उत्तराखण्ड कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव हरीश रावत की खासियत है कि वे विषम से विषम परिस्थितियों में लड़ने का साहस रखते हैं। जब कभी भी उन्होंने एक लड़ाई हारी तो तत्काल दूसरी को जीतने में जुट गए। रावत की यही जीवटता बार-बार गिरने के बावजूद उनके उठने का सहारा बनी। ‘दि संडे पोस्ट’ कार्यालय में पहुंचे हरीश रावत से विशेष बातचीत
राहुल गांधी ने देहरादून रैली में जिस तरह राफेल पर फोकस करते हुए भाषण दिया, उससे तो यही लग रहा है कि इस बार कांग्रेस लोकसभा चुनाव में राफेल विमान खरीद को मुख्य मुद्दा बनाने जा रही है?
यह बड़ा मुद्दा है। राफेल काफी समय पहले मुद्दा बन गया था। दरअसल, हर रक्षा सामग्री को खरीदने के लिए प्रक्रिया अपनाई जाती है और उसकी एक नेगोशिएटिव टीम बनती है। टीम के आधार पर नेगोशिएशन फाइनल होता है। रक्षा मंत्री और कैबिनेट कमेटी उसको क्लीयर करती है। प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में ही कैबनेट कमेटी बैठती है। इसमें नेगोशिएटिव टीम बात कर रही थी, सौदा फाइनल स्टेज पर था। फ्रांस को तय करना था कि कितने दिनों में आप डिलीवरी करोगे। हमको यह डिलीवरी 2018 में होनी थी। अब प्रधानमंत्री फ्रांस की यात्रा करते हैं और सारा काम नेगोशिएशन टीम के बजाय प्रधानमंत्री कार्यालय करने लगता है। जिसमें राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार आदि इस काम को कर रहे होते हैं और परिणाम यह होता है कि आप 126 जहाजों के बजाय केवल 36 जहाज का सौदा करते हैं। दूसरा जितने पर यूपीए के समय में जहाज खरीदा जा रहा था उससे लगभग तिगुने दाम पर आप खरीदते हैं, बल्कि कतर और मिस्र ने अभी वो जहाज खरीदे हैं। उन्होंने जितने दाम पर खरीदे हैं उससे लगभग दुगुने में हम खरीदते हैं। निर्णय यह होता है कि एचईएल कांग्रेस के समय पार्टनर था जिसको जहाज बनाने का अनुभव था उसकी जगह पर अनिल अंबानी आ जाते हैं जिन्होंने कि कभी कागज का जहाज भी नहीं बनाया। चौथा निर्णय यह होता है कि भारत ने कोई रक्षा सौदा किया हो तो हम टेक्नोलॉजी ट्रासफर मांगते हैं ताकि हमारे यहां भी हम उसी तरीके की चीजें बना सकें। और टेक्नॉलोजी हमारे हाथ में आ जाए। टेक्नॉलोजी का जो हिस्सा था वह मोदी जी ने नहीं लिया। उन्होंने कहा कि टेक्नॉलोजी की कोई जरूरत नहीं है। यानी हम जो चाहेंगे वह अनिल अंबानी कर देंगे। गारंटी का क्लॉज भी खत्म कर दिया। सीक्रेसी के क्लॉज के तहत टेक्नॉलोजी को शो नहीं किया जा सकता। आप कीमतों को भी गोपनीयता में ले आए। गारंटी खत्म। ये सारी डील प्रधानमंत्री जी के आने के बाद पूरी तरह से संदेहास्पद हो गई है। कई सवाल खड़े हो गए हैं। भ्रष्टाचार साफ दिखाई दे रहा है। प्रधानमंत्री इसका समाधान ढूंढ़ सकते थे। जांच पार्लियामेंट्री कमेटी को सौंप देते। सुप्रीम कोर्ट में सीएजी से गलत रिपोर्ट पेश करवा दी। आखिर वो सीएजी की रिपोर्ट हो कैसे सकती है जब तक कि वो पार्लियामेंट में नहीं आ जाएगी। यह कहकर कि कॉस्ट सीक्रेसी है, मामला बेहद पेचीदा बना दिया गया। झगड़ा तो कॉस्ट पर ही है। भ्रष्टाचार तो वहीं से जनरेट हो रहा है जहां से पैसा है। तो यह एक ज्वलंत मुद्दा है। समय मोदी से जवाब लेगा।
राहुल गांधी ने कहा कि बीसी खण्डूड़ी को रक्षा समिति से सच कहने पर हटाया गया। क्या यह यह सच है?
