23 जनवरी को मैनपुरी के बेवर में देश के शहीदों को समर्पित 48 वें ‘शहीद मेले ‘ का शुभारम्भ हुआ। यह हिंदुस्तान में शहीदों की स्मृति में लगने वाला सबसे लम्बी अवधि का मेला है। बेवर में वर्ष 1972 से शहीद मेले का आयोजन होता आ रहा है।
23 जनवरी से 10 फ़रवरी तक लगने वाला यह मेला प्रतिवर्ष शहीदों की याद में लगाया जाता है। 23 जनवरी को नेताजी सुभाष चंद्र बोस जयंती पर उन्हें याद करते हुए इस कार्यक्रम की शुरुआत उनकी प्रतिमा पर माल्यार्पण करके किया गया।इस वर्ष मेले को पंडित गेंदालाल दीक्षित को समर्पित किया गया है। इतिहास के कालखंड से भुला दिए गए मैनपुरी केस के नायक पं. गेंदालाल दीक्षित को नमन किया जाएगा जिन्होने चंबल घाटी के बीहड़ो से लेकर जन-जन में आजादी का बीज रोपित किया। क्रांतियोद्धा के बलिदान शताब्दी वर्ष में देशभक्ति कार्यक्रमों के जरिए महान क्रांतिकारी का क्रांतिगान भी शहीद नगरी से किया जाएगा।
गौरतलब है कि शहीद मंदिर में आजादी आंदोलन के दौरान देश के सबसे बड़े गुप्त क्रांतिकारी दल ‘मातृवेदी’ के कमांडर इन चीफ दीक्षित की लगी प्रतिमा पर श्रद्धा सुमन अर्पित किया जाएगा।
शहीदों की मज़ारों पर, लगेंगे हर बरस मेले,वतन पर मिटने वालों का, यही बाकी निशाँ होगा।।
उसके उपरांत मशाल प्रज्जवलित कर नगर में शहीदों की याद में श्रद्धांजलि यात्रा भी निकाली गयी। इसमें नगर के ज्ञानदीप मॉडल स्कूल, ओविसराम इंटर कॉलेज, जीएसएम महाविद्यालय और नेशनल पब्लिक विद्यालय के छात्र – छात्राओं ने बैंड बाजों के साथ प्रतिभाग किया। कार्यक्रम में आये गजल श्रीनिवास ने कहा कि देश में ऐसे आयोजन हर राज्य में होने चाहिए क्यूंकि शहीद ही भारत की आत्मा में बसतें हैं और हम सब उनके ऋणी हैं। इस अवसर पर उन्होंने देशभक्ति गीत भी गाया। विशिष्ट अतिथि रिजवान खान ने अपने सम्बोधन में कहा कि शहीदों की याद में लगने वाले मेले से उन युवाओं की याद ताजा हो जाती हैं जिन्होने बिना अपनी जान की परवाह किये अपना सब कुछ देश पर न्योछावर कर दिया।
जिलाधिकारी एवं एसएसपी ने अपने उद्बोधन में इस कार्यक्रम की ढेरों प्रशंसा की। पहले दिन के कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में हैदराबाद से आये प्रसिद्द गायक गजल श्रीनिवास ,जिन्होंने लगभग 123 भाषाओँ में गीत गाकर अपना नाम गिनीज बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड में भी दर्ज कराया है।
विशिष्ठ अतिथि के तौर पर शहीद अशफ़ाक़ उल्ला खां के पौत्र अशफ़ाक़ उल्ला खां,शहीद सआदत खान के वंशज रिजवान खान,मैनपुरी के जिलाधिकारी महेंद्र बहादुर, कप्तान अजय कुमार पांडेय, शहीद शोध संसथान अयोध्या के अध्यक्ष सूर्यकान्त पांडेय,फोटोग्राफर एवं पत्रकार सुनील दत्ता, पत्रकार एवं समाजसेवी शाह आलम , सूफ़ी-ग़ज़ल गायक रोहित हितेश्वर, सैंड आर्टिस्ट हिमांशु शेखर परीदा,शहीदों के लिए कार्य कर रहे शमशेर, राहुल इंकलाब ,श्यामू त्रिपाठी आदि अतिथि उपस्थित थे।
