बेरोजगारी समेत जनहित के अनेक मुद्दों पर याचिकाएं दायर करने वाले राज्य आंदोलनकारी रविंद्र जुगराण खण्डूड़ी सरकार में दायित्वट्टाारी रहे। लेकिन पिछले दिनों वे आम आदमी पार्टी में शामिल हो गए। राज्य में बेरोजगारी की समस्या को लेकर ‘दि संडे पोस्ट’ संवाददाता कृष्ण कुमार ने उनसे बातचीत की
उत्तराखण्ड राज्य को बने बीस वर्ष हो चुके हैं, लेकिन इन बीस वर्षों में लगातार रोजगार को लेकर ही आंदेालन हो रहे हैं। इसका क्या कारण है?
उत्तराखण्ड के निर्माण का मुख्य एक बिंदु बेरोजगारी खत्म करना था। रोजगार मुख्य मुद्दा था। सरकारी योजनाएं तो हैं ही, लेकिन परम्परागत रोजगार को बढ़ावा देना और रोजगार के नए अवसरों को सृजित करना मकसद था। जिसमें पहाड़ की प्रकøति के साथ सामंजस्य और तालमेल बैठाकर उत्तराखण्डवासियों को इसका फायदा देना ही राज्य के निर्माण का सबसे बड़ा पहलू रहा है। इन बीस वर्षों के कालखण्ड को हम अगर तर्क और आंकड़ांे को सामने रखकर देखें तो लगभग 30 लाख लोगों ने पहाड़ों से महानगर और नगरीय क्षेत्रों में पलायन किया है। इस पलायन के अनेक कारण हो सकते हैं लेकिन मुख्य कारण रोजगार का ही सामने आया है।
क्या सरकारें रोजगार के सृजन में विफल रही हैं?
आपको देखना होगा कि उत्तराखण्ड के पहाड़ी जिलांे में पहले सेना की नौकरी को एक तरह से युवाओं के लिए परंपरागत रोजगार के तौर पर देखा जाता था। ठीक उसी तरह से बागवानी औेर उद्यानिकी वानिकी और पशुपालन का क्षेत्र सदियों से पहाड़ का परंपरागत क्षेत्र माना जाता था। उद्यानिकी और बागवानी एक बड़ा माध्यम रहा है जिसमें पहाड़ केे लोगों को रोजगार मिलता रहा है। लेकिन इसका लगातार डाउनफाॅल होता रहा है। राज्य बनने के बाद इसमें भारी गिरावट देखने को मिली है। यही हमारा परंपरागत रोजगार का साधन था जिसको राज्य बनने के बाद सबसे अधिक देखा जाना चाहिए था। सरकारों ने इसे नहीं देखा और न ही इस पर कोई ठोस कार्यक्रम किए, जबकि उत्तर प्रदेश के समय से पहाड़ के निवासी इन्हीं कामों से रोजगार पा रहे थे।
आउट सोर्सिंग से भी तो प्रदेश के युवाओं को रोजगार मिल रहा है। इसे भी तो एक माध्यम माना जा सकता है?
बगैर किसी प्रक्रिया के बगैर किसी विज्ञप्ति के अपने चहेते लोगों को सरकारी विभागों में एडजेस्ट करने को आउटसोर्स कहते हंै, पहले यह समझ लो। आज भी अधिकारी अपने लोगांे को उत्तर प्रदेश से उत्तराखण्ड में आउटसोर्स एजेंसी के माध्यम से भर्ती करवा रहे हैं। रोडवेज में बस ड्राईवर और कंडक्टरों की कितनी भर्ती हुई है इसको देखना चाहिए। अनेक विभागों में बाहरी राज्यों के निवासियों को भर्ती किया जा रहा है। यानी आउट सोर्सिंग भी उत्तराखण्ड के युवाओं के लिए नहीं रह गया है। समूह ग और घ के पद जिन पर उत्तराखण्ड के निवासियों का ही हक है उन पर भी उत्तर प्रदेश के युवाओं को बैठाया जा रहा है।
मुख्यमंत्री कहते हंै कि उनकी सरकार ने सात लाख लोगों को रोजगार मुहैया करवाया है। आप इस बात से सहमत हैं?
नहीं, मैं सहमत नहीं हूं। हकीकत तो यह है कि इस सरकार के चार साल के कार्यकाल में सबसे कम सरकारी नौकरियों के पदों के लिए विज्ञप्ति निकली है। जो निकली भी उसमें बहुत लेट-लतीफी हुई है। अगर नियुक्तियां देने के मामले में हम पिछले 17 सालों के सरकार के कार्यकाल को देखंे और इस सरकार के 4 साल के कार्यकाल को देखकर तुलना करें तो सबसे फिसड्डी यह सरकार ही है।
आखिर क्यों उत्तराखण्ड में पीसीएस भर्ती की विज्ञप्ति जारी नहीं हो पा रही है। आप इस मामले को लेकर हाईकोर्ट भी गए थे?
