वनाधिकार आंदोलन को नए क्षेत्रीय दल में तब्दील किए जाने की चर्चाओं के बीच ‘दि संडे पोस्ट’ की किशोर उपाध्याय से बातचीत
देश में चर्चा है कि आप वनाधिकार आंदोलन से अपनी नई पार्टी बना रहे हैं। इसमें कहां तक सच्चाई है?
पहली बात तो यह है कि वनाधिकार आंदोलन केवल मेरा ही नहीं है। आपको समझना होगा कि वनां पर अधिकार का मतलब यह नहीं है कि हम केवल वनों पर अपना अधिकार मांग रहे हैं। इसकी जड़ में हमारे वे सभी अधिकार हैं जो हमें सदियां से मिलते रहे हैं। प्राकøतिक संपदा न तो सरकार देती है और न ही उसे छीनने का किसी को अधिकार है। सदियों से हम लोग ही वनों का संरक्षण करते थे। जीवन-यापन के लिए हम वनों पर निर्भर रहते आ रहे हैं। अब हमसे वह अधिकार छीन लिए गए हैं। लेकिन बदले में हमें उसका विकल्प नहीं दिया जा रहा है। यह अपने संसाधनों पर अधिकार का मामला है। रही बात राजनीतिक पार्टी बनाने की तो यह अभी कोई निश्चित नहीं है। चर्चाएं हैं और चर्चाएं होती ही रहती हैं। जब मैंने इस आंदोलन को शुरू किया था तब से ऐसी चर्चाएं हो रही हैं। मैं नहीं समझ पा रहा हूं कि इन चर्चाओं को किस रूप में लिया जा रहा है, लेकिन क्या इस डर से हम अपने राज्य के निवासियों की बात करना ही बंद कर दें।
लेकिन इस आंदोलन में राजनीतिक संगठनां की भागीदारी कम देखने को मिल रही है। कांग्रेस के वे लोग ही इसमें दिखाई दे रहे हैं जो आपके समर्थक रहे हैं?
ऐसा नहीं है, आज तो सामाजिक संगठन भी इस आंदोलन से जुड गए हैं। सभी राजनीतिक दलों के लोग इससे जुड़े हैं। भाजपा तक के ऐसे कई लोग हैं जो पार्टी अनुशासन के डर से खुलकर सामने नहीं आ रहे हैं, लेकिन उनका समर्थन इस आंदोलन को मिल रहा है। यह एक सामाजिक और वनवासियों का आंदोलन है, एक व्यक्ति का नहीं है। हरीश रावत जी के समर्थक भी इससे जुड़ रहे हैं। स्वयं उनके पुत्र आनंद रावत हल्द्वानी कार्यक्रम में आए। जैसे जिसको समय मिलता है वह भगीदारी करने आ जाता है।
आपके समर्थक नेताओं और कार्यकर्ताओं का कहना है कि नई पार्टी बनाए जाने की पूरी तैयारी हो चुकी है। 70 विधानसभा क्षेत्रों में नेतृत्व खोजे जाने की कवायद चल रही है?
अभी तो आप कह रहे हैं कि किशोर वनाधिकार को लेकर पार्टी बना रहे हैं तो फिर मेरी बात पर भरोसा करें। मैंने तो नहीं कहा है। यह ठीक है कि हर तरह के आंदोलन से जुड़ने वाले लोग सबसे पहले राजनीतिक लोग ही होते हैं। इससे लोगों को लगता है कि नई पार्टी बनाई जा रही है। पार्टी बनाना कोई आसान काम नहीं है। इसके लिए संगठन चाहिए, संसाधन चाहिए, वह हमारे पास नहीं हैं। मैं जहां-जहां वनाधिकार आंदोलन की बैठकां में गया हूं सबने यही कहा है कि इसके लिए राजनीतिक ताकत बनानी होगी तभी सरकार इस पर ध्यान देगी नहीं तो अपनी सरकार लाएंगे फिर राज्य में वनाधिकार कानून लागू करेंगे। यह लोगों की सोच है जो सामने आ रही है। लेकिन यह सोच एकदम से गलत भी नहीं है। सत्ता तब तक किसी मुद्दे पर ध्यान नहीं देती जब तक वह बड़ा न हो, उसकी राजनीतिक ताकत न हो। यानी राजनीतिक ताकत के दबाव में ही सत्ता सुनती है। इसलिए ऐसी चर्चाएं हो रही हैं।
कांग्रेस से आप खफा चल रहे हैं। चर्चा यह भी है कि कांग्रेस के कई नेता आपके साथ आ रहे हैं। क्या कांग्रेस में फिर से टूट होने वाली है?