बीसी खण्डूड़ी जी का केवल इतना अपराध था कि उनकी अध्यक्षता में जो सेना के लोग आए, जिसमें डिप्टी चीफ भी थे, उन्होंने कह दिया कि सेना के पास जो रक्षा सामग्री है, उसका 67 प्रतिशत हिस्सा कूड़ा। उनकी रिपोर्ट मोदी जी के इस दावे को पूरी तरह झूठा साबित कर रही थी कि हम सेना का आधुनिकरण कर रहे हैं। दूसरा रक्षा समिति ने रक्षा सौदों की रिपोर्ट बनाने को कहा। उसके अनुसार अब तक जितनी भी सप्लाई हुई है, भविष्य में होने वाली सप्लाई और कांग्रेस के समय तक की रिपोर्ट बनाने को कह दिया। यह दो चीजें मोदी जी को अखर गई। मोदी जी जब रक्षा सेनाओं के गोला बारूद ही असुरक्षित रखेंगे तो देश की सुरक्षा कैसे होगी? खण्डूड़ी जी ने तो साफ कह दिया था कि यह सात दिन भी रखने लायक नहीं है। इससे कैसे चीन और पाकिस्तान से मुकाबला करोगे। अब एक चीज और हो गई है कि आपने रक्षा बजट घटा दिया। 27 हजार करोड़ से घटाकर आप 21 हजार करोड़ पर ले आए। तो यह जो रक्षा समिति है, उसने इनकी रक्षा नीति को पूरा नंगा कर दिया। इन्होंने उसका बदला खण्डूड़ी जी को बाहर करके लिया।
सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल के बेटे की कंपिनयों का जो कथित फर्जीवाड़ा सामने आया उसका कांग्रेस दमदार तरीके से क्यें नहीं उठा पाई?
देखिए, कंपनी कोई भी बना सकता है। मगर आप जिस मॉरल ग्राउंड पर खड़े होने की कोशिश करते हैं वह मॉरल ग्राउंड कहां है। आप कहते हैं कि पाकिस्तान के साथ हमारा कोई नहीं हो सकता। लेकिन इतने महत्वपूर्ण पदों पर बैठे हुए लोगों का एक पार्टनर पाकिस्तान होता है और दूसरा अरब का नागरिक। शौर्य की कंपिनयों से भाजपा का मॉरल डाउन हुआ। टेक्नीकली कोई किसी से मिलकर काम कर रहा है, तो भला किसी को क्या ऐतराज हो सकता है। लेकिन जब आप दूसरों के लिए जाल बुनते हो तो यह भी देखें कि आपके यहां पहले से ही यह काम हो चुका है। स्वाभाविक है कि लोग जरूर सवाल करेंगे।
वायु सेना ने जो एयर स्ट्राइक की थी उसमें पाकिस्तान के आतंकी अड्डों को तहस-नहस करने के साथ ही मीडिया के हवाले से अलग-अलग दावे किए गए। किसी ने कहा कि 300 मारे गए तो किसी ने कहा 350 मारे गए। लेकिन अमित शाह ने कहा कि 250 आतंकी मारे गए। आप इन आंकड़ों में कितनी सत्यता पाते हैं?