2016 में अंतिम पीसीएस परीक्षा की विज्ञप्ति निकली थी। आज पांच साल पूरे हो गए हैं, लेकिन इस सरकार ने अभी तक एक भी पीसीएस परीक्षा की विज्ञप्ति जारी नहीं की हेै। ताज्जुब की बात यह है कि हमारे पैतृक राज्य उत्तर प्रदेश में हर वर्ष पीसीएस की विज्ञप्ति निकलती रही है। अन्य राज्यों में भी पीसीएस परीक्षा हो रही है, लेकिन उत्तराखण्ड ही ऐसा राज्य है जहां पीसीएस के लिए कोई जगह नहीं है। मैं माननीय न्यायालय का पूरा सम्मान करते हुए उसके प्रति पूरा आदर भाव रखते हुए और वह न्याय देता है, ऐसा मानते हुए, यह कहने को मजबूर हूं कि इस मामले को लेकर मैं जब माननीय न्यायालय में गया तो माननीय न्यायालय ने मेरी जनहित याचिका को स्वीकार भी किया और उसकी एक-दो तारीख भी लगी। लेकिन अंततोगत्वा माननीय न्यायालय ने उसका निस्तारण किया और यह कहते हुए कि याचिकाकर्ता यानी मुझे जो कि एक व्यक्ति है जो कोई संस्था नहीं है, को आदेश दिया कि याचिकर्ता ही कोर्ट को सारी चीजंे उपलब्ध कराए कि पीसीएस की चार साल से परीक्षा क्यों नहीं हो पाई है। जबकि न्यायालय राज्य लोक सेवा आयोग और उत्तराखण्ड लोक सेवा आयोग को पूछ सकता था। हमने तो न्यायालय को इतना अवगत करना था कि राज्य में चार वर्षों से पीसीएस की विज्ञप्ति नहीं निकली है, जबकि अन्य सभी प्रदेशों में निकलती है। एक मामले में सुप्रीम कोर्ट के 2007 में दिए गए आदेश पर उत्तराखण्ड में ‘पीसीएस’ जे जो कि न्यायिक सेवा है, की हर वर्ष विज्ञप्ति निकलती हैं। जब पीसीएस जे की विज्ञप्ति हर वर्ष निकल सकती है तो पीसीएस की क्यों नहीं निकल सकती है। लेकिन मुझे अत्यंत दुखी मन से यह कहना पड़ रहा है कि माननीय न्यायालय ने हमको ही यह आदेश दिया कि हम सभी तथ्यों और जानकारी को एकत्र करके न्यायालय को बताएं कि क्यों नहीं पीसीएस की विज्ञप्ति जारी हो रही है। अगर चाहें तो नई जनहित याचिका प्रस्तुत कर सकते हैं। मैं प्रयास कर रहा हूं जानकारी एकत्र करने, तथ्यों को जमा करने में लगा हूं। सिस्टम इतना सुस्त है कि मेरे पास पूरे तथ्य एकत्र नहीं हुए हैं। जब एकत्र हो जाएंगे तो मैं फिर से माननीय न्यायालय के समक्ष जाऊंगा।
तिवारी सरकार में 70 प्रतिशत स्थानीय लोगों को कारखानों आदि में रोजगार देने का शासनादेश जारी किया गया। इसका पालन पूरी तरह से नहीं किया गया। इसमें किसकी कमजोरी मानते हैं?
जब यह शासनादेश जारी किया गया था उसमें यह नहीं जोड़ा गया कि कुशल श्रमिकों को भी 70 प्रतिशत रोजगार मिलेगा, जबकि श्रमिकों की तीन श्रेणियां हैं। कुशल, अर्द्धकुशल और अकुशल। इनमें जो भी कारखाने लगे हंै उनके कुशल श्रेणी के श्रमिक तो बाहरी राज्यों से आयातित करके लाए गए। लेकिन अर्द्धकुशल में भी यही किया गया। जो अकुशल श्रमिक हैं उनको स्थानीय रोजगार में रखा गया। यह सरकार और नीति नियंता को देखना चाहिए था कि उनके शासनादेश का पालन हो रहा है या नहीं। राज्य का श्रम विभाग तो सरकार के निर्देश पर ही काम कर रहा है। श्रम कानून क्या कहते हैं, उनका अनुपालन तक श्रम विभाग नहीं करवा पा रहा है।
मुख्यमंत्री का दावा है कि राज्य में इंवेस्टर समिट के बाद 10 हजार लोगों को सीधा रोजगार से जोड़ा गया है। यानी दस हजार लोगों को रोजगार प्राप्त हो चुका है। हालांकि दावा तो 40 हजार करोड़ के निवेश का भी किया जा रहा है। आपको क्या लगता है?
हमें तो कहीं नहीं लगता कि राज्य में निवेश आया हो। दो वर्ष पूर्व सरकार ने राज्य में निवेश लाने के लिए विदेश और देश के अन्य राज्यों का दौरा किया। करोड़ों खर्च करके इंवेस्टर समिट का आयोजन किया जिसमें प्रधानमंत्री जी भी आए थे। लेकिन हमें तो कहीं नहीं दिखता कि राज्य में निवेश आया हो। सरकार कह रही है तो सरकार ही जाने हकीकत में तो ऐसा कुछ नहीं दिखाई दे रहा है।