरी को उस वक्त गिरफ्तार कर लिया गया था जब वह जिला
सोनीपत के कुंडली में मजदूरों और किसानों के साथ एक विरोध प्रदर्शन कर रही थीं। लगभग एक महीने बीत गए, किसान एकता मोर्चा के मंच से आपने नवदीप कौर के लिए न्याय की कोई अपील नहीं की, क्यों?
देखिए, इस आंदोलन के दौरान करीब 130 लोग इस तरह गिरफ्तार कर लिए गए हैं, हम तो सबकी रिहाई की बात कर रहे हैं। सिर्फ एक ही बात क्यों करें। इस आंदोलन में उन सबकी भी बात होगी जिन पर इस आंदोलन के दैरान मुकदमे दर्ज किए गए, गिरफ्तारियां हुईं। हम आंदोलन कर रहे हैं तो जेल तो जाना स्वाभाविक है, इमरजेंसी के दौरान अटल जी जेल गए, मैं खुद 48 बार जेल जा चुका हूं। आंदोलनकारी के लिए तो जेल दूसरा घर होता है। इस मसले पर जब भी सरकार से बात होगी नवदीप कौर हमारी प्रथमिकता में होगी मैं तो अपील करता हूं नवदीप कौर की साहसी बहनों से कि यहां आयें यह मंच उनका स्वागत करे, यहां भी आकर वह अपनी आवाज उठा सकती हैं।
दिशा रवि, क्लाइमेट एक्टिविस्ट हैं,लगभग 22 वर्ष की हैं, उनकी गिरफ्तारी बेंगलुरु से हुई, टूल किट के मामले में, उस पर क्या कहेंगे आप?
मैं ये कह रहा हूं कि कोई भी बेटी हो, अगर वह देश के के किए कार्य कर रही है तो हम उसके साथ खड़े हैं। उन्हें प्रताड़ित न किया जाए, निष्पक्ष जांच कर पुलिस पारदशर््िाता से काम करे।
कभी-कभी किसान आंदोलन के एकजुटता को लेकर प्रश्न खड़े हो जाते हैं। सवाल यह है कि क्या किसान एकता मोर्चा का यह मंच, व्यक्ति विशेष का मंच बनता जा रहा है?
नहीं! कोई भेद नहीं हैं। हमारे कथनों को गलत तरीके से दिखाया गया। हमारी बात हुई है, सब ठीक है। दो अक्टूबर को विशेष कार्यक्रम करेंगे, इससे आंदोलन को और मजबूती मिलेगी।
आप मंच से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम लेने से क्यों बचते हैं,आप तब भी बचे जब महात्मा गांधी की पोती तारा गांधी भट्टाचार्य ने ये कहा कि ‘इतने अनपढ़ नेता को मैंने पहले कभी नहीं देखा?’
हमारी मांग सरकार से है, हम किसी भी नेता का नाम क्यों लें। इस मंच से हम सरकार से मांग कर रहे हैं कि यह काला कानून वापस लिया जाए और एमएसपी पर नया कानून बनाया जाए। हम कोई राजनीतिक पार्टी नहीं हैं, जो हम किसी नेता विशेष का नाम लेकर भाषण दें।
मैं अपील करता हूं नवदीप कौर की बहनों से कि हमारे मंच से अपनी आवाज उठाएं। जहां तक दिशा रवि का प्रश्न है तो कोई भी बेटी हो, अगर वह देश के लिए कार्य कर रही है तो हम उसके साथ खड़े हैं, उन्हें प्रताड़ित न किया जाए, निष्पक्ष जांच कर पुलिस पारदर्दिशता से काम करे