यह बहस ही पूरी तरीके से निरर्थक है। क्रेडिट लेने के चक्कर में मोदी जी ने और अमित शाह ने इसे बहस का रूप दे दिया। जब आप बहस करेंगे तो कई सवाल उठेंगे। सबके अपने -अपने तर्क होंगे। राहुल जी ने कहा कि ‘मैं वायुसेना के बहादुर पायलस को सैल्यूट करता हूं। हम एयर फोर्स के साथ हैं, सरकार के साथ हैं। आतंकवाद का खात्मा होना चाहिए। उसका रिप्लाई किया गया है। हम उनको बधाई देते हैं।’ लेकिन इसके उलट आपने एयर स्ट्राइक को राजनीतिक आवरण देना शुरू किया, उसका राजनीतिक फायदा उठाने की कोशिश की। ऐसे में आपकी बात पर सवाल उठेंगे ही। 1971 में पहली बार एयर स्ट्राइक हो चुकी है, उससे पहले 1965 में भी एयर स्ट्राईक हुई। और तो छोड़ो अटल जी के समय में भी एयर स्ट्राईक हो चुकी है। उस समय एलओसी को क्रॉस नहीं किया गया, लेकिन एयरफोर्स ने सटीक निशाने लगाए। तो आप आर्मी में दो सेट कैसे बना सकते हैं। जो मोदी के नेतृत्व में लड़े वो बहादुर और जो पहले लड़े क्या वो कम बहादुर थे? आप कहते हैं कि हिन्दुस्तान की आर्म्स फोर्स में बहादुरी तभी आई जब मोदी आए। अब इस बात को वो पूर्व सैनिक कैसे मान लेगा जिसने बांग्लादेश में 97000 लोगों से आत्मसमर्पण करा दिया। वो सैनिक कैसे मानेगा जो इच्छगिल नहर तक पहुंच गया। वो सैनिक कैसे मानेगा जिसने सियाचीन के अंदर चीन और पाकिस्तान दानों को खदेड़ दिया। नरेंद्र मोदी जी ने बहादुरी को मोदी कालीन और गैर मोदीकालीन में विभाजित कर दिया। जो मोदीकालीन है वह बहादुरी है और जो मोदीकालीन नहीं है उसका जिक्र मत करो। इसी बात ने बहस को उलझा दिया। और यह आतंकियों के मारे जाने की संख्या कौन लाया? क्या राहुल गांधी लाए? क्या प्रियंका गांधी जी ने कहा? और तो छोड़ो हमारे किसी भाई ने भी नहीं कहा। सबसे पहले इनके मुख्यमंत्री ने साढ़े चार सौ की संख्या बताई, उसके बाद इनके प्रवक्ता ने चार सौ बताई, इनके मंत्री ने कहा कि मरा तो एक नहीं, लेकिन अंदर घुसकर एयर स्ट्राइक हुई। फिर अमित शाह जी ने सबकी तरफ से कहा कि 250 है। अब जब अमित शाह ने गिन दी मरने वाले आतंकियों की संख्या 250, तो सभी ने पूछ लिया कि भाई साहब यह संख्या आपके पास आई कहां से? क्या आप गिन आए थे? तो यह संख्या का तर्क-कुतर्क सारा भाजपा ने पैदा किया और जानबूझकर पैदा किया ताकि इसकी आड़ में अपने को राष्ट्रभक्त और दूसरे को राष्ट्र विरोधी सिद्ध कर सकें।
कश्मीर मुद्दे पर कांग्रेस का स्टैंड क्या है?
देखिए, कश्मीर में आपको टिट फॉर टैट होना पड़ेगा। पाकिसतान के साथ आपको दृढ़ता से काम करना पड़ेगा। मगर साथ-साथ हम अंदर के टेररिज्म को खत्म करने के लिए अपने लोगों से संवाद भी स्थापित करें। आखिर हर विवाद का हल बातचीत से ही निकलेगा। आप अनिश्चितकाल तक ऐसे युद्ध में आर्मी को नहीं डाल सकते हैं। आपको समाधान राजनीतिक वार्ता से ही निकालना पड़ेगा। मोदी सरकार की गलती यह है कि ये या तो बिरयानी खाने जाते हैं या फिर पाकिस्तान से बिल्कुल वार्ता नहीं। कश्मीर में कोई डॉयलाग नहीं। हमारी नीति हमेशा स्पष्ट रही। यही कारण है कि जब-जब केंद्र में गैर कांग्रेसी सरकार आई चाहे 1990 में वीपी सिंह जी की सरकार आई हो, चाहे अटल जी की सरकार आई हो और चाहे आज नरेंद्र मोदी जी की सरकार हो, इन सरकारों में कश्मीर की आंतरिक स्थिति बिगड़ती ही है। और हम उसको कंट्रोल में लाते रहे हैं। हमने नरसिंह राव जी के समय में पंजाब के साथ कश्मीर में भी टेररिज्म की कमर तोड़ दी थी। 2014 में जिस समय हम सत्ता से हटे हैं, तो कश्मीर में टेररिज्म चालू हो गया। आज यदि कोई सभ्य नागरिक- सुरक्षित नागरिक ये कह दे कि पुलवामा में 300 किलोग्राम आरडीएक्स कहां से और कैसे आया। पाकिस्तान से इतनी भारी मात्रा में आरडीएक्स कैसे आ गया? कैसे सबसे सेफ जोन नेशनल हाइवे में विस्फोट हो गया? हमारा इतना बड़ा इंटेलिजेंस कैसे फेल रहा? तो उसे राष्ट्रद्रोही कह दिया जाता है।
आपकी नजर में पुलवामा प्रकरण क्या है। कहीं यह शहादत के पीछे राजनीति की तरफ इशारा तो नहीं कर रहा है?