मैं कांग्रेस से कभी खफा नहीं हो सकता। मैं कांग्रेसी विचारधारा से जुड़ा व्यक्ति हूं। लेकिन आज प्रदेश में मैं देखता हूं कि विचारधारा से ज्यादा व्यक्तिगत विचारधारा पनप चुकी है। उत्तराखण्ड के हितां के बजाय अपने हितों को ज्यादा तरजीह दी जा रही है। जो मुद्दे कांग्रेस को उठाने चाहिए थे उन पर कांग्रेस के विधायक और नेता क्यों चुप रहते हैं, मैं नहीं समझ पा रहा हूं। अभी विधानसभा में पंचायती राज कानून में बदलाव किया गया। ग्रामसभा में दो बच्चों और हाईस्कूल की शिक्षा अनिवार्य कर दी है। आप समझते हैं इसका क्या प्रभाव पड़ेगा। आज उत्तराखण्ड के गांव खाली हो रहे हैं। ग्रामसभाएं केवल इस कारण बची हैं कि उनमें मतदाता आज भी दर्ज हैं, जबकि वे लेग शहरां में रह रहे हैं। अब क्या होगा जो लोग गांव में रह रहे हैं वे तो नए कानून से चुनाव नहीं लड़ पाएंगे, शहर के लोग चुनाव लड़ने गांव आएंगे। वे गांव को छोड़ चुके हैं। जेसे विधायक चुनाव जीत कर देहरादून में बस जाता है वैसे ग्राम प्रधान भी दिखाई देंगे। कांग्रेस विधायकों ने सदन में इस पर कोई विरोध नहीं किया। दलित युवक की हत्या हो गई, दलितों पर अत्याचार बढ़ रहे हैं। सरकार भ्रष्टाचार में संलिप्त है, लेकिन सरकार के खिलाफ बात करने को काई तैयार नहीं है। यही मेरी नाराजगी है।
माना जा रहा है कि हरीश रावत और आपके बीच संबंधों में खटास कम हो चुकी है। वनाधिकार आंदोलन को हरीश रावत पूरा समर्थन दे चुके हैं। अब उनके समर्थक आपके साथ दिखाई देने लगे हैं। इसका मतलब चर्चाएं सही हैं कि आप दोनों मिलकर कोई न कोई काम करने वाले हैं जो राजनीतिक तौर पर बड़ा होगा।
हरीश रावत जी से मेरे संबंधों में कोई खटास नहीं है। उनका समर्थन वनाधिकार आंदोलन को पहले भी था और आज भी है। यह बात और है कि उनके पास समय नहीं है। जिस कारण वे साथ नहीं आए। यही बहुत है कि वे समर्थन दे रहे हैं। बाकी बातें कयास हैं उन पर विमर्श होने दीजिए।
तो यह माना जाए कि जल्द ही किशोर उपाध्याय कांग्रेस के नेताओं को साथ लेकर अपनी नई पार्टी बना रहे हैं?
आप फिर उसी बात पर चल रहे हैं। आने वाले समय में क्या होगा यह मैं अभी नहीं कह सकता। जो होगा आपके सामने आ जाएगा। इतना मैं जरूर कह सकता हूं कि जो होगा राज्य और राज्य के निवासियों की बेहतरी के लिए ही होगा।