मेले के आयोजक राज त्रिपाठी ने बताया कि, ” आंध्र प्रदेश में भी शहीद मेले के आयोजन की तैयारियां चल रहीं हैं, इसी के चलते वहां के लोगों ने यहां बड़ी संख्या में उपस्थित होकर प्रतिभाग किया।”
शहीद मंदिर
बेवर में एक शहीद मंदिर भी है। शहीद मंदिर, जहां 26 आजादी के महानायक एक साथ एक मंडप तले विराजमान हैं। इनमे से तीन शहीद (अमर शहीद जमुना प्रसाद त्रिपाठी,अमर शहीद विद्यार्थी कृष्ण कुमार उम्र 14 वर्ष व अमर शहीद सीताराम गुप्त)उ0प्र0 के ज़िले मैनपुरी के नगर बेवर में पुलिस थाने के ठीक सामने 15 अगस्त 1942 को देश को अंग्रेजी सत्ता से स्वतंत्र कराने का सपना आंखों में संजोये संघर्ष में शहादत दे देश के लिए एक अनुकरणीय गाथा लिख गए, साथ ही शहीदों की दो प्रतिमाएं एक क्रांतिकारियों के द्रोणाचार्य कहे जाने वाले ,मातृवेदी नामक गुप्त संस्था के संस्थापक व मैनपुरी एक्शन के अगुवा पंडित गेंदालाल दीक्षित एवं नवीगंज नगर के शहीद कुंवर देवेश्वर तिवारी की भी हैं।
महान क्रांतिकारी गेंदा लाल दीक्षित
देश के लिए सर्वस्व त्याग की भावना को जन्म देने वाले महान क्रांतिकारी गेंदालाल दीक्षित का नाम भारतीय क्रांतिकारी इतिहास की शीर्ष सूची में शामिल है। क्रांतिकारियों के द्रोणाचार्य के नाम से विश्वविख्यात गेंदालाल दीक्षित का जन्म आगरा जिला मुख्यालय से करीब 72 किमी दूर बाह तहसील के मई गांव में 20 नवंबर 1888 को हुआ था। बेहद प्रतिभावान गेंदालाल ने आगरा मेडिकल कॉलेज में डाक्टरी की पढ़ाई छोड़ कर इटावा जिले की औरैया तहसील में डी.ए.वी स्कूल के हेडमास्टर का पदभार सम्भाला था। यहीं उन्हें देश-विदेश के क्रांतिकारी साहित्य का अध्ययन करने के साथ दुनिया भर की उथल-पुथल की जानकारी मिलती रही। उन दिनों आपके लिए ‘लीडर’ न्यूज पेपर की एक मात्र प्रति औरैया हर रोज आती थी। उन्होंने यहीं से शिवाजी समिति के जरिये गुरिल्ला वार के अनोखे प्रयोग किये और अपने अभिन्न मित्र ब्रह्मचारी लक्ष्मणानंद के साथ मिलकर चंबल घाटी के कुख्यात दस्यु सरदारों पर ऐसा जादू चलाया कि सब के सब क्रांति-योद्धा बन बैठे।
गोरों से मोर्चा लेने के लिए दीक्षितजी ने अपने बलबूते मातृवेदी के 5 हजार लड़ाका सैनिकों और राजस्थान की खारवा रियासत से 10 हजार सैनिकों को बंदोबस्त कर लिया था। वे पंजाब और दिल्ली के क्रांतिकारियों के साथ मिलकर ब्रिटिश हुकूमत का तख्ता पलट देना चाहते थे। पूरी तैयारी हो चुकी थी लेकिन मुखबिरी से सब कुछ बिखर गया। अगर यह एक्शन कामयाब हुआ होता तो 1857 से बड़ी ऐतिहासिक घटना आकार लेती। ये मलाल गेंदालाल दीक्षित को आखिरी वक्त तक रहा। 20 दिसंबर 1920 (बुधवार) को जब वो मृत्युशैय्या पर थे, अपनी बिलखती हुई पत्नी और छोटे भाई को समझाते हुए कहा- ‘दु:ख तो केवल यही है कि मैं अत्याचारियों के दमन का बदला नहीं ले पाया। मुझे विश्वास है कि मैं पुन: जन्म लेकर गोरेशाही का नाश करूंगा।’ पत्नी से आगे कहा कि मैं वीरगति को प्राप्त हो रहा हूं। मेरे न रहने पर देश के लोग आपकी मदद को आगे आएंगे। 21 दिसंबर 1920 को दिल्ली के अस्पताल में महान क्रांतिकारी गुमनाम अपनी अंतिम यात्रा पर चले गए।