मैं नहीं समझता कि कोई भी चुनी हुई सरकार इतनी घटिया सोच और घटिया काम कर सकती है। इसलिए मैं इस तरह की शंका को आधारहीन मानता हूं। मैं यह मानता हूं कि जितने देश के लिए हम चिंतित हैं उतने ही आप भी हैं। यह भी हो सकता है कि सरकार कुछ ज्यादा चिंतित हो।
जब पहले से ही कह दिया गया था कि जवानों को रोड से नहीं, बल्कि हवाई सफर के जरिए गंतव्य तक पहुंचाया जाएगा तो फिर सड़क से गुजरने की गलती कैसे हुई?
यही इस देश के सभी राष्ट्रभक्तों के सामने सवाल है कि ऐसी बड़ी चूक कैसे हुई। मगर दिक्कत यह हो रही है कि चूक का सवाल उठाने वालों और चूक के लिए सावधान करने वालों के ऊपर फिदायीन हमला हो जाता है। टीवी चैनलों के एंकर उन पर टूट पड़ते हैं। मीडिया उन पर टूट पड़ता है। एडमिरल रामदौस पर सवाल उठा दिए गए। लेकिन हर विवेकशील आदमी ने कहा कि आप आर्मी की शहादत को भाजपाई शहादत नहीं बता सकते। यह भारत के लिए भारतीय सैनिकों की शहादत है। यह किसी राजनीतिक दल का प्रदर्शन नहीं है। यह भारत की आर्म्स फोर्स का प्रदर्शन है। हमारा ऐतराज यही है कि आप अपने राजनीतिक स्वार्थों के लिए आर्मी को राजनीतिक ढाल मत बनाइए।
मैं एक बात कहना चाहता हूं कि जब 1965 में केवल राईफल लेकर हिन्दुस्तानी फौज लाहौर के दरवाजे तक पहुंच गई तो क्या वह मजबूत राजनीकि इच्छाशक्ति नहीं थी? क्या हमारी सेना ने पाकिस्तान के दो टुकड़े नहीं करवा दिए? दुनिया के इतिहास में दर्ज है कि हमारी सेना ने 97000 लोगों से आत्मसमर्पण करवाया। क्या वह सैन्य इतिहास याद करने के काबिल नहीं है?
हमारी खिलाफत कहीं नहीं है। अब आपको भला कोई याद करता रहे सुबह, दोपहर, शाम तो आप उसको नाराजगी बता दे रहे हैं। ऐसा अन्याय मत करिए। वह हमारे साथी हैं, सहयोगी हैं। हृदय से उनका आभारी हूं। अपनों को तो बार-बार याद किया जाता है। उनके अपनत्व के लिए मेरी तरफ से बहुत धन्यवाद।
एयर स्ट्राइक वायु सेना करती है और श्रेय मोदी जी को दिया जाता है, ऐसा क्यों?
मोदी जी क्योंकि प्रधानमंत्री हैं इसलिए उनका श्रेय उन तक जाएगा। भाजपा शासन में है इसलिए इसका श्रेय उनको जाएगा। सेना की बहादुरी का भी एक इतिहास खड़ा हो गया। उसमें जिक्र होगा वायु सेना का, मगर साथ ही यह भी जिक्र होगा कि देश के अंदर मोदी पहले ऐसे प्रधानमंत्री हैं जिन्होंने सेना की आर्म्स फोर्स की शहादत का राजनीतिक कवच बनाकर अपने विरोधियों को निशाना बनाने की कोशिश की है।
इच्छाशक्ति दिखाई वह तभी संभव हुआ जब केंद्र में मजबूत पीएम थे?
मैं एक बात कहना चाहता हूं कि जब 1965 में केवल राईफल लेकर हिन्दुस्तानी फौज लाहौर के दरवाजे तक पहुंच गई तो क्या वह मजबूत राजनीकि इच्छाशक्ति नहीं थी? क्या हमारी सेना ने पाकिस्तान के दो टुकड़े नहीं करवा दिए? दुनिया के इतिहास में दर्ज है कि हमारी सेना ने 97000 लोगों से आत्मसमर्पण करवाया। क्या वह सैन्य इतिहास याद करने के काबिल नहीं है?
क्या जनता को ऐसा लगता है कि इंदिरा गांधी के बाद देश को मोदी के रूप में कोई साहसिक निर्णय लेने वाला प्रधानमंत्री मिला है?
इंदिरा गांधी जी ने तमाम बोल्ड डिसिजन लिए और संवैधानिक संकट के समय एमरजेंसी भी लागू की। देश के लोगों को लगा कि अपने हीरो को दंडित किया जाना चाहिए तो उन्होंने दंडित भी किया। मोदी जी भी अपनी भूलों के लिए दंडित होंगे। जिस समय नोटबंदी की उस समय उन्होंने गरीबों को यह कहा कि मैंने अमीरों को मार दिया है। पैसे वालों को मार दिया है। अब तो तुम्हारी पौ बारह है। लेकिन उल्टे 400 का सिलेंडर 1000 का हो गया। 15 रुपया किलो चने की दाल 55 रुपया किलो कर दी गई। आज सवाल है कि नोटबंदी ने रोजगार छीन लिए। देश की अर्थव्यवस्था में गिरावट आई। उस समय जो चीज उनके लिए फायदेमंद रही आज वह मोदी जी के लिए नुकसानदायक है।
क्या यह चुनाव देश का पहला ऐसा चुनाव नहीं लगता है जिसमें राफेल, राष्ट्रवाद और मंदिर जैसे मुद्दे ही हावी रहेंगे? जबकि गरीबी, बेरोजगारी, महंगाई आदि जनता के बुनियादी सवाल हाशिए पर जा रहे हैं?
महत्वपूर्ण सवाल है। देश के बुद्धिजीवियों को इसका जवाब देना चाहिए। राहुल गांधी जी ने अपनी छह महीने की मेहनत के बाद बेरोजगारी का सवाल खड़ा किया। खेती की बर्बादी और किसान की बदहाली का सवाल खड़ा किया। उन्होंने बढ़ती हुई गरीबी और विकास दर में आई कमी का सवाल खड़ा किया। उन्होंने देश में असुरक्षा और महिलाओं के ऊपर बढ़ते हुए अत्याचार का सवाल खड़ा किया। संवैधानिक संस्थाओं को आज मोदी जी खत्म कर रहे हैं? इस पर भी राहुल जी ने सवाल उठाया। मोदी जी की पहली कोशिश यह थी कि राम मंदिर से इन चीजों को ढका जाए। लेकिन पेट के सवाल ने राम मंदिर के सवाल को नहीं उठने दिया। सुप्रीम कोर्ट ने दृढ़ निश्चय ले लिया तो यह मुद्दा मोदी जी को भारी पड़ने लगा गया। अब मोदी जी पुलवामा के शहीदों की शहादत की आड़ में राष्ट्रवाद का मुद्दा खड़ा कर रहे हैं। बुद्धिजीवियों को इस बात का जवाब देना चाहिए कि क्या इस देश के अंदर दो राष्ट्रवाद होंगे? एक जो मोदी को चाहने वाले हैं उनका राष्ट्रवाद और दूसरे जो मोदी से लोकतांत्रिक तरीके से सवाल जवाब कर रहे हैं, जो अपनी कलम से सवाल कर रहे हैं, जो अपनी वाणी से सवाल कर रहे हैं, उनका राष्ट्रवाद। मोदी से जो सवाल करेगा वो क्या गैर राष्ट्रवादी है? क्या राष्ट्रवाद की इतनी छोटी संकीर्ण परिभाषा हो जाएगी।
मायावती और अखिलेश कह रहे हैं कि कांग्रेस से उनका कोई गठबंधन नहीं हुआ है, वह भ्रम न फैलाए?
हमारा कर्तव्य यह है कि हम जो भी लोकतंत्र बचाने की लड़ाई में हैं, संविधान बचाने की लड़ाई में हैं और मोदी जी के इस छद्म राष्ट्रवाद का विरोध कर रहे हैं, ऐसी शक्तियों का हम सम्मान करें। जब उन्होंने हमसे अलग हटकर के अपना समझौता किया हमने उसका स्वागत किया। फिर हमने एक रास्ता दिखाया कि आप हमारे लिए नहीं लड़ रहे हो, हम भी नहीं लड़ेंगे।
पश्चिमी बंगाल में आपका लैफ्ट के साथ गठबंट्टान होने जा रहा है, वह फेल भी हो सकता है। अभी कुछ तय नहीं है?
हमारी लोकल इकाई बुनियादी तौर पर वर्षों मार्क्सवादियों से लड़ती रही है। एक बड़ा कठिन सवाल है कि हमारी और उनकी सोच में बड़ी साम्यता है। मगर बंगाल की ग्राउंड राजनीति में हम साथ खड़े नहीं हो पा रहे हैं। उनकी केरल इकाई तो बिल्कुल ही खड़ा होने को तैयार नहीं है। राजनीति में लीडरशिप का काम यही है कि आपको विरोधाभाष को मैनेज करना पड़ता है। हम मैनेज करेंगे। जैसी भी स्थिति आएगी, मगर हमारी सैद्धांतिक-वैचारिक लाईन एक रहेगी। भविष्य में भी हम कोशिश करेंगे।
दिल्ली और पंजाब में आम आदमी पार्टी के साथ अभी आपका पूरी तरह तालमेल नहीं बैठ पाया है। इसको लेकर क्या संभावना है?
केजरीवाल जी के साथ उनके गुरु की नहीं बन पाई, उनके दोस्तों की नहीं बन पाई तो हम कहां ठहरेंगे। हममें और उनको एक कॉमन बात है कि भाजपा को हराना है। हम थैंक्यू कहेंगे उनको।
प्रियंका गांधी की जो गंगा यात्रा चल रही है उससे मतदाता कितना प्रभावित होंगे? क्या इस गंगा यात्रा को मोदी के ‘गंगा मां के 2014 के बुलावे’ का जवाब कहा जाए?
यह प्रियंका गांधी की पॉलिटिकल सक्रियता का एक बड़ा उदाहरण है। गंगा इस देश की भावनात्मक-सांस्कृतिक आध्यात्मिक धारा है। जिसके तट पर आप पूजा पाठ भी करते हैं और अंत्येष्टि भी करते हैं। जिसका जल सब जगह चढ़ता है। वह वास्तविक रूप में जगत धर्म की गंगा है। प्रियंका जी ने अपनी पहली राजनीतिक यात्रा के लिए सनातन धर्म के इस गंगा मार्ग को चुना है। मकसद यह रखा कि मैं इसके जरिए गरीबों, पिछड़ों, कमजोरों से संपर्क करूंगी। मैं समझता हूं कि मोदी जी को तो मां गंगा ने बुलाया नहीं, बल्कि बेटी को जरूर बुलाया है।
क्या पौड़ी लोकसभा सीट को लेकर सतपाल महाराज ने कांग्रेस हाईकमान को ऐसा कोई मार्मिक पत्र भेजा है कि घर वापसी करना चाहता हूं?
जब-जब भाजपा वाले उनकी मूंछें नीचे को करते हैं तब-तब वो अपने पुराने दिनों को याद करते हैं। उनकी मूंछें ऊपर हों या नीचे हों, हमारा क्या मतलब? हम उनका कोई टै्रक रिकार्ड नहीं रखते हैं।
आपने सतपाल महाराज का रास्ता रोक दिया है आप उन्हें कांग्रेस में वापसी कराना नहीं चाहते हैं?
मेरी तरफ से कोई रोड़ा नहीं है।
सभी पुराने कांग्रेसियों का कहना है कि रावत जी बड़ा दिल नहीं दिखा पा रहे हैं, जबकि वापसी को लेकर आलाकमान तैयार है?
मेरे सामने कभी कोई बात ही नहीं हुई। अगर पुराने दोस्त इच्छा जाहिर करते हैं तो मैं कह दूंगा कि माफ किया। वह अपराधी नहीं हैं, बल्कि उत्तराखण्ड के अंदर लोकतंत्र के अपराधी हैं।
उत्तराखण्ड कांग्रेस में गुटबाजी के क्या कारण हैं। इंदिरा हृदयेश और प्रीतम सिंह आपकी खिलाफत क्यों कर रहे हैं?
हमारी खिलाफत कहीं नहीं है। अब आपको भला कोई याद करता रहे सुबह, शाम, दोपहर तो आप उसको नाराजगी बता दे रहे हैं। ऐसा अन्याय मत करिए। वह हमारे साथी हैं, सहयोगी हैं। हृदय से उनका आभारी हूं। अपनों को तो बार-बार याद किया जाता है। उनके अपनत्व के लिए मेरी तरफ से बहुत धन्यवाद।
आपके समर्थकों को पीसीसी में पूरी तरह नकार दिया गया है। क्या आप इसे स्वीकारेंगे?
कुछ रेस्ट पीरियड सा होता है। मेरे समर्थकों का भी इसे रेस्ट पीरियड समझा जाए।
मतलब आप सहमत हैं कि आपके समर्थकों को किनारे किया गया?
मैं इस पर केवल हंस सकता हूं।